ऑस्ट्रेलिया के ज़मीन मालिकों और पर्यावरणविदों ने जंगली कंगारुओं की संख्या नियंत्रित करने के लिए लोगों को कंगारू का मांस अधिक खाने की सलाह दी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2016 में देश में करीब साढ़े चार करोड़ कंगारू थे जो कि वहां के लोगों की आबादी से लगभग दोगुने हैं।
साल 2010 में देश में कंगारुओं की संख्या लगभग दो करोड़ 70 लाख थी। तेज़ी से बढ़ी संख्या की वजह बारिश के कारण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध भोजन है। लेकिन विशेषज्ञों को ये डर भी है कि यदि गर्मियों में सूखा पड़ा तो दसियों लाख कंगारू भूखे भी मर सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया में कंगारुओं को मारने को लेकर सख़्त क़ानून हैं। हर प्रांत में मारे जाने वाले कंगारुओं की संख्या निर्धारित है।
स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक कंगारुओं को मारने के लिए जारी लाइसेंस की मांग बाज़ार में मांस की मांग कम होने की वजह से कम है। हर साल कंगारुओं को मारा जाता है और ये विवाद भी पैदा होता है कि कंगारुओं को मारने से पर्यावरण पर कोई असर होता भी है या नहीं। बड़ी तादाद में मारे जाने वाले कंगारुओं की खाल का निर्यात कर दिया जाता है।
लेकिन इन कंगारुओं का मांस आमतौर पर बर्बाद हो जाता है क्योंकि इसकी मांग बहुत कम है। कंगारू ऑस्ट्रेलिया का राष्ट्रीय पशु है इसलिए इसके मांस को खाने के लेकर लोग आशंकित भी रहते हैं। मांस समर्थकों का कहना है कि कंगारू के मांस में फैट कम होता है और ये अन्य जानवरों की तरह मीथेन गैस भी कम उत्सर्जित करते हैं इसलिए इन्हें पालना पर्यावरण के लिए अधिक लाभकारी है।
एडिलेड यूनिवर्रसिटी के प्रोफेसर डेविड पैटन ने एबीसी से कहा, "लोगों को पर्यावरण की रक्षा करने और मृत पशुओं को सड़ने से बचाने के लिए कंगारुओं को मारे जाने का समर्थन करने की ज़रूरत है।"
पैटन कहते हैं, "बड़ी तादाद में उपलब्ध होना कंगारू की गलती नहीं है वजह शायद ये है कि हम ही उन्हें मारने के प्रति अनिच्छुक हैं। यदि उन्हें जल्द ही नहीं हटाया गया तो ये नुकसानदेह हो सकता है।" उन्होंने कहा कि यदि हम इन जानवरों को मार रहे हैं तो हमें ये भी सोचना चाहिए कि हम उनका इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं।