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क्या ख़तरनाक है आपके लिए आधार कार्ड?

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, शुक्रवार, 5 मई 2017 (10:15 IST)
- सौतिक बिस्वास 
"मेरी उंगलियों और आंखों की पुतलियों पर किसी और का हक़ नहीं हो सकता। इसे सरकार मुझे मेरे शरीर से अलग नहीं कर सकती।" आधार कार्ड पर बीते हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट में एक वक़ील ने अपनी दलील में यह कहा था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में आधार का बचाव करते हुए भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मंगलवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति का अपने शरीर पर मुकम्मल अधिकार नहीं है।
 
उन्होंने कहा, ''आपको अपने शरीर पर पूरा अधिकार है, लेकिन सरकार आपको अपने अंगों को बेचने से रोक सकती है। मतलब स्टेट आपके शरीर पर नियंत्रण की कोशिश कर सकती है।'' इस व्यापक बायोमेट्रिक डेटाबेस संग्रह को लेकर निजता और सुरक्षा के लिहाज से चिंता जताई जा रही है।
 
श्याम दीवान एक अहम याचिका के दौरान बहस कर रहे थे, जिसमें एक नए क़ानून को चुनौती दी गई है। इस क़ानून के मुताबिक आम लोगों को अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल करने के लिए आधार को ज़रूरी बनाया जा रहा है। 
 
आधार आम लोगों की पहचान संख्या है जिसके लिए सरकार लोगों की बायोमेट्रिक पहचान जुटा रही है। आम लोगों की बायोमेट्रिक पहचान से जुड़ी जानकारी के डेटाबेस की सुरक्षा और आम लोगों की निजता भंग होने के ख़तरे को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं। सरकार के मुताबिक पहचान नंबर को इनकम टैक्स रिटर्न्स से जोड़ने की ज़रूरत, व्यवस्था को बेहतर ढंग से लागू करने और धोखाधड़ी को रोकने के लिए है।
 
वैसे भारत का बायोमेट्रिक डेटाबेस, दुनिया का सबसे बड़ा डेटाबेस है। बीते आठ साल में सरकार एक अरब से ज़्यादा लोगों की उंगलियों के निशान और आंखों की पुतलियों के निशान जुटा चुकी है। भारत की 90 फ़ीसदी आबादी की पहचान, अति सुरक्षित डेटा सेंटरों में संग्रहित है। इस पहचान के बदले में आम लोगों को एक ख़ास 12 अंकों की पहचान संख्या दी गई है।
 
किनके लिए राहत ले कर आया
1.2 अरब लोगों के देश में केवल 6.5 करोड़ लोगों के पास पासपोर्ट हों और 20 करोड़ लोगों के पास ड्राइविंग लाइसेंस हों, ऐसे में आधार उन करोड़ों लोग के लिए राहत लेकर आया है जो सालों से एक पहचान कार्ड चाहते थे। सरकार इस आधार संख्या के सहारे लोगों को पेंशन, स्कॉलरशिप, मनरेगा के तहत किए काम का भुगतान और उज्जवला गैस स्कीम और ग़रीबों को सस्ता राशन मुहैया करा रही है।
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बीते कुछ सालों के दौरान आधार संख्या का दबदबा इतना बढ़ा है कि इसने लोगों के जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। समाजविज्ञानी प्रताप भानु मेहता आधार के बारे में कहते हैं, "यह आम नागरिकों को सशक्त बनाने के औजार के बदले अब सरकार द्वारा लोगों की निगरानी करने का हथियार बन चुका है।"
 
देश भर में चलाई जा रही 1200 जन कल्याण योजनाओं में 500 से ज़्यादा योजनाओं के लिए अब आधार की ज़रूरत पड़ेगी। यहां तक कि बैंक और प्राइवेट फर्म भी अपने ग्राहकों के सत्यापन के लिए आधार का इस्तेमाल करने लगे हैं।
 
हर जगह होने लगा है इस्तेमाल : हाल में एक टेलीकॉम कंपनी ने बेहद कम समय में 10 करोड़ उपभोक्ताओं को जोड़ा है, ये भी उपभोक्ताओं के पहचान के लिए आधार का इस्तेमाल कर रही थी। लोग इस आधार नंबर के ज़रिए अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं।
 
मीडियानामा न्यूज़ वेबसाइट के संपादक और प्रकाशक निखिल पाहवा कहते हैं, "इसे ज़बरन मोबाइल फ़ोन, बैंक ख़ाते, टैक्स फ़ाइलिंग, स्कॉलरशिप, पेंशन, राशन, स्कूल एडमिशन और स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े या फिर और भी बहुत कुछ से जोड़ने की कोशिश से लोगों की निजी जानकारियों के लीक होने का ख़तरा बढ़ेगा।"
 
ऐसी आशंकाएं निराधार नहीं हैं। हालांकि सरकार ये भरोसा दे रही है कि बायोमेट्रिक डेटा बेहद सुरक्षित ढंग से इनक्रिप्टेड रूप में संग्रहित है। सरकार ये भी कह रही है कि डेटा लीक करने के मामले में जो भी दोषी पाए जाएंगे उन पर ज़ुर्माना लगाया जा सकता है, जेल भेजा जाएगा।
 
