- सरबजीत सिंह धालीवाल
Ground report regarding Indians going to Canada : मेरा दिल चाहता है कि भारत जाकर मैं अपने पिता से गले लगकर रोऊं। मुझे उनकी बहुत याद आती है। ये कहते ही अर्पण की आँखें नम हो जाती हैं। वो बात करते-करते चुप हो जाती हैं। कुछ पलों की ख़ामोशी तोड़ते हुए वह फिर दोहराती है, यहाँ कोई किसी का नहीं है। सब भाग रहे हैं। मैंने कनाडा के बारे में जो सोचा था, यहाँ आकर उसका उल्टा हो गया।
अर्पण अपने सपनों को साकार करने के उद्देश्य से दो साल पहले एक अंतरराष्ट्रीय स्टूडेंट के रूप में कनाडा आई थीं। अर्पण पंजाब के मुक्तसर ज़िले से हैं। उनके माता-पिता पेशे से अध्यापक हैं। दो साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अर्पण फ़िलहाल वर्क परमिट पर हैं और सुरक्षा गार्ड के रूप में काम कर रही हैं।
अर्पण कनाडा आए उन हज़ारों अंतरराष्ट्रीय छात्रों में से एक हैं, जो पढ़ाई के बहाने स्टडी वीज़ा पर कनाडा में रहने आते हैं, लेकिन यहाँ के हालात उनके सपनों के विपरीत साबित हो रहे हैं। अर्पण ने अपना दुख साझा करते हुए कहा, मुझे अपने माता-पिता की बहुत याद आती है। मां खाना बना कर देती थीं। मैं गेम खेलती थीं। कोई जिम्मेदारी नहीं थी।
यहाँ कोई भी नहीं है, जो यह कहे कि बेटा, खाना खाया या नहीं? यहाँ सब कुछ ख़ुद ही करना पड़ता है, अर्पण के अनुसार, उनका कनाडा आने का कोई प्लान नहीं था। दरअसल, वह कनाडा के चमचमाते वीडियो देखकर काफ़ी प्रभावित हुईं। उन्होंने देखा कि पंजाब में हर कोई कनाडा के बारे में बात कर रहा है। यह देश बहुत साफ है। छात्रों के पास बड़ी कारें और घर हैं और यह देश लड़कियों के लिए भी सुरक्षित है।
अर्पण के अनुसार, युवा होने के नाते मैं इन सबसे बहुत प्रभावित हुई और सोचा कि मैं भी कनाडा के लिए कोशिश करूं। मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं ग्रैजुएशन कर लूं लेकिन कुछ लोगों ने मुझसे कहा कि जितनी जल्दी कनाडा जाओगे, उतनी जल्दी सेटल हो जाओगे।
24 साल की अर्पण करीब तीन साल पहले कनाडा पहुंची थीं। इसलिए मैं बारहवीं पास करने के बाद बहुत कम उम्र में यहाँ आ गई। कनाडा में रहने वाले मेरे कुछ दोस्तों ने मुझे यहाँ की समस्याओं के बारे में बताया, लेकिन कनाडा का भूत मेरे सिर पर सवार था। इसलिए मैंने उनकी बातों की परवाह नहीं की।
कनाडा का सपना और ज़मीनी हक़ीक़त
अर्पण कहती हैं कि जब वह 2021 में पहली बार कनाडा पहुंचीं तो उन्हें अहसास हुआ कि वह दूसरी दुनिया में आ गई हैं, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। टोरंटो उन्हें अपने सपनों का शहर लगने लगा। अर्पण ने कहा, एजेंट का एक परिचित मुझे हवाई अड्डे से लेने आया और उसने मुझे एक घर के बेसमेंट में एक बिस्तर किराए पर दिलवाया, जहां मैं सात महीने तक रही।
यह बेसमेंट एक हॉल था, जिसमें कोई कमरा नहीं था, ज़मीन पर केवल गद्दे थे। जहाँ कुछ अन्य लड़कियां भी रहती थीं। बेसमेंट में कोई खिड़की नहीं थीं और पहले सात महीनों के लिए कनाडा का मेरा अनुभव बहुत बुरा था। अर्पण का कहना है कि भारत के बच्चों को कनाडा को लेकर जो सपने दिखाए जाते हैं, सच्चाई उससे बिल्कुल अलग है।
एजेंट यह नहीं बताते कि उन्हें बेसमेंट में रहना होगा। पढ़ाई के साथ-साथ कैसे काम करना होगा। छात्रों का कितना शोषण होगा। इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है। बस, कनाडा के बारे में सब कुछ अच्छा ही कहा जाता है।
