सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
पंजाब विधानसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री मोदी ने सोमवार को जालंधर में चुनावी सभा को संबोधित किया। इस रैली में उन्होंने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों को आड़े हाथों लिया।
पीएम मोदी ने कांग्रेस पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' के सबूत माँगने पर निशाना साधा, वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर गली गली शराब की दुकानें खुलवाने का आरोप लगाया। युवा पीढ़ियों को शराब की लत से छुटकारा दिलाने के लिए उन्होंने पंजाब में 'डबल इंजन' की एनडीए सरकार के लिए वोट माँगा।
5 जनवरी को फिरोज़पुर जाते समय पीएम के काफ़िले की सुरक्षा में 'कथित चूक' के बाद ये उनका पहला पंजाब दौरा था।
बीजेपी के रोल में बदलाव
पीएम मोदी को जिस 'एनडीए' की याद जालंधर में आई, उसका अहम साथी शिरोमणि अकाली दल अब इस चुनाव में उनके साथ नहीं है। इस बार के चुनाव में बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस और सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी संयुक्त अकाली दल के साथ गठबंधन किया है।
बीजेपी इस चुनाव में 65 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, वहीं 37 सीटों पर कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं और 15 सीटों पर ढींढसा की पार्टी के उम्मीदवार अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं।
पिछले तीन विधानसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन की बात करें तो बीजेपी को 2017 में 3 सीटें, 2012 में 12 और 2007 में 19 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में ये जानना ज़रूरी है कि इस चुनाव में बीजेपी की राह कितनी आसान या कितनी मुश्किल है?
पंजाब में कई दशकों तक पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह कहते हैं , "1996 में शिरोमणि अकाली दल ने अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार का बिना शर्त समर्थन दिया था। उसी समर्थन के बाद पहली बार 1997 में पंजाब में बीजेपी और अकाली दल का गठबंधन बना, जो 23 साल बाद 2020 में जाकर टूटा।"
लेकिन इस बार केवल गठबंधन ही नहीं टूटा है, बल्कि बीजेपी का रोल भी बदला है। अकाली दल के साथ बीजेपी हमेशा छोटे भाई की भूमिका में रही है। जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन में बीजेपी इस बार बड़े भाई की भूमिका में है। छोटे भाई की भूमिका में कभी बीजेपी को पंजाब में पनपने का मौका नहीं मिला।
'बीजेपी के पास खोने को कुछ नहीं'
पंजाब में बीजेपी का वोट प्रतिशत कभी 10-11 फ़ीसदी से ऊपर नहीं गया। इसलिए बीजेपी के पास खोने को कम और पाने के लिए ज़्यादा है।
प्रोफ़ेसर खालिद मोहम्मद पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ में डिपार्टमेंट ऑफ़ इवनिंग स्टडीज़ में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं। बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "अकाली दल के साथ गठबंधन में जिन सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ती थी वहाँ अकाली दल का वोट बीजेपी को ट्रांसफर होता था। लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के गठबंधन में ऐसा हो पाएगा, इस पर सवालिया निशान है।"
प्रोफ़ेसर ख़ालिद इसके पीछे वजह भी बताते हैं। वो कहते हैं, "कैप्टन अमरिंदर की पार्टी के कुछ 4-5 नेता ख़ुद बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ना चाहते हैं ना कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के चुनाव चिन्ह पर।"
ऐसे में वो सवाल पूछते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के पास अपना वोट बैंक है या वो वोट बैंक कांग्रेस का था, जो उन्हें मिलता रहा।
इससे ये बात भी साबित हो जाती है, बीजेपी को 'बड़े भाई' के रोल में इस गठबंधन से ज़्यादा फ़ायदा नहीं होने वाला।
पंजाब बीजेपी पर 'दाग'?
लेकिन ऐसा भी नहीं की बीजेपी हाथ पर हाथ धरे बैठी हो। चुनाव से पहले मोदी सरकार के कई फ़ैसलों को जानकार पंजाब में बीजेपी के गेम प्लान से जोड़ कर देखते हैं।
हाल ही में मोदी सरकार ने गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व के अवसर पर उनके साहिबजादों के साहस को श्रद्धांजलि देते हुए हर साल 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाने का फैसला लिया।
इतना ही नहीं 14 अगस्त को 'विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस' के रूप में मनाए जाने का फ़ैसला भी हाल ही में केंद्र सरकार ने लिया।
केंद्र सरकार के दोनों फै़सलों को जानकार पंजाब चुनाव से जोड़ कर देखते हैं। पीएम मोदी ने जालंधर की रैली में दोनों फैसलों का जिक्र कर जानकारों की राय पर एक तरह से मुहर लगाने का काम किया।
पीएम मोदी के जालंधर के भाषण में तीन अहम बातें रहीं। ऐसा पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार कहते हैं।
" पीएम ने देशभक्ति, राष्ट्रीय सुरक्षा और पंजाब में विकास की बात की। ये तीनों बातें इसलिए अहम हैं क्योंकि पंजाब की सत्ता में बीजेपी जब भी रही छोटे भाई की भूमिका में रही। उन्हें सीधे तौर पर किसी बात के लिए दोषी नहीं ठहराया जाता। कांग्रेस और अकाली दल पर ही पंजाब की बदहाली का ठिकरा फोड़ा जाता है। इसका फ़ायदा आम आदमी पार्टी भी उठाने की कोशिश करती है। आज पीएम मोदी की भाषा में वही दिखाई और सुनाई दिया, जब 'नवा पंजाब' के लिए वो वोट माँगते नज़र आए।"
पंजाब में मोदी फैक्टर
लेकिन पंजाब में पीएम मोदी का जादू कितना चल पाएगा?
इस सवाल के जवाब में जगतार सिंह कहते हैं, "भारत के दूसरे इलाकों के मुकाबले पंजाब कई मायनों में अलग है। यहाँ हिंदू आबादी की नुमाइंदगी हमेशा से कांग्रेस ने की है ना की बीजेपी ने। 2014 और 2019 में जब पूरे देश में मोदी की लहर थी, तब भी पंजाब में 'मोदी फैक्टर' काम नहीं किया। इस लिहाज से देखें तो पंजाब में चुनाव से पहले पीएम मोदी की रैलियों से बीजेपी को बहुत फ़ायदा नहीं होगा। हालांकि इस बार बीजेपी हिंदू वोट अपनी तरफ़ करने की कोशिश पूरी कर रही है।"
जगतार सिंह कहते हैं कि पंजाब में शहरी वोटर ज़्यादातर हिंदू हैं और ग्रामीण इलाकों में ज़्यादातर सिख वोटर हैं।
बीजेपी ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी वोटरों में ज़्यादा अच्छी पैठ रखती है और इस वजह से पीएम मोदी रैली करने के लिए जालंधर पहुँचे।
जबकि प्रोफ़सर ख़ालिद कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में बीजेपी के प्रति लोगों में कृषि क़ानून को लेकर बहुत ग़ुस्सा है।
चुनाव पर किसान आंदोलन का असर
एक साल तक पंजाब-हरियाणा के किसान दिल्ली से लगे बॉर्डर पर नए कृषि क़ानून वापस लेने की माँग को लेकर धरने पर बैठे रहे। एक साल बाद पीएम मोदी ने ख़ुद ही क़ानून वापस लेने की घोषणा कर दी। किसान संगठनों का दावा है कि 700 किसानों की इस आंदोलन में जान गई।
फिलहाल आंदोलन स्थगित है, लेकिन कृषि क़ानून वापस लेने से क्या किसानों का रोष कम हुआ?
जगतार सिंह कहते हैं, "ग्रामीण इलाकों में किसानों में थोड़ा रोष है। लेकिन चुनाव में वो मुद्दा नहीं है। ये बात आपको अजीब लग सकती है। ये मेरा आकलन है। अगर संयुक्त समाज मोर्चा चुनाव नहीं लड़ता तो शायद किसान आंदोलन का असर होता।"
संयुक्त समाज मोर्चा किसान संगठनों का समूह है जो पंजाब के चुनाव में पहली बार भाग्य आज़मा रहे हैं।
जालंधर में प्रधानमंत्री मोदी ने केसरिया सिख पगड़ी पहन कर किसानी और खेती की बात तो की, लेकिन कृषि क़ानून वापस लेने पर कुछ नहीं बोले और ना ही अकाली दल पर कुछ बोले।
'किंग मेकर' की भूमिका या 2024 की तैयारी
ज़्यादातर जानकार ये मान रहे हैं कि इस बार बीजेपी सारी मशक्कत अपनी सीटें बढ़ाने के लिए कर रही है।
जगतार सिंह की माने तो बीजेपी पंजाब में 2024 की लंबी लड़ाई की तैयारी अभी से कर रही है। इस बार जो नफ़ा होगा, वो 2024 में मज़बूत आधार देगा। नुक़सान की बात इसलिए नहीं की बीजेपी के पास खोने के लिए पंजाब में ज़्यादा कुछ नहीं है।
वहीं प्रोफ़ेसर ख़ालिद कहते हैं कि बीजेपी 'किंग मेकर' बनने की कोशिश करेगी। अगर बीजेपी की सीटें दहाई का आंकड़ा पार कर जाती हैं और अकाली दल का प्रदर्शन अच्छा हो जाता है। तो दोनों मिल कर सरकार बना सकते हैं, इस संभावना से अभी इनकार नहीं किया जा सकता। कृषि क़ानून तो वापस ले ही लिए गए हैं। अकाली दल को सत्ता में बीजेपी के साथ आने में परहेज़ भी अब नहीं होगा।
प्रोफ़ेसर आशुतोष भी प्रोफ़ेसर ख़ालिद की बात से बहुत हद तक सहमत नज़र आते हैं। वो कहते हैं, "जालंधर के भाषण में पीएम ने अकाली दल पर निशाना नहीं साधा। ये अहम बात है। यानी चुनाव बाद की गुंजाइश बची है।"
प्रोफ़ेसर ख़ालिद कहते हैं पंजाब में जो कुछ बातें बीजेपी के पक्ष में जाती हैं वो हैं करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण, 1984 दंगों के लिए एसआईटी का गठन और चुनावी घोषणापत्र में बेअदबी के मामले में ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने का वादा।