अभिजीत श्रीवास्तव, बीबीसी संवाददाता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन दिन पहले ही अपने 'तीसरे कार्यकाल' की बात कही थी और अब भारतीय जनता पार्टी ने रविवार को अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का एलान किया है। इसमें कई नए चेहरों को जगह दी गई है।
पार्टी के संगठन से रमण सिंह जैसे पूर्व मुख्यमंत्री को जोड़ा गया है तो तारिक मंसूर और अब्दुल्ला कुट्टी बीजेपी के नए मुसलमान चेहरे के रूप में देखे जा रहे हैं।
बीजेपी की कार्यकारिणी में जो बदलाव किए गए हैं, वो इस साल होने वाले चार विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया है तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी उतनी ही नज़र रखी गई है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किया गया बदलाव यह ध्यान में रखते हुए किया गया है कि पार्टी अपनी विचारधारा और मोदी सरकार के पिछले नौ सालों में किए गए कामों की बदौलत चुनाव में अधिक से अधिक सीट हासिल कर सके।
यूपी की 80 सीटों को तवज्जो
लोकसभा चुनाव की 80 सीटों पर नज़र रखते हुए बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सबसे अधिक तरजीह उत्तर प्रदेश को दी गई। यहां से आठ सदस्य नई कार्यकारिणी में शामिल हैं। कार्यकारिणी में तीन उपाध्यक्ष, दो महासचिव, एक सचिव, कोषाध्यक्ष और सह सचिव उत्तर प्रदेश से हैं।
नई कार्यकारिणी में सांसद रेखा वर्मा, सांसद लक्ष्मीकांत वाजपेयी और तारिक़ अनवर उपाध्यक्ष बनाए गए हैं तो अरुण सिंह और गोरखपुर से पांच बार विधायक रहे वर्तमान राज्यसभा सांसद राधामोहन दास अग्रवाल राष्ट्रीय महासचिव की सूची में शामिल हैं।
वहीं सुरेंद्र सिंह नागर को राष्ट्रीय सचिव बनाया गया है। तो राजेश अग्रवाल कोषाध्यक्ष और शिवप्रकाश सह राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए हैं।
चुनावी राज्यों पर नज़रें
तो इस साल चार राज्यों तेलंगाना, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं, उसे भी ध्यान में रखा गया है।
बीजेपी ने हाल ही में इन राज्यों में अपने चार केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव प्रभारी बनाया है। अब राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी इन राज्यों को तरजीह दी गई है।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर सबसे अधिक छत्तीसगढ़ से तीन नुमाइंदे हैं। ये हैं पूर्व मुख्यमंत्री रमण सिंह, सरोज पांडेय और लता उसेंडी।
अन्य तीन राज्यों से एक-एक प्रतिनिधित्व है। राजस्थान से पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश से सौदान सिंह और तेलंगाना से डीके अरुणा संगठन में शामिल किए गए हैं।
वहीं राष्ट्रीय महासचिव के पद पर मध्य प्रदेश से कैलाश विजयवर्गीय, राजस्थान से सुनील बंसल और तेलंगाना से संजय बेदी को लाया गया है।
जबकि राष्ट्रीय सचिवों में भी राजस्थान और मध्य प्रदेश से एक-एक चेहरे शामिल किए गए हैं। यानी नई टीम में 38 में 11 नाम इन्हीं चार राज्यों से हैं।
नई कार्यकारिणी किसकी टीम है?
पार्टी की कार्यकारिणी में क्या बीजेपी अध्यक्ष की अनुशंसा पर सदस्य शामिल किए गए हैं या इसमें मुख्य भूमिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की है?
वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं, "ये सामूहिक ज़िम्मेदारी है। यह कहना कि पीएम मोदी कुछ सोचते हैं और अमित शाह कुछ और यह पूरी तरह ग़लत होगा। दोनों एक पक्की टीम की तरह काम कर रहे हैं और जेपी नड्डा वो उनके आदेशों को अमलीजामा पहनाते हैं। तो ये पीएम मोदी और अमित शाह की टीम है।"
'चौंकाने' वाला नाम तारिक़ मंसूर कौन हैं?
