भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से लेकर गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने में अब कुछ घंटे शेष हैं।
 
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	 
	सुबह 7:45 बजे स्ट्रॉन्ग रूम खुलने की प्रक्रिया शुरू होगी जिसके बाद धीरे-धीरे मतों की गिनती शुरू होगी। हमेशा की तरह इस प्रक्रिया में पहले पोस्टल बैलट की गणना होगी। इसके बाद ईवीएम मशीनों की मदद से दिए गए मतों की गिनती शुरू की जाएगी। इस दौरान तमाम राजनीतिक दलों के लोग मतगणना केंद्र पर मौजूद रहेंगे।
 
									
										
								
																	
	 
	माना जा रहा है कि इस चुनाव में जो भी नतीजे सामने आएंगे, उसके इन प्रदेशों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी दीर्घकालिक परिणाम होंगे। इस चुनाव के नतीजे बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार योगी आदित्यनाथ से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का राजनीतिक भविष्य तय कर सकते हैं।
 
									
											
									
			        							
								
																	
	 
	इसके साथ ही इस चुनाव के नतीजे साल 2024 में होने वाले आम चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक भविष्य से जुड़े संकेत भी देंगे। इसके अलावा इन चुनावों के नतीजों से राज्यसभा में राजनीतिक दलों की क्षमताओं पर भी असर पड़ सकता है। लेकिन इस बारे में विस्तार से जानने से पहले जान लेते हैं कि इस चुनाव में किस प्रदेश में कितनी सीटों और कितने चरणों में चुनाव हुआ।
 
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	
	 
	पांच राज्यों में कब और कितने चरणों में हुए चुनाव
	भारतीय चुनाव आयोग ने आठ जनवरी को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के लिए मतदान कार्यक्रम का एलान किया था।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	कोरोना को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने शुरुआती दिनों में चुनावी रैलियों, जनसभाओं, रोड शो, और बाइक रैलियों पर रोक लगाई थी। इसके बाद धीरे-धीरे चुनाव प्रचार के साथ-साथ मतदान की प्रक्रिया शुरू हुई।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	उत्तर प्रदेश में कैसे हुए चुनाव
	भारतीय चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में सात चरणों मे चुनाव कराने का फ़ैसला किया था। उत्तर प्रदेश जहां देश में आबादी के नज़रिए से सबसे बड़ा राज्य है, वहीं, राजनीतिक तौर पर भी इसे काफ़ी अहम माना जाता है।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	भारत की लगभग 16।17% आबादी इस राज्य में रहती है। क्षेत्रफल के लिहाज से ये राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बाद पांचवें स्थान पर है और भारत का 7।3% भूमि क्षेत्र इस राज्य में आता है।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी हासिल करने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। उत्तर प्रदेश में 75 ज़िले, 80 लोकसभा सीटें, 31 राज्य सभा सीटें, 403 विधानसभा सीटें और इसके विधान परिषद में 100 सदस्य हैं।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	उत्तर प्रदेश में बीजेपी से लेकर कांग्रेस, सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी आदि के शीर्ष नेताओं ने रैलियां कर जीत के लिए अपना पूरा ज़ोर लगाया है। और मतदान की प्रक्रिया कुछ प्रकार रही -
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	पहले चरण का मतदान 10 फ़रवरी
	दूसरे चरण का मतदान 14 फ़रवरी
	तीसरे चरण का मतदान 20 फ़रवरी
 
									
					
			        							
								
																	
	चौथे चरण का मतदान 23 फ़रवरी
	पांचवे चरण का मतदान 27 फ़रवरी
	छठवें चरण का मतदान 3 मार्च
	सातवें चरण का मतदान 7 मार्च
 
									
					
			        							
								
																	
	और इन सात चरणों में कुल 403 सीटों के लिए मतदान किया गया है जिनकी गणना जल्द ही शुरू होगी।
	 
 
									
					
			        							
								
																	
