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शेख हसीना के भारत दौरे से बांग्लादेश को क्या उम्मीदें हैं?

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, मंगलवार, 6 सितम्बर 2022 (08:29 IST)
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना क़रीब तीन साल बाद दिल्ली के दौरे पर हैं। चुनाव के एक साल पहले अवामी लीग की राजनीति के लिए शेख़ हसीना के इस दौरे के महत्व पर तमाम चर्चाएं चल रही हैं।
 
बीते दो चुनावों यानी 2014 और 2018 के चुनावों को लेकर जब कई सवाल उठे थे, तब भारत अवामी लीग के साथ खड़ा था। लगातार 13 वर्षों तक सत्ता में रहने के दौरान अवामी लीग ने भारत को बांग्लादेश के लिए संवेदनशील चटगांव और मोंगला बंदरगाह के इस्तेमाल या ट्रांज़िट-ट्रांसशिपमेंट की सुविधा दी है।
 
लेकिन जो बड़े मुद्दे बांग्लादेश के हित से जुड़े हैं उनका समाधान नहीं हो रहा है। तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर प्रस्तावित समझौता लंबे समय से अधर में है।
 
दूसरी ओर, भारत के भरोसे के बावजूद सीमावर्ती इलाक़ों में लोगों की हत्याओं का सिलसिला नहीं थम रहा है। यही वजह है कि इस बार बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के भारत दौरे पर उम्मीदों और इससे संभावित हासिल के सवाल पर राजनीतिक हलकों में गहन विश्लेषण हो रहा है।
 
कई विश्लेषकों का कहना है कि बांग्लादेश के हितों से जुड़े मुद्दों का समाधान नहीं होने के कारण पहले काफी आलोचना हुई है। इसी वजह से शेख़ हसीना का मौजूदा सफर उनकी सरकार और अवामी लीग के लिए राजनीतिक लिहाज़ से बेहद अहम है। हालांकि ढाका स्थित विदेश मंत्रालय शीर्ष नेता के इस दौरे को राजनीतिक नज़रिए से देखने के लिए तैयार नहीं है।
 
लेकिन सरकार और अवामी लीग के एकाधिक वरिष्ठ नेताओं के साथ बातचीत से यह महसूस हुआ है कि उनकी निगाहें इस दौरे की राजनीतिक अहमियत पर भी हैं।
 
राष्ट्रीय दौरे में भी होता है राजनीतिक हिसाब-किताब
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना इससे पहले वर्ष 2019 के अक्तूबर में आख़िरी बार भारत दौरे पर गई थी। उसके बाद मार्च, 2021 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की स्वाधीनता की स्वर्ण जयंती और मुजीब शताब्दी वर्ष के मौक़े पर ढाका के दौरे पर गए थे।
 
ढाका स्थित विदेश मंत्रालय ने कहा है कि मोदी के न्योते पर ही शेख़ हसीना भारत के रिटर्न विज़िट या जवाबी दौरे पर हैं।
 
विदेश राज्य मंत्री शहरयार आलम इस दौरे को सत्तारूढ़ अवामी लीग के दलीय या सरकार के लिए राजनीतिक नज़रिए से देखने को तैयार नहीं हैं। लेकिन वो शेख़ हसीना के इस भारतीय दौरे को काफी अहमियत दे रहे हैं।
 
विदेश राज्य मंत्री आलम ने बीबीसी से इसके बारे में बात करते हुए कहा, "यह राष्ट्रीय दौरा है और बांग्लादेश-भारत, दोनों देशों के प्रधानमंत्री जब एकदूसरे के देश का दौरा करते हैं तो यह दोनों देशों या द्विपक्षीय समस्याओं के समाधान के लिहाज़ से काफी अहम होता है।" उनका कहना था, "हम इस दौरे को देश के लिए काफी महत्वपूर्ण मानते हैं।"
 
लेकिन कई वरिष्ठ मंत्रियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "अगले साल चुनाव होने हैं। इसलिए उससे पहले शेख़ हसीना के मौजूदा दौरे के दौरान अगर अनसुलझे मुद्दों का समाधान नहीं हुआ तो विपक्ष इसे भुनाएगा और सरकार की आलोचना बढ़ेगी।"
 
