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असम: क्या जमीन है बोडो विवाद की जड़?

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, शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014 (12:07 IST)
- संजय हजारिका पूर्वोत्तर मामलों के जानकार

असम में ताजा हिंसा में 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। इस संख्या के और बढ़ने की आशंका है। बोडो अलगाववादियों ने मंगलवार को असम के सोनितपुर और कोकराझार जिले में 52 आदिवासियों को मार डाला था। इसे लेकर विरोध प्रदर्शन भी हुए। इस हिंसा के क्या कारण हैं?


पढ़ें विश्लेषण : असम की ताजा हिंसा पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) के खिलाफ चल रहे अभियान के जवाब में हुई है।

अभियान के दौरान हाल ही में इस गुट के कुछ नेता और कार्यकर्ता मारे गए थे। इसके बाद गुट ने धमकी दी थी कि 'ऐसा होता रहा तो हम ऐसा सबक सिखाएंगे कि आप भूल नहीं पाएंगे।'

इसके बाद यह घटना हुई। बच्चों, महिलाओं और निर्दोष पुरुषों को मारना मानवता के खिलाफ अपराध है। यह बात केवल ताबिलान पर ही लागू नहीं होती। यह घटना पिछले हफ़्ते पाकिस्तान में हुई वारदात जितनी ही भयानक है।

एनडीएफबी अरुणाचल प्रदेश और भूटान सीमा के पास अधिक सक्रिय है। यहीं से वो अपनी गतिविधि चलाते हैं।

20 साल पहले : इस हत्या के पीछे कोई आर्थिक कारण नहीं है। यह एक तरह का आतंक फैलाने का संकेत है। इससे पहले असम में मुसलमानों और बोडो के बीच हिंसक संघर्ष हुए हैं। आदिवासियों को निशाना बनाने की मिसालें कम रही हैं।

असल में बोडो इलाके में 20 साल पहले जब ऐसी वारदात हुई थी, तो उसमें संथाल आदिवासियों को निशाना बनाया गया था। वो आदिवासी अभी भी शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। यह एक अनसुलझा विवाद है।

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कारण : लोग चाहते हैं कि जिस जमीन पर आदिवासी हैं, वो वहां से हट जाएं। यह भी एक कारण हो सकता है। एक बड़ा कारण बदले की कार्रवाई हो सकती है। निचले असम में आदिवासियों और बोडो लोगों के बीच संघर्ष की भी खबरें आ रही हैं।

हाल ही में असम में एक गैर बोडो उम्मीदवार ने बोडो उम्मीदवार को हरा दिया था क्योंकि सारे लोग इकट्ठा हो गए थे। अगर अभी भी केंद्र और राज्य सरकारें हिंसा पर काबू नहीं कर पाईं, तो हालात और गंभीर होंगे। असम और उत्तर पूर्व में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं। इसे मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में लेना चाहिए।

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