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आपका ही फोन करता है आपकी जासूसी, आख़िर कैसे?

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क्रिसमस का समय था और मैं अपनी गर्लफ्रेंड के लिए उसकी पसंद का एक जैकेट खरीदना चहता था। मैंने एक दुकान में लेस लगे लाल रंग का जैकेट देखा जिसमें नीचे फूल बने हुए थे। मैं समझ नहीं पा रहा था कि खरीदूं या नहीं। ऐसे में मैंने अपनी गर्लफ्रेंड को फोन  किया और पूछा। दूसरे दिन मेरे फेसबुक अकाउंट पर मुझे एक विज्ञापन दिखाई दिया, जिसमें वही जैकेट था जो मैंने दुकान में देखा था। मैं डर गया।
मैंने लोगों से इसके बारे में पूछा तो ऐसी ही और कहानियां सुनने को मिलीं। मेरे एक परिचित ने बताया कि जब वो अपने एक दोस्त से मिलने डोर्सेट गए थे उन्होंने एक घड़ी की बात की थी जो वो खरीदना चाहते थे। मेरे परिचित ने उस घड़ी के ब्रांड का नाम भी पहले कभी नहीं सुना था लेकिन दूसरे ही दिन उन्हें अपने सबुक पन्ने पर उस घड़ी का विज्ञापन दिखा।
 
एक और परिचित ने बताया कि वो एक टीवी एपिसोड देख रही थीं जिसमें कई बार मार्क कोस्टली का नाम लिया गया था। कुछ देर बाद उन्हें फेसबुक ने एक इस नाम से एक फ्रेंड सजेस्ट किया- जिन्हें ना तो वो और न ही उनके कोई मित्र जानते थे। बीते साल अमेरिकी टेलीविजन एनबीसी4आई ने जांच की कि क्या फेसबुक आपकी बातें सुनता है। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ फ्लोरिडा में मास कम्युनिकेशन्स की प्रोफ़ेसर केली बर्न्स को इसकी जांच के लिए नियुक्त किया।
 
केली ने अपने फोन पर फेसबुक ऐप में माइक्रोफोन  फीचर को चालू किया और कहा कि वह अफ़्रीकी सफारी देखना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वहां जाना रोमांचक होगा। एक मिनट भी नहीं हुआ था और उनके फेसबुक फीड में सफारी से संबंधित एक कहानी दिखने लगी।
 
ये ख़बर सुर्खियां बन गईं। हालांकि प्रोफ़ेसर बर्न्स ने बाद में बीबीसी को बताया कि इस मुद्दे को कुछ ज्यादा ही हवा दी गई। वो कहती है कि उन्होंने दूसरों से भी ऐसी कई कहानियां सुनी हैं और वो मानती हैं कि इस मामले में शायद से संयोग ही था। ख़ैर, मैंने सोचा कि मैं ख़ुद इसकी जांच करूंगा। साइबर सिक्युरिटी कंपनी पेन टेस्ट पार्टनर में काम करने वाले एक टेस्टर की सलाह पर मैंने एक नया फोन  खरीदा और एक बिल्कुल नया सिम लिया।
 
मैंने उसमें कुछ नए प्रोफाइल बनाए ताकि मेरे पुराने प्रोफाइल या सर्च हिस्ट्री से कुछ भी प्रभावित न हो। मैंने एक झूठे नाम से नए जीमेल और फेसबुक आईडी बनाए। फिर मैंने अपने फोन  का माइक्रोफोन  चालू किया और बस ऐसे ही कुछ भी बातें करने लगा। मैंने फिर जैकेट के बारे में बात की। इस बार फेसबुक पन्ने पर तो कुछ नहीं हुआ लेकिन गूगल सर्च में 'महिलाओं के लिए जैकेट' ढ़ूंढ़ा तो पहले वही लेस वाला लाल जैकेट दिखाई दिया जिसके बारे में मैंने बात की थी। मुझे लगा कि मुझे मामला समझ आने लगा है। लेकिन जब मैंने अपना आईफोन  और मैक कंप्यूटर देखा तो वहां भी वही लाल जैकेट पहले दिखाई दिया।
 