उनकी राय में सरकार और अवामी लीग की ओर से राजनीतिक हकीक़त को ध्यान में रखते हुए शेख़ हसीना के दौरे में इस बार अनसुलझे मुद्दों के समाधान का प्रयास किया जाएगा।
 
शेख़ हसीना का भारत दौरा
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना चार दिन के भारत दौरे पर सोमवार को दिल्ली पहुंची हैं। मंगलवार को वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करेंगी। दोनों के बीच आपसी रिश्तों को मज़बूत करने और आपसी हितों से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा होनी है।
 
तीस्ता जल बंटवारे और रक्षा मामलों को लेकर हो सकती है बातचीत। साथ ही सिलहट इलाक़े की कुशियारा नदी के पानी के बंटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। बांग्लादेश में अगले साल चुनाव हैं। ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि वो कई अहम मुद्दों को लेकर पीएम मोदी से चर्चा कर सकती हैं।
 
शेख़ हसीना के साथ आए प्रतिनिधिमंडल में विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमेन, वाणिज्य मंत्री टीपू मुंशी, रेलवे मंत्री नुरुल इस्लाम सुजन और आर्थिक मामलों के उनके सलाहकार शामिल हैं।
 
इससे पहले शेख़ हसीना अक्तूबर 2019 में भारत आई थीं। मार्च 2021 में नरेंद्र मोदी ढाका के दौरे पर गए थे। 
 
इस दौरे के राजनीतिक पक्ष को लेकर कूटनीतिक विश्लेषकों की राय भी बंटी हुई है। इनमें से कई लोग शेख़ हसीना के इस दौरे को राजनीतिक नज़रिए से देखने के लिए राज़ी नहीं हैं।
 
ढाका विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग की असोसिएट प्रोफ़ेसर लाईलुफ़र यास्मीन की राय में कई लोग इस दौरे के दौरान बांग्लादेश के चुनाव या राजनीतिक मुद्दों पर आलोचना की जो बात कह रहे हैं, ऐसी टिप्पणियां प्रधानमंत्री के भारत दौरे को संकीर्ण नज़रिए से देखने का नतीजा है।
 
उनका कहना था, "दोनों देशों की द्विपक्षीय समस्याओं के समाधान के लिहाज़ से यह दौरा बेहद अहम है।"
 
दूसरी ओर, कूटनीतिक विश्लेषक इस दौरे की अलग तरीके से व्याख्या करते हैं। उनका कहना है कि बांग्लादेश के चुनाव के समय राजनीति में भारत के साथ द्विपक्षीय संबंध और समस्याएं एक मुद्दा बन जाती हैं या फिर चर्चा में आ जाती हैं। इसके अलावा अवामी लीग की राजनीतिक विपक्षी बीएनपी कई मौक़ों पर भारत और अवामी लीग के संबंधों पर कई तरह की टिप्पणियां करती रही है।
 
यही कारण है कि अवामी लीग सरकार की प्रधानमंत्री के भारत दौरे के समय दोनों देशों के द्विपक्षीय मुद्दों को लेकर पैदा होने वाली उम्मीदों और प्रस्तावित फ़ायदे पर देश की राजनीति में आलोचना शुरू हो जाती है। इसलिए अपने मुखिया के भारत दौरे के समय सरकार भी राजनीतिक हिसाब-किताब में जुट जाती है।
 
कूटनीतिक विश्लेषकों की राय में चूंकि शेख़ हसीना चुनाव से ठीक पहले वाले साल के दौरान भारत दौरे पर पहुंची हैं, इस पृष्ठभूमि में तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे और सीमावर्ती इलाकों में लोगों की हत्याएं बंद करने समेत मूल द्विपक्षीय मुद्दों पर क्या और कितना हासिल हुआ, अवामी लीग और सरकार के लिए इसके राजनीतिक निहितार्थ भी हैं।
 
अमेरिका के लिए बांग्लादेश के पूर्व राजदूत हुमायूं कबीर कहते हैं कि राष्ट्रीय दौरे में भी राजनीतिक बातचीत का मौक़ा रहता है। कबीर इस बारे में बताते हैं, "बांग्लादेश में शेख़ हसीना 13 साल से लगातार सत्ता में हैं और भारत में नरेंद्र मोदी सरकार भी लंबे समय से सत्ता में है। इन दोनों यानी शेख़ हसीना और मोदी सरकार के लंबे समय से सत्ता में होने के कारण दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच एक बेहतर आपसी समझ विकसित हुई है और इस पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए उनके बीच होने वाली एकांत बैठकों में राजनीति के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है।"
 
