- समीरात्मज मिश्र (लखनऊ)
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के नतीजे वैसे तो 11 मार्च को आएंगे, लेकिन आखिरी चरण के मतदान और फिर गुरुवार को आए तमाम अनुमानित नतीजों के बाद नई सरकार के गठन को लेकर क़यास लगने लगे हैं। चुनावी मुक़ाबले में रही पार्टियों में बीएसपी और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन में तो मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की स्थिति स्पष्ट है लेकिन बीजेपी ने न तो चुनाव से पहले इसकी घोषणा की और न ही अभी तक इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट हो सकी है।
हालांकि मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में राजनाथ सिंह, उमा भारती और योगी आदित्यनाथ जैसे वरिष्ठ और पुराने नेताओं से लेकर अमित शाह और श्रीकांत शर्मा तक के नाम तैर रहे हैं, लेकिन न तो राजनीतिक पर्यवेक्षक स्पष्ट रूप से कुछ कह पाने की स्थिति में हैं और न ही पार्टी के नेता इस पर कोई आम राय बना पा रहे हैं।
जहां तक पार्टी के नेताओं की बात है, तो वो अभी भी यही बात दोहरा रहे हैं कि नतीजों के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता इसे तय करेंगे, लेकिन जानकार बताते हैं कि हाल के दिनों में कुछ राज्यों के चुनावों में जिस तरह से अलग-अलग रणनीति के तहत मुख्यमंत्रियों का चयन किया गया उसे देखते हुए किसी बिल्कुल नए नाम को भी आगे कर दिया जाए तो आश्चर्य नहीं है।
मुख्यमंत्री पर चर्चा
पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और विधानसभा चुनाव में ख़ुद उम्मीदवार रहे श्रीकांत शर्मा कहते हैं, "अलग-अलग राज्यों में हमारी रणनीति अलग रहती है। फ़िलहाल तो हम अपने 265 प्लस के लक्ष्य को हासिल करने में लगे थे, नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पर चर्चा होगी। वैसे इसका फ़ैसला पार्टी के संसदीय बोर्ड में होता है।"
श्रीकांत शर्मा ख़ुद मथुरा से चुनाव लड़े हैं और उनके समर्थन में जनसभा करने पहुंचे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से उनके बारे में किसी बड़ी संभावना का ज़िक्र किया था। जानकारों का कहना है कि यूपी विधानसभा का चुनाव बीजेपी ने जिस तरह से नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित कर दिया उससे ये साफ़ है कि बहुमत मिलने पर नरेंद्र मोदी की पसंद का ही व्यक्ति मुख्यमंत्री बनेगा।
मजबूत दावेदार
लखनऊ में वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन कहती हैं, "बहुमत मिलने की स्थिति में हरियाणा की तरह कोई अनजान या नया चेहरा मुख्यमंत्री के रूप में पेश किया जाएगा ताकि नरेंद्र मोदी उससे अपनी तरह से काम करा सकें। लेकिन यदि ऐसा नहीं होता है और दूसरे दलों की मदद लेनी पड़ती है तो फिर वरिष्ठ नेताओं पर ही दांव लगाना पड़ेगा और ऐसी स्थिति में राजनाथ सिंह सबसे मज़बूत दावेदार होंगे।"
हालांकि कहा ये भी जा रहा है कि बीजेपी ने जिस तरह से राज्य के पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश की है और पिछड़े वर्गों के नेताओं को दूसरी पार्टियों से लाकर जोड़ा है, ऐसी स्थिति में तमाम लोग प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य में भी ये संभावना देख रहे हैं।
विधानसभा चुनाव में गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ की सक्रियता और कथित तौर पर उग्र हिन्दूवादी छवि को देखते हुए उनका नाम भी इस रेस में है, लेकिन जानकार कहते हैं कि तमाम ऐसी वजहें भी हैं जिनकी वजह से योगी आदित्यनाथ की दावेदारी कमज़ोर हो जाती है।
बीजेपी को बहुमत?