इन सबके बीच बीजेपी का राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल मुसलमान चेहरा तारिक़ मंसूर का नाम सबसे अधिक 'चौंकाने' वाला और चर्चा में है। वो उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं।
वे 2017 के बाद से बुक्कल नवाब, मोहसिन रज़ा और दानिश आज़ाद अंसारी के बाद पार्टी की ओर से विधान परिषद में भेजे गए चौथे मुस्लिम सदस्य हैं।
उनके कुलपति रहते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे। तब पहली बार कैंपस के अंदर पुलिस आई थी। इसे और छात्रों के पक्ष में नहीं खड़े होने को लेकर उनकी आलोचना की गई थी।
बीजेपी पर क़रीबी नज़र रखने वालीं वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन बताती हैं, "तारिक़ मंसूर जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति थे, तब से ही वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ जुड़ गए थे। बीजेपी की राजनीति में दारा शिकोह के क़ब्र को तलाश करने की परिकल्पना उनकी ही दी हुई है। उनकी लाइन बीजेपी को पसंद आई है और उनको संगठन में इसलिए ही शामिल भी किया गया है।”
वे कहती हैं कि ऐसा लग रहा है कि जैसे मुख्तार अंसारी और शाहनवाज़ हुसैन के बाद बीजेपी को मुसलमान नुमाइंदे की ज़रूरत भी लगी।
माना जा रहा है कि तारिक़ मंसूर पसमांदा मुसलमानों के बीच पार्टी की पकड़ को और मज़बूत करने का काम करेंगे।
वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, "फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता कि वो मुसलमानों के एक बड़े तबके को आकर्षित कर पाएंगे लेकिन ये शुरुआत हो सकती है।"
राधिका रामाषेशन भी प्रमोद जोशी की बातों से इत्तेफ़ाक रखते हुए कहती हैं कि तारिक़ मंसूर को संगठन में शामिल करने से पसमांदा मुसलमानों का झुकाव पार्टी की ओर होगा ऐसा नहीं लगता है। वे कहती हैं कि उनका प्रतिनिधित्व केवल प्रतीक मात्र है क्योंकि बीजेपी में उपाध्यक्ष के पद का बहुत महत्व नहीं है।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी को इन नियुक्ति में सोशल इंजीनियरिंग का बदलता हुआ परिदृश्य दिखता है।
वे कहते हैं, "बीजेपी अब तक की राजनीति में मुसलमान को पूरी तरह से नज़रअंदाज करते हुए चल रही थी। लेकिन ऐसा लग रहा है कि धीरे-धीरे उसे भी मुसलमानों के बीच में जाने की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि उनके ख़िलाफ़ जो गठबंधन है वो काफ़ी मजबूती के साथ तैयार हो कर आ रहा है।"
केरल को प्रतिनिधित्व
बीजेपी की कार्यकारिणी में अब्दुल्ला कुट्टी को भी जगह दी गई है जो केरल से हैं। प्रमोद जोशी कहते हैं, "यह बीजेपी का राष्ट्रीय छवि दिखाने का प्रयास है। वो दक्षिण के नए इलाकों में अपनी दखल बनाना चाहती है। शनिवार को ही उसने तमिलनाडु में छह महीने की पदयात्रा शुरू की है। केरल एक नया क्षेत्र है। कुट्टी के साथ ही एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किए गए हैं।"
राधिका रामाषेशन कहती हैं, "केरल के नज़रिए से उन्हें ज़रूर शामिल किया गया है लेकिन यह भी प्रतीक मात्र है।"
मुख़्तार अब्बास नक़वी को भी बीजेपी में मुसलमानों के प्रतिनिधि के रूप में लाया गया था। उम्मीद थी कि वो उत्तर प्रदेश में शिया वोट लाएंगे।
राधिका रामाषेशन कहती हैं कि एक बार नक़वी रामपुर से लोकसभा चुनाव भी जीते थे लेकिन तब संघ के साथ साथ विश्व हिंदू परिषद ने भी बहुत मेहनत की थी कि सभी हिंदू वोट उनके पक्ष में डाले जाएं।
राधिका रामाषेशन और प्रमोद जोशी दोनों का यह मानना है कि बीजेपी में अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की जो कमी थी ये दोनों उसे पूरा करने की कोशिश है।
वसुंधरा और रमण सिंह को शामिल करने के मायने
बीजेपी की कार्यकारिणी में वसुंधरा राजे और रमण सिंह पहले भी उपाध्यक्ष रह चुके हैं। राधिका रामाशेषन कहती हैं, "रमण सिंह का छत्तीसगढ़ से निकल जाना उम्मीदों के अनुरूप है लेकिन वसुंधरा राजे को कार्यकारिणी में शामिल किया जाना चौंकाने वाला रहा है।"
राधिका रामाशेषन कहती हैं, "राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह या पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा की जितनी भी सभाएं हुई हैं वसुंधरा राजे हमेशा मंच पर रही हैं। ऐसे में संदेश ये गया कि भले ही उनका नाम मुख्यमंत्री के तौर पर घोषित न करें लेकिन विधानसभा चुनाव जीतने की स्थिति में मौक़ा उन्हें ही मिलेगा। लिहाज़ा संगठन में उनके नाम को देख कर मुझे थोड़ा अटपटा लगा।"
तो क्या राजस्थान में उनकी विशेष भूमिका नहीं रहेगी?
