Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कॉफ़ी, आलू और बीयर के बिना दुनिया कैसी होगी

हमें फॉलो करें कॉफ़ी, आलू और बीयर के बिना दुनिया कैसी होगी
, सोमवार, 22 जुलाई 2019 (11:31 IST)
- निकोलय वोरोनिन (विज्ञान संवाददाता, बीबीसी न्यूज़ रूस)
 
हमें अपनी पसंद की खाने-पीने की चीज़ों को अलविदा कहना पड़ सकता है और वह भी जलवायु परिवर्तन के कारण। तापमान और मौसम चक्र में आ रहे बदलाव के कारण फसलें उगाने में मुश्किल आ सकती है और साथ ही मछलियां और जानवरों की भी मौत हो सकती है। आइए देखते हैं कि भविष्य में कौन-कौन सी चीज़ें आपकी थाली से ग़ायब हो सकती हैं और इसकी वजह क्या होगी।
 
कॉफ़ी और चाय
अगर आप सुबह उठते ही चाय या कॉफ़ी की ताज़गी भरी चुस्कियां लेने के शौक़ीन हैं तो आपके लिए बुरी ख़बर है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 2050 तक हालात ऐसे हो जाएंगे कि जो ज़मीन कॉफ़ी उगाने के लिए उपयुक्त मानी जाती है, वह आज के मुक़ाबले आधी रह जाएगी। यही नहीं, 2080 तक कॉफ़ी की कई जंगली क़िस्में एकसाथ विलुप्त हो जाएंगी।
 
तंज़ानिया इस समय चाक के मुख्य निर्यातकों में से एक है। पिछले पचास साल में यहां पर कॉफ़ी का उत्पादन घटकर आधा रह गया है। अगर आपको लगता है कि आप कॉफ़ी छोड़कर चाय पीना शुरू करके मुश्किल से बच सकते हैं तो भारतीय वैज्ञानिक आपके लिए बुरी ख़बर लेकर आए हैं। चाय के बाग़ानों को मॉनसून से पोषण मिलता है मगर पिछले कुछ समय से इसकी तीव्रता बढ़ने का असर चाय के स्वाद पर भी पड़ा है। तो ख़ुद को आने वाले समय में कम ज़ायके वाली पानी जैसी चाय पीने के लिए तैयार कर लीजिए।
 
चॉकलेट
चॉकलेट भी ग्लोबल वॉर्मिंग से प्रभावित होने वाली चीज़ों में शामिल है। कोको की फलियों को अधिक तापमान और पर्याप्त नमी की ज़रूरत होती है। लेकिन इससे भी ज़्यादा उन्हें स्थिरता की ज़रूरत होती है।
 
कोको के पौधों की उतनी ही मांग है जितनी की कॉफ़ी के पौधों की। लेकिन तापमान, बारिश, मिट्टी की गुणवत्ता, धूप या हवा की रफ़्तार का भी पैदावार पर असर पड़ता है। इंडोनेशिया और अफ़्रीका के कोको उत्पादकों ने तो अब ताड़ या रबर के पेड़ उगाने शुरू कर दिए हैं।
 
अगले 40 सालों में घाना और आइवरी कोस्ट का तापमान औसतन 2 डिग्री बढ़ने का अनुमान है। यही दो देश हैं जो दुनिया में कोको की दो तिहाई मांग को पूरा करते हैं। ज़ाहिर है, इसके कारण शायद ही भविष्य में चॉकलेट कम दाम पर मिल पाए।
 
मछलियां और चिप्स
मछलियों का आकार छोटा होता जा रहा है क्योंकि समुद्र का तापमान ज़्यादा होने के कारण उसमें घुली ऑक्सीजन की मात्रा घट रही है। अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सोखने के कारण महासागरों का पानी ज़्यादा अम्लीय होता जा रहा है यानी शेलफ़िश जैसे खोल में पलने वाले जीवों के लिए मुश्किल खड़ी होने वाली है।
 
