ज़ुबैर अहमद, बीबीसी संवाददाता
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चार सालों तक अमेरिकी सियासत में छाये रहे। उनके सामने कोई न टिक सका और वो सुर्ख़ियों में बने रहे। लेकिन बुधवार को अमेरिकी हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स द्वारा महाभियोग किये जाने के बाद वाशिंगटन के पत्रकार कहते हैं कि व्हाइट हाउस में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ है।
ट्विटर उनका पसंदीदा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म था जिसके ज़रिए राष्ट्रपति अपने करोड़ों समर्थकों से संपर्क में रहते थे। लेकिन इस प्लेटफ़ॉर्म से वो बाहर कर दिए गए हैं। फ़ेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने भी उनके अकाउंट को निलंबित कर दिया है। उनके कई क़रीबी साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया है। राष्ट्रपति पद के शीर्ष पर पहुँच कर भी वो बहुत अकेला महसूस कर रहे होंगे। उनकी विरासत ध्वस्त होती नज़र आती है।
क्या ये उनके सियासी भविष्य का अंत है? क्या उनके पीछे दृढ़ विश्वास के साथ खड़ी रिपब्लिकन पार्टी उनसे अपना दामन छुड़ाने के कगार पर है? क्या वो रिपब्लिकन पार्टी के लिए इसके गले का फंदा बन गए हैं? और सब से अहम, क्या रिपब्लिकन पार्टी इस संकट से जल्द निकल सकेगी या ट्रंप अगले चुनाव में भी पार्टी की तरफ़ से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार होंगे?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के एक आम नागरिक हो जाएंगे। अगर उन्हें अमेरिकी सीनेट ने हिंसा भड़काने का दोषी ठहराया और उनके ख़िलाफ़ दो-तिहाई वोट पड़े तो आगे वो न तो 2024 का चुनाव लड़ सकते हैं और न ही कोई सरकारी पद हासिल कर सकते हैं। पूर्व राष्ट्रपति को दिए जाने वाले विशेषाधिकार से भी वो वंचित हो जाएंगे।
अमेरिका में इन सवालों पर लोगों की राय बंटी हुई है। सियासी विश्लेषक बीजे रुदेल कहते हैं, "ट्रंप के राजनीतिक निधन की अफ़वाहें बहुत बढ़ा-चढ़ा कर फैलाई जाती हैं।"
छह जनवरी को ट्रंप के समर्थकों द्वारा अमेरिकी संसद पर हमले के बाद कुछ रिपब्लिकन पार्टी के लीडर उनके ख़िलाफ़ हो गए हैं। कम से कम हाउस के 10 सदस्यों ने उनके ख़िलाफ़ वोट भी दिया।
लेकिन बीजे रुदेल के अनुसार राष्ट्रपति का मृत्यु लेख लिखना अभी मूर्खता होगी। वो कहते हैं, "उदाहरण के तौर पर पिछले साल उन्होंने पत्रकार बॉब वुडवर्ड से स्वीकार किया था कि कोरोना महामारी कितनी घातक साबित होगी लेकिन दूसरे जब ये कहते थे तो राष्ट्रपति उन्हें फ़ेक न्यूज़ फैलाने वाला कहते थे। नतीजा क्या हुआ? बॉब वुडवर्ड का इंटरव्यू सितंबर में आया जिसके बाद उनकी लोकप्रियता 92 प्रतिशत से बढ़ कर 94 प्रतिशत हो गई।"
लेकिन मुंबई में स्थित विदेश नीतियों के थिंक टैंक गेटवे हाउस से जुड़े भारत के पूर्व राजनयिक राजीव भाटिया कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी पार्टी को लेकर फ़िलहाल अनिश्चितता बनी हुई है। बीबीसी से बातें करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रंप का भविष्य पार्टी क्या रुख़ लेती है इस पर निर्भर करेगा।
वो कहते हैं, "उनका भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि रिपब्लिकन पार्टी के लोग क्या चाहते हैं। ये अभी स्पष्ट नहीं है। एक तरफ़ तो ये कहा जा रहा है कि दल एकता बनाएगा और ट्रंप के साथ जुड़ा रहेगा और उनके ख़िलाफ़ सीनेट के ट्रायल में जो दो-तिहाई बहुमत चाहिए वो नहीं मिल सकेगा। दूसरी तरफ़ रिपब्लिकन पार्टी में भी दो ख़ेमों की बात कही जा रही। एक ख़ेमा जो ट्रंप के साथ रहेगा और दूसरा उनके साथ नहीं रहेगा। अब आगे क्या होगा इसके लिए तो हमें इंतज़ार करना पड़ेगा।"
अमेरिकी सीनेट में 100 सदस्य होते हैं जिनमे 51 सदस्य डेमोक्रैटिक पार्टी के हैं और 49 रिपब्लिकन पार्टी के। सीनेट में होने वाले मुक़दमे में रिपब्लिकन पार्टी के 17 सदस्य ट्रंप के ख़िलाफ़ वोट देंगे तब ही दो-तिहाई बहुमत हासिल हो सकेगा। मुक़दमा अब 20 जनवरी के बाद ही शुरू हो सकेगा जब ट्रंप राष्ट्रपति पद से हट चुके होंगे। राजीव भाटिया कहते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी की अंदरूनी राजनीति क्या रुख़ लेती है इस पर ही ये तय हो सकेगा कि ट्रंप को लेकर चलेंगे या उन्हें छोड़ देंगे।