उनका कहना है कि राजनीतिक बातचीत कभी लिखित एजेंडे में नहीं होती। लेकिन दो देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच अकेले में होने वाली बैठक में राजनीति पर चर्चा का मौक़ा होता है और ऐसी चर्चा की स्थिति में वह बात कभी सामने नहीं आती। इसके अलावा उसे साबित करना भी संभव नहीं है।
 
क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति
पूर्व राजदूत हुमायूं कबीर का कहना है, "चूंकि बांग्लादेश में चुनाव क़रीब आ रहे हैं इसलिए चुनाव के लिहाज़ से दोनों प्रधानमंत्रियों की बैठक में राजनीति पर बातचीत हो ही सकती है।" लेकिन वो मानते हैं कि राजनीति पर संभावित चर्चा विस्तृत रूप लेते हुए क्षेत्रीय राजनीति और वैश्विक राजनीति तक पहुंच सकती है।
 
बांग्लादेश के अधिकारियों का मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का विश्व की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ा है। इस पृष्ठभूमि में दोनों प्रधानमंत्री की बैठक में वैश्विक राजनीति और क्षेत्रीय राजनीति पर चर्चा हो सकती है।
 
विदेश राज्य मंत्री शहरयार आलम का कहना है, "कोविड से पैदा हुई परिस्थिति और उसके बाद यूक्रेन युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में मंदी के हालात हैं। दक्षिण एशिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था भी मंथर हुई है। नतीजतन दोनों नेताओं की बैठक में अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है।"
 
चीन की ओर बढ़ते झुकाव का मुद्दा
विश्लेषकों का कहना है कि क्षेत्रीय राजनीति पर चर्चा के दौरान इस क्षेत्र में चीन के असर का मुद्दा भी उठ सकता है।
 
उनके मुताबिक़, भारत में ऐसी एक धारणा बनी है कि बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार विभिन्न मौक़ों पर चीन की ओर झुकती रही है।
 
पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन मानते हैं कि भारत से हासिल होने वाली सुविधाओं को लेकर बांग्लादेश के लोगों के मन में जो नाराज़गी है, उसी में चीन की ओर झुकाव की असली वजह छिपी है।
 
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत की ओर से यह मुद्दा उठाया जा सकता है। बांग्लादेश ने भी भारत की इस धारणा को दूर करने की दिशा में कदम उठाया है।
 
रक्षा सहयोग का सवाल
ढाका में कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बांग्लादेश में चीन का प्रभाव कम करने के लिए दिल्ली इस बार ढाका के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के मुद्दे पर ज़ोर दे सकता है।
 
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना साल 2019 में जब भारत दौरे पर गई थी तो रक्षा सहयोग के मुद्दे पर एक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर प्राथमिक समझौता हुआ था। उस समझौते के आधार पर भारत रक्षा उपकरणों की खरीद के अलावा रक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर समझौते का मुद्दा उठा सकता है। बांग्लादेश के अधिकारियों का कहना है कि भारत की ओर से ऐसे संकेत मिले हैं।
 
साल 2019 में जो समझौता हुआ था उसके आधार पर भारत बांग्लादेश को 50 करोड़ डॉलर का कर्ज़ देगा। और उसी कर्ज़ के दायरे में बांग्लादेश भारत से रक्षा उपकरण खरीदेगा। मौजूदा दौरे में इस मुद्दे पर समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं।
 
तीस्ता के मुद्दे पर भी हो सकती है चर्चा
तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर समझौते का मुद्दा भी एक दशक से ज़्यादा लंबे समय से अधर में है। इसका मसले का समाधान नहीं होना बांग्लादेश की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन गया है।
 
प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के भारत दौरे से पहले बरसों बाद दिल्ली में दोनों देशों के मंत्री स्तर के संयुक्त नदी आयोग की बैठक हुई। बैठक में बांग्लादेश ने तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर समझौते पर हस्ताक्षर की बात उठाई। अगस्त के आख़िर में हुई उस बैठक से लौटकर अधिकारियों ने ऐसा ही बयान दिया है।
 
