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'सजा-ए-मौत का हुक्म था...अब शादी करूंगा'

- अरविंद छाबड़ा (दिल्ली)

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हमें फॉलो करें कुलदीप सिंह
, मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013 (17:34 IST)
BBC
सजा-ए-मौत का हुक्म हो चुका था। ऐसा लग रहा था कि जिंदगी बस कुछ दिन की ही बची है, लेकिन मुझे नया जीवन मिला है। अब शादी करने की सोच रहा हूं।

यह कहना है 28 वर्षीय कुलदीप सिंह का जिन्हें संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में पाकिस्तान के नागरिक मिस्री खान की हत्या का दोषी पाया गया था।

लेकिन अब वो रिहा हो कर भारत आ गए हैं और शादी करने के सपने देख रहे हैं। जाहिर है कि वो बहुत राहत महसूस कर रहे हैं।

कुलदीप सिंह उन 17 भारतीयों में से हैं जिन्हें यूएई की एक अदालत ने साल 2010 में मिस्री खान की हत्या का दोषी पाए जाने के बाद सजा-ए-मौत का हुक्म दिया गया था।

पांच करोड़ रुपए दिए : लेकिन दुबई में बसे भारतीय व्यापारी एसपीसिंह ओबरॉय ने उनके लिए दस लाख डॉलर (यानी लगभग 5.3 करोड़ रुपए) जुटा कर मृतक के परिवार वालों को दे दिए और यह मौत की सजा से बच गए।

शिया कानून में प्रावधान है कि अगर पीड़ित का परिवार ब्लड मनी यानी खून के बदले पैसा लेने के लिए राजी हो जाए तो दोषियों को क्षमा किया जा सकता है।

मामला 2009 का था जब अवैध शराब को लेकर कथित तौर पर हुए झगड़े के बाद मिस्री खान की मौत हो गई थी। दो लोग घायल भी हुए थे। मार्च 2010 में इन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी।

चार साल जेल में रहने के बाद वे अब रिहा होकर वापस भारत आए हैं। मंगलवार को दिल्ली पहुंचने के बाद यह सभी अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकेंगे और फिर अपने घर जाएंगे।

एसपी सिंह कहते हैं, 'निचली अदालत ने इन्हें मौत की सजा दे दी थी जिसकी खबर मैंने पढ़ी और अधिकारियों से बात की तो पता चला कि अगर पीड़ित के परिवार को मुआवजा दिया जाए तो इन्हें बचाया जा सकता है।'

वे कहते हैं, 'मैंने किसी संस्था से या किसी और से पैसे नहीं लिए। खुद ही मैंने इस पैसे का इंतजाम किया।' इन 17 लोगों में से 16 पंजाब से हैं जबकि एक हरियाणा से है।

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'कभी विदेश नहीं जाऊंगा' : बीबीसी से बात करते हुए कुलदीप सिंह ने कहा, 'अब कभी भारत से बाहर जाने की नहीं सोचूंगा। कर्ज उठाकर पैसा कमाने के लिए दुबई गया था, लेकिन जो दिन हमने देखे अब हम लोग कभी देश के बाहर नहीं जाएंगे।'

वे कहते हैं कि पंजाब के मोगा जिले में वे खेती बाड़ी का काम करते थे। 'काम कुछ ज्यादा नहीं था। इसलिए 2008 में दुबई चले गए। नौकरी मिल चुकी थी और ऐसा लगने लगा था कि खर्च के बाद तीन-साढ़े तीन हजार रुपए घर बेच पाऊंगा।'

'लेकिन अभी काम करते करीब दो महीने ही हुए थे फिर एक दिन अचानक हमें पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार कर लिया। हम कहते रहे हमने कुछ नहीं किया, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं था। फिर सजा सुना दी गई।'

कुलदीप बताते हैं कि इस बात से परिवार के लोगों को बहुत झटका लगा। 'मुझसे दो साल बड़े भाई को दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया। एसपी सिंह मसीहा बनकर हमारी जिंदगी में आए और हमें रिहा करा लिया।'

वे कहते हैं कि हम पंजाब सरकार से गुहार लगाएंगे कि कोई काम यहां पर मिल जाए।

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