अर्पण के अनुसार, छात्र जीवन बहुत संघर्षपूर्ण होता है। मानसिक तनाव, परिवार से दूर रहने का अनुभव, काम न मिलने का दबाव, ये सब छात्र जीवन के संघर्ष का हिस्सा हैं। अर्पण ने बताया कि वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्या काम की है। सर्दी के मौसम में लगने वाले जॉब फेयर में नौकरी के लिए छात्रों की लंबी-लंबी क़तारें लग जाती हैं।
इसमें से कुछ ही छात्रों को नौकरी मिल पाती है, कनाडा का ये सच भारत में कोई नहीं बताता। जीवन-यापन का खर्च, कॉलेज की फीस और नौकरी का कोई भरोसा न होने के कारण मन में हमेशा चिंता बनी रहती है। अर्पण ने बताया कि वह कनाडा की समस्याओं के बारे में अभिभावकों को बहुत कम जानकारी देती हैं, जैसे मैंने पढ़ाई पूरी कर ली है, नौकरी मिल गई है और सैलरी बैंक में आ गई है।
जब पूछा गया कि बाकी मुश्किलें क्यों नहीं बतातीं तो जवाब मिला कि परेशान होंगे और ज़्यादातर बच्चे ऐसा ही करते हैं। यदि मैंने खाना नहीं भी खाया हो, तो भी अपने माता-पिता से झूठ बोलती हूँ कि मैंने खाना खा लिया है। मैं यह नहीं बता सकती कि मैं आज खाना नहीं बना पाई हूँ क्योंकि मैं काम से देर से आई थी।
अर्पण का कहना है कि मेरे अंदर से बचपन मर चुका है, छोटी सी उम्र में मेरे ऊपर कनाडा में बड़ी ज़िम्मेदारियां पड़ गई हैं। अर्पण का लक्ष्य कनाडा की नागरिकता हासिल करना है। इसके बाद ही वह अपने माता-पिता के पास भारत जाएंगी। अर्पण के मुताबिक़, कनाडा एक अच्छा देश है। यहाँ किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होता और आगे बढ़ने के बराबर अवसर मिलते हैं। लेकिन छात्र जीवन बहुत कठिन होता है और भारत में रहकर इसकी कल्पना नहीं की जा सकती ।
आप्रवासन, शरणार्थी और नागरिकता विभाग कनाडा (आईआरसीसी) के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, इस साल अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 29 फीसदी की वृद्धि हुई। सबसे अधिक संख्या में स्टडी परमिट भारतीय छात्रों को जारी किए गए। इसके बाद दूसरे नंबर पर चीन और तीसरे नंबर पर फिलीपींस के छात्र हैं।
भारतीय छात्रों में कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या सबसे ज़्यादा पंजाब और गुजरात से है। इसके अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हरियाणा के छात्र इस समय कनाडा में पढ़ रहे हैं। भारतीयों में सबसे अधिक पंजाब के छात्र हैं। बेहतर भविष्य की उम्मीद में लाखों भारतीय छात्र पिछले कुछ सालों में कनाडा आए हैं। ग्रेटर टोरंटो एरिया (जीटीए) को अंतरराष्ट्रीय छात्रों, विशेषकर भारतीयों का केंद्र माना जाता है। खासकर ब्रैम्पटन को मिनी पंजाब के नाम से जाना जाता है।
अकरम की कहानी
पंजाब के बरनाला जिले के धूलकोट गांव के अकरम की कहानी भी अर्पण से मिलती-जुलती है। 28 साल के अकरम 2023 में स्टडी परमिट पर कनाडा पहुंचे और वर्तमान में ब्रैम्पटन के एक निजी कॉलेज में प्रोजेक्ट मैनेजमेंट की पढ़ाई कर रहे हैं। अकरम ने बताया कि उनकी कक्षा में 32 छात्र हैं। इनमें से 25 भारतीय हैं और बाकी अन्य देशों के हैं।
