Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

बग़दादी की मौत से ख़त्म हो जाएगा आईएस या चरमपंथ? - नज़रिया

हमें फॉलो करें बग़दादी की मौत से ख़त्म हो जाएगा आईएस या चरमपंथ? - नज़रिया
, सोमवार, 28 अक्टूबर 2019 (09:49 IST)
इस्लामिक स्टेट के नेता अबू बकर बग़दादी की मौत के बाद अमेरिका और दुनिया की राजनीति में काफ़ी कुछ बदलने के आसार हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि इस ऑपरेशन के बाद चरमपंथ कहीं न कहीं कमज़ोर होगा और सीरिया जैसे युद्धग्रस्त देशों की स्थिति में भी सुधार आएगा। ये भी साफ़ है कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आने वाले चुनाव में इस ऑपरेशन का पूरा श्रेय लेने की कोशिश करेंगे।
 
बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा ने इन्हीं पहलुओं को समझने के लिए अमेरिका की डेलावेयर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मुक़्तदर ख़ान से बात की।
 
प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान का नज़रिया
ये काफ़ी ख़ुशकिस्मती वाली बात है कि अमरीका को बग़दादी की लोकेशन की ख़ुफ़िया जानकारी कुछ हफ़्तों पहले मिल गई।
 
इससे पहले भी ऐसी ख़बरें मीडिया में आ रही थीं कि इस्लामिक स्टेट के नेता इराक़ से निकलकर सीरिया में इदलिब के आस-पास छिप रहे हैं।
 
बग़दादी को मारे जाने का ऑपरेशन सफल होने की वजह से डोनल्ड ट्रंप और अमरीका दोनों को, कई रणनीतिक और राजनीतिक फ़ायदे मिल गए हैं।
 
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सीरिया के लिए उनकी नीति की लगातार आलोचना हो रही थी। ये आलोचना न सिर्फ़ डेमोक्रैट्स बल्कि रिपब्लिकन्स दोनों की तरफ़ से होती आई थी।
 
सीरिया से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाए जाने के फ़ैसले की सार्वजनिक आलोचना ख़ुद डोनल्ड ट्रंप के करीबा नेता कर रहे थे। मुझे लगता है कि अब बग़दादी के बारे जाने के बादी दोनों ही पार्टियां ख़ामोश हो जाएंगी।
 
दूसरी बात यह कि इस्लामिक स्टेट के नेता को मारे जाने और ख़ासकर जिस तरह बाक़ायदा ऑपरेशन के तहत उन्हें मारा गया, इसका असर इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों, नए लड़ाकों को शामिल करने और कट्टरपंथ के प्रचार-प्रसार पर भी पड़ेगा। आईएस को इस ऑपरेशन से उबरने और अपनी स्थिति संभालने में वक़्त लगेगा।
 
इस्लामिक स्टेट के लिए चीज़ें आसान नहीं होंगी'
उत्तर-पश्चिमी सीरिया में तुर्की के हालिया हमले की वजह से इस्लामिक स्टेट को काफ़ी फ़ायदा मिलने लगा था। इस्लामिक स्टेट के कई लड़ाके और उनके परिवार रिहा हो गए थे क्योंकि कुर्दों को अपनी ऊर्जा तुर्की का सामना करने में लगानी पड़ रही थी।
 
ऐसी स्थिति में विशेषज्ञों का मानना था कि अमेरिका के सीरिया से सैनिक हटाने और सीरिया पर तुर्की के हमले के वजह से इस्लामिक स्टेट को दोबारा अपनी ज़मीन ज़िंदा करने का मौका मिल गया है, ख़ासकर सीरिया में।
 
इसके अलावा इराक़ में चल रहे प्रदर्शनों की वजह से इराक़ का भी ध्यान इन सबसे काफ़ी हद तक हट गया था। ऐसे में, आईएस के लिए ये दोबारा अपने पांव पसारने का मौका था लेकिन बग़दादी के मारे जाने के बाद ये आसान नहीं होगा।
 
