नीरज प्रियदर्शी, बीबीसी हिंदी के लिए, पटना से
बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ क़रीब 17 लाख प्रवासी बिहारी मज़दूर, छात्र, कामगार बाहर फँसे हैं। इनमें से कइयों के अब वापस लौटने की संभावना है।
कोरोना वायरस के कारण भारत में हुए लॉकडाउन की शुरुआत से ही अन्य राज्यों में फँसे अपने लोगों को वापस बुलाने पर बिहार सरकार का रुख़ नकारात्मक रहा। विपक्ष के लगातार दबाव के बावजूद भी सरकार बाहरी लोगों को बुलाने से इनकार करती रही। लेकिन अब गृह मंत्रालय की नई गाइडलाइन के बाद बिहार सरकार भी बाहर फँसे अपने लोगों को वापस बुलाने के इंतज़ाम में लगी है।
हालांकि, गृह मंत्रालय की गाइडलाइन के बाद भी बिहार सरकार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने मीडिया में यह बयान दिया था, "इतनी बड़ी संख्या में लोगों को वापस बुलाने के लिए सरकार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है।"
इस पर विपक्ष ने राज्य सरकार की अक्षमता पर सवाल उठाए।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बाहर रहने वाले प्रवासियों को वापस बुलाने के मुद्दे पर "राजनीति के चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार "फँसे" दिख रहे हैं। लाखों लोगों का सवाल है। ज़ाहिर है, मामला इसलिए गंभीर भी है। इस मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी विभागों के आला अधिकारियों और मंत्रियों के साथ शुक्रवार को बैठक की थी।
इसमें बाहर से आने वाले प्रवासियों को अनिवार्य रूप से 21 दिनों तक क्वारंटीन सेंटर में रखने के लिए पंचायत स्तर पर क्वारंटीन सेंटर के विस्तार की बात फिर से मुख्यमंत्री ने कही। यह भी कहा कि जीविका और राष्ट्रीय आजीविका मिशन द्वारा चिन्हित लोगों को भी प्रति परिवार एक हज़ार रुपये की सहायता राशि जल्द से जल्द दी जाए।
अब सवाल है कि क्या बिहार सरकार के पास इतनी व्यवस्था और इंतज़ाम है कि बाहर से आने वाले लाखों लोगों को 21 दिनों तक क्वारंटीन सेंटर में रख सके और साथ ही इस दरम्यान उन्हें समुचित तौर पर खिला-पिला सके! साथ ही क्या बाहर से आने वाले परिवारों की आजीविका को लेकर भी सरकार ने कुछ प्रबंध किया है?
रिपोर्टर की आंखों देखी
मैं बीते दो हफ़्ते से भोजपुर के अपने गांव चातर में हूं। मेरे पंचायत में कहीं कोई क्वारंटीन सेंटर नहीं बना है। जब बाज़ार-हाट के काम से बाहर निकलना होता है और पड़ोस के दूसरे गांवों के लोगों से बातचीत होती है तो पता चलता है कि इलाक़े में कहीं ऐसा कोई क्वारंटीन सेंटर नहीं है जहां लोगों को रखने के इंतज़ाम हैं।
इस सवाल पर कि इलाक़े में कहीं कोई क्वारंटीन सेंटर क्यों नहीं है, ज़िला और प्रखंड के अधिकारी कहते हैं, "जितने स्कूल हैं, समझिए तो सारे अस्थाई रूप से क्वारंटीन सेंटर ही हैं। जल्द ही उन स्कूलों में रहने और खाने का इंतज़ाम भी कर दिया जाएगा। हमलोग ऐसे स्कूलों की पहचान कर रहे हैं जहां व्यवस्था करने में आसानी हो।"
लेकिन हमारी जानकारी में ऐसे कई लोग हैं जो बीते हफ़्ते-दो हफ़्ते के दौरान बाहर के राज्यों से किसी तरह जुगाड़ लगाकर आए हैं, मगर न तो उनकी समुचित स्क्रीनिंग हो सकी और न ही उन्हें क्वारंटीन में रखा गया। हमारी जानकारी में ऐसे दर्जनों प्रवासी हैं।
खाने के प्रबंध पर क्यों है शंका?