उनकी कक्षा में कैनेडियन मूल का कोई छात्र नहीं है। कनाडा में मिले अनुभव के बारे में अकरम कहते हैं, कनाडा एक प्यारी जेल है। जहाँ आपको सब कुछ मिलता है लेकिन आप पूरी ज़िंदगी इससे बाहर नहीं निकल सकते। अकरम के मुताबिक, फ़िलहाल तो हम यहाँ मशीन की तरह हैं। सुबह से शाम तक काम करते हैं, ये मकड़ी का ऐसा जाल है, जिस से हम बाहर नहीं निकल सकते।
अकरम का कॉलेज हफ्ते में तीन दिन शाम को दो घंटे के लिए होता है। अकरम एक मज़दूर परिवार से हैं और 22 लाख रुपये का क़र्ज़ लेकर कनाडा आए थे। इस क़र्ज़ को चुकाने के साथ-साथ अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्हें दो शिफ्टों में कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। उनके मुताबिक, कनाडा आकर उन्हें पता चला कि जो चीज़ भारत से दिखाई गई है, वह पूरा सच नहीं थी।
अकरम एक प्रतिभाशाली और साहित्यिक रुचि वाले हैं। उन्होंने पंजाब में ही साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। कनाडा आने के बाद उनकी शायरी के किरदार बदल गए हैं। अकरम की कविताओं में पंजाब की धरती की चाह और कनाडा की कठिन परिस्थितियाँ झलकती हैं।
खर्चे पूरे करने के लिए हर वक्त काम, भविष्य की चिंता, उनके चेहरे और बातों में आम ही झलकती है। क़र्ज़ की किस्तों, कॉलेज की फीस और रहने के खर्चों को पूरा करने के लिए अकरम दो जगह पर पार्ट-टाइम काम करते हैं। दिन में वह एक कंप्यूटर सेंटर में काम करते हैं और रात में गार्ड की नौकरी करते हैं। उन्हें सिर्फ़ पांच घंटे की नींद मिलती है। अकरम कहते हैं, चिंता यहाँ कभी भी कम नहीं होती, परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत से मुझे मानसिक तनाव से कुछ राहत मिलती है।
अकरम भी अर्पण की तरह अपने माता-पिता से कनाडा की समस्याओं के बारे में कुछ भी साझा नहीं करते हैं। अकरम फिलहाल अपने पांच साथियों के साथ किराए के बेसमेंट में रहते हैं। हॉलुनमा बेसमेंट में दो बिस्तर हैं और बाकी जमीन पर गद्दे हैं। एक बिस्तर खाली है, जिसके बारे में अकरम बताते हैं कि वह दूसरे अंतरराष्ट्रीय छात्र का इंतज़ार कर रहा है जो मई में भारत से आ रहे हैं। उनके बेसमेंट में भी कोई रोशनदान नहीं है, सब कुछ खुला हॉल है।
मानसिक तनाव से जूझ रहे छात्र
निर्लेप सिंह गिल ब्रैम्पटन में पंजाबी सामुदायिक स्वास्थ्य सेवा के साथ काम करते हैं। गिल, भारतीय विशेष रूप से पंजाबी छात्रों की कठिनाइयों कि साथ डील करते हैं। निर्लेप गिल बताते हैं, कई बच्चे मानसिक बीमारियों से पीड़ित हैं क्योंकि कनाडा में छात्रों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वे तनावग्रस्त हैं। खासतौर पर वह बच्चे जो बहुत कम उम्र में (बारहवीं कक्षा पास करने के बाद) कनाडा आते हैं।
निर्लेप सिंह गिल कहते हैं कि ये छात्र युवा होने के कारण मानसिक रूप से विकसित नहीं होते हैं। वह नहीं जानते कि तनाव से कैसे निपटा जाए। अगर बच्चा माता-पिता को कुछ बताता भी है तो वे समझ नहीं पाते कि वह क्या कह रहा है। गिल आगे कहते हैं,,यह समस्या सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के साथ नहीं है, कुछ यहाँ आगे बढ़े हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों में तनाव का कारण पूछे जाने पर उनका कहना है कि इसके कई कारण हैं।
अप्रत्याशित ज़िम्मेदारी
