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चीन के साथ पूर्वी लद्दाख में मोदी सरकार के समझौते का पूर्व सेना प्रमुख ने किया बचाव

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BBC Hindi

, रविवार, 14 फ़रवरी 2021 (11:06 IST)
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चल रहे लंबे समय से तनाव के बाद आख़िरकार भारत और चीन में समझौता हो गया है लेकिन समझौते पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
 
समझौते के अनुसार भारत ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के उत्तर और दक्षिणी तट पर 10 किलोमीटर चौड़ा बफ़र ज़ोन बनाने के लिए सहमति दे दी है।
 
इस समझौते को लेकर रक्षा और सैन्य विशेषज्ञों की अलग-अलग राय सामने आ रही है। कुछ लोग इस समझौते और भारत सरकार का बचाव कर रहे हैं तो कुछ इसे लेकर सवाल उठा रहे हैं।
 
अब इसी क्रम में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय सेना प्रमुख रहे वेद मलिक ने एक के बाद एक कई ट्वीट कर समझौते का बचाव किया है।
 
उन्होंने अपने ट्वीट्स में जो बातें कहीं हैं, वो कुछ इस तरह हैं:
1. पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिको के पीछे हटने को लेकर हुए समझौते की आलोचना मुझे चौंका रही है। ज़्यादातर लोग इसकी आलोचना इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वो तथ्यों और राजनीतिक-सैन्य समझ से नावाकिफ़ हैं या फिर उनमें गहरा पूर्वाग्रह भरा है। इस समझौते के तहत पहले चरण में पैंगोंग झील के चारों तरफ़ डटे सैनिक 20 अप्रैल, 2020 से पहली वाली लोकेशन पर वापस लौट जाएंगे।
 
2.  फिंगर-4 और फिंगर-8 के बीच बेहद कम तापमान में होने वाली पट्रोलिंग को किसी भी तरह के संघर्ष से बचने के लिए रोकना ज़रूरी है। समझौते के तहत अप्रैल,2020 के बाद यहाँ बने किसी भी तरह के सुरक्षा ढाँचे को हटा दिया जाएगा। जब कैलश रेंज खाली हो जाएगी तो हमारे सैनिक यहाँ चुशुल में बहुत क़रीब तैनात रहेंगे।
 
3. ये सारी चीज़ें होने के 48 घंटों के भीतर डेपसांग, गोरा, हॉट स्प्रिंग और गलवान में डिसइंगेजमेंट के लिए वार्ता होगी। दोनों देशों के कैडर किसी भी तरह के मसले पर नज़र रखने, उसकी पुष्टि करने या उसके हल के लिए लगातार मिलते रहेंगे। भरोसे की कमी के कारण हमारे सैनिकों का सतर्क रहना बेहद ज़रूरी है। हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि चीनी सेना किसी भी तरह का अनुचित फ़ायदा न लेने पाए और अपना वादा न तोड़ने पाए।
 
4. मेरी समझ ये है कि सैनिकों के पीछे हटने में और तनाव पूरी तरह ख़त्म होने में ज़्यादा समय लगना तय है। भारत और चीन के बीच किसी भी तरह का युद्ध, यहाँ तक कि आंशिक युद्ध भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय हित में नहीं है। चीन ने कोशिश की लेकिन वो किसी भी तरह का राजनीतिक या सैन्य प्रभुत्व पाने में नाकाम रहा। हमारे सैनिकों ने चीनी सेना को रोकने में अपनी पूरी क्षमता और प्रतिबद्धता का परिचय दिया है।
 
5. हमने चीन को यथास्थिति पर जाने के लिए बाध्य कर दिया। भारत स्पष्ट रूप से यह संदेश देने में सफल रहा कि (a) एलएसी का उल्लंघन दोनों देशों के बीच सभी रिश्तों को प्रभावित करेगा। (b) अपनी सीमा पर हो रहा निर्माण जारी रहेगा। (c) भारत ने ख़ुद को भौगोलिक, राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक रूप से ज़्यादा मज़बूत कर लिया है।
 
6. अभी से एलएसी पर पहले जैसी शांति और भारत-चीन के बीच पहले जैसे संबंधों की उम्मीद करना जल्दबाजी होगी। भारत ने एलएसी पर जैसी सैन्य तैनाती की है, जिस तरह के रणनीतिक और आर्थिक क़दम उठाए हैं, उन्हें जारी रखना ज़रूरी होगा।
 
इससे पहले भारत-चीन मुद्दे पर पूर्व सैन्य प्रमुख और बीजेपी सांसद जनरल वीके सिंह के एक बयान पर विवाद हो गया था, जिसे लेकर उन्होंने सोशल मीडिया पर सफ़ाई दी है।
 
जनरल वीके सिंह ने अपने एक बयान में कहा था कि भारत ने चीन की तुलना में ज़्यादा बार एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) का उल्लंघन किया है। वीके सिंह के इस बयान को लेकर राहुल गांधी ने उन्हें बर्ख़ास्त किए जाने की माँग की थी।
 
राहुल ने ट्वीट किया था, -बीजेपी के यह मंत्री भारत के ख़िलाफ़ जाने के लिए चीन की मदद क्यों कर रहे हैं? इन्हें अब तक बर्ख़ास्त कर दिया जाना चाहिए था। अगर इन्हें बर्ख़ास्त नहीं किया जाएगा तो यह सेना के हर जवान का अपमान होगा।
 
राहुल गांधी ने इस मामले को संसद में उठाने की कोशिश भी की थी लेकिन उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली। अब वीके सिंह ने फ़ेसबुक पर एक वीडियो जारी कर इस बारे में विस्तार से सफ़ाई दी है।
 
