Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

समान नागरिक संहिता से बीजेपी क्या चाहती है?

Advertiesment
हमें फॉलो करें uniform civil code

BBC Hindi

, शनिवार, 1 जुलाई 2023 (07:57 IST)
प्रेरणा, बीबीसी संवाददाता
uniform civil code : साल 1967 के आम चुनाव, भारतीय जनसंघ ने अपने चुनावी मेनिफ़ेस्टो में पहली बार 'समान नागरिक संहिता' का स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया था। घोषणापत्र में ये वादा किया गया कि अगर जनसंघ सत्ता में आती है तो देश में 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' लागू किया जाएगा। हालांकि, चुनाव के नतीजे विपरीत आए और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो गई।
 
इसके बाद साल 1967-1980 के बीच भारतीय राजनीति में एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हुईं ( कांग्रेस का बंटवारा, भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971, इमरजेंसी) जिनके बीच 'यूनिफॉर्म सिविल कोड' का मुद्दा एक हद तक पृष्ठभूमि में चला गया।
 
साल 1980 में बीजेपी की स्थापना के बाद एक बार फिर यूसीसी की मांग ने जगह बनानी शुरू कर दी। राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 और समान नागरिक संहिता बीजेपी मेनिफेस्टो के ये तीन प्रमुख बिंदु रहे हैं।
 
लेकिन किसी भी बीजेपी सरकार (यहां तक कि अपने पहले कार्यकाल के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार) ने कभी भी समान नागरिक संहिता लागू करने पर गंभीरता से विचार नहीं किया।
 
हालांकि समय-समय पर इसे लेकर विवाद और बयानबाज़ियां होती रहीं हैं। बीजेपी नेता ये आश्वस्त करते रहे कि यूसीसी का मुद्दा अब भी उनकी प्रमुखताओं में एक है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक इस पर खुलकर कुछ नहीं कहा था।
 
बीते 28 जून को ऐसा पहली बार था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूसीसी पर इतने विस्तृत तरीके से बात कर रहे थे।
 
पीएम मोदी ने क्या बोला?
भोपाल में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए कहा कि 'एक ही परिवार में दो लोगों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते। ऐसी दोहरी व्यवस्था से घर कैसे चल पाएगा?'
 
पीएम मोदी ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है। सुप्रीम कोर्ट डंडा मारता है। कहता है कॉमन सिविल कोड लाओ। लेकिन ये वोट बैंक के भूखे लोग इसमें अड़ंगा लगा रहे हैं। लेकिन भाजपा सबका साथ, सबका विकास की भावना से काम कर रही है।"
 
समान नागरिक संहिता पर प्रधानमंत्री के आए बयान के बाद ज़्यादातर विपक्षी पार्टियां ये आरोप लगा रही हैं कि 2024 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने बेरोज़गारी, महंगाई जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए यूसीसी का शिगूफ़ा छेड़ा है और वो जनता को गुमराह करना चाहते हैं। हालांकि कुछ विपक्षी पार्टियां इसके समर्थन में भी हैं।
 
समर्थन और विरोध में खड़ी पार्टियां
ज़्यादातर विपक्षी पार्टियां समान नागरिक संहिता का विरोध कर रही हैं। इन पार्टियों का मानना है कि यूसीसी अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और यूसीसी आवश्यक नहीं है, क्योंकि व्यक्तिगत कानूनों की वर्तमान प्रणाली अच्छी तरह से काम कर रही है।
 
विपक्षी दलों को डर है कि यूसीसी का इस्तेमाल सत्तारूढ़ बीजेपी देश पर हिंदू बहुसंख्यकवाद थोपने के लिए करेगी।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, सीपीआई, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, सीपीआई(एम) ने इसका खुलकर विरोध किया है।
 
वहीं आम आदमी पार्टी ने 'सैद्धांतिक तौर पर इसका समर्थन किया है। पार्टी नेता और सांसद संदीप पाठक ने कहा, हमारी पार्टी सैद्धांतिक रूप से इसका समर्थन करती है। आर्टिकल 44 भी इसका समर्थन करता है। चूंकि ये सभी धर्मों से जुड़ा मामला है, ऐसे में इसे तभी लागू किया जाना चाहिए, जब इस पर सर्वसम्मति हो। शिवसेना(उद्धव ठाकरे गुट) का भी कुछ यही रुख़ है।
 
एनसीपी ने न तो इसका समर्थन किया है, न ही विरोध। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल का कहना है, ''हम सिर्फ़ ये कह रहे हैं कि इतना बड़ा फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लिया जाना चाहिए। अचानक साढ़े नौ साल बाद सरकार अब यूसीसी की बात कर रही है। यह अगले चुनावों को देखते हुए एक राजनीतिक चाल है।
 
प्रधानमंत्री ने क्यों की यूसीसी की बात?
इसका सीधी-सीधा जवाब ये हो सकता है कि 'समान नागरिक संहिता' लागू करना बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है, लेकिन अभी क्यों?
 
इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी न्यूज़ वेबसाइट 'दी प्रिंट' के लिए लिखे अपने लेख 'यूसीसी इज मोदीज न्यूक्लियर बटन' में लिखते हैं, ''कि आख़िर 9 सालों से सत्ता पर काबिज़ रहने के बाद प्रधानमंत्री मोदी अब इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं, जबकि बीते नौ सालों के दौरान वह आसानी से इस मसले पर एक गंभीर बहस को बढ़ावा दे सकते थे और मुसलमानों को आश्वस्त कर सकते थे कि इस समान, न्यायसंगत क़ानून से इस्लाम को कोई ख़तरा नहीं होगा?"
 
"जवाब है कि बीजेपी साल 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रही है। मैंने कुछ हफ़्ते पहले ही लिखा था कि मोदी हिंदुत्व को अपने चुनावी मंच का एक बड़ा हिस्सा बनाएंगे और यूसीसी बीजेपी का न्यूक्लियर बटन है।''
 
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह इसके पीछे की दो प्रमुख वजहें गिनाते हैं। पहली कि यूसीसी जनसंघ के ज़माने से बीजेपी के तीन प्रमुख एजेंडे में शामिल रहा है।
 
अनुच्छेद 370 और राम मंदिर, ये दो मुद्दे लागू हो चुके हैं तो मात्र एक एजेंडा बचा हुआ था। ऐसे में बीजेपी के कोर वोटर के अंदर इस बात की बेचैनी थी कि यूसीसी कब लागू होगा? इसलिए ये कोई नई बात या कोई अचानक आया मुद्दा बीजेपी के लिए नहीं है।
 
दूसरी वजह के बारे में बताते हुए वो कहते हैं, ''विपक्षी पार्टियों की बीते 23 जून को बैठक हुई है। उस बैठक में इस बात पर तो सहमति बन गई कि सभी पार्टियां साथ चुनाव लड़ेंगी लेकिन किस मुद्दे पर लड़ेंगी ये तय नहीं हो पाया। तो विपक्षी पार्टियों से पहले प्रधानमंत्री ने यूसीसी पर बोलकर एक एजेंडा सेट कर दिया। अब कांग्रेस की तरफ़ से ये बयान आ रहा है कि अगली बैठक यानी 13-14 जुलाई में वो इसका जवाब देंगे। यानी विपक्ष प्रो-एक्टिव होने की बजाय रिएक्टिव हो गया।''
 
प्रदीप सिंह साल 1977 और साल 1989 के आम चुनावों में विपक्षी एकता का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि ये दो मात्र ऐसे चुनाव थे जब भारतीय राजनीति में विपक्षी पार्टियां एकजुट थीं। इसकी प्रमुख वजह भ्रष्टाचार के आरोप और इमरजेंसी थी। साल 1977 में पहले भ्रष्टाचार और फिर इमरजेंसी, वहीं साल 1989 में बोफोर्स का मुद्दा।
 
इस तरह का कोई बड़ा मुद्दा जो पब्लिक को उद्वेलित करता हो, ऐसा विषय विपक्ष को नहीं मिला है। इसके उलट अब यूसीसी का मुद्दा छेड़कर प्रधानमंत्री ने विपक्ष में दरार पैदा कर दी है। आम आदमी पार्टी, शिवसेना, एनसीपी सबके मत अलग-अलग हैं। यानी जिस विपक्षी एकता की बात हो रही थी, वो इस मुद्दे पर बिखरा हुआ है।
 
यूसीसी से ध्रुवीकरण का एक और मौका
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता मानती हैं कि समान नागरिक संहिता पर बोलना बीजेपी की मजबूरी है। वो कहती हैं, ''चूंकि राम मंदिर और अनुच्छेद 370 का मुद्दा बीजेपी ने चुनावों में भरपूर भुना लिया है, ऐसे में पार्टी को एक ऐसा मुद्दा चाहिए था जिस पर ध्रुवीकरण किया जा सके।
 
कर्नाटक चुनाव में मिली हार के बाद बीजेपी अब कोई जोख़िम नहीं ले सकती। तीन राज्यों के चुनाव सिर पर हैं और 2024 का लोकसभा चुनाव भी मुहाने पर है। ऐसे में बिना देर किए बीजेपी ने अपना चुनावी एजेंडा सेट कर लिया है।''
 
बीजेपी क्या सोचती है?
बीजेपी के प्रवक्ता अमिताभ सिन्हा कहते हैं कि पार्टी हमेशा से एक देश, एक विधान और एक निशान की बात करती रही है। जब समान आपराधिक संहिता सब के लिए बराबर है तो भारतीय नागरिक संहिता क्यों अलग-अलग होगी?
 