ये स्वीकार किए जाने में कोई हर्ज़ नहीं होना चाहिए कि ओसामा बिन लादेन के बाद बग़दादी का मारा जाना आतकंवाद के ख़िलाफ़ एक बड़ी जीत है लेकिन हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि ओसामा बिन लादेन को मारने के बाद भी न अल क़ायदा ख़त्म हुआ और न ही आतंकवाद। इसी तरह बग़दादी की मौत के बाद आईएस या आतंकवाद ख़त्म हो जाएगा, ऐसा नहीं है।
 
बग़दादी की मौत के बाद सीरिया में हालात सुधरेंगे?
फ़िलहाल तुर्की अभी सीरिया में एक 'बफ़र ज़ोन' बनाना चाहता है। वो एक ऐसा इलाक़ा बनाना चाहता है, जहां न तो सीरिया की फ़ौज हो और न ही कुर्द लड़ाके।
 
दो दिन पहले तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप अर्दोआन ने शुक्रवार की नमाज़ के बाद कहा था कि ये इलाका कुर्दों के लिए लिए ठीक नहीं है लेकिन अरबों के लिए अच्छा है। ज़ाहिर है अर्दोआन चाहते हैं कि सीरिया का वो हिस्सा उनकी बनाई सीरियन अरब मिलिशिया के क़ब्ज़े में रहे।
 
मगर दूसरी तरफ़, सीरिया में अब भी रूस का थोड़ा-बहुत प्रभाव है और सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद पूरी कोशिश करेंगे कि वो रूस की मदद से वो इलाक़े को वापस अपने क़ब्ज़े में ले लें।
 
यानी सीरियाई इलाकों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की अलग-अलग देशों की जो जंग है, वो अभी ख़त्म नहीं होने वाली है और इस मायने में सीरिया में अभी शांति नहीं होगी।
 
हां, लेकिन ये ज़रूर है कि सीरिया में इस्लामिक स्टेट जिस तरह दोबारा वापसी की कोशिशें कर रहा था, उसमें देरी और मुश्किल होगी क्योंकि फिलहाल अभी उस तरह की लीडरशिप नहीं है।
 
लेकिन हमें ये भी याद रखना होगा कि सीरिया में चीज़ें बेहद गतिशील हैं। मिसाल के तौर पर देखें तो एक वक़्त ऐसा भी था जब अल-क़ायदा के ग्रुप्स थे, नुसरा नाम का फ्रंट था जो अप्रत्यक्ष तौर पर अमरीका के साथ मिलकर इस्लामिक स्टेट से लड़ रहा था। तो एक वक़्त ऐसा भी रहा है जब अल-क़ायदा और अमेरिका एक साथ लड़ रहे थे।
 
ऐसे में बहुत हैरानी नहीं होगी अगर इस्लामिक स्टेट के लड़ाके वहां से हटकर दूसरे ग्रुप्स से जुड़ जाते हैं। वे सीरियाई आर्मी से भी जुड़ सकते हैं, वे सीरियाई अरब सेना से भी जुड़ सकते हैं जो तुर्की से संबद्ध है। ऐसे में वहां उनके पास इस्लामिक स्टेट के अलावा भी कई विकल्प हैं। यहां एक बात यह भी समझने वाली है कि अब इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के लिए यह करियर ऑप्शन तलाशने जैसी बीत भी हो सकती है क्योंकि जिस तरह इस्लामिक स्टेट वेतन देती है उसी तरह वहां सक्रिय ज़्यादातर ग्रुप्स भी तनख़्वाह देते हैं।
 
बग़दादी की मौत का ये वक़्त...अमेरिका के लिए कितना ख़ास है?
जहां तक मैं समझता हूं ये अमेरिका के लिए बेहद सौभाग्यशाली वक़्त है कि उन्हें बग़दादी का पता चल गया। पिछले दो सप्ताह से हर जगह वो चाहे न्यूज़ चैनल हो, न्यूज़ पेपर हो या रेडियो हो हर जगह लगातार सीरिया मसले पर ट्रंप की नीति की आलोचना हो रही थी।
 