अब कुछ और ढ़ूंढ़ने के बारे में सोचा। मैंने कहा, मुझे एक पैरट ड्रोन चाहिए, पैरट ड्रोन। पैरट। ड्रोन। इसके बाद जैसे ही मैंने 'पैर।।' तक टाइप किया सीधे 'पैरट ड्रोन' सबसे पहले दिखने लगा, लिखा था ये सबसे अधिक खोजे जाने वाले शब्दों में से एक है। मैंने सोचा हो सकता है ये सच हो क्योंकि ये है भी पॉपुलर गैजेट।
 
मैंने एक ऐसा सॉफ्टड्रिंक खोजने के बारे में सोचा जिसके बारे में लोग कम जानते हों। मैंने ट्रांसिल्वेनिया में बनने वाला ड्राकोला नाम का कोला के बारे में फोन पर कई बार बात की लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं हुआ। मैंने और भी चीजें खोजीं और इसके बारे में रेडिट पर लिखा, इस पर कई लोग मुझसे सहमत थे जबकि कइयों ने कहा कि शायद ऐसा होता है, लेकिन कोई ठोस बात सामने नहीं आई। बीते साल फेसबुक ने इस मामले में एक विज्ञप्ति जारी की थी। कंपनी ने कहा, हाल में कुछ ख़बरों में ऐसा लिखा गय है कि फेसबुक लोगों की बातें सुनता है लेकिन ये सच नहीं है।
 
गूगल की प्रवक्ता एमिली क्लार्क का कहना है कि उनकी कंपनी माइक्रोफोन के जरिए कोई भी डेटा इकट्ठा नहीं कहती लेकिन 'ओके गूगल' इस्तेमाल करने पर डेटा रिकार्ड किया जाता है। अपने प्राइवेसी नियमों में कंपनी ने कहा है, हम किसी की जानकारी नहीं बेचते। हालांकि कंपनी का कहना है, वेबसाइट, ऐप्स, वीडियो, विज्ञापन के सर्च और आपकी लोकेशन से संबंधित जो डेटा हम आपके फोन  के जरिए इकट्ठा करते हैं या फिर अपनी उम्र, नाम या पसंदीदा विषयों का बारे में जो जानकारी आपने हमें दी है उसका इस्तेमाल हम आपको उचित विज्ञापन दिखाने के लिए करते हैं।
 
गूगल के साथ काम करने वाले ऐप डेवेलपर्स के लिए जो नियम हैं उनके मुताबिक कंपनी कहती है, ऐप कौन सा डेटा इकट्ठा करता है और इसका इस्तेमाल कैसे किया जाता है उसके बारे में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए। पेन टेस्ट पार्टनर के डेविड लॉज और केन मुनरो ने बीते साल एक जांच की कि क्या ये वाकई संभव भी है कि फोन  आपकी बातें सुन रहा हो। उन्होंने एक ऐसा ऐप बनाया जो फोन के माइक्रोफोन  को ऐसेस कर सके और फिर फोन के पास बैठ कर बातें करनी शुरू कर दी।
 
माइक्रोफोन  जो भी सुन पाता उसे वह उसी वक्त एक सर्वर पर भेज देता। डेविड और केन के पास सर्वर का ऐसेस था और वो सभी बातें साफ़ सुन पा रहे थे। इस जांच की मानें तो माइक्रोफोन के जरिए बातें साफ़-साफ़ सर्वर तक उसी वक्त पहुंचती हैं।
 
पैट्रिक वार्डल एनएसए और नासा में काम कर चुके हैं और अब साइनेक साइबर सिक्युरिटी कंपनी की रिसर्च शाखा के निदेशक हैं। वो अपने खाली समय में मैक कंप्यूटर के लिए ऐप बनाते हैं। उनका बनाया एक ऐप है 'ओवरसाइट' जो जब भी कोई सॉफ्टवेयर आपके फोन  या कंप्यूटर का माइक्रोफोन और वेबकैम इस्तेमाल करने की कोशिश करता है आपको बता देता है।
 
