Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

असम में लाखों मुसलमानों की नागरिकता ख़तरे में

हमें फॉलो करें असम में लाखों मुसलमानों की नागरिकता ख़तरे में
, मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018 (10:58 IST)
- शकील अख़्तर (असम से लौटकर)
 
पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम के मोरी गांव के अब्दुल क़ादिर बंगाली पहचान के लाखों बाशिंदों की तरह कई पीढ़ियों से राज्य में आबाद हैं। उनके पास सन 1941 से अब तक के सभी दस्तावेज़ मौजूद हैं, लेकिन उन्हें विदेशी यानी बांग्लादेशी क़रार दिया गया है। उन्हें फ़ॉरेनर्स ट्राइब्यूनल में अब साबित करना है कि वो बांग्लादेश नहीं हैं।
 
वो कहते हैं, "हमारा जन्म यहीं हुआ। हमने सारा रिकॉर्ड जमा किया है। सन् 1941 से अब तक का। मैंने सन 1950 का हज का पासपोर्ट भी दिया है, लेकिन उसके बावजूद उन्होंने फ़ॉरेनर्स ट्राइब्यूनल भेज दिया।"
 
इसी राज्य में ग्वालपाड़ा की मरजीना बीबी भारतीय नागरिक हैं, लेकिन पुलिस ने उन्हें एक दिन बांग्लादेशी बनाकर गिरफ़्तार कर लिया। वो आठ महीने तक हिरासत में रह कर आई हैं। मरजीना कहती हैं, "मेरे चाचा ने सारे काग़ज़ात दिखाए, सारे सबूत पेश किए, लेकिन वो कहते हैं कि मैं बांग्लादेशी हूं। जेल में मेरे जैसी हज़ारों औरतें क़ैद हैं।"
 
मरजीना हाईकोर्ट के दख़ल के बाद जेल से रिहा हो सकी हैं। असम में मुसलमानों की आबादी क़रीब 34 फ़ीसदी है। उनमें अधिकतर बंगाली नस्ल के मुसलमान हैं जो बीते सौ सालों के दौरान यहां आकर आबाद हुए हैं। ये लोग बेहद ग़रीब, अनपढ़ और अप्रशिक्षित खेतीहर मज़दूर हैं।
 
'संदेहास्पद नागरिक'
देश में सक्रिय हिंदू संगठन आरएसएस, सत्ताधारी पार्टी बीजेपी और उसकी सहयोगी स्थानीय पार्टियों का कहना है कि असम में लाखों ग़ैर क़ानूनी बांग्लादेशी शरणार्थी आकर बस गए हैं। चुनाव आयोग ने बीते दो सालों से वोटर लिस्ट में उन लोगों को 'डी-वोटर' यानी संदेहास्पद नागरिक लिखना शुरू कर दिया है जो नागरिकता के दस्तावेज़ या सबूत नहीं पेश कर सके।
 
ग़ैर क़ानूनी बांग्लादेशी बाशिंदों की पहचान के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में असम के सभी नागरिकों की एक सूची तैयार की जा रही है। 'नेशनल रजिस्टर फ़ॉर सिटीजंस' यानी एनआरएस की अंतिम सूची जून में जारी की जाएगी। एआरएस के प्रमुख प्रतीक हाजेला ने बताया कि नागरिकों की इस सूची में उन लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा जिन्हें डी-वोटर या विदेशी क़रार दिया गया है।
 
वो कहते हैं कि सभी नागरिकों के वंशानुक्रम (फ़ैमिली ट्री) की जांच हो रही है। इसके अलावा 29 लाख औरतों ने पंचायत के प्रमाण पत्र दिए हैं उनकी भी गहराई से जांच की जा रही है।
 
प्रतीक का कहना है कि इस के नतीजे में नागरिकता और राष्ट्रीयता से कितने लोग बाहर हो जाएंगे ये कहना मुश्किल है। वो कहते हैं, "ये काम एक परीक्षा की तरह है। इसका पहले से नतीजा बताना सही नहीं है। ये मैं ज़रूर बता सकता हूं कि इस काम के बाद जो भी तादाद सामने आएगी वो अंतिम और सही होगी।"
webdunia
बेवतन होने का ख़तरा
सिविल सोसायटी और मानवाधिकारों के लिए काम कर रहे संगठनों का कहना है कि नागरिकता की अंतिम सूची जारी होने के बाद लाखों मुसलमान बेवतन हो सकते हैं।
 