	पंजाब में कैसे और कब हुआ मतदान?
	चुनाव आयोग ने पंजाब में सिर्फ़ एक चरण में मतदान कराने का फ़ैसला किया। चुनाव आयोग के इस फ़ैसले पर राजनीतिक दलों की ओर से सवाल भी उठाया गया।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	इसके साथ ही चुनाव आयोग ने पहले 14 फ़रवरी को पंजाब में मतदान कराने का फैसला किया था। लेकिन चुनाव आयोग ने तारीख़ आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया। इसके बाद पंजाब की 117 सीटों पर 20 फ़रवरी को मत डाले गए।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	पंजाब में आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार भगवंत मान, मौजूदा मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के बयान काफ़ी चर्चा में रहे। इन 117 सीटों पर किसे बढ़त मिलेगी और कौन बनेगा मुख्यमंत्री, इस बारे में स्थिति जल्द ही स्पष्ट हो जाएगी।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	उत्तराखंड में कब और कैसे हुआ मतदान
	चुनाव आयोग ने उत्तराखंड की 70 सीटों पर 14 मार्च को विधानसभा चुनाव कराने का फ़ैसला किया।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	मणिपुर में कब और कैसे हुआ मतदान
	भारतीय चुनाव आयोग ने मणिपुर विधानसभा चुनाव की 60 सीटों पर 27 फ़रवरी और 3 मार्च को मतदान कराने का फ़ैसला किया। इसके बाद तय तारीख़ को मणिपुर की 70 सीटों पर मत डाले गए जिनके नतीजे जल्द सामने आएंगे।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	गोवा में कब और कैसे हुआ मतदान
	भारतीय चुनाव आयोग ने गोवा में एक चरण में मतदान कराने का फ़ैसला किया। इसके बाद 14 फ़रवरी को गोवा की 40 सीटों पर मतदान किया गया।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	इस चुनाव से क्या बदलेगा?
	यूपी, पंजाब, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में अगली विधानसभा की तस्वीर साफ़ होने में अब बस कुछ घंटों का समय बचा है। जीत और हार जिस भी पार्टी की हो, आने वाले दिनों में भारतीय राजनीति में कई घटनाक्रम इन चुनावों के नतीजों से प्रभावित होने वाले हैं।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	जैसा कि हमने पहले बताया था कि इन चुनावों के नतीजों पर क्षेत्रीय पार्टियों के साथ-साथ बीजेपी, कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों का बहुत कुछ दांव पर लगा है। इस वजह से ये जानना अहम हो जाता है कि इन राज्यों में हुए चुनाव का असर किन पर कैसे पड़ेगा।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	बीबीसी संवाददाता सरोज सिंह ने वरिष्ठ पत्रकारों से बात करके ये समझने की कोशिश की है कि इन नतीज़ों का राज्यसभा से लेकर राष्ट्रपति चुनावों पर क्या असर पड़ेगा।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन मानते हैं कि राज्यसभा पर इन चुनावों के नतीजों का उल्लेखनीय असर पड़ेगा। वह कहते हैं, "राज्यसभा की 245 सीटों में फ़िलहाल आठ सीटें खाली हैं। बीजेपी के पास इस समय 97 सीटें हैं और उनके सहयोगियों को मिला कर ये आँकडा 114 पहुँच जाता है। इस साल अप्रैल से लेकर अगस्त तक राज्यसभा की 70 सीटों के लिए चुनाव होना है जिसमें असम, हिमाचल प्रदेश, केरल के साथ-साथ यूपी, उत्तराखंड और पंजाब भी शामिल हैं।"
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	बता दें कि यूपी की 11 सीटें, उत्तराखंड की एक सीट और पंजाब की दो सीटों के लिए चुनाव इसी साल जुलाई में होना है। इससे साफ़ हो जाता है कि इन तीनों राज्यों में चुनाव के नतीजे सीधे राज्यसभा के समीकरण को प्रभावित करेंगे।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	अनिल जैन कहते हैं, "यूं तो बहुमत के आँकड़े से राज्यसभा में बीजेपी पहले भी दूर थी। लेकिन पाँच राज्यों के नतीजे अगर बीजेपी के लिए पहले से अच्छे नहीं रहे, तो आने वाले दिनों में वो बहुमत से और दूर हो जाएंगे और इसका सीधा असर राष्ट्रपति चुनाव पर भी पड़ेगा।"
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	राष्ट्रपति चुनाव पर असर