सबसे पहला कारण भारत में बच्चे आरामदायक स्थिति में होते हैं, जिसका अर्थ है कि उनके माता-पिता हर चीज़ का ख्याल रखते हैं और उन पर कोई जिम्मेदारी नहीं होती है, लेकिन जब वे कनाडा आते हैं तो उन पर तुरंत ज़िम्मेदारियां आ जाती हैं। वे इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं
कनाडा में ड्रग्स बड़े पैमाने पर हैं। भारत में कुछ ही प्रकार की ड्रग्स हैं लेकिन कनाडा में 55 से 70 प्रकार की ड्रग्स उपलब्ध हैं। ड्रग्स के आदी होकर विद्यार्थी मानसिक एवं शारीरिक रोगों का शिकार हो जाते है। इसके अलावा ड्रग्स के ओवरडोज़ के कारण छात्रों की मौत की संख्या भी बढ़ रही है।
निर्लेप सिंह गिल ने कहा कि भारत की बड़ी आबादी कनाडा में रहती है, केवल अंतरराष्ट्रीय छात्रों की मौत की संख्या क्यों बढ़ रही है, यह एक सवाल है। गिल ने बताया कि अधिकतर मौतों को हार्ट अटैक के साथ जोड़ दिया जाता है। इसके साथ ही, विभिन्न कारणों से होने वाले मानसिक तनाव के कारण भी छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है।
पीआर के लिए दबाव
तनाव और चिंता कनाडा में हर क़दम पर मिलती है। इसलिए यदि किसी छात्र को यह नहीं पता कि इससे कैसे निपटना है तो वह निराश हो जाता है। इसके अलावा कनाडा की नागरिकता और पीआर हासिल करने को लेकर भी बच्चे मानसिक दबाव में रहते हैं।
कनाडा में छात्रों की मौतें
अंतरराष्ट्रीय छात्र समुदाय में एक और बात है, जो सबको हैरान कर देती है। वह है, यहाँ छात्रों की मौतें। यह जानने के लिए बीबीसी ने ब्रैम्पटन में एक निजी फ्यूनरल होम /अंत्येष्टि गृह (श्मशान घाट) के प्रबंधक हरमिंदर हांसी से बात की। वो 15 साल से इसे चला रहे हैं।
हरमिंदर हांसी ने कहा कि पिछले कुछ समय में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की मृत्यु दर में काफ़ी वृद्धि हुई है। मौत के कारणों के सवाल पर वो कहते हैं कि ज्यादातर मौतों में एक या दो मामले ही ऐसे होंगे जिनकी मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है, लेकिन ज्यादातर मौतों का कारण आत्महत्या रहा है। इसके अलावा ड्रग्स के ओवरडोज से भी मौतें हो रही हैं। नशे में गाड़ी चलाने से होने वाली दुर्घटनाएं भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए मौत का कारण बन रही हैं।
हंसी ने बताया कि वे हर महीने चार-पांच शव भारत भेजते हैं, इसके अलावा कुछ लोग कनाडा में भी दाह संस्कार कर देते हैं, जिसका आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। हंसी के मुताबिक, यह सिर्फ एक अंत्येष्टि गृह का आंकड़ा है। जीटीए में इस समय कई अंत्येष्टि गृह हैं। उन्होंने कहा कि अगर पूरे कनाडा के आंकड़ों को जोड़ दिया जाए तो संख्या बड़ी हो सकती है।
दिसंबर 2023 में विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में कहा था कि 2018 से दिसंबर 2023 तक 403 भारतीय छात्रों की विदेश में मौत हुई हैं, इनमें से सबसे ज्यादा 94 मौतें कनाडा में हुईं। जवाब में आगे यह भी कहा गया कि इनमें से कुछ मौतें प्राकृतिक थीं और कुछ दुर्घटनाओं के कारण हुईं। दिसंबर 2023 में भारतीय विदेश मंत्रालय के तत्कालीन प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत से कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है।
कनाडा के स्टडी परमिट की वास्तविक सच्चाई क्या है?