पूरे राज्य में क्वारंटीन सेंटर के आंकड़ों की बात करें तो केवल 305 क्वारंटीन सेंटर हैं। जबकि पंचायतों की संख्या आठ हज़ार से अधिक है। एक तरफ़ यह भी सवाल खड़ा हो रहा है कि जो लोग बाहर से आ रहे हैं उनके सामने भोजन की समस्या तो नहीं खड़ी हो जाएगी?
यहां यह बताना ज़रूरी है कि बिहार सरकार ने यह घोषणा कर रखी है कि बिना राशन कार्ड वालों को भी मुफ़्त में अनाज और पैसे (एक हज़ार रुपये) मिलेंगे। मगर अभी तक अधिकतर लोगों के खाते में न तो पैसे आए हैं और न अनाज ही मिला है। वहीं लिस्ट बनाने का काम अब भी जारी है।
केंद्र से मांगा अनाज लेकिन नहीं मिला
अब आते हैं मूल मुद्दे पर कि प्रवासियों को खिलाने के लिए क्या राज्य सरकार के पास पर्याप्त अन्न भंडार मौजूद है?
दरअसल बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग ने केंद्र को चिट्ठी लिखकर प्रवासियों के लिए अतिरक्त अनाज की माँग की है।
जिसे केंद्रीय खाद्य आपूर्ति मंत्री रामविलास पासवान द्वारा जवाब में यह कहकर ख़ारिज कर दिया गया कि बिहार सरकार का डेटा सही नहीं है। पहले वह अपना डेटा दुरुस्त करे।
खाद्य एवं उपभोक्ता मंत्री मदन सहनी ने केंद्र को लिखी अपनी चिट्ठी में 30 लाख परिवारों (यानी अनुमानित 1.5 करोड़ लोगों) के लिए अनाज भेजने का आग्रह किया था। लेकिन केंद्रीय मंत्री पासवान ने इस आंकड़े पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि, "राशन किसे देना है इसकी पूरी लिस्ट देनी होगी। बिना लिस्ट के अनाज देना संभव नहीं है।"
बिहार सरकार की चिट्ठी के जवाब में पासवान ने यह भी कहा, "ग़रीबी रेखा के आंकड़ों के अनुसार राशन के लिए आठ करोड़ 71 लाख लोगों की लिस्ट होनी चाहिए पर आठ करोड़ 57 लाख का ही नाम है। ऐसे में अगर ज़्यादा दे दिया गया और इसी बात पर कोई अदालत चला गया तो क्या किया जाएगा।"
रामविलास पासवान की आपत्ति के बाद बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति मंत्री मदन सहनी दोबारा मीडिया के सामने आये और कहा "राज्य का आंकड़ा सही है।"
उन्होंने कहा, "बिहार ने दो स्तर पर डेटा मंगवाया है। एक RTGS काउंटर के डेटा के आधार पर और दूसरा जीविका द्वारा चिन्हित परिवारों की तैयार की गई लिस्ट के आधार पर।"
राशन के लिए केंद्र और राज्य के आंकड़ों में 14 लाख का फ़र्क़ है। इस पर भी बिहार सरकार के मंत्री मदन सहनी ने सवाल उठाया है। उनका कहना है, "अब साढ़े 14 लाख नहीं बल्कि जनसंख्या बढ़ने के कारण पूरा डाटा 30 लाख हो गया है। अब जनगणना 2021 में होनी है लिहाज़ा तब तक ग़रीबों के लिए राशन भेजना चाहिए।"
काम के अवसर मनरेगा के तहत
बिहार सरकार ने यह भी घोषणा की है कि ग्रामीण क्षेत्र के मज़दूरों के लिए अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर पैदा किए जाएंगे। मनरेगा के तहत काम बढ़ाने पर ज़ोर होगा। साथ ही सर्वे के अधार पर बाहर से आए प्रवासी मज़दूरों में से स्किल्ड लेबर को छांटकर उनके लिए स्कील के आधार पर काम उपलब्ध कराया जाएगा। पर, सरकार की ये सारी घोषणाएं काग़ज़ी लगती हैं। क्योंकि ज़मीनी हक़ीक़त और आंकड़े भयावह तस्वीर पेश कर रहे हैं।
जहां तक बात मनरेगा के तहत काम की है तो आंकडे बताते हैं कि इस वित्तीय वर्ष में लॉकडाउन के एक महीने गुज़र जाने के बाद भी कुल लेबर फ़ोर्स में प्रत्येक लेबर के लिए दिन के एक चौथाई हिस्से का भी काम नहीं हुआ है।
मनरेगा के दो मई तक के आंकड़ों के मुताबिक़ बीते 30 दिनों के दरम्यान कुल 41.8 लाख मानव दिवस का सृजन हुआ है। जबकि मज़दूरों की कुल संख्या 248.5 लाख है। एक मानव दिवस के पूरा करने पर औसत मजदूरी दर 192 रुपये है।
लक्षणवाले मरीज़ कहां हैं?
