Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

संगीत दोस्त की तरह है-शुभा

बीबीसी 'एक मुलाकात' में शुभा मुदगल

हमें फॉलो करें संगीत दोस्त की तरह है-शुभा
, शनिवार, 25 अगस्त 2007 (22:37 IST)
BBCBBC
मशहूर गायिका शुभा मुदगल, जिन्होंने शास्त्रीय संगीत और लोकप्रिय संगीत का अद्भुत मेल करने की कोशिश की है। शुभा मुदगल शास्त्रीय संगीत सुनने वालों और लोकप्रिय संगीत के दीवाने युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।

आपको शास्त्रीय संगीत में रुचि कब और कैसे पैदा हुई और आपने इसकी शिक्षा कहाँ से ली?
मेरे माता-पिता ने संगीत की तालीम ली थी। उन्हें कला, संगीत और रंगमंच में गहरी रुचि थी। वैसे वे संगीत से पेशेवर तरीके से नहीं जुड़े थे, लेकिन उनकी संगीत के प्रति गहरी श्रद्धा थी। मेरे माता-पिता इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अँग्रेजी पढ़ाते थे। तो मुझे और मेरी बहन को घर में संगीत सीखने-जानने का भरपूर मौका मिला।

आपको सबसे अच्छे लेखक कौन-से लगते थे और घर में किसकी बातें सबसे अधिक हुआ करती थीं?
मेरे पिताजी को जोनाथन स्विफ्ट बहुत पसंद थे। स्विफ्ट खुद भी पढ़ाते थे। शेक्सपियर और मिल्टन भी पढ़ाए जाते थे। सिल्विया पैथ की भी बातें हुआ करती थीं।

आप इलाहाबाद में बड़ी हुईं तो क्या आपको बचपन में इलाहाबाद के बड़े-बड़े साहित्यकारों के साथ मिलने, रहने और बात करने का मौका मिला?
जी हाँ। ये मेरा सौभाग्य है कि साहित्य की महान विभूतियों को पास से देखने और मिलने का मौका मुझे मिला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पास बैंक रोड इलाके में हम रहा करते थे। हमारे घर के बगल वाला घर ही फिराक गोरखपुरी साहब का था। एक दिन घर के दरवाजे पर घंटी बजी और देखा फिराक साहब गेट पर खड़े हैं। महादेवी वर्मा से मुलाकात हुई। सुमित्रा नंदन पंत मेरे माँ के परिवार के निकट थे। वो भी बहुत प्यार से मिला करते थे।

क्या आपको शुरू से लगता था कि आप ललित कला में जाएँगी और संगीत सीखेंगी। इनमें से कोई आपका आदर्श था?
ये सोचा ही नहीं था कि कभी गाना सीखूँगी और कलाकार बन पाऊँगी। घर में हमेशा ये बताया गया कि संगीत और कविता को समझने की कोशिश करनी चाहिए। जब मैं संगीत सीख रही थी तो कभी नहीं कहा गया कि मुझे कलाकार ही बनना है और मंच से कार्यक्रम ही पेश करना है। घर से ऐसा कोई दबाव नहीं था।

अगर उस समय 'इंडियन आइडल' जैसी प्रतिस्पर्धाएँ हो रही होतीं तो आप जरूर जीत जातीं?
अगर ऐसे कार्यक्रमों में मैं हिस्सा लेती तो मुझे घर पर बैठा दिया जाता और संगीत नहीं सीख पाती।

