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क्या कोविड-19 हाथ मिलाने का चलन खत्म कर देगा?

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, रविवार, 19 अप्रैल 2020 (08:20 IST)
ब्रायन लफ़किन, बीबीसी वर्कलाइफ़
आज के राजनीतिक और आर्थिक जगत में हैंडशेक अभिवादन का सबसे प्रचलित तरीका है लेकिन अब हजारों वर्षों से चलन में रहे इस तरीके को जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ बदलने की अपील करने लगे हैं।
 
कोविड-19 की विश्वव्यापी महामारी से बचने के लिए लोग शारीरिक संपर्क से बच रहे हैं, घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं और जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों, जैसे अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डीजीजेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष एंथनी फॉसी की राय पर अमल कर रहे हैं।इस वायरस से लड़ाई में अहम ज़िम्मेदारी निभा रहे फॉसी ने पिछले हफ्ते वाल स्ट्रीट जनरल से कहा था: "ईमानदारी की बात तो यह है कि अब हम शायद ही कभी किसी से हाथ मिलाएं।"
 
अगर फॉसी की बात सच हो गयी, तो मानव व्यवहार के इतिहास में यह एक बहुत बड़ा बदलाव होगा।आखिरकार हाथ मिलाना ही तो पिछली सदी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, राजनीतिक और सामाजिक सम्बन्धों में अभिवादन का मानक तरीका रहा है।
 
लेकिन जन स्वास्थ्य के लिए इस संकट की घड़ी में जब लाखों लोग कोविड-19 का प्रसार रोकने के लिए शारीरिक संपर्क से बच रहे हैं, हमारे आपसी व्यवहार में मजबूती से जड़ें जमाये हैंडशेक की ज़रूरत पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
 
अमेरिका के चिकित्सा शोध संस्थान, मेयो क्लीनिक के संक्रामक रोग विशेषज्ञ ग्रेगरी पोलैंड कहते हैं, "हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाना जैविक हथियार को तानने जैसा है"।उनके मुताबिक अब यह तरीका पुराना हो गया है और कीटाणुओं के असर को समझने वाली इस संस्कृति में हाथ मिलाने की कोई जगह नहीं हो सकती।
 
लेकिन क्या सचमुच हाथ मिलाने का चलन खत्म हो पाएगा? वैसे तो शुरुआत में सोशल डिस्टेन्सिंग को (आपसी दूरी बनाए रखना) अपनाना भी बेहद मुश्किल लग रहा था, लेकिन अब ज़्यादातर लोग इसका ध्यान रख रहे हैं।और हाथ मिलाने की जगह क्या करेंगे लोग?
 
हम हाथ क्यों मिलाते हैं?
इस क्यों का इतिहास सदियों पुराना है। प्राचीन मिस्र और मेसोपोटामिया से लेकर यूनानी सभ्यता के कला और साहित्य में हाथ मिलाने या खुले हाथों से मिलने को भरोसे और विश्वास का प्रतीक माना गया है।बेबीलोनिया की प्रस्तर मूर्तियों और होमर के महाकाव्यों, सब में इसका जिक्र है।इन सभी सभ्यताओं में खाली दायाँ हाथ यह जताता था कि उस व्यक्ति के पास कोई हथियार नहीं है और इसलिए उस पर भरोसा किया जा सकता है।विद्वानों ने दशकों तक इस मुद्रा का अध्ययन किया और रोमन और यूनानी कला में भी गहरे भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाने के लिए इसका प्रयोग देखा गया।अन्य शास्त्रीय कला परम्पराओं में इसका प्रयोग विवाह संबंध, शासकों के बीच संबंध और साथ काम करने या नए सम्बन्ध स्थापित करने जैसी स्थितियों को दिखाने के लिए हुआ है।
 
कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले की प्रोफेसर जूलियाना श्क्रोएडर कहती हैं, "हालांकि आज हाथ मिलाने के मायने अपने पास हथियार न होने की गवाही देना नहीं रह गया है, लेकिन आज भी नेक इरादे जाहिर करने का यह एक महत्वपूर्ण संकेत है और व्यावसायिक दुनिया में जहां सिर्फ नतीजे पाने के लिए लोग अजनबियों से मिलते हैं, यह संकेत बेहद अहम हो जाता है"। उनके शोध के मुताबिक लोग ऐसे लोगों के साथ काम करना ज़्यादा पसंद करते हैं जो बातचीत की शुरुआत हाथ मिलाकर करते हैं।हाथ मिलाना भरोसे, सहयोग और लंबे समय तक साथ निभाने का प्रतीक है।इसीलिए बड़े वैश्विक सम्मेलनों जैसे जी 20 में हाथ मिलाते हुए नेताओं की तस्वीरें खूब छपती हैं।
 
लेकिन यह भी सच है कि पूरी दुनिया में हाथ मिलाना ही अभिवादन का एकमात्र तरीका नहीं है।भारत में तो लोग प्राय: हाथ जोड़कर नमस्कार करते ही हैं, जापान जैसे देशों में भी गैर शारीरिक संपर्क वाले अभिवादन जैसे एक दूसरे के सामने झुकना प्रचलित है।इसी तरह इटली और फ़्रांस जैसे देश भी हाथ मिलाने की बजाय गालों पर दो या तीन बार चुंबन अंकित करना ज़्यादा पसंद करते हैं (वैसे कोरोना वायरस के इस युग में इन परम्पराओं पर भी सवाल उठने लगे हैं)।
 
लेकिन समाज बदलता है तो परम्पराएँ भी बदलती हैं।ब्लैक प्लेग के बाद फ्रांस में सदियों तक गालों पर चुंबनों का आदान-प्रदान बंद रहा था- क्या हाथ मिलाने (हैंडशेक) का भविष्य भी यही होने वाला है?
 
यह आदत छोड़ना मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं
जन स्वास्थ्य से जुड़े विशेषज्ञों के लिए लोगों को शारीरिक दूरी का पालन करने के लिए राजी करना ही बहुत मुश्किल था- हैंडशेक न करने के लिए समझाने की तो बात ही जाने दीजिये।असल में संक्रामक रोग विशेषज्ञ भी मानते हैं कि 'शारीरिक संपर्क, स्पर्श' आदि की जरूरत बेहद स्वाभाविक है।पोलैंड कहते हैं, "अन्य स्तनपायी प्राणियों को देखिये।समुदाय निर्माण के उनके तरीके में निकटता और स्पर्श शामिल रहता है।वे हाथ नहीं मिलाएँगे, लेकिन एक दूसरे की बांह छुएँगे, फर सहलाएंगे, फर उठाएंगे।दूसरे प्राणियों के साथ किसी भी प्रकार का संबंध बनाने की इच्छा जताने का उनका यही तरीका है"।
 
टोरंटो विश्वविद्यालय में संगठनात्मक व्यवहार की प्रोफेसर तीजियाना कासकियारो कहती हैं कि एक दूसरे पर विश्वास करना इंसानों की मूलभूत ज़रूरत है और हाथ मिलाने से यह ज़रूरत पूरी होती है।तो क्या इस महामारी के बाद भी हाथ मिलाने का चलन बरकरार रहेगा।"शायद नहीं", वे कहती हैं, "इस महामारी के बाद कई लोग हाथ मिलाने से बचेंगे, कम से कम कुछ समय तक तो हम अपने में ही सिमटे रहेंगे"।
 
पोलैंड भी मानते हैं, "हमारी सांस्कृतिक आदतों में परिवर्तन के लिए ऐसे ही किसी बड़े झटके की ज़रूरत होती है"।
 
प्रोफेसर स्क्रोएडर कहती हैं, "शायद कुछ समय तक असहजता भरा फेज आउट दौर चलेगा।हाथ मिलाने की मूलभूत सांस्कृतिक आदत और सरकारों व जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा इसे छोड़ने के लिए जारी चेतावनियों पर ध्यान देने की ज़रूरत के बीच कुछ समय कशमकश जारी रहेगी।कुछ लोग हाथ मिलाने के लिए बढ़ाना चाहेंगे लेकिन खुद को ऐसा करने से रोकेंगे और दूसरों को भी टोकेंगे"।
 
स्क्रोएडर ने अपने शोध में दिखाया है कि जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे से हाथ मिलाने की कोशिश करता है और दूसरा व्यक्ति हाथ नहीं मिलाता (किसी भी कारण से) तो पहला व्यक्ति असहज महसूस करता है और दोबारा हाथ मिलाने में हिचकता है।उनका मानना है कि कुछ समय तक इसी असहजता और हिचकिचाहट का दौर चलेगा और शायद इसी तरह के व्यवहारों से हाथ मिलाने को खराब समझा जाने लगेगा।
 
इसकी शुरुआत हो चुकी है और दुनिया भर में कई लोग हाथ मिलाने से बचने लगे हैं।अमरीका के अग्रणी एटीकेट संस्थान ने लोगों को हाथ मिलाने की सलाह देना बंद कर दिया है।अब उनका सुझाव है कि जब भी किसी से मिलें तो कहें कि आपसे मिलकर खुशी हुई लेकिन मैं स्वास्थ्य संबंधी दिशानिर्देशों का पालन कर रहा हूँ।
 
और लोग इस सलाह का पालन कर भी रहे हैं।अगर वे ऐसा नहीं कर रहे तो उन्हें हैंड शेक जैसी आदतों के लिए टोका जाने लगा है।पोलैंड कहते हैं, "मेरा मानना है कि हाथ मिलाने के स्थान पर अभिवादन का कोई ऐसा तरीका अंतत: विकसित हो ही जाएगा जो भरोसे की इसी भावना को प्रदर्शित करता हो"।
 
लेकिन वह तरीका होगा क्या ?
विशेषज्ञ मानते हैं कि हाथ मिलाना अपनेआप में उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि इसके जरिये व्यक्त होने वाला भरोसे और संबंध का सांस्कृतिक सार्वभौमिक संदेश।आखिर एक दूसरे के सामने झुकने से लेकर नाक से नाक मिलाने तक अभिवादन के कई विकल्प तो पहले से ही मौजूद हैं।
 
पोलैंड का सुझाव है, "दोस्ताना अंदाज़ में सिर को हल्के से झुकाना अच्छा तरीका है"।वे आजकल प्रचलित कोहनी से कोहनी मिलाने (एलबो-बम्प) का भी जिक्र करते हैं, हालांकि मानते हैं कि ऐसा करना थोड़ा अजीब है"।
 
वे यह भी कहते हैं कि हाथ मिलाने की परंपरा को खत्म करने की बजाय बाथरूम इस्तेमाल करने की बेहतर तमीज विकसित करना ज़्यादा उचित उपाय होगा क्योंकि दरवाजों के हैंडल और काउंटर जैसी सतहों को बहुत लोग छूते हैं, ऐसे में वहाँ मानव मल के अवशेष रहने की ज़्यादा संभावना होती है।
 
लेकिन शायद यह महामारी नहीं भी आती तब भी हैंड शेक एक न एक दिन अभिवादन का उतना मानक तरीका नहीं रह जाता।वेस्टर्न ऑन्टेरिओ विश्वविद्यालय में प्रबंधन-संवाद की प्रवक्ता प्रोफेसर कानिना ब्लंचर्ड कहती हैं, "आज आर्थिक जगत की भाषा अँग्रेजी है।इसलिए हाथ मिलाने का चलन है।लेकिन अगर हम आंकड़ों के हिसाब से देखें तो चीन में, भारत में, जहां दुनिया की आधी आबादी है, हाथ मिलाना अभिवादन का एकमात्र तरीका नहीं है।यकीनन यहाँ भी कुछ लोग हाथ मिलाते हैं, लेकिन वे साथ ही किसी और तरीके से भी अभिवादन करते हैं।सच यह है कि अभिवादन के दूसरे तरीके ज़्यादा पारंपरिक हैं।और जैसे-जैसे चीन, मध्य पूर्व और भारत जैसे क्षेत्रों की भागीदारी विश्व के व्यावसायिक जगत में बढ़ेगी, इनके सांस्कृतिक रिवाज अंतर्राष्ट्रीय मानक बन जाएंगे"।
 
हाथ मिलाना
बात यह है कि कोविड-19 जैसे संकट झेलते हुए भी हमें मानवीय सम्बन्धों की ऊष्मा चाहिए - और अपनी संस्कृति के मुताबिक हम इसकी अभिव्यक्ति नमस्कार, आलिंगन या चुंबन से या फिर हाथ मिलाकर करते ही हैं।
 
ब्लंचर्ड कहती हैं, "आपको हालात के मुताबिक बदलना पड़ता है।हाथ मिलाने का चलन खत्म हो जाए तो मुझे कोई खुशी नहीं होगी, लेकिन सवाल किसी की खुशी का है ही नहीं।बदलाव ज़रूरी हो गया है और सामाजिक जरूरतों के लिए स्थितियों के मुताबिक खुद को ढालने की मानवीय क्षमता अद्भुत है।"

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