मैंने पैट्रिक से पूछा कि क्या फेसबुक, गूगल इंस्टाग्राम फोन के माइक के जरिए आपकी बातें सुनते हैं। उनका कहना था, मुझे आश्चर्य होगा अगर ऐसा है तो, क्योंकि इससे उन्हें बदनामी ही मिलेगी लेकिन हां, कुछ और ऐप ऐसा कर सकते हैं और इसके अपने ख़तरे जरूर हैं। पैट्रिक ने मुझे कैलीफोर्निया के बास्केटबॉल टीम गोल्डन स्टेट वॉरियर के ऐप के बारे में बताया। कथित तौर पर ये ऐप 'लोगों की इजाजत के बिना लगातार बातें सुनता रहता था।'
 
ऐप की तकनीक बनने वाली कंपनी सिग्नल 360 के मुख्य कार्यक्रारी अधिकारी के अनुसार हम कोई डेटा या फोन  पर की जाने वाली बात ना तो सुनते हैं और ना ही स्टोर करते हैं। मामला फिलहाल कोर्ट में है। पैट्रिक के ऐप 'ओवरसाइट' का इस्तेमाल करने वाले एक व्यक्ति ने दावा किया कि मैक ऑपरेटिंग सिस्टम शाजम ऐप लॉग ऑफ़ होने के बाद भी माइक्रोफोन के जरिए रिकॉर्डिंग करता है।
 
पैट्रिक ने शाजम से इस बारे में पूछा। कंपनी ने माना की वो ऐसा करती है लेकिन इसका मकसद ऑपरेटिंग सिस्टम को बेहतर बनाना है। साल 2015 में एक अख़बार ने लिखा था कि सैमसंग का स्मार्ट टीवी आपकी बातें सुन सकता है। सैमसंग की प्राइवेसी पॉलिसी में इस बारे में लिखा है, आपकी बातों में संवेदनशील जानकारी हो सकती है और आपकी बातों के जरिए जो डेटा इकट्ठा किया जाता है वो थर्ड पार्टी तक पहुंच सकता है।
 
सैमसंग ने बाद में सफाई दी कि वो ख़ुद ना तो ऑडियो डेटा स्टोर करते हैं, ना ही उसे बेचते हैं, लेकिन उन्होंने पुष्टि की, यदि उपभोक्ता ख़ुद वॉयस रिकग्निशन के लिए हामी भरे तो ये डेटा थर्ड पार्टी तक, सर्वर तक पहुंचता है लेकिन ये आशंका हमेशा बनी रहती है कि कोई भी आपके फोन का माइक्रोफोन या वेबकैम हैक कर ले। पैट्रिक कहते हैं साधारण तौर पर हर सिस्टम को हैक किया जा सकता है। इस तरह के कई मामले देखने को मिलते हैं।
 
पैट्रिक आईओएस ऐप और एंड्रॉएड ऐप के बीच में फर्क बताते हैं। वो कहते हैं, आईओएस में जब भी कोई ऐप माइक्रोफोन  इस्तेमाल करना चाहता है वो यूजर से इजाजत मांगता है। लेकिन एंड्रॉएड ऐप में मामला अलग है। ऐप इंस्टॉल करते समय ही इस सभी बातों की इजाजत देनी होती है। वो कहते हैं, मुझे नहीं लगता कि लोग 'ओके' करने से पहले इतना सब पढ़ते होंगे।
 
ऐप में माइक्रोफोन  को बंद करना आसान है। आईफोन  पर आप सेटिंग्स में जा कर प्राइवेसी में जाएं और माइक्रोफोन  'ऑफ़' कर दें। एंड्रॉएड में थोड़ी मेहनत ज्यादा लगेगी। आप एंड्रॉएड पर हैं तो सेटिंग्स में और फिर प्राइवेसी में जाएं। यहां हर ऐप के लिए दिए गए अनुमति को देखें और बदलें।
 
मोटा-मोटा कहें तो काफी ऐप्स हमारी बातें सुन सकते हैं और ऐसी तकनीक मौजूद है। लेकिन अगर आप ऐसा नहीं चाहते तो थोड़ी सावधानी बरतें और ऐप पर मइक्रोफोन के इस्तेमाल की परमिशन पर जरूर ध्यान दें।

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