वो कौन-सा दौर था जब आपने यह तय किया कि आपको संगीत में ही अपना कॅरियर बनाना है?
जब मैंने बीए पास किया तो मेरी माँ ने मुझसे कहा कि मेरे अंदर संगीत का जुनून है। मुझे संगीत में ही अपना कॅरियर बनाने के लिए कोशिश करना चाहिए। ये आवश्यक नहीं कि सबकी तरह मैं बीए, एमए और पीएचडी की पढ़ाई करूँ। उन्होंने कहा कि मैं एक साल तक संगीत की विधिवत शिक्षा लूँ और अगर लगता है तो उसे ज़ारी रखूँ। मैंने एक महीने में ही तय कर लिया कि मैं संगीत सीखूँगी और जमकर संगीत का अभ्यास करने लगी। मेरी सुबह और शाम संगीत सीखने में ही गुजरने लगी। लेकिन तब भी तय नहीं था कि मैं संगीत को ही अपना कॅरियर बनाऊँगी।

पसंद के गीत बताइए?
'डोर' फिल्म का एक गाना- ये हौसला कैसे मिले..., राहत फतेह अली खान का 'जिया धड़क-धड़क जाए...

आपके लिए संगीत क्या है?
संगीत मेरे दोस्त की तरह है, जिससे मेरा झगड़ा भी हो जाता है। कभी निराशा भी मिलती है। ये ऐसी यात्रा है जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। संगीत एक ऐसी धनी भाषा है जिसमें आप अपनी बात को कई तरीके से कह सकते हैं। मुझे तो लगता है कि मेरे लिए तो यही भाषा ही सबसे उपयुक्त है।

तो किस-किस तरीके से संगीत में आप अपनी बात कह सकती हैं?
आप इस कार्यक्रम में फिल्मी गाने अधिक चलाते हैं। लोग अक्सर कहते हैं कि ये हैप्पी सांग है या सैड सांग है। जैसे दोनों में कोई फर्क होता ही नहीं है। एक ही बात को कहने के कई अंदाज होते हैं। संगीत में पूरी रेंज है, जिसे आप इस्तेमाल कर सकते हैं।

आपके पसंदीदा शेड्स कौन-से हैं?
संगीत की मेरी तालीम भारतीय शास्त्रीय संगीत की विधाओं खयाल गायकी और ठुमरी-दादरा में है और चल भी रही है। जैसे मातृभाषा बोलने में आसानी होती है वैसे ही मुझे खयाल और ठुमरी-दादरा में भी आसानी होती है। मुझे कव्वाली, गजल और फिल्मी संगीत पसंद है। सिर्फ भारतीय ही नहीं बल्कि मैं दूसरे देशों और प्रांतों का संगीत भी पसंद करती हूँ। मैं संगीत की विद्यार्थी हूँ। हर तरह का संगीत एक बार जरूर सुन लूँगी, लेकिन मेरी अपनी प्राथमिकताएँ भी हैं।

एक समय था जब हर घर में लड़कियों को संगीत की तालीम दिलवाई जाती थी। लड़के भी भारतीय संगीत में रुचि लेते थे, लेकिन आज ये रुझान देखने को नहीं मिलता?
ये बहुत ही जटिल सवाल है। इसका सीधा जवाब देना संभव नहीं। हमारे संगीत और कला के प्रति जो पहले श्रद्धा देखने को मिलती थी वो आज देखने को नहीं मिलती। हमारे संगीत का प्रतिनिधि सिर्फ फिल्मी संगीत नहीं है। हमारे यहाँ शास्त्रीय, लोक, धार्मिक और जनजातीय संगीत भी है। हमारे घरों में विभिन्न अवसरों पर औरतें गाना गाया करती थीं। ये सब आज सुनने को नहीं मिलता है। हमारे संगीत की विविधता का गला घोंटा जा रहा है।

हमारे संगीत का गला घोंटा जा रहा है या हमारी संगीत परंपरा ने समय के साथ अपने में बदलाव नहीं लाया?
मैं आपसे एक सवाल पूछती हूँ कि अगर आपके घर में शादी है तो क्या शादी का गाना नहीं गाया जाएगा? जब सेहरा बँधेगा तो सेहरा बँधने का गाना नहीं गाया जाएगा? आप शादी का गाना गाएँगे या काँटा लगा...?

