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'भूल गए कि पहला ओलंपिक गोल्ड मैं लाया'

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, शुक्रवार, 5 अगस्त 2016 (13:49 IST)
सुशांत मोहन, मुंबई
ओलंपिक खेलों के इतिहास में पैरालंपिक खिलाड़ी मुरलीकांत पेटकर का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। वो 1972 में भारत के लिए सिर्फ पैरालंपिक में पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी नहीं थे बल्कि उनसे पहले किसी भी खिलाड़ी ने सामान्य ओलंपिक खेलों में भी भारत के लिए पदक नहीं जीता था।
 
मुरलीकांत पुणे के बाहरी इलाके में एक तिमंजिले मकान की पहली मंज़िल पर अपने परिवार के साथ रहते हैं। वो बताते हैं, 'जर्मनी का वो स्विमिंग स्टेडियम ठसाठस भरा था और मैं चार में से तीन हीट जीत चुका था। लोग मेरा हौसला बढ़ा रहे थे। मुझे पता था कि मैं इतिहास बना सकता हूं। मैं भारत के लिए पहला ओलंपिक स्वर्ण ला सकता हूं।'
 
84 वर्षीय मुरलीकांत भारत-पाकिस्तान के बीच हुई 1965 की जंग में बुरी तरह घायल हो गए थे। वो बताते हैं, 'हम सियालकोट में थे और मैं लाईट इन्फैंट्री का हिस्सा था। हम बंकरों में बैठे थे कि अचानक बाहर से सायरन की आवाज आई। हममें से कईयों को लगा कि यह रजाना की चाय की आवाज है और मेरे साथी बाहर चले गए। लेकिन यह पाकिस्तानी वायु सेना का हमला था।'
 
वो बताते हैं, 'हर तरफ से गोलियां चल रही थीं। हम पर बिना चेतावनी हमला हो गया था। मैं और बचे-खुचे तीन हवलदार बाहर भागे और 45 मिनट तक लड़ने के बाद मुझे पोजिशन बदलने की जरूरत पड़ी।'
 
वो एक सांस में बोलते हैं, 'मैं जैसे ही चट्टान की ओट से निकला एक लड़ाकू विमान गोलियां बरसाता मेरे सर के ऊपर से निकला। पैरों से होते हुए मेरे सिर तक 7 गोलियां लगी और मैं पहाड़ी से नीचे की ओर मौजूद एक सड़क पर गिरा जहां भारतीय सेना के कई वाहन चल रहे थे। मैं ठीक एक आर्मर ट्रक के सामने गिरा और वो ट्रक मुझे कुचलते हुए कुछ दूरी पर रुका। मैं बेहोश हो गया।'
 
17 महीनों तक कोमा में रहने के बाद, दिल्ली के रक्षा अस्पताल में मुरलीकांत को होश आया और उन्हें मालूम चला कि रीढ़ में गोली लग जाने के कारण उनकी कमर से नीचे के हिस्से को लकवा मार गया है।
 
उन्हें बताया गया कि समय लगेगा और शायद वो चल सकेंगे. लेकिन उनकी रीढ़ की हड्डी में एक गोली अभी भी बाकी है जिसे कभी हटाया नहीं जा सकता।
 
मुरलीकांत को फिजियोथैरिपी के लिए मुंबई के रक्षा अस्पताल आईएनएस अश्विनी भेजा गया जहां वो तैराकी की ट्रेनिंग लेने लगे। वो कहते हैं, 'मैं डिफेंस के लिए बॉक्सिंग के कई अंतरर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीत चुका था और भारत का प्रतिनिधित्व बॉक्सिंग में ही करना चाहता था। लेकिन शायद होनी को कुछ और मंजूर था।
 
मुरलीकांत ने डिफ़ेंस की कई प्रतियोगिताओं में तैराकी में अच्छा प्रदर्शन किया और फिर मशहूर क्रिकेटर विजय मर्चेंट की ओर से मिली आर्थिक सहायता से वो जर्मनी में होने वाले पैरालंपिक खेलों के लिए भारत के 7 सदस्यीय दल का हिस्सा बन गए।
 
वो बताते हैं, 'हमें भेजते हुए रक्षा अधिकारियों और एक दो मंत्रियों को छोड़कर कोई भी खुश नहीं था। वो ताने दे रहे थे, कि चलो इनको भी मौका दे ही दो।'
 
लेकिन जर्मनी में हुए उन पैरालंपिक खेलों में मुरलीकांत ने इतिहास रच दिया। उन्होंने न सिर्फ भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता बल्कि उन्होंने सबसे कम समय में 50 मीटर की तैराकी प्रतियोगिता जीतने का विश्व रिकार्ड (पैरालंपिक) भी बनाया।
 
वो कहते हैं, 'टैंक के अंदर मुझे सिर्फ इतना पता था कि मैं जीत गया हूँ, लेकिन बाहर आने के बाद मुझे मालूम चला कि मैंने वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया है।'
 
भारत के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी और मुरलीकांत को भारत सरकार की ओर से कई पुरस्कार भी मिले. भारतीय कंपनी टाटा ने उन्हें नौकरी दी, महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र भूषण का सम्मान दिया और डिफ़ेंस की ओर से उन्हें इलाज की रियायतें और सफ़र की रियायतें भी मिलती हैं। लेकिन उनके मन में एक टीस है, 'भारत सरकार ने कभी भी मुझे राजीव गांधी खेल पुरस्कार या अर्जुन अवार्ड या पद्मश्री के लायक नहीं समझा।'
 
वो कई सारे काग़ज़ हिलाते हुए कहते हैं, 'मैंने कई सरकारी दफ़्तरों को चिट्ठियां लिखीं, लेकिन मेरी अपील पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. मैंने भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता था, लेकिन लोग पैरालंपिक को भूल जाते हैं। वो मुझे भी भूल गए।'
 
आज मुरलीकांत पेटकर पर अभिनेता से निर्माता बने सुशांत सिंह राजपूत एक फिल्म बना रहे हैं। उस पर मुरलीकांत सिर्फ इतना कहते हैं, 'फिल्म से ही सही, लोगों को याद तो आएगा कि एक पेटकर था जिसने अपने वतन का नाम ऊंचा किया था। वो कहानी अमर हो जाएगी।'

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