अपने आस-पास देखने पर बाहर से आए प्रवासियों और संक्रमण की रोकथाम के लिए बिहार सरकार के दावे जिस तरह ज़मीन पर खोखले लगते हैं, उसी तरह आंकड़ों में भी अटपटे प्रतीत होते हैं।
कहने के लिए कोरोना संक्रमण की रोकथाम और जाँच के लिए बिहार सरकार डोर टू डोर स्क्रीनिंग का कैंपेन चला रही है।
सरकार के स्वास्थ्य विभाग से दो अप्रैल की शाम को जारी आंकड़ों के अनुसार इस कैंपेन के तहत राज्य में अब तक चार करोड़ 68 लाख से अधिक लोगों की जाँच हो चुकी है।
इनमें से खांसी और कफ़ के लक्षण वाले 3275 लोग मिले हैं। आंकड़ों पर इसलिए संदेह पैदा होता है। क्योंकि डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग के तहत जो कि पिछले क़रीब डेढ़ हफ़्ते से चल रही है उसमें संक्रमण के लक्षण वाले 3275 लोग मिले हैं, लेकिन फिर भी राज्यभर के क्वारंटीन सेंटरों में फ़िलहाल केवल 2112 लोग ही रह रहे हैं।
हालांकि ज़रूरी नहीं कि खांसी और कफ़ के लक्षण वाले कोरोना संक्रमित ही हों, मगर सवाल यहां भी खड़ा होता है कि क्या इनमें से कोई संक्रमित नहीं और अगर है तो क्या बिहार सरकार संक्रमण के लक्षण वाले लोगों को भी निगरानी में नहीं रख पा रही है और उनका इंतज़ाम नहीं कर पा रही है?
क्या कहती है सरकार?
बाहर से आ रहे प्रवासियों की निगरानी के सवाल पर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार कहते हैं, "जिन 354 क्वारंटीन सेंटर्स के आंकड़े विभाग ने जारी किए हैं, वे केवल स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से चलाए जा रहे क्वारंटीन सेंटर हैं। इसके अलावा आपदा विभाग की ज़िम्मेदारी है कि प्रखंड स्तर पर क्वारंटीन सेंटर का निर्माण हो।"
प्रवासियों को बाहर से बुलाने के सवाल पर संजय कुमार कहते हैं, "दूसरे राज्यों से सारे प्रवासियों को ट्रेन से ही लाया जाएगा। एक जगह उनकी स्क्रीनिंग की जाएगी उसके बाद बसों के ज़रिए उन्हें उनके घर तक भेजा जाएगा। दूसरे राज्यों में बसें नहीं भेजी जाएंगी क्योंकि इतने सारे लोगों को बसों से बुलाना मुमकिन नहीं है।"
बिहार सरकार के आपदा विभाग की वेबसाइट से पता चलता है कि लॉकडाउन के कारण राज्य के बाहर से लौटे व्यक्तियों के लिए उनके गांव के विद्यालय में क्वारंटीन कैंप का संचालन किया जा रहा है। तीन मई के अपडेट्स के अनुसार ऐसे 1387 क्वारंटीन सेंटर हैं जहां 13,800 लोगों को रखा गया है।
हमने यह जानने के लिए कि हमारे गांव या पंचायत में ऐसा कोई क्वारंटीन सेंटर क्यों नहीं काम कर रहा है, आपदा विभाग के मंत्री और अधिकारियों से सैकड़ों बार संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन किसी से संपर्क नहीं हो सका।