	भारत में अगला राष्ट्रपति चुनाव इस साल जुलाई में होना है। इस पद का निर्वाचन अप्रत्यक्ष मतदान से होता है। जनता की जगह जनता के चुने हुए प्रतिनिधि राष्ट्रपति को चुनते हैं।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज करता है। इसमें संसद के दोनों सदनों और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य शामिल होते हैं। राष्ट्रपति चुनाव में अपनाई जाने वाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की विधि के हिसाब से प्रत्येक वोट का अपना वेटेज होता है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	सांसदों के वोट का वेटेज निश्चित है मगर विधायकों का वोट का अलग-अलग राज्यों की जनसंख्या पर निर्भर करता है। जैसे देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के एक विधायक के वोट का वेटेज 208 है तो सबसे कम जनसंख्या वाले प्रदेश सिक्किम के वोट का वेटेज मात्र सात है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	प्रत्येक सांसद के वोट का वेटेज 708 है। इस लिहाज से भी पाँच राज्यों के नतीजों पर हर पार्टी की नज़र है। भारत में कुल 776 सांसद हैं। 776 सांसदों के वोट का वेटेज है - 5,49,408 (लगभग साढ़े पाँच लाख) भारत में विधायकों की संख्या 4120 है। इन सभी विधायकों का सामूहिक वोट है, 5,49,474 (लगभग साढ़े पाँच लाख) इस प्रकार राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट हैं - 10,98,882 (लगभग 11 लाख)
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	इन चुनावों के राष्ट्रपति पद के चुनाव पर होने वाले असर पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि इन पाँच राज्यों के चुनाव के नतीजे ये तय करेंगे कि बीजेपी आसानी से अपने उम्मीदवार को जीता पाती है या नहीं। अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश में तुलनात्मक रूप से 2017 से अच्छा नहीं कर पाती है तो राष्ट्रपति चुनाव का गणित बिगड़ जाएगा।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वहीं अनिल जैन कहते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार को वोट कम ज़रूर मिल सकते हैं, लेकिन उनके उम्मीदवार को जीतने में दिक़्क़त नहीं होगी।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	उनके मुताबिक़ बीजेपी के पास अभी 398 सांसद हैं और सभी राज्यों में विधायकों की संख्या मिला दें तो तक़रीबन 1500 के आसपास है। इनमें से ज़्यादातर उन राज्यों में हैं जिनके वोट का मूल्य राष्ट्रपति चुनाव में ज़्यादा है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए साढ़े पाँच लाख से कुछ ज़्यादा वोट की ज़रूरत पड़ती है। बीजेपी के पास अपने साढ़े चार लाख वोट हैं और बाक़ी उनके सहयोगी पार्टियों की मदद से हासिल होंगे। कुछ उन राज्यों और सांसदों से भी मिल सकते हैं, जो मुद्दों के आधार पर बीजेपी का समर्थन करते हैं। इस वजह से बीजेपी के लिए मुश्किल ज़्यादा नहीं होगी।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	योगी और मोदी की छवि पर असर
	राज्यसभा और राष्ट्रपति पद के चुनाव के अतिरिक्त इस चुनाव में हुए मतदान का असर पीएम मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य पर भी पड़ेगा।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	नीरजा चौधरी कहती हैं, यूपी के नतीजे ये तय करेंगे कि योगी आदित्यनाथ भविष्य में प्रधानमंत्री पद के दावेदार होते हैं या नहीं। अगर योगी अच्छे मार्जिन से जीतते हैं तो भविष्य में प्रधानमंत्री पद की उनकी दावेदारी मज़बूत होगी। अगर वो हार जाते हैं या बहुत कम मार्जिन से जीतते हैं तो वो यूपी के मुख्यमंत्री बन पाएंगे या नहीं या उनकी जगह कोई और आएगा, ये देखने वाली बात होगी।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	पीएम मोदी के लिए नीरजा कहती हैं, ''अगर बीजेपी यूपी जीत गई तो ये साबित होगा कि मोदी की लोकप्रियता अब भी बरकरार है, उनकी अलग-अलग योजनाओं के लाभार्थी उनके साथ खड़े हैं। और अगर ऐसा नहीं होता है तो ब्रैंड मोदी पर असर पड़ेगा।''
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वहीं वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस कहती हैं, नतीजे जैसे भी आएं, दोनों सूरत में असर ब्रैंड योगी पर पड़ेगा और ब्रैंड मोदी पर भी।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वे कहती हैं, "बहुत कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी नेताओं की वरीयता सूची योगी में आदित्यनाथ फ़िलहाल पांचवें पायदान पर हैं। अगर वो जीत जाते हैं तो वो नंबर दो बन सकते हैं। लेकिन अगर वो हार जाते हैं तो शीर्ष नेतृत्व से सवाल पूछे जाएंगे कि बाहर के चेहरे को उठा कर बीजेपी का मुख्यमंत्री कैसे बना दिया। पाँच साल के बाद ये नतीजा है, तो हम क्या बुरे थे? यानी यूपी जीते तो ब्रैंड मोदी-योगी और मज़बूत होगा और सीटें घटी तो नीचे जा सकते हैं।"
