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ओडिशा विधानसभा चुनाव : बीजेडी के इस गढ़ में बीजेपी के नए चेहरे की चुनौती कितनी दमदार

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हमें फॉलो करें How strong is the challenge of the new face of BJP in this stronghold of BJD

BBC Hindi

, गुरुवार, 23 मई 2024 (18:08 IST)
- मानसी दाश
ओडिशा में लोकसभा के साथ विधानसभा की 147 सीटों के लिए चुनाव चल रहे हैं। इस चुनाव से पहले केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और राज्य में करीब 24 साल से सरकार चला रहे नवीन पटनायक की बीजू जनता दल में आपसी तालमेल और गठबंधन की कोशिशें भी हुईं। लेकिन जब गठबंधन नहीं हो पाया तब भारतीय जनता पार्टी ने राज्य की सभी 147 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
 
ज़मीनी स्तर पर बीजेपी के उम्मीदवार क्या वाक़ई में नवीन पटनायक के उम्मीदवारों के सामने कोई चुनौती पेश कर पा रहे हैं, यही जानने के लिए हम कटक ज़िले के अधीन आने वाले बड़म्बा विधानसभा पहुंचे। ये विधानसभा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से क़रीब 75 किलोमीटर दूर स्थित है और राज्य की सबसे बड़ी नदी महानदी के किनारे रहने के बावजूद इलाके में पानी की समस्या दिखती है।
 
हालांकि कई इलाकों में घरों तक नल से पानी की आपूर्ति हो रही है, कई जगह नल पहुंच गए हैं और पानी की आपूर्ति शुरू होने वाली है। इसके अलावा इस विधानसभा सीट के अधीन पड़ने वाली एक शुगर फैक्ट्री भी हर चुनाव में मुद्दे के तौर पर उभर आती है, जो करीब 20 साल पहले ही बंद हो चुकी थी। लेकिन इस इलाके की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि 1995 से लगातार देबी प्रसाद मिश्रा चुनाव जीतते आ रहे हैं।
 
1995 में वे जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते थे और 2000 में बीजू जनता दल से। 2000 के चुनाव में तो उन्हें कुल पड़े मतों का 80 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल हुआ था। समय के साथ उनके मत प्रतिशत में गिरावट भले आई हो लेकिन उनके सामने विपक्ष कभी दमदार चुनौती नहीं पेश कर सका है। देबी मिश्रा पार्टी के उपाध्यक्ष हैं और इन चुनावों में पार्टी के स्टार प्रचारकों में से एक हैं।
 
साल 2000 से लेकर 2017 के बीच वो अलग-अलग वक्त में स्वास्थ्य, पर्यटन, कृषि और उद्योग मंत्रालय संभालते रहे हैं। हालांकि बीते पांच सालों में उनके पास कोई पोर्टफोलियो नहीं था। विश्लेषकों का मानना है कि यही बात उनके फ़ायदे में जा सकती है। इनके सामने बीजेपी ने एक नए चेहरे सम्बित त्रिपाठी को उतारा है, जो पूर्व आईआरएस अधिकारी हैं और पहली बार राजनीति में कदम रख रहे हैं।
 
सम्बित त्रिपाठी कहते हैं, चुनौती मुश्किल है लेकिन बीजेपी लोगों तक पहुंचने की हर कोशिश कर रही है और लोगों की सोच भी बदली है। इसलिए हमें भरोसा है कि इस बार बीजेपी यहां जीत हासिल करेगी।
 
बड़म्बा विधानसभा चुनाव क्षेत्र
बड़म्बा विधानसभा क्षेत्र भुवनेश्वर से क़रीब 75 किलोमीटर दूर है। ये कटक लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। इसमें दो ब्लॉक हैं, बरम्बा और नरसिंहपुर। ये चुनाव क्षेत्र ओडिशा की सबसे बड़ी नदी, महानदी के किनारे बसा है और अपने इतिहास, पूजास्थलों और काजू के बाग़ानों के लिए जाना जाता है।
 