सुनीता ऐरन कहती हैं, "वैसे तो रेस में अमित शाह का भी नाम लिया जा रहा है और 2019 के चुनावों को देखते हुए, बीजेपी और नरेंद्र मोदी यदि ऐसा कर भी दें तो कोई आश्चर्य नहीं लेकिन ये सब तभी संभव होगा जबकि बीजेपी बहुमत पाती है। बहुमत पाने की स्थिति में योगी आदित्यनाथ नरेंद्र मोदी और अमित शाह के पैमानों पर फ़िट नहीं बैठते।"
बहरहाल राजनीतिक जानकार अपने तरीके से आकलन कर रहे हैं और उस हिसाब से नाम बढ़ा रहे हैं तो बीजेपी के नेता इस सवाल को संसदीय समिति पर टाल रहे हैं। बावजूद इसके कुछ मज़बूत दावेदार चुनाव के पहले से लेकर अब तक चर्चा में बने हुए हैं।
विवादों से दूर रहने का फ़ायदा
राजनाथ सिंह: राजनाथ सिंह बीजेपी में वरिष्ठता के लिहाज़ से सबसे महत्वपूर्ण नेता हैं और पहले मुख्यमंत्री रह भी चुके हैं। बीजेपी जिस कल्याण सिंह की सरकार के 'अच्छे प्रशासन' को चुनावों में भुनाती है, राजनाथ सिंह उस सरकार में शिक्षा मंत्री थे और नकल अध्यादेश के ज़रिए काफी लोकप्रियता हासिल की थी।
जानकारों का कहना है कि जातीय समीकरण चाहे जैसे हों, लेकिन राजनाथ सिंह पार्टी में विवादित चेहरा नहीं हैं, जो उनकी दावेदारी को मज़बूत करती है। लेकिन पार्टी के बहुमत पाने की स्थिति में ही राजनाथ सिंह यूपी की राजनीति में लौटना चाहेंगे और बहुमत पाने की स्थिति में नरेंद्र मोदी और अमित शाह शायद ही उन्हें यहां भेजें।
पिछड़ा कार्ड और संघ से जुड़ाव
केशव प्रसाद मौर्य: बीजेपी सत्ता में आती है तो निश्चित तौर पर इसका श्रेय प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य को जाएगा जैसा कि महाराष्ट्र चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते देवेन्द्र फडणवीस को मिला था। यही नहीं, केशव पार्टी के पुराने कार्यकर्ता हैं, पिछड़े वर्ग से आते हैं और उनका संघ से भी जुड़ाव रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत दिलाने के बाद तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को हटा दिया गया था, इसलिए ज़रूरी नहीं कि ये फ़ार्मूला ही पार्टी अपनाए।
तेज तर्रार योगी
योगी आदित्यनाथ: मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ बीजेपी के इकलौते फायर ब्रांड नेता हैं। विधानसभा चुनाव से पहले तक योगी पूर्वांचल तक ही सीमित थे, लेकिन इस बार पार्टी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनका जमकर इस्तेमाल किया और कई रैलियां कराईं। योगी ने भी हर भाषण में यही कोशिश की मतों का ध्रुवीकरण पार्टी की ओर हो।
दिनेश शर्मा: लखनऊ के मेयर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद क़रीबी डॉक्टर दिनेश शर्मा भले ही ज़्यादा चर्चा में न रहे हों लेकिन मोदी के अच्छे संबंधों का उन्हें ज़बर्दस्त फ़ायदा मिला है। केंद्र में सरकार बनने के तुरंत बाद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की कुर्सी मिली और उन्हें अमित शाह ने अध्यक्ष बनते ही गुजरात का प्रभारी बना दिया। साफ़-सुथरी छवि भी उनकी दावेदारी को प्रभावी बनाती है।
मनोज सिन्हा और श्रीकांत शर्मा: नरेंद्र मोदी और अमित शाह जिस तरह से नए और चौंकाने वाले नामों को आगे करने के लिए जाने जाते हैं, यदि यूपी में उस फॉर्मूले को अपनाया गया तो ये दोनों नाम भी प्रमुख दावेदार के रूप में हो सकते हैं। मनोज सिन्हा उस पूर्वांचल से आते हैं, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनावों के दौरान सबसे ज़्यादा अपना ध्यान केंद्रित किया। और श्रीकांत शर्मा अमित शाह और नरेंद्र मोदी के बीजेपी में शक्तिशाली बनने के बाद उन कुछ लोगों में से हैं जिन्हें सबसे ज़्यादा महत्व मिला।