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	अदिति अपनी बात को विस्तार देते हुए कहती हैं कि 'इसका सीधा असर बीजेपी के केंद्र के फ़ैसलों पर भी पड़ेगा। अगर बीजेपी का प्रदर्शन पहले के मुक़ाबले अच्छा ना रहे तो आगे केंद्र सरकार को फूंक-फूंक कर क़दम रखना होगा। कृषि क़ानून को तो केंद्र सरकार ने संसद में तो पास करा लिया, लेकिन किसान और जनता के सामने वो हार गए। इससे परसेप्शन की लड़ाई पर असर तो पड़ेगा और विपक्ष और मज़बूत होगा।'
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	पंजाब का गणित और आम आदमी पार्टी का भविष्य
	वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी यूपी के बाद पंजाब के नतीजों को काफ़ी अहम मानती हैं।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वो कहती हैं, "अगर आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बना लेती है तो रातोंरात उनकी भारतीय राजनीति में साख बदल सकती है। पार्टी ज्वाइन करने के इच्छुक लोगों की क़तार भी बढ़ सकती है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	अभी तक तीसरे मोर्चे में आम आदमी पार्टी को वो ट्रीटमेंट नहीं मिलती थी, लेकिन पंजाब चुनाव में जीत उनके लिए बहुत बड़ी छलांग होगी। विपक्ष के तौर पर अलग-अलग राज्यों में अरविंद केजरीवाल को अलग तरह से आंका जाएगा और केजरीवाल को ये बढ़त, कांग्रेस के बूते मिलेगी। अगर केजरीवाल पंजाब में सरकार नहीं बना पाते तो उनके पास खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं है।"
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	कांग्रेस पर असर
	इन पाँच राज्यों के नतीजे राहुल, प्रियंका के लिए काफ़ी अहमियत रखते हैं।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	वरिष्ठ कांग्रेस पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "कांग्रेस के लिए उत्तराखंड और पंजाब दो राज्य सबसे महत्वपूर्ण होने वाले हैं। पंजाब में दलित मुख्यमंत्री के चेहरे के साथ कांग्रेस मैदान में उतरी थी। अगर उस राज्य में कांग्रेस हारती है तो पार्टी और ख़ास तौर पर राहुल गांधी की बहुत किरकिरी होगी। ये ऐसा कांग्रेस शासित राज्य था, जहाँ भाजपा के साथ उनका सीधा मुक़ाबला नहीं था। इसका सीधा असर आने वाले दिनों में राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की विपक्ष वाली छवि पर पड़ेगा।"
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	तीसरे मोर्चे में कांग्रेस का बारगेनिंग पावर
	अपनी बात को आगे विस्तार से समझाते हुए रशीद किदवई कहते हैं, "किसी मोर्चे में किसी भी राजनीतिक दल की अहमियत, उसकी मज़बूती के आधार पर तय होती है, ना कि कमज़ोरी के आधार पर। कांग्रेस अगर कुछ राज्यों में अपनी सरकार बनाने में या फिर सरकार बचाने में कामयाब होगी, तो इसी आधार पर कांग्रेस की आगे की भूमिका तय होगी। भारत की 200 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिस पर कांग्रेस की सीधे बीजेपी के साथ टक्कर है।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	पाँच राज्यों में कांग्रेस के सामने चुनौती पंजाब में अपना क़िला बचाने की है। उत्तराखंड में जहाँ बीजेपी ने चुनाव से पहले अपना सीएम बदला, वहाँ कांग्रेस फेरबदल नहीं कर पाई, तो कांग्रेस पर आरोप लगेगा कि अवसर को भुनाने में वो चूक जाती है।"
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	राहुल प्रियंका के नेतृत्व पर असर
	रशीद आगे कहते हैं कि इस चुनाव के नतीजे कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर भी व्यापक असर डालेंगे। पंजाब और उत्तराखंड जीतने में अगर कांग्रेस सफल हुई तो राहुल और प्रियंका की जोड़ी को चुनौती देने वाला पार्टी में कोई नहीं होगा।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	उनका दबदबा पार्टी में बढ़ जाएगा। हो सकता है कुछ बड़े नेता पार्टी छोड़ कर चले जाएं। लेकिन अगर कांग्रेस पाँच राज्यों में कहीं भी सरकार बनाने में कामयाब नहीं होती है तो कांग्रेस में कई फाड़ हो सकते हैं और उससे कई क्षेत्रीय दल बन सकते हैं।