- सचिन गोगोई (बीबीसी मॉनिटरिंग)
प्रधानमंत्री मोदी के सामने कोरोना संकट को देखते हुए मुश्किल चुनौती है क्योंकि देश की 1.3 अरब आबादी को इस महामारी से बचाने की ज़िम्मेदारी उन पर है। हालांकि इस कोशिश में उन्हें भारत के नेताओं का ही नहीं बल्कि दुनिया भर के प्रमुख नेताओं का साथ मिल रहा है।
इससे थोड़े ही समय के लिए सही उनका भरोसा मजबूत ज़रूर होगा. लेकिन उनके सामने कई और गंभीर चुनौतियां भी हैं जिनका हल तत्काल पाना मुश्किल है। लचर स्वास्थ्य सुविधाएं, बड़ी आबादी का बोझ और लॉकडाउन के कारण आर्थिक मुश्किलें उनके लिए बड़ी चुनौतियां साबित हो सकती हैं।
जब से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 संक्रमण को वैश्विक महामारी घोषित किया है तब से इस संकट का सामना मोदी आगे बढ़कर कर रहे हैं।
मोदी ने जब पहली बार स्वास्थ्यकर्मियों के लिए उत्साह बढ़ाने के लिए कहा तब और बाद में जब इस संक्रमण के ख़िलाफ़ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिएए लाइट बंदकर मोमबत्ती जलाने के लिए कहा तब भी - मोदी को आम से लेकर खास लोगों तक का साथ मिला।
कुछ अतिउत्साही मोदी समर्थकों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मोदी के ताली बजाने और दिया जलाने के बात के पीछे वैज्ञानिक आधार भी तलाश लिया। इन लोगों के दावे के मुताबिक़ इन दो कदमों से वायरस का संक्रमण काफी हद तक कमज़ोर होगा।
इसके अलावा भारतीय मीडिया का एक तबका कोविड-19 संक्रमण फैलाने के पीछे मुसलमानों के हाथ होने जैसे अभियान भी चला रहा है। क्योंकि भारत के कुल कोरोना संक्रमण के एक तिहाई मामले, उन मुसममानों लोगों में पाए गए हैं जो मार्च महीने में नई दिल्ली में इस्लामिक धार्मिक आयोजन में शामिल हुए थे।
कई ट्विटर यूजरों ने तो इस मौके पर मुसलमानों को निशाने बनाते हुए कोरोनाजिहाद, कोरोनो जिहादी, निजामुद्दीन इडियट्स और तब्लीग़ी जमात वायरस जैसे हैशटैग चलाए।
हालांकि मोदी और उनके नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी को इस तरह की घटनाओं से फायदा होता है और उनका बहुसंख्यक हिंदू वोटबैंक को मजबूत करता है, लेकिन इस तरह का धार्मिक धुव्रीकरण चिंता पैदा करने वाला है।
ये देखते हुए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी नेताओं से संक्रमण के फैलाने के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग न देने अपील की।
मोदी को भारत के अमीरों और प्रमुख व्यापारिक घरानों से भी कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में मदद मिल रही है। इन लोगों ने महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में करोड़ों रूपये की मदद की है। इस सूची में टाटा समूह का नाम सबसे ऊपर है जिसने 1500 करोड़ रूपये की मदद देने का वादा किया है।
पीएम मोदी ने 24 मार्च को देश भर में लॉकडाउन की घोषणा की है। इसके बाद उन्होंने समाज के दूसरे इंफ्लूयंसंर्स मसलन विपक्ष के राजनेताओं, राज्यों के मुख्यमंत्रियों, खिलाड़ियों और पत्रकारों से बात करके इस लड़ाई में उन्हें सरकार का साथ देने को कहा।
कांग्रेस की सलाह
घरेलू मोर्चे पर मोदी एक और अहम फायदा मिल रहा है। देश में विपक्षी दल कोरोना वायरस संक्रमण के ख़िलाफ़ सरकार की तैयारी में ख़ामियां मसलन मेडिकल उपकरणों की कमी और लॉकडाउन का गरीबों पर असर, को प्रभावी ढंग से नहीं उठा सके हैं।
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को खर्चे कम करने के सुझाव देकर खुद को किनारे कर लिया है। इस सुझाव में मीडिया इंडस्ट्री को दिए जाने वाले विज्ञापनों पर दो साल की पाबंदी लगाने का सुझाव भी शामिल है।
लेकिन देश के कई मीडिया आउटलेट्स की कमाई का बड़ा हिस्सा सरकारी विज्ञापनों से ही आता है, ये आउटलेट्स कांग्रेस के सुझाव के लिए उसकी आलोचना कर रहे हैं।
भारत के न्यूज़ ब्रॉडकॉस्टर एसोसिएशन (एनबीए) ने पार्टी के सुझाव को "मुश्किल वक्त में मनमाना सुझाव" बताया है और कहा है कि "फ्री मीडिया के हित के लिए" ये सलाह वापस ली जानी चाहिए।
मलेरिया की दवा से मोदी की अंतरराष्ट्रीय छवि
कोविड-19 संक्रमण के संकट के दौर में, भारत दुनिया के दूसरे देशों को एंटी मलेरिया ड्रग्स मुहैया करा रहा है, इससे देश की मेडिकल डिप्लोमेसी मज़बूत हुई है।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोविड-19 संक्रमण के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को गेम चेंजर दवा बताया है। इस दवा के उत्पादन में पूरे विश्व में भारत सबसे आगे हैं।