2011 में हुई जनगणना के अनुसार यहां की आबादी क़रीब ढाई लाख थी और यहां 95 फीसदी से अधिक हिंदू हैं। यहां 23 फीसदी अनुसूचित जाति और 6 फीसदी अनुसूचित जनजाति के लोग हैं। यहां की आबादी का बड़ा हिस्सा खेती पर निर्भर करता है। एक वक्त था जब यहां गन्ने की खेती हुआ करती थी लेकिन अब स्थिति बदल गई है।
 
फसलों का डूबना और पीने का पानी यहां बड़े मुद्दे हैं। इसके अलावा यहां के युवाओं के लिए बेरोज़गारी और नौकरी के लिए पलायन भी अहम मुद्दा है। यहां के नरसिंहपुर ब्लॉक में कई गांव महानदी के किनारे बसे हैं। नुआ कंजियापदा ऐसा ही एक गांव है जो नदी से थोड़ी दूरी पर है। यहां पीने के पानी की गंभीर कमी है। यहां घरों में नल नहीं हैं। ऐसे में महिलाएं सरकारी नल में सीमित घंटों के लिए आने वाला पानी आपस में बांटती हैं।
 
यहां की उर्मिला प्रधान पानी की बात सुनकर नाराज़ हो गईं। उन्होंने बताया, चार घंटे पानी आता है। हम महिलाएं नल पर पहरा देती हैं और जब पानी आता है तो चार बर्तन प्रति घर के हिसाब से पानी बांटती हैं और ज़रूरत पड़े तो हैंडपंप या तालाब से पानी लाते हैं। यहां का पानी साफ़ नहीं होता, इसलिए छानकर पानी पीते हैं। ऐसे ही गुज़ारा चल रहा है।
 
पास में अपनी हांडी उलटकर उस पर बैठी एक और बुज़ुर्ग महिला ने कहा, घर पर नल नहीं है, इसलिए यहां से पानी लेते हैं। मैं नहीं जा पाती लेकिन ज़रूरत पड़ी तो मेरी बहुएं तालाब से जाकर पानी लाती हैं। यहां से कुछ और आगे बढ़ने पर हम पहुंचे पुराना कंजियापदा गांव। ये गांव महानदी के नज़दीक बसा है।
 
यहां घरों के सामने सरकारी नल पहुंच गए हैं, लेकिन पानी अब तक नहीं पहुंचा। गांव में कुछ हैंडपंप मौजूद है, लेकिन पानी अच्छा न होने के कारण लोग नदी से पानी लाते हैं, और ये काम अधिकतर महिलाओं के ज़िम्मे आता है।
 
नदी में पानी लेने आई तई पंडा ने बताया, गर्मी में नदी सूख गई है। हैंडपंप का पानी अच्छा नहीं है, इसमें लोहे के बारीक कण होते हैं, इसलिए हम वो पी नहीं सकते। बीते 10-15 सालों से यहां पानी की कमी है। लोग आते हैं, बात करते हैं लेकिन पानी की कोई सुविधा नहीं होती।
 
बड़म्बा चीनी मिल और खेती
बड़म्बा में 20 साल पहले एक चीनी मिल हुआ करती थी, जो अब बंद पड़ी हुई है। गोपपुर में हमारी मुलाक़ात निशिकांत से हुई। वो बेंगलुरु में काम करते हैं।
 
वो बताते हैं, यहां न तो इंडस्ट्री है, न कंपनी। हम कहां काम करें। मेरे साथ पढ़ने वाले सब बाहर काम कर रहे हैं। जो लोग बाहर नहीं जा पाए वे बिना नौकरी के हैं। चीनी मिल बंद होने से यहां होने वाली गन्ने की खेती अब कम होने लगी है।
 