मानिए सेहरे में काँटा लगा हो तो?
अगर सेहरे में इतने काँटे लगे हों तो अजब ही बात होगी। जाहिर-सी बात है कि हर अवसर के लिए कुछ गीत-संगीत होते हैं, उसे गाइए। अगर कृष्ण जन्माष्टमी या ईद हो तो धूम मचा ले...गाने की क्या जरूरत है। उस दिन से जुड़ा कुछ तो गाइए। नेहरू पार्क में जब हम गाते हैं तो हर तरह का आदमी होता है। तो कैसे कह सकते हैं कि संगीत सुनने वाले कम हो रहे हैं। अगर हम आज शास्त्रीय संगीत गा रहे हैं तो हम आज के दौर का शास्त्रीय संगीत गा रहे हैं। इसे पुरातत्व विभाग में भेजने की क्या जरूरत है।

हमारी सोच और परंपराओं में जो परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं उसके लिए आप क्या हिंदी फिल्मों को जिम्मेदार मानती हैं?
हिंदी फिल्मों को क्यों दोष दें। उनका अच्छा समय चल रहा है। आज भी अच्छा संगीत सुनने वाले लोग हैं। अगर वो अच्छा संगीत सुनना चाहते हैं तो आवाज क्यों नहीं उठाते। क्योंकि आज तो ये सुविधा भी है कि आप एसएमएस से ये बता सकते हैं कि आपको कार्यक्रम अच्छा लगा कि नहीं। आप बता सकते हैं आप कौन सा गीत सुनना चाहते हैं। अगर आप ये एसएमएस कर सकते हैं एक फ़िल्म के किसिंग सीन पर आपकी राय क्या है तो ये संदेश क्यों नहीं भेजते कि आपको ये गाना सुनना है। अगर आवाज नहीं उठाएँगे तो दूसरे तो अपनी मनमानी करते रहेंगे।

रीमिक्स ट्रेंड के बारे में आपका क्या कहना है?
देखिए मैं तो संगीत की दृष्टि से ही बात कर सकती हूँ। अगर किसी गाने का रीमिक्स बनाया जा रहा है, उसे पुनर्जीवन दिया जा रहा है तो पहले ये बताइए कि किस कंपोजर ने सबसे पहले इस गाने को तैयार किया था। उस कंपोजर की सांगीतिक सोच को खत्म करना मुझे लगता है सही नहीं है। दूसरी बात ये है कि ये भी पता लगना चाहिए कि आप क्या नया लाए। अगर आपने तबला और ढोलक हटा दिया और ड्रम और की-बोर्ड्स ले आए तो लोगों तक आपका ये मैसेज जा रहा है कि तबला और ढोलक पुराना है, इसे फेंक दो। ये तर्क मुझे समझ नहीं आता।

आज दुनिया में भारत के सबसे जाने-माने संगीतकार एआर रहमान तो पश्चिमी वाद्य यंत्रों और तकनीकी का इस्तमाल करके संगीत तैयार करते हैं?
लेकिन अगर आप देखें तो वो पारंपरिक यंत्रों का भी पूरा इस्तमाल करते हैं। आपको उनके पास ढोल, मंजीरा, घंटी, इकतारा भी मिलेगा। लोक संगीत परंपरा की झलक भी मिलेगी। ऐसे लोग भी हैं जो परंपरा और आधुनिकता का खूबसूरत मेल कर रहे हैं। ये संगीत का एक प्रकार है। इसमें आप मिश्रण कर सकते हैं। आपको पसंद आए तो सुनिए नहीं तो न सुनिए। इस तरह के संगीत को अच्छा-बुरा कहने की क्या जरूरत है। और भारतीय फिल्मों में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। लंबे समय से पश्चिमी और भारतीय वाद्य यंत्रों का एक साथ इस्तेमाल होता आ रहा है। लेकिन भारतीय संगीत की विविधता को किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए।

