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बैंकों को गोरखधंधे में फंसाने की जुगत

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, मंगलवार, 13 दिसंबर 2016 (10:49 IST)
- प्रदीप कुमार (दिल्ली)
 
नोटबंदी के समय में आम लोग जहां बैंकों और एटीएम के सामने क़तारों में नज़र आ रहे हैं वहीं दूसरी ओर देश के विभिन्न हिस्सों से बड़े पैमाने पर नए नोटों की बरामदगी भी हो रही है। ऐसे में बैंकों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं और बैंकों के काम काज को लेकर भी आम लोगों में शिकायतें देखने को मिली हैं। दिल्ली के चांदनी चौक स्थित एक्सिस बैंक में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के मामले सामने आए हैं।
ऐसे समय में बैंक अधिकारियों के सामने आम और ख़ास ग्राहकों की किस-किस तरह की डिमांड आ रही हैं और वे उनका सामना किस तरह से कर रहे हैं, यही जानने के लिए बीबीसी ने अलग अलग बैंकों के कुछ अधिकारियों से बात की। भारतीय स्टेट बैंक में रिजनल मैनेजर स्तर के एक अधिकारी की मानें तो मौजूदा समय में बड़े पैमाने पर बैंकों के ज़रिए नोट बदलवाना संभव नहीं है, किसी भी सूरत में।
 
एसबीआई के एक रिज़नल मैनेजर ने बताया, "जब ये घोषणा हुई तो अगले ही दिन से हमें अंदाज़ा होने लगा था कि हमारी मुश्किल काफ़ी बढ़ने वाली है। लोगों को संभालने के लिए हम सुरक्षाकर्मी और पुलिस बल पर तो निर्भर हो सकते हैं, लेकिन नोटों को संभालने वाले अनुरोधों का क्या करते?"
 
पहले कुछ दिन तक जब साढ़े चार हज़ार के पुराने नोट बदले जा सकते थे, फिर चार हज़ार के। तो इसमें बड़े पैमाने पर ग़रीब जनता के इस्तेमाल की ख़बरें आईं। कहा गया कि दूसरे लोग जनधन अकाउंट वालों के खातों में अपने पैसे डिपाज़िट कर रहे हैं, उन्हें कुछ पैसों का लालच देकर।
 
बैंक अधिकारी का कहना था कि हालांकि रिज़र्व बैंक के आदेश के मुताबिक़ हमें रोज़ाना अपना फ़ीडबैक देना होता है, इन फ़ीडबैक के चलते ही रिजर्व बैंक ने नोट बदलवाने की सीमा 2000 रुपए की और बाद में उसकी समय सीमा नहीं बढ़ाई।
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वो कहते हैं, लेकिन इस दौरान बड़े पैमाने पर नोटों को वैध बनाया गया। अभी भी देश भर में कई तरह का कारोबार करने वाले रोज़ाना के हिसाब से बैंकों में 500 और 1000 रुपये को अपने ख़ाते में जमा करा रहे हैं। ये किसी भी सूरत में साबित नहीं किया जा सकता है कि ये पैसा उनके पास 8 नवंबर से पहले का है, या बाद का।
 
केनरा बैंक के एक अधिकारी के मुताबिक़ भी बैंकों से हेराफ़ेरी बहुत मुश्किल है। उन्होंने बताया, जानने वाले भी कई तरह के कारोबारी उपभोक्ता हैं, बिल्डर हैं, उनके फ़ोन आने लगे कि सरजी, इतना पैसा पड़ा हुआ है, कुछ तो बताओ कि कैसे होगा, कुछ करा दो? हम उनसे यही कहते हैं कि पैसा जमा करा दो, रखने का कोई फ़ायदा नहीं है। आयकर वाले जब स्रोत पूछेंगे तो उसका जवाब भी तैयारकरो। वो कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों में ऐसी भी ख़बरें देखने को मिली हैं कि बैंकों में पैसे बदले जा रहे हैं। लेकिन मौजूदा स्थिति में ये मुमकिन नहीं है।
 
रिज़र्व बैंक के प्रावधान के मुताबिक़ हम किसी भी एकाउंट से सप्ताह भर में 24 हज़ार रुपये से ज़्यादा नहीं दे सकते, किसी को नहीं दे सकते। चालू खाता होने पर ये सीमा 50 हज़ार रुपये की है। इंडियन ओवरसीज़ बैंक के एक अधिकारी कहते हैं, बड़ा से बड़ा बैंक अधिकारी भी किसी ख़ाते से एक सप्ताह में 24 हज़ार से ज़्यादा नहीं निकाल सकता। हां ये ज़रूर हो सकता है कि मुझे जानने वाला उपभोक्ता होगा तो उसे लाइन में नहीं लगना होगा।
 
मैं उसे अंदर बुला सकता हूं, ये भी संभव है कि वो चार-पांच पासबुक के साथ आ जाए तो मैं उसे 24 हज़ार की दर से एक ही बार में पैसे दिलवा सकता हूं। इससे क़तार में खड़े लोगों को मुश्किल होती है, ये मानता हूं लेकिन बैंक ये कर सकता है, प्रीवेलेज्ड कस्टमर के लिए करना भी पड़ता है।
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भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारी के मुताबिक़, कई शाखाओं के बारे में इस तरह की शिकायतें भी आईं कि लोग अगर बैंकों में पैसा जमा कराने आ रहे हैं तो उनके छोटे नोट को बैंक में अलग रख लिया जाए और बाद में बड़े नोट से तब्दील किए जाएं। तकनीकी रूप से ऐसा हो किया जा सकता है, क्लर्कों के स्तर पर ऐसा होने की शिकायतें हमें भी मिल रही हैं। लेकिन इसमें बहुत बड़े पैसों को बदल पाना संभव नहीं है।
 
इसकी एक वजह तो यही है कि लोग बैंकों में पैसा जमा कराते वक्त कौन से नोट कितने हैं, इसके बारे में मेंशन करते हैं। उसको बदलना मुश्किल है। रिमोट इलाके के बैंक ऐसा कर सकते हैं, लेकिन वहां बहुत लेन देन ही नहीं होता है। इसके अलावा रिज़र्व बैंक हर तरह के नोट का हिसाब रख रही है, एक एक नोट की इंट्री दर्ज की जा रही है। उसका हिसाब रखा जा रहा है।
 
बैंक ऑफ़ बड़ौदा के एक अधिकारी ने बताया, हर बैंक में ऐसे कारोबारियों के खाते होते हैं, जो रोजाना के हिसाब से ढेर सारा पैसा जमा करते हैं। वे हर तरह का नोट लेकर जमा कराने पहुंचते हैं। तो ऐसे भी अनुरोध हमारे पास आते हैं कि ऐसे जमा करने वालों का डाटाबेस शेयर कीजिए, ताकि हम अपने नोट उनसे ही रोज़ाना बदल लें।
 
बैंकों के ज़रिए जो एक काम बड़े पैमाने पर लोगों ने किया है वो जनधन खाते में पैसे रखवाना था, लेकिन वो भी रिज़र्व बैंक की पकड़ में तुरंत आ गया है। ऐसा इसलिए भी हो रहा है क्योंकि हर बैंक अपने यहां जमा होने वाली राशि का ब्यौरा रिजर्व बैंक को सौंप रहा है, ये ब्योरा आयकर अधिकारियों के पास भी पहुंच रहा है। लोगों ने कमीशन देकर ऐसे खातों का इस्तेमाल किया है और उन्होंने पहले ही बियरर चेक ले लिए हैं। यही वजह है कि रिज़र्व बैंक ने इस पर सख्ती की।
 
इसके अलावा लोगों के खाते का फर्ज़ी ढंग से इस्तेमाल भी संभव है। अगर कोई बैंक का अधिकारी अपने यहां के डोर्मेंट एकाउंट (निष्क्रिय खाता, लेकिन बंद नहीं) की लिस्ट लोगों को दे देता है और उनसे कहता है कि ये खाता नंबर है और ये खातेदार का संपर्क हैं, आप संपर्क करे, अगर वो तैयार हैं तो उनके खाते में पैसे डाल दो। लेकिन ये भी टुकड़ों टुकड़ों में ही संभव है, ढाई लाख रुपये तक अधिकतम।
 
लेकिन बैंकिंग व्यवस्था में आम लोगों के लिए ये जानना ज़रूरी है कि आप किसी भी खाते में किसी का पैसा जमा तो करवा सकते हैं, लेकिन पैसा खातेदार की सहमति के बिना निकल नहीं सकता है, अगर कोई भी बैंक कर्मचारी ऐसा करता है तो उस पर आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।
 
आईसीआईसीआई बैंक के एक अधिकारी के मुताबिक़, सरकार के फ़ैसले के बाद चालू खाता खुलवाने वाले लोगों की भीड़ भी बढ़ी है, हालांकि शुरुआती दिनों में उन पर ध्यान देना संभव ही नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब ऐसे खाते खुल रहे हैं। फर्म के नाम पर खाते खोले जा रहे हैं। इसमें उपभोक्ता हमसे केवाईसी नार्म में थोड़ी रियायत बरतने का अनुरोध लेकर आते हैं।
 
इन बैंक अधिकारियों की मानें तो आने वाले दिनों में बड़ा संकट ये आने वाला है कि बैंकों में उस रफ्तार से नए नोट जमा नहीं हो रहे हैं। जो नया नोट बाज़ार में पहुंच रहा है वो लोगों के पास ही थम रहा है, वह बैंकिंग व्यवस्था में लौट कर नहीं आ रहा है, ऐसे में नोटों की कमी का संकट आने वाले दिनों बढ़ेगा। रिज़र्व बैंक अपने प्रावधानों में लगातार इसलिए तब्दीली ला रहा है कि नए नोट बैंक तक वापस भी पहुंचें, लेकिन फ़िलहाल ऐसा होता नहीं दिख रहा है।

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