इसका सीधा साक्ष्य भी उपलब्ध है- पूरी दुनिया में पकड़ी जाने वाली मछलियों की मात्रा में पांच प्रतिशत की कमी आई है। जो लोग उत्तरी सागर में मछलियां पकड़ते हैं, वे पहले के मुक़ाबले एक तिहाई कम मछलियां पकड़ पा रहे हैं।
webdunia
आलू का क्या मामला है?
भले ही आलू ज़मीन के अंदर उगते हैं मगर वे भी अक्सर सूखों से प्रभावित हो रहे हैं। ब्रितानी मीडिया के मुताबिक, ब्रिटेन में 2018 में पड़ी गर्मी के कारण आलू की पैदावार एक चौथाई घट गई थी जबकि हर आलू औसतन तीन सेंटीमीटर छोटा हो गया था।
 
कोन्यैक, व्हिस्की और बीयर
दक्षिण-पश्चिम फ्रांस में 600 साल पुरानी कॉन्यैक (एक तरह की ब्रैंडी) इंडस्ट्री संकट से जूझ रही है। बढ़ते हुए तापमान के कारण उनके प्रसिद्ध अंगूरों की मिठास बहुत बढ़ गई है जिसके कारण ब्रैंडी बनाने में दिक्कत आती है।
 
इस कारण उत्पादक अब विकल्पों पर विचार करने लग गए हैं। हर साल इस समस्या से निपटने के लिए लाखों यूरो रिसर्च पर खर्च कर दिए जाते हैं मगर अभी तक ख़ास क़ामयाबी नहीं मिल पाई है। वहीं, उत्तर में, स्कॉटलैंड की प्रसिद्ध व्हिस्की के साथ भी ऐसी ही मुश्किल है। व्हिस्की बनाने वाले परेशान हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सूखे की स्थिति पैदा होने के कारण उन्हें ताज़ा पानी नहीं मिल पा रहा।
 
पिछली गर्मियों में कई व्हिस्की बनाने वाली फ़ैक्ट्रियों को बंद करना पड़ा था। मौसमविदों ने चेताते हैं कि मौसम लगातार सख़्त होता जा रहा है। ब्रिटेन की नेशनल वेदर सर्विस के मुताबिक अगर औद्योगिक युग से पहले से तुलना करें तो अब ब्रिटिश आइल्स में गर्मियों में मौसम में प्रचण्ड गर्मी और सूखा पड़ने की आशंका 30 गुना बढ़ गई है।
 
यूके और आयरलैंड में अब हर आठ सालों में प्रचण्ड गर्मियां पड़ने का आशंका है और बाकी देशों में भी हालात इससे जुदा नहीं होंगे। बीयर बनाने वालों को भी इसी तरह की समस्या आ रही है। चेक रिपब्लिक और अमरीकी बीयर उत्पादक पानी की कमी और सूखे के कारण फसलों की कम पैदावार से प्रभावित हो रहे हैं।
 
क्या आपको चिंता नहीं होनी चाहिए?
आप कहेंगे कि ऊपर जो बातें बताई हैं, इनमें कुछ या कोई भी मेरे मतलब की नहीं हैं। मगर सोचिए, जिस तरह से पूरी दुनिया में अचानक ये बदलाव आ रहा है, उससे हज़ारों लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा। यह भी सोचिए कि फसलों की पैदावार खराब रहने के कारण कीमतों में जो बढ़ोतरी होगी, उससे क्या होगा।
 
खानी की कमी हो गई तो मानवीय संकट उठ खड़ा होगा और उससे राजनीतिक अस्थिरता भी पैदा हो जाएगी। साफ़ है कि मामला सिर्फ़ आपके चाय के कप या व्हिस्की के कप से जुड़ा नहीं रह गया है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

आइये, चंद्र मिशन -2 के बारे में जानें सरल शब्दों में