आप से कहा जाए कि पुराने गाने को रीमिक्स करके गाइए तो आप कौन-सा गाना रीमिक्स करेंगी?
मैं तो रोज ही करती हूँ। मैं शास्त्रीय संगीत की पुरानी बंदिशों को रोज नया करके गाती हूँ। कोई गीत लेकर उसे नया जामा पहनाना तो हमेशा हमारी परंपरा में रहा है।

कोई ऐसा गाना जिसका रीमिक्स सुनकर लगा कि ये बनना ही नहीं चाहिए था। लगा हो जैसे गाने की हत्या हो गई?
कभी आर कभी पार...वो कभी नहीं होना चाहिए था।

अगर कोई सूफी संगीत का गाना आप सुनना पसंद करें तो कौन-सा बताएँगी?
मैं सूफी गाने सुनती हूँ। अभी एक-दो साल पहले रब्बी शेरगिल ने अपने सूफी गानों से बहुत धूम मचाई थी। अच्छा लगा कि अपनी तरह के संगीत में अपनी आवाज को लोगों तक पहुँचाने की हिम्मत किसी ने की। लोगों ने पसंद भी किया। उसी का गाना सुना दीजिए।

आप स्पिक मैके के कार्यक्रमों में भी जाती हैं। आपको क्या लगता है कि आज का युवा किस तरह का संगीत पसंद कर रहा है?
ये कहना मुश्किल है कि कोई एक तबका किस तरह का संगीत पसंद कर रहा है। एक तरफ देखने में आता है कि युवाओं को पारंपरिक संगीत में कोई रुचि नहीं है। वहीं ये भी देखने को मिलता है कि संगीत के संस्थानों में संगीत सीखने के लिए युवाओं का ताँता लगा रहता है।

कुछ लोग आपकी आलोचना करते हैं कि आप पारंपरिक संगीत से पॉप संगीत की ओर गई हैं। आपका क्या कहना है?
देखिए आलोचक बहुत अच्छे होते हैं और आलोचना से डरना नहीं चाहिए। वैसे कहीं मैंने अपनी आलोचना नहीं सुनी है। अगर कोई पब्लिक डिबेट हो तो शायद ही कोई कलाकार कहे कि मैंने लोकप्रिय संगीत गाया हो। लेकिन ये जरूर है कि मुझसे पहले जो संगीत के पंडित और विद्वान हुए हैं, उन सबने ऐसा किया हुआ है।

आपने कभी अपनी इमेज बनाने के बारे में सोचा है?
नहीं मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा। जब मैं शास्त्रीय संगीत गाती हूँ या पॉप संगीत गाती हूँ तो दोनों समय एक सी नजर आती हूँ। विदेश में भी ऐसे ही रहती हूँ।

आप इलाहाबाद की हैं, कभी अमिताभ बच्चन से मुलाकात हुई है?
अमिताभ बच्चन से मुलाकात तो नहीं हुई है, लेकिन जब राजकमल प्रकाशन ने उनके पिताजी का काव्य-संग्रह निकाला था तो मैंने गाना गाया था। तब मैं नई-नई ही दिल्ली आई थी।

आपका बचपन कैसा था?
बहुत ही मजेदार। हम अपने माँ-पिताजी के साथ संगीत समारोह में घूमने जाते थे। पहाड़ों पर जाते थे। मुझे फिल्में देखने का बहुत शौक था। मेरे दोस्त शर्त लगाते थे कि मैं फिल्म देखने के दौरान ही एक गीत याद करूँ और अधिकतर मैं शर्त जीत जाया करती थी।

कौन-सी फिल्में पसंद थीं?
मुझे याद है कि एक बार हम स्कूल से भागकर 'अभिमान' फिल्म देखने गए थे। बहुत ही बेहतरीन फिल्म थी। इस फिल्म के लिए स्कूल से भागना ठीक था।

आजकल जो संगीत चल रहा है भारत में, उसके बारे में आपका क्या कहना है। जैसे हिमेश रेशमिया का संगीत?