राजीव भाटिया के अनुसार दो घटनाएँ ऐसी हुई हैं जो ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी दोनों के लिए नकारात्मक साबित हुई हैं।
वो कहते हैं, "एक तो ये कि ट्रंप ने जो लगातार चुनाव की वैधता को लेकर सवाल खड़े किये वो हर स्टेज पर ख़ारिज होते रहे, चुनावी अधिकारियों के स्तर पर, राज्य सरकारों के स्तर पर और अदालतों के स्तर पर ये ख़ारिज होते रहे। और दूसरा छह जनवरी की कांग्रेस की इमारत के भीतर हुई हिंसा उससे पार्टी को धक्का लगा है और ट्रंप को भी।
उसी दिन घटना से पहले हाउस में रिपब्लिकन पार्टी के कई सदस्य ये कह रहे थे कि चुनावी नतीजे को न माना जाए लेकिन घटना के बाद ऐसे सदस्यों की संख्या थोड़ी रह गयी। इन दोनों घटनाओं से रिपब्लिकन पार्टी और ट्रंप दोनों को धक्का लगा है। ट्रंप के लिए इससे बड़ी क्या बेइज़्ज़ती हो सकती है कि उनके काल के आख़िरी हफ़्ते में वो अमेरिका के ऐसे पहले राष्ट्रपति बन गए जिनके ख़िलाफ़ दो बार महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ।"
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप की हालत एक ऐसे मुक्केबाज़ जैसी है जिसके क़दम डगमगा रहे हैं। एक ज़ोरदार मुक्का लगा तो वो नॉक आउट हो सकते हैं। लेकिन कई मुक्केबाज़ इस बुरी तरह से पिटने के बाद भी मुक़ाबला जीत जाते हैं।
अगर सीनेट द्वारा उनपर आने वाले चुनाव में हिस्सा लेने पर पाबंदी न भी लगाई जाए तो ये तय है कि पार्टी के अंदर उनका असर कम हुआ है। लेकिन ये याद रखना ज़रूरी है कि पार्टी में छह जनवरी से पहले उनकी लोकप्रियता 87 प्रतिशत थी। इसके अलावा उनके समर्थकों की संख्या करोड़ों में है जो उनका साथ नहीं छोड़ने वाले हैं। ये भी याद रखने की बात है कि उन्हें चुनाव में साढ़े सात करोड़ के क़रीब वोट मिले हैं।
बी जे रुदेल कहते हैं कि उनके समर्थक उनके सच्चे भक्त हैं और उन्हें ये विश्वास है कि ट्रंप ही चुनाव जीते थे। वो आगे भी ट्रंप के साथ बने रहेंगे।
लेकिन कुछ दूसरे विशेषज्ञ ये मानते हैं कि ट्रंप उतने ताक़तवर हैं नहीं जितना कि लोग उनके बारे में गुमान करते हैं। उनका तर्क है कि ऐसा कम ही होता है कि वर्तमान राष्ट्रपति अगला चुनाव हार जाए। वो चुनाव हार गए और फिर उनके काल में सीनेट और हाउस दोनों में रिपब्लिकन पार्टी ने अपना बहुमत गंवाया। उनके ख़िलाफ़ ये रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले किसी उम्मीदवार का नहीं है।
इसलिए अब कई वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक पार्टी को सलाह दे रहे हैं कि वो ट्रंप से दूरी बना लें।
सियासी विश्लेषक कीथ नौगटन "द हिल" नामक एक पत्रिका में एक लेख में लिखते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी को चाहिए कि वो ट्रंप से नाता तोड़े और रिपब्लिकन पार्टी के नए वोटरों पर ध्यान दे।
वो लिखते हैं, "ट्रंप अब चुनाव नहीं जीत सकते (2024 का चुनाव)। छह जनवरी की घटना काफ़ी घातक साबित हुई है उनके सियासी करियर के लिए। पार्टी को उनके बग़ैर आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।"
लेकिन फ़िलहाल ट्रंप को कोई भी पूरी तरह से ख़ारिज करने के लिए तैयार नहीं है। इस संभावना से पूरी तरह से कोई भी इंकार करने को तैयार नहीं कि 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार वो नहीं होंगे। पार्टी में दूसरे संभावित उम्मीदवार, जैसे कि, निक्की हेली, टेड क्रूज़ और जोश हॉली ऐसे नेता हैं जिनका वोटरों में आधार कम है और पार्टी के अंदर ट्रंप की तुलना में उनकी लोकप्रियता काफ़ी कम है।
इस समय ट्रंप के पास सबसे बड़ी सियासी पूँजी उनके समर्थकों का एक बहुत बड़ा बेस का होना है। पहले वो ट्विटर या दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म द्वारा इन समर्थकों से बातें करते थे। अब आने वाले कुछ हफ़्तों और महीनों में ये स्पष्ट हो सकेगा कि वो उन समर्थकों से किस माध्यम से बातें करेंगे। एक सुझाव है कि वो ट्विटर की तरह एक नया प्लेटफ़ॉर्म बनाएँगे और दूसरा सुझाव है कि वो अपना एक टीवी चैनल शुरू करेंगे।
सबकी राय यही है कि ट्रंप मुसीबत में ज़रूर हैं लेकिन वो मैदान से बाहर नहीं हुए हैं।