आलोचना करने वालों में कई तो ट्रंप के क़रीबी भी थे। ऐसा कहा जाने लगा था कि अमेरिका पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। अमेरिका कभी भी अपने साथियों को छोड़ सकता है। इसी के साथ हाल-फिलहाल में ये भी कहा जा रहा था कि सीरिया ट्रंप के हाथों से निकल चुका है। लेकिन अब बग़दादी की मौत के बाद से ये बातें बिल्कुल बदल जाएंगी।
 
लेकिन अब बग़दादी की मौत से ट्रंप के लिए तो राहत ज़रूर होगी। वो इसे यूं भी भुना सकते हैं कि मिडिल ईस्ट में वो एक पावर हैं। लेकिन इसके दूसरे पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए।
 
अगर इस्लामिक स्टेट के लड़ाके ये समझने लगेंगे कि सीरिया और इराक़ में उनका भविष्य कुछ कमज़ोर है तो वो दूसरी जगहों पर जाने लगेंगे। जैसे पहले 2018 में इस्लामिक स्टेट से अगर होकर कई लड़ाई अफ्रीका चले गए। कुछ ने वहां बोको हराम ज्वाइन कर लिया तो कुछ ने अफ़गानिस्तान में शरण ले ली और वहां वे इतने मज़बूत हो चुके हैं कि ख़ुद तालिबान तक उन्हें नियंत्रित करने की गारंटी नहीं दे सकी और यहां वजह है कि अभी तक वहां से अमरीकी सेना हटी नहीं है।
 
ऐसे में यह मानकर चलना चाहिए कि अगर इस्लामिक संगठन टूटता भी है तो इसके लड़ाके अलग-अलग देशों में चरमपंथ संगठनों से जुड़ जाएंगे। हालांकि यूरोप इस्लामिक स्टेट के वापसी के लिए तैयार तो है लेकिन वहां पर भी परेशानियां हैं।
 
ट्रिनिदाद की ही बात करें तो वहां से सैकड़ों की संख्या में युवा इस्लामिक स्टेट से ट्रेनिंग लेने चले गए थे और अब कहा जा रहा है कि वे लौटने वाले हैं। ऐसे में यह चिंता का विषय तो है ही।
 
ये बात ग़ौर करने वाली है कि अगर इस्लामिक संगठन के लड़ाके वापस लौटते हैं और वे किसी दूसरे काम से नहीं जुड़ते हैं तो वे उस देश और समाज के लिए ख़तरा बन सकते हैं।
 
लेकिन फ़िलहाल क्या सीरिया में शांति की उम्मीद की जाए?
नहीं। शांति तो उस हिसाब की नहीं होगी क्योंकि पिछले दो-तीन महीनों में जो चरमपंथी एक्टिविटी हो रही है उसमें इस्लामिक स्टेट का कोई लेना-देना नहीं था। वहां जो ख़तरा फिलहाल है वो कुर्द को लेकर है।
 
सीरिया में प्रशासन ये पूरी कोशिश करेगा कि सीरिया का पूरा इलाका उसके अधिकार क्षेत्र में आ जाए। इसके अलावा एक तीसरा पहलू ये भी है कि इज़रायल इस बात को लेकर चिंतित हो सकता है कि कहीं अमेरिका उसका साथ भी न छोड़ दें। ऐसे में अब इज़रायल की भूमिका भी महत्पूर्ण हो जाएगी।
 
इस दौरान ये बात ज़रूर ध्यान देने योग्य है कि अब तक चरमपंथी संगठनों में शामिल होने के लिए जिस तरह से भर्ती होती थी, उस पर ज़रूर लगाम लगेगी।
 
इस्लामिक स्टेट संगठन का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नज़र आता है और यही वजह थी कि युवा इसमें भर्ती के लिए आकर्षित होते थे, लेकिन अब बग़दादी की मौत के बाद इस रिक्रूटमेंट में कमी तो ज़रूर आएगी।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

महाथिर का कश्मीर राग क्या मलेशिया को भारत से दूर कर देगा?