प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग में कमी
, बुधवार, 6 जुलाई 2011 (13:49 IST)
अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि एशिया में ऊर्जा संसाधन के तौर पर इस्तेमाल किए गए कोयले और उससे हुए प्रदूषण ने ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में भूमिका निभाई है। उनका कहना है कि एशियाई देशों खासकर चीन में व्यापक स्तर पर कोयले के इस्तेमाल से धुंए के घने काले बादल पैदा हुए।इन बादलों की चादर पर जब सूर्य की किरणें पड़ी तो वो 'एरोसोल सल्फेट' जैसे कणों की परत के चलते वातावरण में शामिल नहीं हो सकीं और वापस परावर्तित हो गईं। इस तरह धुंए के बादलों ने ग्लोबल वार्मिंग की प्रक्रिया के उलट काम किया और तापमान वृद्धि के असर को कम कर दिया।अमेरिकी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक चीन में 2002 से 2007 के बीच कोयले के प्रयोग में दोगुनी बढ़ोत्तरी हुई है।बहस : असल में साल 1998 से 2008 के बीच ग्लोबल वार्मिंग यानी भूमण्डलीय तापवृद्धि में आई कमी के चलते कई पर्यावरण विदों और विशेषज्ञों ने कहा था कि अब यह साबित हो गया है कि जलवायु परिवर्तन मुख्यत: इंसानी गतिविधियों की वजह से हो रहा है।इन विशेषज्ञों का कहना था कि इन दस सालों में ग्रीन हाउस गैसों से तापमान में बढ़ोतरी जारी रही फिर भी ग्लोबल वार्मिंग के स्तर में कमी दर्ज की गई।बीबीसी संवाददाता रिचर्ड ब्लैक के मुताबिक अमेरिकी की ‘अकेडमी फॉर साइंस’ के वैज्ञानिकों का कहना है कि हालांकि कोयले के जलने से हुए प्रदूषण से अधिक मात्रा में कार्बन उत्सर्जन हुआ, लेकिन धुंए से बने घने काले बादलों सूर्य की किरणों को वातावरण की परत में दाखिल नहीं होने दिया। बोस्टन विश्वविद्यालय के प्रमुख अनुसंधानकर्ता रॉबर्ट कॉफमैन ने कहा, 'कुछ समय पहले एक सम्मेलन के दौरान किसी ने मुझसे कहा कि जलवायु परिवर्तन एक झूठ है, और अगर ऐसा नहीं है तो फिर ग्रीन हाउस के बढ़ते प्रभाव के बावजूद 1998 से 2008 के बीच पृथ्वी के तापमान में कमी कैसे आई। इसके बाद मैंने कारणों की जांच शुरू की।'हालांकि रॉबर्ट कॉफमैन ने साफतौर पर कहा कि कोयले के प्रदूषण से बड़ी मात्रा में कार्बन भी पैदा हुआ और व्यापक स्तर पर देखें तो आने वाले दशकों में यह कार्बन वातावरण में मौजूद रहते हुए ग्लोबल वार्मिंग की वजह बनेगा।