- सिंधुवासिनी
एक मां अपनी आठ महीने की बच्ची को एक क़रीबी रिश्तेदार के भरोसे छोड़कर काम पर जाती है और वापस आने पर जो दिखता है वो किसी को भी हिला देगा। बच्ची बेहोश है और उसके प्राइवेट पार्ट से खून बह रहा है। खून में लथपथ बेहोश बच्ची को लेकर मां अस्पताल भागती है। वहां पता चलता है कि आठ महीने की इस मासूम का यौन शोषण हुआ है।
घटना दिल्ली की है। ऐसी घटनाएं दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के लगभग हर हिस्से में हो रही हैं। ऐसे में ये जानना बेहद ज़रूरी है कि क्या आपका बच्चा इस तरह की किसी तकलीफ़ से गुजर रहा है।
क्या है चाइल्ड अब्यूज़?
बच्चों एवं महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करने वाले एक एनजीओ एफएक्सबी इंडिया सुरक्षा के प्रोग्राम मैनेजर सत्य प्रकाश का कहना है कि अमूमन लोग सिर्फ़ पेनिट्रेशन को ही यौन शोषण से जोड़कर देखते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।
भारत में मौजूदा क़ानूनी प्रावधान पॉक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ़्रॉम सेक्शुअल ऑफ़ेंसेज) के अनुसार, 'बच्चे को ग़लत तरीक़े से छूना, उसके सामने ग़लत हरकतें करना और उसे अश्लील चीज़ें दिखाना-सुनाना भी इसी दायरे में आता है।'
कैसे पता चलेगा कि बच्चे का शोषण हो रहा है ?
बच्चे के साथ ये कहीं भी हो सकता है। अगर आप घर को बच्चे के लिए सुरक्षित मानते हैं तो ऐसा नहीं है। एक बच्चा कहीं भी इन चीज़ों का शिकार हो सकता है। वो चाहे घर हो, पास-पड़ोस हो या फिर स्कूल। ये पता लगाना आसान तो नहीं है, लेकिन मामुमकिन भी नहीं है। अगर आप चौकन्ने हैं तो बच्चे की मदद ज़रूर कर सकते हैं।
साइकॉलजिस्ट डॉक्टर नीतू राणा के मुताबिक अगर कोई बच्चा इस तरह के अनुभव से गुज़र रहा है तो वो लोगों से बचने लगता है। कई बार वो कुछ ख़ास लोगों के पास जाने से साफ़ इनकार कर देगा। पास की दुकान तक जाना उसके लिए डरावना हो जाता है। इसके अलावा अगर बच्चा प्राइवेट पार्ट्स में दर्द की शिकायत करे तो इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।
कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे ख़ुद के शरीर को छिपाना शुरू कर देते हैं। मां अगर बोले कि मैं नहला दूं या शरीर पर तेल लगा दूं तो वो मना कर देते हैं या कपड़े पहनकर नहाने की ज़िद करते हैं।
किस तरह की मदद मिल सकती है?
यौन उत्पीड़न के पीड़ित बच्चों के लिए भारत सरकार की हेल्पलाइन 1098 मौजूद है। बड़ों को चाहिए को वो इन्हें इस बारे में बताएं ताकि अगर उन्हें लगे कि वो ख़तरे में हैं, तो मदद मांग लें। बच्चों के माता-पिता भी हेल्पलाइन पर फ़ोन कर सकते हैं।
अगर केस दर्ज होता है तो क़ानूनी रूप से बच्चे की हर मदद की जाती है। चाइल्ड अब्यूज़ के केस में पीड़ित पर आरोप साबित करने का दबाव नहीं होता है बल्कि आरोपी पर इस बात का दबाव होता है कि वो ख़ुद के बचाव में सबूत पेश करे। इसके अलावा, बच्चों को साइकोलॉजिकल मदद की ज़रूरत भी पड़ती है ताकि वो इस सदमे से उबर पाएं।
सिर्फ यौन शोषण ही नहीं...
यौन शोषण के अलावा बच्चे और दूसरे तरह के शोषण का शिकार भी हो सकते हैं। मसलन, मानसिक और शारीरिक शोषण। बच्चे को पीटना, चोट पहुंचाना, हिंसक तरीके से हिलाना, जलाना, धक्का देना, गिराना, दम घोंटना या जहर देना शारीरिक शोषण की श्रेणी में आता है।
जब कोई बच्चा यौन शोषण या शारीरिक शोषण का शिकार होता है तो वो मानसिक शोषण का शिकार भी होता है। मानसिक उत्पीड़न से गुजर रहे बच्चे अपनी उम्र के बच्चों से अलग बर्ताव करते हैं। कुछ मामलों में ये बेहद उग्र और आक्रामक हो जाते हैं तो कुछ में एकदम शांत और गुमसुम।
अतीत का असर
कई बार लोग बड़े तो हो जाते हैं, लेकिन बचपन की कड़वी यादें उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर बुरा असर डालती हैं। ऐसी स्थिति में ये जानना भी ज़रूरी हो जाता है कि क्या किसी किशोर या युवा ने बचपन में किसी भी तरह के शोषण का सामना किया है।
कैसे पता करें?
• अगर किसी के शरीर पर चोट या घाव का ऐसा निशान है जिसकी कोई साफ़ मेडिकल वजह नहीं है, तो हो सकता है कि शख़्स ने अतीत में शारीरिक उत्पीड़न का सामना किया है।
• अगर किसी में आत्मविश्वास की कमी है, वो ख़ुद को कोसता रहता है, हर तरह की ग़लतियों के लिए ख़ुद को ज़िम्मेदार ठहराता और किसी पर भरोसा नहीं कर पाता तो मुमकिन है कि वो कभी न कभी मानसिक उत्पीड़न का शिकार हुआ है।
• अगर कोई शख़्स अपने शरीर को लेकर शर्मिंदा महसूस करता है, ख़ुद से नफ़रत करता है और लोगों के क़रीब आने से डरता है तो हो सकता है उसने बचपन में यौन शोषण झेला हो।
बचपन में उत्पीड़न का सामना करने वाले वयस्कों को भी साइकोलॉजिस्ट की मदद लेनी चाहिए ताकि वो ज़िंदगी में आगे बढ़ सकें।