पद्मनाभपुर के राम पेशे से किसान हैं। वो कहते हैं, मैं अब भी एक एकड़ पर गन्ने की खेती करता हूं। लेकिन यहां मिल बंद होने के बाद गन्ने की खेती भी बंद हो गई। अब इस मिल की नीलामी की बात चल रही है। गोपपुर के सुभाष चंद्र साहू इस चीनी मिल में 2005 तक लेबर संगठन के जनरल सेक्रेटरी थे और इसकी नीलामी की बात से काफी नाराज़ हैं।
 
वो कहते हैं, उस समय ओडिशा में बीजेपी-बीजेडी सरकार थी। उस समय सस्ती दर पर इस कोऑपरेटिव चीनी मिल को बेच दिया गया। ये कटक के आसपास के इलाके में ये एकमात्र चीनी मिल था और इससे किसानों को बहुत फायदा होता था। इसे शक्ति शुगर ने लीज़ पर लिया था, फिर बालाजी शुगर ने इसे चलाया। बाद में इसे बीमार इंडस्ट्री बताकर बंद कर दिया गया। हमें पता चला कि बैंक ने यहां लाल झंडी लगाई है। फिर अख़बारों में इसकी नीलामी के बारे में पढ़ा।
 
लेबर संगठन इस मामले को लेकर हाईकोर्ट तक जा चुके हैं और अब इस मामले में सीबीआई जांच की मांग हो रही है। इस इलाक़े के सभी गन्ना किसान कभी यहां गन्ना बेचा करते थे। लेकिन इसके बंद होने का असर केवल रोज़गार पर नहीं बल्कि इलाक़े के किसानों पर भी पड़ा है।
 
निरंजन शतपथी भी गोपपुर में रहते हैं। वो खेती करते हैं और होमियोपैथी डॉक्टर भी हैं। वो कहते हैं, किसानों के लिए यहां 1989 में चीनी मिल बना था। मिल बंद हो गई और जो किसान हर साल इस मिल के कारण अच्छा कमा लिया करते थे, वो बंद हो गया। लोगों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई और ये उनकी ग़रीबी का एक कारण है। सरकार ने किसानों के पेट पर लात मार दी।
 
यहां 2000 और 2004 में प्रदेश में बीजेपी-बीजेडी गठबंधन की सरकार थी। 2005 में जब ये चीनी मिल बंद हुआ उस वक्त देबी प्रसाद मिश्रा यहां से विधायक थे, इस कारण यहां के लोग उनसे नाराज़ भी रहे। लेकिन उनके विजय अभियान पर कोई असर नहीं पड़ा।
 
इसकी वजह बताते हुए स्थानीय पत्रकार विद्याधर पंडा कहते हैं, दरअसल देबी मिश्रा लगातार चुनाव जीतते आए हैं और इस वजह से चुनाव दर चुनाव उनका लोगों से कनेक्ट काफी बढ़ता गया है। वे हर किसी के लिए सुलभ हैं। और नवीन पटनायक की ईमानदारी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन से लोगों का वोट उनको मिलता रहा है।
 
2017 के पंचायत चुनावों में बीजेपी ने बड़म्बा में बड़ी जीत दर्ज की। 2019 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपना मत प्रतिशत बढ़ाकर 41 फीसदी कर लिया। वहीं देबी मिश्रा का वोटशेयर भी घटकर 60 फीसदी से 52 फीसदी के आसपास पहुंच गया है। इसके बावजूद वे आसान जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे।
 
राजनीतिक बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप
इस बार बीजेपी ने यहां से सम्बित त्रिपाठी को उतारा है जो पूर्व आईआरएस अधिकारी रह चुके हैं। सम्बित त्रिपाठी पहले पेट्रोलियम और कौशल विकास मंत्रालय में काम कर चुके हैं। उनके लिए चुनौती इस सीट पर पार्टी का वोट शेयर बढ़ाने की है।
 
वो कहते हैं, यहां एंटी-इन्कम्बेंसी है क्योंकि यहां विकास पूरी तरह नहीं हो सका है। स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार जैसे मुद्दे हैं और लोगों में असंतोष है। लोगों में परिवर्तन के लिए सोच बन रही है और नवीन पटनायक की विज़िबिलटी अब लोगों के मन में कम हो रही है। ऐसे में लोग विकल्प की तलाश कर रहे हैं और बीजेपी एक राजनीतिक विकल्प के तौर पर उभरी है।
 