हर साल लाखों भारतीय छात्र स्टडी परमिट पर कनाडा जा रहे हैं। कनाडा सरकार के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2022 की तुलना में 2023 में सक्रिय छात्र वीजा की संख्या क़रीब 29 फीसदी बढ़कर 10 लाख 40 हजार हो गई है। इनमें से लगभग चार लाख 87 हजार भारतीय छात्र थे। यह 2022 की तुलना में 33।8 फ़ीसदी ज़्यादा है।
आम कनाडाई छात्र की तुलना में अंतरराष्ट्रीय छात्रों को तीन गुना अधिक फीस चुकानी पड़ती है। कनाडा सरकार की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने यहां की अर्थव्यवस्था में 22 अरब कनाडाई डॉलर का योगदान दिया है। इसके अलावा करीब 2.2 लाख नई नौकरियां पैदा कीं।
इस वजह से, अंतरराष्ट्रीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था की ज़रूरत लगते हैं। भारत समेत दुनिया के कई देशों से छात्र हर साल पढ़ाई के लिए कनाडा आ रहे हैं। इनमें से अधिकतर छात्र भारत से हैं। इस वजह से, कनाडा में विश्वविद्यालय और कॉलेज अंतरराष्ट्रीय छात्रों को प्रवेश देने को प्राथमिकता दे रहे हैं। कई कॉलेज तो सिर्फ नाम के कॉलेज हैं। उनके पास न तो कोई कैंपस है और न ही कोई ग्राउंड। महज़ दो कमरों में कॉलेज चल रहे हैं। कनाडा सरकार ने अब ऐसे कॉलेजों के ख़िलाफ़ अब जा कर कुछ सख़्त क़दम उठाए हैं।
ओंटारियो के कॉलेजों और विश्वविद्यालय विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012 से 2021 तक, प्रांत के निजी कॉलेजों में घरेलू छात्रों की संख्या में 15 फ़ीसदी की कमी आई है। जबकि इस दौरान अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 342 फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इसमें से 62 फीसद भारत के छात्र थे।
कनाडा में शिक्षा का स्तर
आख़िर कनाडा में शिक्षा का स्तर क्या है? इस बारे में टोरंटो में लंबे समय से पत्रकारिता कर रहे जसवीर शमील का कहना है कि पिछले दस सालों में कनाडा में अंतरराष्ट्रीय छात्रों, खासकर भारतीय छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। शमील ने बताया, स्टडी परमिट कनाडा आने का एक ज़रिया है। यहां ज्यादातर छात्र अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ट्रक ड्राइवर, टैक्सी ड्राइवर, डिलीवरी वर्कर, होटल वर्कर के रूप में काम करना शुरू कर देते हैं।
शमील का कहना है कि इनमें से अधिकतर छात्र इन्हीं गतिविधियों में फंस कर रह जाते हैं। विद्यार्थियों ने जिस विषय की पढ़ाई की होती है, उसमें नौकरी हासिल करने वालों की संख्या बहुत कम है। उन्होंने कहा कि कनाडा में मौजूदा हालात बेहद खराब हैं। छात्रों की बात तो दूर, यहाँ के नागरिकों को भी नौकरी नहीं मिल रही है।
शमील के मुताबिक, कनाडा के प्राइवेट कॉलेज भारतीय छात्रों से भरे हुए हैं। कई कॉलेजों में 95 फीसदी भारतीय छात्र हैं। उन्होंने बताया कि जनवरी 2024 में कनाडा सरकार ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या पर कुछ प्रतिबंध लगाए। अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या को कम कर दिया गया है।
कनाडाई सरकार ने दो साल के लिए विदेशी छात्रों की संख्या में 35 फ़ीसद की कमी की है। इसके अलावा कनाडा ने अब केवल उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों के पति या पत्नी को ही वीज़ा देने की घोषणा की है, जो यहां मास्टर्स या डॉक्टरेट स्तर की पढ़ाई करने आएंगे।