इस कारण इस दवा की आपूर्ति करने के भारत के वादे की दुनिया भर के कई नेताओं ने प्रशंसा की है। मोदी की तारीफ जिन नेताओं ने की है उनमें डोनाल्ड ट्रंप के अलावा इसराइली के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेत्नयाहू और ब्राजील के राष्ट्रपति ज़ायर बोलसोनारो शामिल हैं।
ट्रंप ने ट्वीट करके कहा, "इस लड़ाई में भारत ही नहीं बल्कि मानवता की मदद करने के लिए मज़बूत नेतृत्व के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आपको धन्यवाद।"
भारत से जिन-जिन देशों को दवाईयां मिल चुकी हैं या मिल रही हैं उनमें बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और मालदीव जैसेदेश शामिल हैं।
मेडिकल डिप्लोमेसी के अलावा कोविड-19 महामारी का एक मौक़े की तरह इस्तेमाल करते हुए मोदी ने दक्षिण एशियाई देशों के समूह सार्क के सदस्य देशों के बीच तारों को एक बार फिर से जोड़ दिया है। भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी मतभेदों के चलते सार्क समूह के सदस्य देशों में 2016 से ही गतिरोध देखने को मिला था।
श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान, मालदीव और पाकिस्तान, सार्क के सभी सदस्य देशों ने मोदी के वीडियो कॉन्फ्रेंस कॉल में ना केवल हिस्सा लिया बल्कि इस महामारी के ख़िलाफ़ लड़ाई में संयुक्त तौर पर फंड तैयार करने पर सहमत भी हो गए।
मेडिकल सेवाएं और अर्थव्यवस्था का संकट
कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में मोदी को घरेलू और अंतरराष्ट्रीर स्तर पर भले समर्थन हासिल हो लेकिन देश की खस्ताहाल मेडिकल सुविधाएं और आर्थिक मुश्किलों की शुरुआत, उनके सामने बड़ी चुनौतियां साबित होंगी।
भारत सरकार ने नवंबर, 2019 में संसद को बताया था कि देश भर में प्रति 1,445 लोगों पर एक डॉक्टर मौजूद हैं। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक प्रति एक हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर से कम है।
भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि देश में मेडिकल उपकरणों की भारी किल्लत है। इसमें डॉक्टरों के लिए पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) और मरीज़ों के लिए वेंटिलेटर की कमी शामिल है।
देश के विभिन्न हिस्सों के डॉक्टर शिकायत दर्ज करा रहे हैं कि मेडिकल सुविधाओं की कमी के बारे में बोलने पर अस्पताल प्रबंधन, पुलिस और सरकारी अधिकारी उन्हें निशाना बना रहे हैं।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस (एम्स) के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने छह अप्रैल को मोदी को पत्र लिखकर बताया कि पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई), कोविड-19 की टेस्ट करने वाले उपकरण और क्वारंटीन की सुविधाओं को बताने पर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
मेडिकल सुविधाओं की कमी के अलावा, भारत सरकार के सामने कोरोना वायरस के समय में अर्थव्यवस्था को संभालने की चुनौती भी होगी। कुछ आलोचकों के मुताबिक़ मोदी सरकार के लिए अर्थव्यवस्था पहले से ही कमज़ोर पक्ष रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि कोविड-19 संक्रमण भारत के भविष्य पर किसी बुरे साए की भांति झूल रहा है। गोल्डमैन सैक्स ने 2020-21 के दौरान भारत में 1.6 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। 2018 में भारतीय जीडीपी में वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत थी।
मज़दूरों और किसानों की मुश्किलें
मौजूदा लॉकडाउन के चलते देश भर में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों गरीब मज़दूर प्रभावित हुए हैं। इन लोगों को मुश्किलों से निकालने की चुनौती भी पीएम मोदी के सामने होगी।
अचानक लिए गए देशव्यापी लॉकडाउन के फ़ैसले से महानगरों में लाखों लोगों के पास ना तो नौकरियां बचीं और ना ही रहने का ठिकाना। इसके चलते ही हज़ारों लोग गांवों में अपने घरों की तरफ लौट गए हैं। देश की इतनी बड़ी आबादी को देखते हुए आने वाले महीनों खाद्य सुरक्षा की समस्या भी सामने हो सकती है।
स्थानीय समाचार चैनलों के मुताबिक़ देश के किसान घबराए हुए हैं क्योंकि लॉकडाउन के चलते वे अपनी तैयार फसल को काट नहीं पा रहे हैं और ना ही उसे थोक बाज़ार में बेच पाएंगे। अंग्रेजी अख़बार द टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ नई दिल्ली जैसे महानगरों में ज़रूरी खाद्यान्नों की आपूर्ति में कमी होने की ख़बरें आने लगी हैं।