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किसान आंदोलन: 35 साल पुराना इतिहास दोहराता हरियाणा का एक गांव

हमें फॉलो करें किसान आंदोलन: 35 साल पुराना इतिहास दोहराता हरियाणा का एक गांव

BBC Hindi

, रविवार, 27 दिसंबर 2020 (07:40 IST)
सत सिंह, बीबीसी हिंदी के लिए
 
साल 1985
इंदिरा गांधी की हत्या को एक साल गुज़र चुका था, हत्या के बाद दंगे और सिखों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा के ज़ख्म ताज़ा थे।

हरियाणा में रोहतक के गाँव खरावड़ के रेलवे स्टेशन पर एक सुबह पंजाब मेल पैसेंजर ट्रेन ख़राब हो गई। ट्रेन में बड़ी संख्या में सरदार, महिलाओं और बच्चे बैठे थे। सबको चिंता थी कि सिखों के ख़िलाफ़ ख़राब माहौल के बीच हिंदू बहुल इलाक़े में इतने सरदार क्या सुरक्षित हैं?
 
अभी किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली जाने वाले कई किसान इस गाँव में आराम करने के लिए रुकते हैं। यहां रहने वाले रिटायर्ड कैप्टन जयवीर सिंह मलिक चाय, पानी, खाना, फल और दवाइयों के साथ उन्हें 35 साल पुराना एक क़िस्सा भी सुनाते है - सरदारों से भरी ट्रेन के ख़राब हो जाने की कहानी।
 
बीबीसी से बात करते हुए वो कहते हैं, "जब पंजाब के किसान हमें धन्यवाद देते हैं तो हम उन्हें बदले में पंजाब से जुड़ा वो किस्सा सुनते हैं जो 35 साल पुराना है। हमारा संबंध पंजाबियों से 35 साल पुराना हैं।"
 
"उन दिनों फ़ौज से छुट्टी लेकर मैं गाँव आया हुआ था। हमें पता लगा कि पंजाब मेल ट्रेन जिसमें बहुत से सरदार, महिलाएँ और बच्चे बैठे हैं, काफ़ी देर से खड़ी है। ट्रेन कब रवाना होगी ये भी नहीं पता। हम गांव के लोग वहां इकट्ठा हुए और सभी यात्रियों को अपने हाथों से चाय, पानी, बिस्कुट, रोटी-सब्ज़ी बना की खिलाया।"
 
गांव के लोगों के देख घबरा गए यात्री
सतबीर सिंह, जो उस गाँव में किसानी करते हैं, उन्होंने बताया कि जब वो ट्रेन के पास गए तो यात्री इतने सारे लोगों को एकसाथ देखकर घबरा गए।
 
वो कहते हैं, "बाद में कुछ सरदारों से हमने बात की, हमनें उन्हें विश्वास दिलाया कि गाँव के लोग सेवा भाव से वहां आए हैं और वो ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि जब तक ट्रेन रवाना ना हो तब तक वो सुरक्षित महसूस करें और उन्हें खाने पीने की कमी न हो।" "उसी ट्रेन में तब के अकाली दल के सांसद बलवंत सिंह रामूवालिया भी थे जिन्होंने हमारे गांव का नाम संसद में गौरव से लिया और एक चिट्ठी भी लिखी थी।"
 
बीबीसी से बात करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व सांसद बलवंत सिंह रामूवालिया ने कहा कि वो उस दिन को कभी भूल नहीं पाते। उन्होंने कहा, "इंदिरा गाँधी की हत्या की वजह से सिखों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल था और जब खरावड़ में ट्रेन ख़राब हुई तो सब घबराए हुए थे। सुबह का वक़्त था। गाँव वाले जल्दी उठ जाते हैं, उनको स्टेशन से पता चला कि एक ट्रेन जिसमें महिलाएँ, बच्चे और बहुत सारे सरदार हैं, खड़ी है और वो लोग असहज महसूस कर रहे हैं।"
 
"गांव वाले अपने घर से बाल्टियों में दूध, चाय की केतली, बिस्कुट, रोटियां, गुड़, अचार सब ले आए और हम लोगों को भरपेट खिलाया और हमारी सुरक्षा की भी जिम्मेदारी ली।"
 
रामूवालिया कहते हैं कि वहां से जाते वक़्त उन्हें लग रहा था जैसे वो अपने परिवार को पीछे छोड़कर जा रहे हैं। "हमारे लिए वो रब का रूप बनकर आए। ऐसे वक़्त में धर्मनिरपेक्षता के साथ मानवता के लिए खड़ा होना और अपने घरों में ले जाकर सेवा करना, हम सब के लिए वो यादगार पल है।"
 
उन्होंने कहा कि वापस लौटने के बाद, उन्होंने उस समय हरियाणा के सबसे बड़े नेता चौधरी देवी लाल को गाँव की मानवता और भलाई के बारे में बताते हुए चिट्ठी लिखी थी और संसद में गाँव के लोगों की तारीफ़ में बहुत कुछ कहा था।
 
"वही गाँव आज 35 साल बाद भी किसान आंदोलन में उसी सेवा भावना के साथ किसानों की सेवा में जुटा है। मैं उनको प्रणाम करता हूँ।"
 
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किसानों की सेवा में जुटा है गांव
दिल्ली से क़रीब साठ किलोमीटर दूर रोहतक-दिल्ली हाइवे पर बसा ये गांव जाट बहुल है। पंजाब से सिरसा, फतेहाबाद या जींद-कैथल के रास्ते दिल्ली जाने वाले किसान बड़ी संख्या में यहां रुकते हैं। गाँव के ऋषि चमन मंदिर में उनके रहने-खाने की व्यस्वथा भी की गई है।
 
खरावड़ गाँव के लंगर में खाना खा रहे मानसा के किसान लाभ सिंह बताते हैं कि वो सुबह 11 बजे अपने गांव से निकले थे, शाम हो गई तो खरावड़ में लंगर में खाने लगे।
 
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "यहाँ के लोग रोड पर खड़े होकर किसानों को रोक-रोक कर खाना खिला रहे हैं और ज़रूरत का सामन दे रहे हैं। पूरी-सब्ज़ी, चाय, पानी, गुड़, अचार, हलवा, दवाईयाँ, गर्म पानी, और हाथ सेकने के लिए लकड़ियां जला रखी है। यहाँ कोई धर्म, जाति, लिंग का भेदभाव नहीं है, बस मानवता के नाते सेवा में जुटे हैं खरावड़ के लोग।"

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