बांग्लादेश के अधिकारी फिलहाल शेख़ हसीना के मौजूदा भारत दौरे के दौरान पानी के बंटवारे पर किसी समझौते की संभावना की बात नहीं कह पा रहे हैं।
 
विदेश राज्य मंत्री शहरयार आलम कहते हैं, "तीस्ता नदी के पानी के मुद्दे पर समझौते का मुद्दा बांग्लादेश की प्राथमिकता सूची में पहले नंबर पर रहेगा। यह हमारी पहली प्राथमिकता होगी।"
 
आलम का कहना था, "हमें विभिन्न मौक़ों पर इस बात का पता चला है कि इस मुद्दे पर भारत के समक्ष आंतरिक चुनौतियां हैं, लेकिन यह उनका आंतरिक मामला है और हमने उनके ऊपर छोड़ दिया है।" उन्होंने कहा कि बांग्लादेश को विश्वास है कि भारत ने अतीत में जैसा वादा किया था, अनुकूल समय होने पर वह उसे हक़ीक़त का जामा पहनाएगा।
 
साल 2011 में बांग्लादेश और भारत प्रधानमंत्रियों में तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे के लिए समझौते पर सहमति बनी थी। उस समझौते का प्रारूप भी तैयार हो गया था, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्ति के कारण वह अधर में लटका हुआ है।
 
बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन मानते हैं कि प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के मौजूदा दौरे में तीस्ता के मुद्दे पर कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। हालांकि बांग्लादेश तीस्ता समेत 54 नदियों के पानी के बंटवारे के मुद्दे पर बातचीत को वरीयता देगा।
 
लेकिन इस बार सिर्फ सिलहट इलाक़े की कुशियारा नदी के पानी के बंटवारे के समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। बीते अगस्त में संयुक्त नदी आयोग की बैठक में इस बात के संकेत मिले थे।
 
शेख़ हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग वर्ष 1996 में जब पहली बार सत्ता में आई थी, उसी साल भारत के साथ गंगा के पानी के बंटवारे के मुद्दे पर 30 साल के समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। उस समझौते की मियाद 2026 में खत्म होगी। अधिकारियों का कहना है कि गंगा नदी के पानी पर हुए समझौते के नवीनीकरण के लिए में अभी चार साल का समय है। बांग्लादेश को भरोसा है कि समय पर इसका नवीनीकरण करने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
 
सीमावर्ती इलाक़ों में लोगों की में हत्या, बांग्लादेश में बड़ा मुद्दा
भारत ने हालांकि विभिन्न मौक़ों पर सीमावर्ती इलाक़ों में लोगों की हत्या बंद करने का भरोसा दिया है, लेकिन इसके बंद नहीं होने से बांग्लादेश में चिंता बढ़ी है। कहा जा रहा है कि इस बार भी दोनों देशों के बीच होने वाली आलोचना के दौरान बांग्लादेश इस मुद्दे को प्राथमिकता देगा।
 
विदेश राज्य मंत्री शहरयार आलम कहते हैं, "बांग्लादेश सीमावर्ती इलाक़ों की समस्याओं के समाधान के मुद्दे को प्राथमिकता देगा।"
 
हालांकि विश्लेषकों की राय में सीमावर्ती इलाक़ों में लोगों की हत्या रोकने के मामले में भारत में इच्छा का अभाव है।
 
बांग्लादेश के पूर्व विदेश सचिव तौहीद हुसैन कहते हैं, "भारत और बांग्लादेश सीमा दुनिया की एकमात्र ऐसी द्विपक्षीय सीमा है जहां दोनों देशों के आपसी शत्रु नहीं होने के बावजूद लोगों की हत्याओं का सिलसिला जारी है।" उनका कहना था कि भारत बार-बार सीमावर्ती इलाक़ों में हत्याएं बंद करने या इसे शून्य तक पहुंचाने की बात कहता रहा है, लेकिन हक़ीक़त में इसे लागू नहीं किया जा सका है।
 