जस्टिस फ़ोरम के अब्दुलबातिन खंडकार कहते हैं कि डी-वोटर्स और 'घोषित विदोशी' की संख्या करीब पांच लाख है और उनके बच्चों की संख्या पंद्रह लाख होगी। ये सभी सूची में शामिल नहीं होंगे। हमे आशंका है कि कम से कम बीस लाख बंगाली नस्ल के बाशिंदे नागरिकता और राष्ट्रीयता से वंचित हो जाएंगे।"
 
नागरिकात से वंचित किए जाने वालों को देश से निकालना संभव नहीं होगा। उन्हें बांग्लादेश भेजने के लिए पहले उनकी राष्ट्रीयता की पहचान तय करनी होगी। दूसरी बात ये कि बंग्लादेश से इस क़िस्म का कोई समझौता भी नहीं है। ये साबित करना भी मुमकिन नहीं होगा कि ये बेवतन होने वाले बाशिंदे बांग्लादेशी नागरिक हैं। ये एक बेहद पेचीदा स्थिति है।
 
असम के हालात पर नज़र रखने वाले विश्लेषक नीलम दत्ता का कहना है कि 'ये शुरुआत में मुश्किलें पैदा होंगी, लेकिन अगर किसी नागरिक को विदेशी क़रार दिया जाए तो उसके लिए क़ानूनी रास्ता बचा हुआ है।' वो कहते हैं, "असम में बंग्लादेशियों की आबादी होने का सवाल एक राजनीतिक सवाल है। इसे बीजेपी आने वाले संसदीय चुनावों में अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करेगी।"
 
वहीं सरकार ने बेवतन होने वाले लोगों को हिरासत में रखने के लिए कैंप बनाने के उद्देश्य से कई जगहों पर ज़मीनें हासिल की हैं। राज्य में जोरहट, डिब्रूगढ़, ग्वालपाड़ा, सिल्चर, तेजपुर और कोकराझार की जेलों में पहले ही हिरासत कैंप बने हुए हैं। बीते महीने नागरिकों की पहली सूची जारी हुई थी। कचहार ज़िले के हनीफ़ ख़ान ने सूची आने के बाद आत्महत्या कर ली थी।
 
उन्हें अंदेशा था कि अगर सूची में उनका नाम नहीं हुआ तो उन्हें गिरफ़्तार करके बांग्लादेश भेज दिया जाएगा। उस सूची में उनका नाम नहीं था। नागरिकों की सूची तैयार करे के लिए पूरे प्रदेश में दस्तावेज़ों की छानबीन जारी है। सत्ताधारी बीजेपी को ये अंदाज़ा है कि नागरिकता से बाहर होने वालों की संख्या काफ़ी बड़ी हो सकती है। लेकिन उनके साथ क्या किया जाएगा इसके बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है।
 
बीजेपी के प्रांतीय प्रमुख रंजीत दास कहते हैं, "उन लोगों का नाम वोटरलिस्ट से बाहर हो जाएगा। मानवीय आधार पर भारतीय सरकार उन्हें रहने देगी। शायद उनका वोट देने का हक़ ख़त्म हो जाएगा। ऐसा कुछ हो सकता है। कुछ तो रास्ता निकालना होगा।"
 
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता तरुण गोगोई ने ही नागरिकों का रजिस्टर बनाने की शुरुआत की थी। उनका मानना है कि राज्य में बांग्लादेशियों का सवाल सिर्फ़ राजनीतिक नारा है।
 
उन्होंने कहा, "बीजेपी दो साल से सत्ता में है। कितने बांग्लादेशी उसने पकड़े? मेरा ख़्याल है कि एनआरएस की सूची में ज़्यादा लोग बाहर नहीं होंगे। अगर ज़बरदस्ती किसी को विदेशी क़रार दिया गया तो हमलोग विरोध करेंगे। ये लोकतंत्र है। यहां क़ानून का शासन है।"
 
वहीं पूरे असम में बंगाली मुसलमान गहरे अविश्वास के माहौल में रह रहे हैं। नागरिकता की दूसरी और आख़िरी सूची जून के आख़िर में जारी की जाएगी। असम में लाखों मुसलमानों की नागरिकता और राष्ट्रीयता का भविष्य इसी सूची पर निर्भर है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रिचर्ड ब्रैनसन का इंडियन कनेक्शन