उन्होंने लिखा है, ‘मदुरै में एक पत्रकार ने मुझसे भारत-चीन के सीमा मुद्दे पर स्पष्टीकरण माँगा था। उस स्पष्टीकरण को तोड़ा-मरोड़ा गया और ऐसे लोगों ने मुझ पर देशद्रोह का आरोप लगाया जिन्हें इन मुद्दों की ज़रा भी समझ नहीं है। विरोध करने की गरज में कहीं वे स्वयं देशद्रोह तो नहीं कर बैठे? आशा करता हूँ यह वीडियो उनकी समझ को बेहतर बनाएगा।‘
 
जनरल वीके सिंह ने इस वीडियो में कहा, ‘जहाँ तक बात एलएसी की है, ये वो लाइन है जो चीनी राजनयिक चोऊलाई 9/9 इंच के नक़्शे पर खींची गई लाइन पर आधारित है जो पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को साल 1959 में दी गई थी। जब आप इतने बड़े नक़्शे पर कुछ तय करते हैं और उस लाइन को ज़मीन पर उतारने की कोशिश करते हैं तो कुछ पेचीदा सवाल सामने आते हैं।‘
 
‘किसी भी चीज़ को नक़्शे से ज़मीन पर उतारने के कुछ सिद्धांत होते हैं। इन्हीं सिद्धांतों के आधार पर हमने एलएसी का आकलन किया। मुझे उम्मीद है कि चीन ने भी ऐसा ही किया होगा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हम देखते आए हैं कि चीन अपने एलएसी पर अपना रुख़ अपने फ़ायदे को देखते हुए बदलता रहता है।‘
 
यही वजह है कि एलएसी पर भारतीय और चीनी सैनिकों का पेट्रोलिंग के दौरान आमना-सामना होता रहता है, कई बार दोनों पक्षों में झड़प, धक्का-मुक्की, संघर्ष और लाठी-डंडों से हमला भी होता है। जब ज़मीन पर कोई लाइन निर्धारित न हो तो ऐसा होना स्वाभाविक है।
 
हम एलएसी का जिस तरह आकलन करते हैं, उसके अनुसार अगर कोई हमारी सीमा में आता है तो हम उसे एलएसी का उल्लंघन मानते हैं। इसी तरह अगर हम अपनी पट्रोलिंग अपने अनुमान से करते हुए एलएसी पर वहाँ तक जाते हैं चीन जिसे अपना मानता है, तो शायद है चीन भी इसे एलएसी का उल्लंघन मानेगा। यही बात मैंने समझाने की कोशिश की थी।

वीके सिंह के मुताबिक़ चूँकि दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा का कोई निर्धारण नहीं है, सब कुछ अनुमान पर चलता है, इसलिए ऐसी स्थिति आती है।

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू से भारतीय सेना के कर्नल एस. डिनी (रिटायर्ड) ने कहा है कि चीनी सेना ने पैंगोंग त्सो पर यथास्थिति को बदल दिया है।

कर्नल डिनी का कहना है कि जब हमारा ध्यान 15 जून को गलवान घाटी में हुई हिंसा पर लगा हुआ था तब चीनी सेना ने समझौतों को बदलते हुए पैंगोंन्ग झील पर भारतीय क्षेत्र में फ़िंगर 4 और फ़िंगर आठ के बीच टेंट गाड़ दिए हैं और बाकी ढाँचे भी खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि इससे पहले तक चीनी सेना ने इतना बड़ा क़दम कभी नहीं उठाया था।
 
जनरल डिनी के मुताबिक़ यह समस्या फिंगर-4 की चीन की समझ और फ़िंगर-8 की भारत के समझ के कारण है। उन्होंने कहा, "पश्चिम से पूरब की तरफ़ आठ किलोमीटर का दायरा ऐसा है जहाँ ये सारा विवाद जारी है। भारतीय पोस्ट फ़िंगर-2 और फ़िंगर-3 के बीच है जो एक सड़क से जुड़े हुए हैं।" "

"चीनी पोस्ट सिरिजाप पर हैं जो फ़िंगर-8 से आठ किलोमीटर पूर्व में है। चीनी सेना ने साल 1999 में फ़िंगर-4 तक उस समय सड़क बना ली थी जब कारगिल युद्ध के कारण वहाँ भारतीय सैनिकों की संख्या कम थी। अब कोई भारतीय वाहन फ़िगर-4 के पार नहीं जा सकता। फ़िंगर-8 तक गश्त लगाने के लिए भारतीय सैनिकों को पैदल जाना पड़ता है। चूँकि चीनी सैनिक फ़िंगर-4 तक गाड़ी से आ सकते हैं, इसलिए उनके लिए ये फ़ायदे का सौदा है।"

कर्नल डिनी के अनुसार चीन इस इलाके में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी से इसलिए असहज होता है क्योंकि उन्हें लगा था कि फ़िंगर-4 तक सड़क बनाने के बाद वहाँ उनका प्रभुत्व होगा।

उन्होंने कहा, "चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों को फ़िंगर-8 तक नहीं आने देना चाहती इसलिए कई बार वो उन्हें रोकते हैं। पिछले कई वर्षों से यहाँ चीन का ही दबदबा रहा है लेकिन सात-आठ वर्षों से भारतीय पक्ष ने यहाँ अपना निर्माण शुरू किया है जिसकी वजह से भारतीय सैनिकों की मौजूदगी भी यहाँ बढ़ी है। इसलिए पहले जो दो महीने में एक बार होता था, अब वो रोज़ होने लगा है।"

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