इस पर राधिका कहती हैं, "मुझे ऐसा नहीं लगता। ऐसा करना बिल्कुल सही नहीं होगा। राजस्थान में उनकी भूमिका रहेगी ही। उपाध्यक्ष कोई फ़ुल टाइम पोस्ट नहीं है। उसमें कोई विशेष ज़िम्मेदारी नहीं होती, न ही इसकी कोई कार्यकारी शक्ति होती है। वो वे उपाध्यक्ष तो रहेंगी लेकिन राजस्थान में भी सक्रिय रहेंगी। बीजेपी उन्हें दरकिनार नहीं कर सकेगी।"
आधी आबादी की भागीदारी कितनी?
वैसे तो बीजेपी की इस सूची में कुल 38 नाम हैं। इनमें 13 राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, 8 राष्ट्रीय महासचिव, 13 राष्ट्रीय सचिव, एक संगठन महासचिव, एक सह- संगठन महासचिव, एक कोषाध्यक्ष और एक सह-कोषाध्यक्ष शामिल हैं।
राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के कुल सदस्यों की संख्या 39 हो जाती है। ग़ौर करने वाली बात ये है इनमें से महिलाएं केवल 9 हैं। तो कार्यकारिणी में महिलाओं की भागीदारी 23 फ़ीसद है।
यह बीजेपी की अपनी नीतियों के तुल्य नहीं है जहां वो हमेशा महिलाओं की 33 फ़ीसद भागीदारी की बात करती रही है। राष्ट्रीय महासचिवों की सूची में तो एक भी महिला नहीं है।
तो क्या बीजेपी की इस कार्यकारिणी में महिलाओं को उचित भागीदारी मिली है?
राधिका रामाशेषण कहती हैं, "महिलाओं को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं देकर बीजेपी अपने किए वादे को ही पूरा नहीं कर पा रही है। बीजेपी हमेशा ये कहती थी कि भले ही विधायिका में न मिले, लेकिन अपने संगठन में 33 फ़ीसद प्रतिनिधित्व ज़रूर देंगे। बीजेपी ने पहले अपने संगठन में काफ़ी महिलाओं को शामिल भी किया है लेकिन इसमें लगातार कमी आ रही है।"
तो क्या बीजेपी में योग्य महिलाओं की कमी है या आने वाले वक़्त में संगठन में इसे लेकर बदलाव देखने को मिलेगा?
राधिका रामाशेषण कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि उनके पास योग्य महिलाओं की कमी है। अगर वो दक्षिण की ओर ही देखें तो उनके पास तीखे बोलने वाली कई महिलाएं हैं।"
वे यह भी कहती हैं, "महिलाओं या दलितों की भागीदारी को कम करना रणनीति का हिस्सा कतई नहीं हो सकता। महिलाओं की भागीदारी को कम करने की ज़रूर आलोचना होगी तो हो सकता है कि आने वाले वक़्त में कुछ और नाम जोड़े जाएं। मुझे लगता है कि महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर बीजेपी कुछ न कुछ ज़रूर करेगी।"
2024 के लिहाज़ से ये कार्यकारिणी कैसी है?
2024 के चुनाव में अभी वक़्त है तो क्या आगे उसे देखते हुए भी कुछ बदलाव किए जाएंगे? इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषण कहती हैं, "निश्चित रूप से ये लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी बदलाव तो नहीं है। उसमें अभी काफ़ी वक़्त है। तो बीजेपी ये देखेगी कि क्या इसमें महिलाओं की कमी है? बीजेपी इस बात का पूरा ध्यान रखती है कि ऐसे बदलाव के समाज में क्या संदेश जा रहा है। उसे ध्यान में रख कर ही बीजेपी बदलाव करती है। तो इसमें दलित, आदिवासी, ओबीसी को वो शामिल कर सकती है।"
बीजेपी महामंत्री के पद पर और किन लोगों को शामिल करती है ये महत्वपूर्ण होगा। क्या बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आने वाले दिनों में कुछ और बदलाव देखने को मिलेंगे? इस पर प्रमोद जोशी कहते हैं, "बीजेपी तेज़ी से बदलाव के दौर से गुज़र रही है। ऐसे में आने वाले दिनों में कुछ नए चेहरे मंत्रिमंडल में शामिल किए जा सकते हैं। वहीं कुछ पुराने चेहरों को संगठन के कार्य में लाया जा सकता है।"