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ये मच्छर जिद्दी हैं...

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मच्छरों को भगाने के लिए एक लोकप्रिय अमेरिकी निरोधक 'डीट' अपना प्रभाव खोता जा रहा है।

ब्रिटेन की एक संस्था 'लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन और ट्रॉपिकल मेडीसिन' के शोधकर्ताओं का कहना है कि पहले तो इस मच्छर रिपेलेंट का प्रभाव मच्छरों पर पड़ता है लेकिन धीरे धीरे वे इसे अनदेखा करने लगते हैं।

डीट को अमेरिकी सेना ने विकसित किया था लेकिन शोधकर्ता मानते हैं कि अब इसका विकल्प ढूंढने की जरूरत है।

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन के डॉक्टर जेम्स लोगान कहते हैं, 'हमें समझना होगा कि मच्छर निरोधक किस तरह काम करते हैं औऱ मच्छर कैसे इन्हें पहचान पाते हैं और फिर उनके खिलाफ प्रतिरोधी ताकत बना लेते हैं। तभी हम इस समस्या का समाधान निकाल सकेंगे।'

डीट कीड़ो-मकोड़ो को भगाने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले निरोधकों में से एक है। इसका रसायनिक नाम 'एन,एन डाईथाइल-मेला-टूलामइड' है। इसका विकास अमेरिकी सेना ने दूसरे विश्व युद्द के दौरान जंगलों में लड़ाई के लिए किया था।

परीक्षण

डीट कई सालों तक काफी करागर साबित हुआ लेकिन अब शायद ऐसा नहीं है। शोधकर्ताओं ने एडिस इज्पिटी मच्छरों पर लैब में परीक्षण किया।

एक शोधकर्ता की बांह पर डीट लगाकर फिर मच्छरों को छोड़ा गया। लेकिन डीट की वजह से मच्छर उस बांह पर नहीं फटके।

लेकिन कुछ घंटो बाद उन्हीं क्लिक करें मच्छरों को दुबारा मौका दिया गया तो शोधकर्ताओं ने पाया कि डीट कम प्रभावी हो गया था।

शोधकर्ताओं ने मच्छरों की एंटिना में इलेक्ट्रोड लगाया और पाया कि पहली बार तो वो डीट को सूंघ लेते हैं।

लेकिन दूसरी बार शायद उनकी सूंघने की क्षमता में कुछ परिवर्तन होता है जिससे वो डीट को कम सूंघ पाते हैं जिससे उसकी निरोधक शक्ति भी कम हो जाती है।

इससे पहले इन्हीं शोधकर्ताओं की टीम ने पताया लगाया था कि मच्छरों में आनुवांशिक बदलाव से वो डीट के लिए प्रतिरोधी शक्ति पैदा कर लेते हैं। (भाषा)

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