नवंबर 2016 में एक रात अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच सौ और हज़ार रुपए के नोट बंद करने की घोषणा कर दी। फिर सरकार गुलाबी रंग का दो हज़ार रुपए का नया बड़ा नोट लेकर आई। अब धीरे-धीरे ये नोट भी बाज़ार से ग़ायब हो रहा है। हमने इसकी वजह समझने की कोशिश की।
8 नवंबर की उस रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा कि रात 12 बजे के बाद से पांच सौ और हज़ार रुपए के नोट बंद हो जाएंगे और इनकी जगह भारतीय रिज़र्व बैंक दो हज़ार रुपए और पांच सौ रुपए के नए नोट जारी करेगी।
तब से नया 500 का नोट तो ख़ूब चल रहा है। हालांकि बीते दो सालों में दो हज़ार के नए नोट पहले एटीएम और फिर बैंकों से ग़ायब हो गए। हाल ही में वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया है कि आरबीआई ने साल 2019 और 2020 में दो हज़ार रुपए के नए नोट छापे ही नहीं हैं।
तो फिर दो हज़ार के नोट गए कहां?
सबसे पहली बात तो ये कि सरकार ने दो हज़ार रुपए के नोट बंद नहीं किए हैं। इसका मतलब ये है कि अगर आपके पास अभी दो हज़ार के नोट हैं तो वो चलेंगे।
मामला ये है कि केंद्र सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक दो हज़ार रुपए के नोट के चलन की जगह पांच सौ रुपए के नोट को बढ़ावा दे रही है। ये सरकार की आर्थिक नीति का हिस्सा है।
इसका मतलब ये भी है कि जब नोटबंदी का फैसला लिया गया तो अचानक ही कई लाख करोड़ रुपए अर्थव्यवस्था से ग़ायब हो गए थे। तब एक बड़ा नोट लाया गया था ताकि लोगों को फौरी राहत दी जा सके और मुद्रा को भी बाज़ार में लाया जा सके। इसके बाद चरणबद्ध तरीके से सरकार ने इन नोटों का चलन धीरे-धीरे कम किया।
बीबीसी से बात करते हुए अर्थशास्त्री वसंत कुलकर्णी और चंद्रशेकर ठाकुर ने इस मुद्दे पर और रोशनी डाली।
वसंत कुलकर्णी ने बीबीसी से कहा, "जब नोटबंदी हुई तब 86 प्रतिशत करंसी पांच सौ और हज़ार रुपए के नोटों में थी। एक रात में ये नोट रद्दी हो गए थे। ऐसे में लोगों के पास पैसा ख़त्म हो जाना था। सरकार दो हज़ार रुपए का नोट लेकर आई। उसे छापने और बांटने में कम लागत आनी थी। फिर धीरे-धीरे कम मूल्य के नोट बाज़ार में लाए गए।"
चंद्रशेखर ठाकुर नकली नोटों का मुद्दा उठाते हुए कहते हैं, "नोटबंदी का मक़सद नकली नोटों को बाज़ार से बाहर करना और बड़े वित्तीय कुप्रबंधन पर रोक लगाना था। बड़ी क़ीमत के नोट नकली नोटों के चलने का ख़तरा पैदा करते हैं। साथ ही बड़े नोटों को जमा करके रखने से वित्तीय गड़बड़ी की संभावनाएं भी पैदा होती हैं। ऐसे में इस तरह के नोटों की संख्या कम करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।"
वहीं ठाकुर का ये भी कहना है कि भारत में मध्यमवर्ग और ग़रीब वर्ग को इतने बड़े नोट की ज़रूरत ही नहीं हैं। ऐसे लोगों की ज़रूरतों के लिए 500 रुपए का नोट पर्याप्त है।
दो हज़ार के नोट का चलन कैसे कम किया गया?
केंद्रीय वित्त मंत्रालय समय-समय पर लोकसभा में दो हज़ार रुपए के नोट को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करता रहा है। आरबीआई की नीति से भी ये स्पष्ट है।
अनुराग ठाकुर ने साल 2020 में कहा था, "मार्च 2019 में 329।10 करोड़ रुपए क़ीमत के दो हज़ार रुपए के नोट बाज़ार में चल रहे थे। वहीं मार्च 2020 में इनकी क़ीमत कम होकर 273।98 करोड़ रुपए रह गई।"
अब उन्होंने लोकसभा में बताया है कि बीते दो सालों में दो हज़ार रुपए के नए नोट छापे ही नहीं गए हैं। इसका मतलब ये है कि धीरे-धीरे बाज़ार से दो हज़ार रुपए के नोट कम हो रहे हैं।
इसी नीति पर चलते हुए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने 2020 के बाद से बैंकों को एटीएम से ये नोट हटाने के निर्देश दिए। इसी के तहत चरणबद्ध तरीक़े से मार्च 2020 के बाद से देश के 2,40,000 एटीएम से दो हज़ार रुपए के नोट हटा दिए गए और उनकी जगह छोटे नोटों ने ले ली।
शुरुआत में ये नोट एटीएम से हटे और धीरे-धीरे ये बैंकों में भी मिलने बंद हो गए। हालांकि वित्त मंत्रलाय बार-बार कहता रहा है कि दो हज़ार रुपए के नोट रद्द नहीं हुए हैं, सिर्फ़ उनका चलन कम किया गया है।
दो हज़ार रुपए के नोट का इस्तेमाल कम क्यों किया गया?
दुनियाभर में अर्थशास्त्रियों की राय इस पर एक है। इसकी एक वजह ये है कि बड़े स्तर के भ्रष्टाचार को इससे रोका जा सकेगा। यदि ऐसे नोटों का चलन कम होगा तो भ्रष्टाचार भी कम होगा।
पांच सौ रुपए के नोट का इस्तेमाल
महाराष्ट्र में अर्थक्रांति नाम से वित्तीय आंदोलन शुरू करने वाले अर्थशास्त्री अनिल बोकिल दो हज़ार रुपए के नोट के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे हैं।
उनके सहयोगी प्रशांत देशपांडे ने बीबीसी से कहा, "नकली नोट बड़े नोटों में ज़्यादा होते हैं क्योंकि उनका आमतौर पर इस्तेमाल वित्तीय घोटालों या कुप्रबंधन में होता है। साथ ही भारत पहुंचने से पहले नकली नोट कई ठिकानों से होकर गुज़रते हैं। हर जगह इन पर दलाल अपना हिस्सा काटते हैं।"
"इसके विपरीत, जितना बड़ा नोट होगा उतना ज़्यादा नकली नोट छापने वालों का फ़ायदा होगा। नकली नोट छापने का यही सीधा गणित है।"
देशपांडे कहते हैं कि सरकार ने दो हज़ार रुपए के नोटों की संख्या कम करने के पीछे भी इन्हीं बातों का ध्यान रखा है। वो कहते हैं, "हमने देखा है कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसे विकसित देशों में सौ डॉलर या पाउंड से बड़े नोट होते ही नहीं हैं।"
डिजिटल लेनदेन पर ज़ोर
चंद्रशेखर ठाकुर कहते हैं कि यदि डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा दिया जाएगा तो भ्रष्टाचार और वित्तीय कुप्रबंधन को और भी कम किया जा सकेगा। वो कहते हैं, "केंद्र सरकार को इस बात का अहसास है कि यदि हम डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देंगे तो दो हज़ार रुपए के नोट की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी।"