विपक्षी पार्टियों पर तंज करते हुए वो कहते हैं, ''विपक्षी पार्टियां तुष्टिकरण की राजनीति करती रही हैं। वो पहले मुसलमानों को डराते हैं और फिर ख़ुद को उनका हितैषी बताते हैं। जबकि मुसलमानों में औरतों की स्थिति बदतर है। उन्हें बच्चा पैदा करने की मशीन बना दिया गया है।"
 
"मुसलमान चार-पांच शादियां करते हैं, हर शादी से पांच-छह बच्चे पैदा करते हैं और अपनी आबादी बढ़ाते हैं। जब भारत आज़ाद हुआ था तो मुसलमानों की आबादी तीन करोड़ थी और अब ये आबादी आठ प्रतिशत बढ़ी है। तो इन सब चीज़ों से मुसलमान औरतों को बचाना है।''
 
बढ़ रही है मुसलमानों की आबादी?
ये सच है कि भारत में मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है। लेकिन भारत की समूची जनसंख्या बढ़ रही है जिसमें दूसरे धर्म भी शामिल हैं।
 
लेकिन अगर आप बीते कुछ दशकों में भारत में मुसलमानों की आबादी की वृद्धि के आंकड़े देखेंगे तो पाएंगे कि 1991 के बाद से भारत की जनसंख्या में मुसलमानों की वृद्धि दर कम हुई है। आम आबादी की वृद्धि दर भी 1991 के बाद कम हुई है।
 
2019 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार प्रमुख धार्मिक समूहों में मुस्लिम आबादी की प्रजनन दर सबसे अधिक है, लेकिन डेटा के मुताबिक़ बीते दो दशकों में इस दर में भारी गिरावट आई है।
 
वास्तव में, प्रति महिला जन्मदर की गिरावट मुसलमानों में हिंदुओं के मुक़ाबले अधिक है। ये 1992 में 4.4 जन्म दर थी जो 2019 में गिरकर 2.4 हो गई।
 
यूसीसी से बीजेपी को कितना और क्या फायदा?
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के मुताबिक़ बीजेपी को इससे फ़ायदा ये है कि उसका एजेंडा सेट हो गया है। वो कहते हैं, ''बजाय इसके कि विपक्ष महंगाई, बेरोज़गारी... जैसे मुद्दे, जिन पर सरकार का पक्ष कमज़ोर दिखता है उस पर चर्चा होने की बजाय, अब उन मुद्दों पर बात होगी जिन पर बीजेपी चाहती है।
 
यानी विपक्ष बीजेपी की बनाई पिच पर खेलने को मजबूर होगा और बीजेपी इन मुद्दों पर हमेशा मजबूत रहती है इसलिए उसे फ़ायदा होगा। सबसे अधिक फ़ायदा ध्रुवीकरण से होगा।
 
क्या है यूसीसी और अब तक क्या-क्या हुआ है?
समान नागरिक संहिता को लेकर सांसदों की राय जानने के लिए संसदीय स्थायी समिति की 3 जुलाई को बैठक बुलाई गई है।
 
भारत के 22वें विधि आयोग ने बीते 14 जून को समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर धार्मिक संगठनों और आम लोगों से राय मांगी थी। आयोग ने इसके लिए एक महीने का व़क्त रखा है।
 
इससे पहले साल 2018 में 21वें विधि आयोग ने कहा था कि '' इस स्तर पर समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय''।
 
हालांकि गोवा फिलहाल देश का इकलौता राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है। वहीं उत्तराखंड सरकार ने भी यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है।
 
किन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता?
दुनिया के कई आधुनिक और विकसित देशों में समान नागरिक संहिता लागू है। जैसे- अमेरिका, इसराइल, जापान, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और यूरोप के कई दूसरे देश शामिल हैं।
 
वहीं अगर इस्लामिक देशों की बात करें तो तुर्की को छोड़कर सभी देशों में शरिया क़ानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर लागू होता है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चार साल पहले विधि आयोग ने ठुकरा दिया था यूनिफॉर्म सिविल कोड