रोमांस को किताब की शक्ल में लोगों तक पहुँचाने वाले ब्रितानी प्रकाशक ‘मिल्स एंड बून’ ने अब अपनी किताबें बेचने के लिए भारत का भी रुख किया है। कंपनी को उम्मीद है कि उसका कामुक कथानक भारत के लोगों के दिलों में जगह बना लेगा और उसका साहित्य यहाँ अपने लिए बाजार तलाश कर लेगा।
पढ़ने का शौक रखने वाले औरत के इस वर्ग से मैं राजधानी दिल्ली के एक कैफे में मिली। बातचीत में सीमा मोनहॉट ने बताया कि उनके लिए किसी भी उपन्यास का मुख्य आकर्षण 'फील गुड फैक्टर' होता है। सीमा को किसी भी कहानी का सुखद अंत पसंद हैं।
सीमा कहती हैं कि रोमांस, किसी लड़की के लिए तब तक चलने वाली अनवरत प्रक्रिया है, जब तक वो मर न जाए। उम्र का इससे कोई ताल्लुक नहीं होता, आपको हमेशा वही प्यार चाहिए होता है जिसकी अनुभूति पहली बार अपने ब्वायफ्रैंड के साथ, मंगेतर के साथ या जिसे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं उसके साथ हुई होती है।
हालाँकि 'मिल्स एंड बून' जिसका अपने शहर ब्रिटेन में प्यार के बाजार में तीन चौथाई हिस्सा है, केवल भारत में ही शुरुआत कर रहा है। इनकी किताबें देश में पहले से ही प्रचलित हैं, उसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि ये अनाधिकृत रूप से विदेश से आतीं रहीं हैं। किताबों के शौकीन खुद को लंबे समय से इनका मुरीद बताते हैं।
रचना श्रीवास्तव की ही बात करते हैं। वह कहती हैं कि इन्हीं किताबों के बीच वह बड़ी हुई हैं, इससे उनके जेहन में एक आदर्श आदमी की छवि को आकार मिला है। मैं हमेशा एक ऐसी रात की कल्पना करती हूँ, जिसमें चमकदार कवच में, लंबा, गहरे रंग का और खूबसूरत... कोई आ रहा है, मुझे नींद से जगा रहा है और कहीं दूर ले जा रहा है।
मैंने समूह में औरतों से पूछा कि उनका भारतीय पुरुषों में आदर्श खयाली नायक कौन होगा? उनका जवाब था कि ‘वो’ बॉलीवुड अभिनेता ऋतिक रौशन और शाहरुख खान, व्यवसायी अनिल अंबानी और उद्योगपति सुनील मित्तल का मिलाजुला रूप होना चाहिए। वाकई ये दिलचस्प है, यही आज के आदर्श भारतीय पुरुष हैं। महिलाएँ अब पुराने महाराजाओं की तरफ नहीं देखतीं।
डार्क एंड हैंडसम : सविता जैन कहती हैं कि समकालीन भारत की पसंद समकालीन पुरुष हैं, एक ऐसा पुरुष जिसने खुद को अपने आप बनाया हो, पूर्वजों की संपत्ति पर निर्भर न हो, यह उन्हे ज्यादा रोचक बनाता है। सविता की सहेलियाँ इस पर चुटकी लेने से नहीं चूकीं कि सपनों का शहजादा लंबा, गहरे रंग वाला, खूबसूरत, अमीर होगा और उसके पास खुद का हवाई जहाज होगा।
उन्होंने बताया कि वास्तविक जीवन में पुरुषों में जितनी अच्छाइयाँ होती हैं उतनी ही बुराइयाँ भी रहती हैं लेकिन इन काल्पनिक कहानियों के पुरुषों में अलग ये होता है कि उसकी कमियों का कोई अस्तित्व नहीं होता है।
शायद बदक़िस्मती से लेकिन वास्तविक भारतीय पुरुष के बारे में महिलाएँ कहतीं हैं कि उपन्यास के हिस्से कई बार वास्तविक जीवन में उनकी पसंद को प्रभावित करते हैं।
सविता जैन कहतीं हैं कि जब आप किताब पढ़ें, उन क्षणों को अपने प्रियतम के साथ फिर से जिएँ जब आप उन्हें मिलें। किरन चौधरी कहती हैं, 'मुझे तो लगता है कि ये कहानियाँ केवल कल्पना हैं। जब आप इन्हें पढ़ रहे होते हैं तब तक उनके साथ खुश रहते हैं, लेकिन असल ज़िंदगी में ऐसे हीरो नहीं मिलते हैं'। अपने लिए आदर्श जीवन साथी तलाश करना बहुत मुश्किल है। ‘मिल एंड बून’ के हिसाब से, आप सपनों की दुनिया में पहुँच जाते हैं और बाद में निराश होते हैं।
वास्तव में इस एक आलोचना ने मिल्स एंड बून के स्तर को समान कर दिया है - वास्तविता का पूर्ण अभाव कथानक में और चरित्रों दोनों में दिख रहा है लेकिन एक और रीडिंग समूह की मीनाक्षी जैन का मानना है कि वास्तविकता उनकी पसंद की चीजों में सबसे आखिरी स्थान पर आती हैं।
उन्होंने कहा कि जिस दुनिया में हम रह रहे हैं, वह तनाव से भरी है। इस तरह की किताबें उस तनाव से कम से कम कुछ देर की राहत तो देती हैं। आप खुद को हीरोइन की जगह रख कर कल्पना की दुनिया में खो सकते हैं।