निचले स्तर के पाठ्यक्रमों में पढ़ने वाले छात्र अपने जीवनसाथी को जीवनसाथी वीज़ा पर कनाडा में आमंत्रित नहीं कर पाएंगे। कनाडा ने यह क़दम वहां आवास की समस्या के कारण उत्पन्न स्थितियों के कारण उठाया है, क्योंकि देश में मकानों की समस्या पैदा हो गई थी। कनाडा सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पूरे कनाडा में इस समय 3 लाख 45 हजार घरों की कमी है। नतीजतन, छात्र बेसमेंट में रहने को मजबूर हैं।
धार्मिक स्थानों और फूड बैंकों का समर्थन
कनाडा में नौकरियों की कमी के कारण कई अंतरराष्ट्रीय छात्रों को रोज़गार नहीं मिल रहा है। रोज़गार की कमी और बढ़ती महंगाई के कारण कई छात्रों को दो वक़्त की रोटी कमाने में भी दिक्क़त हो रही है। इसके चलते कई विद्यार्थियों को गुरु घरों और फूड बैंकों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। विशाल खन्ना ब्रैम्पटन में फूड बैंक चला रहें हैं। खन्ना कहते हैं, कॉलेज की फीस, रहने कि लिए घर का किराया और रोजगार की कमी के कारण कई छात्र बेहद मुश्किल में हैं।
खन्ना के मुताबिक, वे हर महीने 600 से 700 छात्रों को सूखा राशन उपलब्ध कराकर मदद कर रहे हैं। गुरुद्वारों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की भीड़ भी आम ही देखी जा सकती है। कुछ छात्रों ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि वे और उनके कई साथी कभी-कभी सिर्फ लंगर खाने के लिए गुरुद्वारे जाते हैं। गुरुद्वारों के प्रबंधक भी ऐसे छात्रों की मदद के लिए आगे आते हैं।
कनाडा से क्यों नहीं होती वापसी
जब अकरम से पूछा गया कि यदि यहां जीवन इतना कठिन है तो वे भारत क्यों नहीं लौट जाते, तो उनका जवाब था, गांव वाले क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या कहेंगे। उन्होंने कहा, हम चाहकर भी देश वापस नहीं लौट सकते। रिश्तेदारों और समाज के दबाव के कारण हम ऐसा नहीं कर सकते। यह छात्र सोचते हैं कि अगर वे वापस चले गए तो उन सपनों का क्या होगा, जो उन्होंने भारत में कनाडा के लिए देखे थे।
अकरम कहते हैं, देश लौटने पर लोग हमें नकारात्मक नज़रिए से देखेंग। कनाडा में बसने का रास्ता फ़िलहाल बहुत कठिन और लंबा लग रहा है, लेकिन फिर भी वे अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे। अकरम की कविता में इस मंजिल 'पंजाब लौटने' का बार-बार ज़िक्र आता है।
अर्पण भी कनाडा की जिंदगी से तंग आ चुकी हैं। वो चाहती हैं कि वह पंजाब लौट कर अपने माता-पिता से मिलें, लेकिन इसमें कनाडा की नागरिकता न मिलना अभी भी एक बड़ी बाधा है। अर्पण कनाडा की नागरिकता हासिल करने के बाद ही भारत लौटना चाहती हैं।
अर्पण जैसे हज़ारों बच्चे अपने घर, परिवार, दोस्तों से दूर समय से पहले बड़े हो गए हैं, लेकिन क्या विदेश उन सुनहरे सपनों को पूरा करेगा, जो खुली आंखों से देखे गए थे। या फिर उनका हाल भी पंजाबी कवि सुरजीत पातर की इन पंक्तियों जैसा होगा...
जो विदेशन च रुल्दे ने रोज़ी लई
देश अपने परतनगे जद वी कदी
कुज तां सेकनगे माँ दे सीवे दी अगन
बाकी कबरां दे रुख हेठ जा बहनगे।।