देखिए अगर किसी कलाकार को सफलता मिलती है तो अच्छा ही है। लेकिन मुझे लगता है कि लोगों की संगीत की समझ कम हो रही है। अगर यही दौर जारी रहा तो लोगों को गले से गाने की जरूरत नहीं रहेगी।

आपका एक गाना है 'अली मोर अँगना... उसके पीछे क्या प्रेरणा थी?
उस गीत को न मैंने तैयार किया न मैंने लिखा। मेरे एक दोस्त हैं जवाहर वातल। जो लोकप्रिय संगीत बनाते हैं। उन्होंने 1996 में मुझसे कहा कि वो कुछ ऐसे गाने बनाना चाहते हैं जो लोकप्रिय संगीत के हों। इन गानों को वो मुझसे गवाना चाहते थे, लेकिन मैं उन दिनों ऐसे गानों के लिए खुद को तैयार नहीं पाती थी।

उन्होंने कहा कि आइए प्रयास करते हैं अगर आपको पसंद आ जाएगा तो ठीक नहीं तो कोई बात नहीं। एक गाना गाया तो बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम लगा। मुझे तो तबले, हारमोनियम की आदत थी, लेकिन यहाँ तो मल्टीट्रैक बज रहा था। चुनौती भी थी और मजा भी था। उन्होंने कहा एक और गीत बनाएँ। मैंने कहा बना लीजिए। इस तरह एक अलबम तैयार हो गया। कुछ को पसंद भी आया और कुछ को नहीं भी आया।

लता और आशा में कौन अधिक पसंद है?
दोनों ही पसंद हैं। पहले मैं कोशिश करती थी कि मेरी गायकी में उनकी छटा आ जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। वो इतनी बड़ी गायिका हैं, जो लोगों के अंतरचेतन में जरूर जगह बनाती होंगी। आशाजी का 'मुझे रंग दे, मुझे रंग दे... काफी पसंद है।

आपका रोलमॉडल कौन है?
मुझे लताजी, आशाजी, बेगम अख्तर और सिद्धेश्वरी देवी जैसी बड़ी गायिकाओं से बहुत प्रेरणा मिलती है। इनकी ओरिज‍िनैलिटी मुझसे कहती है कि अपनी आवाज ढूँढो।

क्या अभी भी मेहनत करनी पड़ती है?
जी हाँ। अगर मेहनत नहीं करेंगे तो हमारी आवाज हमको बता देगी कि मेहनत में कमी नहीं होनी चाहिए।

आपको खाने में क्या पसंद है?
मुझे मीठा बहुत पसंद है। इलाहाबाद की इमरती, जलेबी और दूध के तो क्या कहने।


जीवन के वो क्षण जब आप खुद को सातवें आसमान पर पा रही हों?
मेरा बेटा धवल 1984 में पैदा हुआ था, तब मुझे बहुत खुशी हुई थी।

आपका बेटा भी संगीत के क्षेत्र में जा रहा है और आप से अलग तरह का संगीत बना रहा है?
मुझे तो ये बहुत अच्छा लगता है कि वो संगीत को अपना रहा है। ये कहना बहुत ही गलत होगा कि मैं उससे कहूँ कि वो इस तरह का संगीत बनाएँ। मैं इतनी राय उसको जरूर दूँगी कि वो जिस तरह का संगीत बनाए वो अनुशासन में रहकर बनाए। संगीत को अनुशासन में रहकर सीखे।

जिंदगी के सबसे खराब क्षण?
जब मुझसे कोई कहता है कि अरे शुभा तुम तो बहुत मोटी हो गई हो।

कोई ऐसी इच्छा जो आप पूरी करना चाहती हैं?
मुझे गुरुओं से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मुझे बहुत अवसर मिले। हमारे यहाँ गुरु-शिष्य परंपरा है। लेकिन आम आदमी तक संगीत पहुँचाना बहुत जरूरी है। मैं उसी दिशा में कुछ काम करना चाहूँगी।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi