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भिखारी या साहूकार?

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- इर्शादुल हक (पटना से)
BBC
बिहार के कुछ भिखारी अब साहूकारों की भूमिका में आ गए हैं और वो अपनी भीख से प्राप्त आमदनी पर रोजाना तीन से चार प्रतिशत तक का मुनाफा कमाने लगे हैं। अपनी इस नई भूमिका और समाज में अपने बढ़े महत्व से जयराम और समीरा जैसे भिखारी काफी खुश नजर आते हैं।

पटना के उन इलाकों में जहाँ छोटे दुकानदारों के पास ग्राहकों की काफी भीड़ होती है उन्हें अपने ग्राहकों को छुट्टे पैसे लौटाने में रेजगारी की कमी का समाना करना पड़ता है, भिखारियों की पूछ बढ़ गई है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि रेजगारी नहीं होने के कारण उनके ग्राहक सामान खरीदे बिना दूसरी दुकान का रुख कर लेते हैं जिससे उन्हें नुकसान होता है।

इन्हीं बातों के मद्देनजर दुकानदारों को भिखारियों से सम्पर्क करना पड़ता है ताकि उन्हें भिखारियों से छुट्टे पैसे मिल जाएँ। लेकिन इसके लिए उन्हें तीन से चार प्रतिशत तक अधिक पैसा अदा करना पड़ता है।

महत्व का एहसास : पटना के मंदिरों और मस्जिदों के बाहर नियमित रूप से भीख माँगने वाले जयराम कहते हैं, 'हर दिन हम शाम ढलने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। हमें भीख में मिले प्रति 97 रुपए के बदले हथुआ मार्केट, और पटना जंक्शन के दुकानदार सौ रुपए दे देते हैं।'

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जयराम कहते हैं, 'हर 97 रुपए पर तीन-चार रुपए अधिक मिलना तो आमदनी का नियमित जरिया बन ही गया है लेकिन हमारे लिए इससे भी अहम बात ये है कि हमें भी अपने महत्व का एहसास होता है वर्ना एक भिखारी को पूछता कौन है।'

वे कहते हैं, 'दुकानदार हमारी राह देखते रहते हैं। कई बार हम अपनी शर्तों पर दुकानदारों को छुट्टे देते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ रेजगारी की किल्लत झेल रहे दुकानदार पाँच से दस रुपए एडवांस भी दे देते हैं।'

45 वर्षीय समीरा बेगम नेत्रहीन हैं। वह पटना की मस्जिदों के बाहर हर शुक्रवार को भीख माँगती नजर आ जाती हैं। जुमे का दिन इनके काफी व्यस्त होता है। आम तौर पर जुमे की नमाज खत्म होने के बाद जब नमाजी मस्जिद से बाहर आने लगते हैं तो भिखारियों को दान देते हैं।

लेकिन समीरा के लिए यह स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि आम तौर पर तमाम मस्जिदों में नमाज दस-पंद्रह मिनट के अंतराल पर ही खत्म होती है इसलिए समीरा को उस दिन कम से कम तीन मस्जिदों को कवर करने के लिए 6-7 रुपए ऑटो के किराए के रूप में खर्च करना पड़ता है।

वे कहती हैं, 'ज्यादा से ज्यादा पैसे हासिल करने के लिए मैं ऑटो से जल्द से जल्द अगली मस्जिद तक पहुँचने की कोशिश करती हूँ क्योंकि न सिर्फ इस दिन हमारी आमदनी बढ़ जाती है बल्कि जुमे के दिन दुकानदार भी खुल्ले पैसे के लिए हमारा बेसब्री से इंतजार करते हैं।'

भिखारियों को जहाँ अपनी बढ़ती पूछ से खुशी मिल रही है वहीं रेजगारी की दिक्कत से जूझ रहे दुकानदारों को भी इनके पैसों से सहूलियत होने लगी है।

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