लेकिन छात्रों, पेंशन और जन कल्याण योजनाओं का लाभ लेने वाले लोगों की जानकारियां दर्जनों सरकारी वेबसाइट पर आ चुकी हैं। यहां तक कि भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान एमएस धोनी की निजी जानकारी भी एक उत्साही सर्विस प्रोवाइडर द्वारा ग़लती से ट्वीट की जा चुकी है।
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सरकार को फ़ायदा या...
इसके बाद अब भारत के सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी की नई रिपोर्ट के मुताबिक चार अहम सरकारी योजनाओं के तहत आने वाले, 13 से 13.5 करोड़ आधार नंबर, पेंशन और मनरेगा में काम करने वाले 10 करोड़ बैंक ख़ातों की जानकारी ऑनलाइन लीक हो चुकी है।
 
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मौजूदा समय में 23 करोड़ लोगों को आधार के ज़रिए जनकल्याण योजनाओं का फ़ायदा मिल रहा है, रिपोर्ट में इस ओर भी इशारा किया गया है कि लीक आंकड़े इस नंबर के क़रीब हैं। सरकार जिस तरह से विभिन्न डेटाबेस के आंकड़ों को आपस में जोड़ रही है, उससे आंकड़ों के चोरी होने और लोगों की निजता भंग होने का ख़तरा बढ़ा है।
 
सरकार ख़ुद भी ये स्वीकार कर चुकी है कि क़रीब 34 हज़ार सर्विस प्रदाताओं को या तो ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है या फिर सस्पेंड किया गया है, जो उचित प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और फर्ज़ी पहचान पत्र बना रहे हैं। आधार का उद्देश्य ही फर्ज़ी पहचान को ख़त्म करना था, लेकिन सरकार ख़ुद अब तक 85 लाख लोगों की डुप्लिकेट पहचान को रद्द कर चुकी है। पिछले ही महीने, 40 हज़ार किसानों को उनके बर्बाद हुई फ़सल का मुआवजा इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि बैंक में इन किसानों के आधार नंबर ग़लत दर्ज किए गए थे।
 
सबसे बड़ा ख़तरा क्या है?
इस बात की आशंका भी जताई जा रही है कि अधिकारी इस पहचान संख्या के ज़रिए लोगों की प्रोफ़ाइलिंग कर सकते हैं। अधिकारियों ने हाल में दक्षिण भारत के एक विश्वविद्यालय के फंक्शन में भाग लेने वालों से आधार पहचान पत्र दिखाने को कहा। आंकड़ों के लीक होने के मामले की ताज़ा रिपोर्ट की जांच कर रहे श्रीनिवा कोडाली ने कहा, "यह निजता का मामला नहीं है। आधार संख्या एक तरह से हमारे संवैधानिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ख़तरा है।"
 
आधार की आलोचना करने वाले ये भी कहते हैं कि सरकार कई सेवाओं के लिए आधार को अनिवार्य बना रही है, जो सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन है, जिसमें कहा गया था कि आधार अनिवार्य नहीं होगा। मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज कहते हैं, "इस नंबर को लेकर सबसे बड़ा ख़तरा ये है कि ये आप पर निगरानी रखे जाने के कई दरवाजे खोल देता है।"
 
बायोमैट्रिक डेटाबेस के ख़तरे को लेकर जताई जा रही चिंताओं के बारे में आधार कार्यक्रम की शुरुआत करने वाले तकनीकी टायकून नंदन नीलेकणी के मुताबिक इसे बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।
 
नियमों से चलेगा समाज पर...
उनके मुताबिक पहचान संख्या के चलते, फर्ज़ी लोगों को हटाने में मदद मिली है, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है और सरकार की बचत हो रही है। वे भरोसा दिलाते हैं कि ये कार्यक्रम पूरी तरह से इनक्रिप्टेड और सुरक्षित है। नंदन नीलेकणी कहते हैं, "इसके ज़रिए आप ऐसा समाज बना सकते हैं जो नियम और प्रावधानों से चलेगा। हम अभी बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं।"
 
नीलेकणी ये भी कहते हैं कि दुनिया भर के 60 देश अपने लोगों का बायोमैट्रिक डेटा ले चुके हैं। हालांकि दुनिया भर के डेटाबेस से आंकड़ों को हैक करने को लेकर भी चिंताएं जताई गई हैं और सरकार द्वारा निगरानी रखने को लेकर भी लोग आशंकाएं जताते रहे हैं।
 
2016 में, तुर्की में करीब 5 करोड़ लोगों की निजी जानकारियां लीक हो गईं। तुर्की की कुल आबादी करीब 7.8 करोड़ है। 2015 में हैकरों ने अमरीकी सरकार के नेटवर्क से करीब 50 लाख लोगों के फिंगरप्रिंटस को हैक कर लिया था। 2011 में फ्रांसीसी विशेषज्ञों ने उन हैकरों का पता लगाया था जो लाखों इसराइली लोगों के आंकड़े चुराने में शामिल थे।
 
प्रताप भानु मेहता ने लिखा है, "स्पष्ट और पारदर्शी सहमति वाले ढांचे की कमी है, सूचना का पारदर्शी ढांचा भी नहीं है, निजता को लेकर कोई क़ानून नहीं है और इस बात का आश्वासन भी नहीं है कि अगर सरकार आपकी पहचान के साथ छेड़छाड़ करने का मन बना ले तो आप क्या करेंगे, ऐसे में ये सरकार की ओर से दमन का हथियार बनकर रह जाएगा।"
 
जैसा कि श्याम दीवान ने शीर्ष अदालत में अपनी सशक्त दलील में कहा भी, "क्या सरकार हमारे शरीर पर इस स्तर का नियंत्रण कर सकती है, हमारे आंकड़े जुटा कर उसे एकत्रित करके हमें अधीन बना सकती है?"

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