हुसैन कहते हैं, "भारत सीमावर्ती इलाक़ों में होने वाली हत्याओं को अपने पक्ष में सही साबित करने का प्रयास कर रहा है। वह बयान दे रहा है कि सीमावर्ती इलाक़ों में अपराध होने पर हत्या होगी।"
 
हुसैन का सवाल है कि अपराध होने पर उसका निपटारा तो अदालतें करेंगी। लेकिन किसी सभ्य देश में ऐसा नहीं हो सकता कि मौक़े पर ही अपराध का फैसला कर संबंधित व्यक्ति की वहीं गोली मार कर हत्या कर दी जाए।
 
बैठक में उठेगा खाद्यान्न और ईंधन का मुद्दा
विदेश राज्य मंत्री शहरयार आलम कहते हैं, "इस बार बांग्लादेश खाद्यान्नों और ईंधन में सहयोग को सबसे ज्यादा अहमियत देगा। कोरोना महामारी के बाद दुनिया में यही दोनों चीज़ें सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं।"
 
उनका कहना है कि भारत एक ऐसा (ग्रेन सरप्लस) देश हैं जहां ज़रूरत से ज़्यादा खाद्य सामग्री पैदा होती है। भारत से बांग्लादेश में भारी मात्रा में खाद्यान्नों के अलावा कपड़ों और इसके लिए ज़रूरी कच्चे माल का आयात किया जाता है। इनके आयात में कुछ दिक्कतें हो रही थीं। बैठक में उनको दूर करने पर भी बात होगी।
 
ईंधन में सहयोग के मुद्दे पर विदेश राज्य मंत्री का कहना था कि बिजली के मामले में भारत के साथ पहले से चल रहे सहयोग को और बढ़ाया जाएगा। भारत में कोयला आधारित बिजली पैदा होगी और वह बांग्लादेश पहुंचेगी। इसके लिए दोनों देशों के बीच बिजली सप्लाई लाइन बिछाई गई है। बांग्लादेश को इस दौरे से इन मुद्दों पर सकारात्मक नतीजों की उम्मीद है।
 
दूसरी ओर, भारत के साथ बांग्लादेश का व्यापार घटा है और बांग्लादेश की वस्तुओं को विभिन्न शुल्क और ग़ैर-शुल्क समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
 
असोसिएट प्रोफ़ेसर लाईलुफ़र यास्मीन मानती हैं कि बांग्लादेश की निर्यात योग्य वस्तुओं शुल्क घटाने और भारत के बाज़ारों में प्रवेश के मौके पैदा करने के लिए मोलभाव करना ज़रूरी है।
 
अधिकारियों का कहना है कि बांग्लादेश वाणिज्य संबंधित सेपा समझौते को प्राथमिकता देगा ताकि बांग्लादेशी वस्तुओं के भारतीय बाज़ारों में बिना शुल्क प्रवेश पर सकारात्मक असर पड़े।
 
सुनहरा संबंध, लेकिन मिला क्या?
अवामी लीग बांग्लादेश में 13 साल से सत्ता में है। इस दौरान भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध पहले की तुलना में घनिष्ठ या बेहतर कहा जाता रहा है। यही कारण है कि बांग्लादेश के हितों से जुड़े मुद्दों का समाधान नहीं होने के कारण अवामी लीग सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है।
 
विश्लेषकों की राय में इसका नकारात्मक प्रभाव दोनों देशों के संबंधों पर भी पड़ेगा। तौहीद हुसैन कहते हैं, "भारत जो चाहता है, उसे मिल जाता है। लेकिन हम जो चाहते हैं, वह नहीं मिलता, बांग्लादेश में ऐसी चर्चा होती है।"
 
इसे ध्यान में रखते हुए विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव से एक साल पहले इस दौरे से बांग्लादेश को कितना और क्या हासिल हुआ, वह अवामी लीग सरकार के लिए राजनीतिक नज़रिए से बेहद महत्वपूर्ण होगा।
 
हालांकि विदेश राज्य मंत्री और अधिकारियों के साथ बातचीत के बाद ऐसी धारणा बनती है कि चुनाव से पहले प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के इस दौरे के दौरान एक बार फिर इस बात को साबित करने की कोशिश रहेगी कि दोनों देशों के आपसी संबंध सबसे बेहतर स्तर पर हैं।

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