लेकिन बीते चुनावों में बीजेपी के उम्मीदवार रहे विजय दलबेहरा को इस बार टिकट नहीं मिला। इस बात से नाराज़ उनके समर्थकों ने कुछ वक्त पहले सम्बित त्रिपाठी का विरोध किया था। लेकिन क्या पार्टी के कार्यकर्ताओं में इसे लेकर मतभेद हो सकता है और ये चुनौती हो सकता है।
 
सम्बित त्रिपाठी का कहना है, उम्मीदवार को चुनने की एक प्रक्रिया होती है। ज़ाहिर है कि कुछ लोग नाराज़ हैं लेकिन जो लोग पार्टी की विचारधारा में यकीन करते हैं वो एकसाथ हैं। मुझे यकीन है कि विजय जी भी हमारे राजनीतिक सफ़र का हिस्सा रहेंगे।
 
वहीं बीते सालों में एक विकल्प के तौर पर कांग्रेस की ज़मीन यहां एक तरह से ख़त्म होती गई है। हालांकि मैदान में वो भी है। कांग्रेस नेता संजय कुमार साहू युवा कांग्रेस के सदस्य रहे हैं और डेडिकेटेड नेता माना जाते हैं। वो कहते हैं कि चुनौती अगर स्वीकार नहीं करेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे।
 
वो कहते हैं, मैं पहले अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करूंगा और कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ाने की कोशिश करूंगा। यहां कांग्रेस के दौर में चीनी मिल बनी थी। जब यहां बीजेडी और बीजेपी की सरकार थी उस वक्त उन्होंने यहां की चीनी फैक्ट्री को बेच दिया। संजय कुमार भी मानते हैं कि इस बार यहां लड़ाई दोतरफ़ा यानी बीजेपी और बीजेडी के बीच है।
 
बीजेडी नेता देबी प्रसाद मिश्रा लगातार कोशिशों के बावजूद बात करने के लिए उपलब्ध नहीं हो सके। लेकिन इलाके में और सोशल मीडिया पर वे सघन प्रचार कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर जारी अपने एक वीडियो संदेश में कहते हैं, मैं सुख में, दुख में आपके साथ रहा हूं, तूफान में- त्योहार में आपके साथ रहा हूं। आप मुझे अपना भाई समझते रहे हैं। मैं जिस भी दायित्व में रहा हूं मैंने कभी अहंकार नहीं किया है। आइए, विकास की धारा में हम फिर एक हो जाएं।
 
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रबि दास कहते हैं, यहां एंटी इन्कम्बेसी काफी अधिक है लेकिन इसका असर कितना पड़ेगा ये कहना मुश्किल है और यही बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती है। रबि दास ये भी कहते हैं, देबी मिश्रा बीते पांच सालों में मंत्री नहीं हैं इसलिए एंटी इनकम्बेंसी थोड़ी कम हो जाएगी। लेकिन बीजेपी के सामने एक मुश्किल ये है कि उनके युवा नेता का अभी लोगों के साथ वैसा कनेक्शन नहीं है जो देबी मिश्रा का है।
 
रबि दास कहते हैं, सबसे बड़ा फैक्टर महिला वोटर का है और कोई भी उम्मीदवार अब तक उन्हें बीजेडी से दूर करने के लिए सफल कोशिश नहीं कर पाए है। अभी भी 100 महिलाओं में से 70 नवीन पटनायक के चेहरे पर ही वोट देती हैं। बड़म्बा में बीजेपी अपना वोट शेयर बढ़ा पाएगी या नहीं या फिर बीते कई सालों से बीजेडी को लेकर लोगों की नाराज़गी क्या एक बार फिर ज़मीन पर दिखेगी, ये वो सवाल हैं जिनके उत्तर अभी देना मुश्किल है।

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