Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

ब्लॉग: क्यों लड़कों को ज़रूरी है चूल्हा-चौका करना?

हमें फॉलो करें ब्लॉग: क्यों लड़कों को ज़रूरी है चूल्हा-चौका करना?
, बुधवार, 3 मई 2017 (13:49 IST)
- दिव्या आर्य 
ये तो आप जानते होंगे कि भारत सरकार देश में रोज़गार और बेरोज़गारी की दर जानने के लिए सर्वे करती है। ये भी पता होगा कि मर्दों के मुकाबले नौकरी करने वाली औरतें बहुत कम हैं।
 
ये भी शायद कहीं पढ़ा हो कि हाल के सर्वे में पता चला है कि गांव में हर 55 नौकरीपेशा मर्दों के मुकाबले सिर्फ़ 25 महिलाएं नौकरी करती हैं जबकि शहरी इलाकों में ये अनुपात और भी कम है। यहां हर 56 नौकरी करने वाले मर्दों के मुक़ाबले सिर्फ़ 16 महिलाएं ही नौकरी करती हैं। लेकिन ये शायद नहीं जानते होंगे कि घरेलू काम कौन करता है इस पर भी सरकार ने एक सर्वे करवाया।
 
उसमें मर्दों का प्रतिशत इतना कम (0.4) निकला कि इस सर्वे को सिर्फ़ औरतों पर केंद्रित करने का फ़ैसला लिया गया! पर अब शायद ये सूरत बदले। अगर सरकार लड़कों को 'होम साइंस' पढ़ाने के अपने सुझाव पर संजीदगी से अमल करे। दरअसल सरकार 'नेशनल पॉलिसी फॉर वुमेन' बना रही है और एक रिपोर्ट के मुताबिक इसी के लिए हो रही एक बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने ये सुझाव दिया।
 
रिपोर्ट के मुताबिक स्वराज ने कहा कि लड़कों को अगर 'होम साइंस' पढ़ाई जाए तो औरतों के बारे में पुरानी मानसिकता बदलेगी और लड़कियों की ज़िंदगी बेहतर करने में लड़के मदद कर सकेंगे। वो बोलीं कि मर्द और औरत दोनों घर से बाहर काम करने लगे हैं पर औरतों पर कहीं ज़्यादा बोझ है।
 
उनकी बात पसंद की जाए और आगे जाकर नियम-क़ानून की शक़्ल ले ये तो पता नहीं, पर उनके पति स्वराज कौशल को ये बात बहुत जमी नहीं। एक ट्वीट कर उन्होंने लिखा, "बुरे दिन आनेवाले है...।"
 
लिखा शायद उन्होंने तंज़ में, मज़ाक ही किया होगा, या हो सकता है उन्होंने अपने घर का काम कभी नहीं किया हो और ये ख़्याल भर उन्हें बुरा लग गया। पर उनका ये ट्वीट आंख की किरकिरी सा बन गया। मेरी ही नहीं, बल्कि उनके ट्वीट पर कमेंट करनेवाली कई लड़कियों के लिए।
मीनाक्षी दीक्षित ने लिखा, "सर, बुरे दिन क्यों, आपने अब तक नहीं सीखा क्या?",
 
रिशिता मिश्रा ने, "अच्छे दिन आनेवाले हैं..." और माया एस ने लिखा, "आपने अब तक शुरू नहीं किया"। दरअसल घर के काम में हाथ बंटाने की बात पर मर्दों का ऐसा रवैया बड़ा पुराना है। और हुआ यूं कि पिछले दशकों में लड़कियों को बड़ा करते वक़्त जो पाठ पढ़ाए जाते हैं वो तो बदलते गए, उन्हें स्कूटर-कार चलाना सिखाया गया, टीचर-नर्स से आगे बढ़कर मुश्किल और लंबे घंटों वाली नौकरियां करने के लिए हौसलाअफ़ज़ाई की लेकिन लड़कों के पाठ वही रहे।
 
उन्हें ना खाना बनाना सिखाया गया, ना बीमार बच्चे या मां-बाप की देखरेख के लिए पत्नी की जगह खुद नौकरी से छुट्टी लेना, ना देर रात जागकर अपनी 'प्रज़ेंटेशन' पर काम कर चुकी पत्नी के आराम के लिए सुबह कामवाली से काम करवाने की ज़िम्मेदारी लेना। ये बदलाव कुछ परिवारों में ज़रूर हो रहा है, पर सरकार के सर्वे की ही तरह उनका प्रतिशत अभी बहुत कम है।
 
बल्कि सर्वे में आधी से ज़्यादा औरतों से जब पूछा गया कि वो घर का काम क्यों करती हैं तो उनका जवाब था, "क्योंकि परिवार का और कोई सदस्य नहीं करता"। दिखने में इस छोटी सी बात का बड़ा असर ये है कि रोज़गार में जुड़नेवाली औरतों का एक बड़ा हिस्सा मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देता है।
 
एक सर्वे के मुताबिक 18-24 प्रतिशत औरतें ही गर्भवती होने के बाद भी नौकरी में कायम रहती हैं। मोटी बात ये कि बराबरी और आज़ादी की बात अगर मन से की जा रही है तो उसपर अमल भी उतनी ही शिद्दत से करना होगा। जब सारा आकाश लड़के-लड़कियों दोनों का होगा तब 'अच्छे दिन' भी साझे ही होंगे। और ये सब पढ़कर आप भी कुछ करने के लिए कुलबुला रहे हैं तो महिला और बाल विकास मंत्रालय पांच मई तक 'नेशनल पॉलिसी फॉर वुमेन' के लिए आम लोगों से सुझाव ले रहा है। आप भी लिख भेजिए।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सोशल: भूरी पुतली और काली आंखों वाली अमेरिकी लड़की!