दीपक मंडल, बीबीसी संवाददाता
-
चीन के पहले चायना-इंडियन ओसन रीजन फ़ोरम की बैठक में भारत नहीं था
-
भारत के न होने से उठा विवाद,लेकिन चीन ने कहा- भारत को बुलाया गया था
-
चीन अपनी इस स्ट्रैटेजी से इंडो-पैसिफ़िक और हिंद महासागर में दखल बढ़ाने की कोशिश में
-
कनाडा भी इंडो-पैसिफ़िक स्ट्रैटेजी लेकर सामने आया ताकि चीन का असर कम हो
-
चीन और कनाडा की रणनीतियों की वजह से इंडो-पैसिफ़िक में सक्रियता और बढ़ेगी
चीन ने पिछले सप्ताह हिंद महासागर क्षेत्र के देशों का पहला सम्मेलन बुलाया। लेकिन उसकी ये नई पहल ही विवादों में घिर गई। विवाद के दो कारण थे। एक तो इसमें भारत ने हिस्सा नहीं लिया था। आरोप ये लगा कि भारत को बुलाया नहीं गया था।
हालाँकि अब चीन ने कहा है कि भारत को भी न्योता दिया गया था। अभी इस मामले में भारत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। दूसरा विवाद ये था कि ऑस्ट्रेलिया और मालदीव ने कह दिया कि उन्होंने इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया था।
जबकि फ़ोरम के आयोजक चायना इंटरनेशनल डेवलपमेंट को-ऑपरेशन एजेंसी (सीआईडीसीए) के बयान में कहा गया था कि इसमें ऑस्ट्रेलिया और मालदीव ने भी हिस्सा लिया था।
सीआईडीसीए के बयान में कहा गया था कि 21 नवंबर को चीन के यून्नान प्रांत के कुनमिंग में आयोजित इस सम्मेलन में 19 देशों ने हिस्सा लिया था।
इनमें इंडोनेशिया, पाकिस्तान, म्यांमार श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव, नेपाल, अफ़गानिस्तान, ईरान, ओमान, दक्षिण अफ्रीका, कीनिया, मोज़ाम्बिक, तंज़ानिया, सेशल्स, मेडागास्कर, मॉरीशस, जिबूति और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे।
लेकिन भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बेरी ओ फ़ेरल ने ट्वीट कर कहा कि इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया का कोई अधिकारी शामिल नहीं हुआ था।
दूसरी ओर मालदीव के विदेश मंत्रालय ने भी कहा कि उसने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। उसे इसमें बुलाया गया था, लेकिन उसने 15 नवंबर को मालदीव में चीन के दूतावास को सूचित कर दिया था कि वो इस बैठक में हिस्सा नहीं लेगा। ऑस्ट्रेलिया और मालदीव के इस बयान के बाद चीन की खासी किरकिरी हो रही है।
चीन की डेवलपमेंट डिप्लोमेसी में भारत क्यों नहीं?
चीन के इस सम्मेलन का इरादा हिंद महासागर में अपनी डिप्लोमेसी को तेज़ करना है। वह यहाँ अपना असर बढ़ाने के लिए डेवलपमेंट डिप्लोमेसी का सहारा ले रहा है। उसने सम्मेलन में बुलाए गए देशों के प्रतिनिधियों से इस क्षेत्र में मिल-जुल कर विकास करने की बात कही।
उसकी ये कोशिश पिछले साल भी दिखी थी, जब श्रीलंका के दौरे पर पहुँचे चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने हिंद महासागर क्षेत्र के देशों के विकास के लिए एक और फ़ोरम बनाने का प्रस्ताव दिया था।
यी ने कहा था कि श्रीलंका को इस फ़ोरम में अहम भूमिका निभानी चाहिए। चीन फ़िलहाल अपनी इंडो-पैसिफ़िक रणनीति पर काम कर रहा है और वह चाहता है कि इस क्षेत्र में भारत के असर को काबू में रखा जाए। हालाँकि भारत भी इस क्षेत्र में सबसे अहम खिलाड़ी है।
इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइनीज़ स्टडीज़ में फ़ेलो अरविंद येलेरी का कहना है कि चीन जिन संगठनों की अगुआई कर रहा है, उसमें भारत को ज़्यादा अहमियत नहीं दे रहा है। इस इलाक़े में भारत का असर कम करना ही उसका मक़सद है। इसलिए भारत को वह बहुत ज़्यादा तवज्जो नहीं देना चाहेगा।
भले ही भारतीय मीडिया में ये ख़बर आई है कि उसे चीन की ओर से आयोजित सम्मेलन में नहीं बुलाया गया था, लेकिन चीन का कहना है इस क्षेत्र में विकास और भारत के साथ सहयोग को लेकर उसका रुख़ सकारात्मक है।
भारत में चीनी दूतावास के प्रवक्ता वांग शियाओजियान ने कहा कि भारत को इसमें बुलाया गया था। हालाँकि येलेरी का कहना है कि यह डिप्लोमेसी की भाषा है। चीन नहीं चाहेगा कि अपनी पहल में भारत को शामिल करे क्योंकि वह इसका स्वाभाविक प्रतिद्वंद्वी है।
इंडो-पैसिफिक में भारत, चीन और कनाडा के हित
भारत
-
हिंद महासागर इंडो-पैसिफ़िक का ही हिस्सा है
-
अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन में इसकी अहम भूमिका है
-
चीन का इस सप्लाई चेन के मार्ग पर प्रभाव बढ़ाने की कोशिश भारत के लिए चिंता
-
इंडो-पैसिफ़िक में भारत को स्वाभाविक सहयोगी की ज़रूरत
चीन
-
चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर
-
अपनी अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए इंडो-पैसिफ़िक में उसका असर बढ़ाना ज़रूरी
-
चीन की बढ़ती नौसेना की ज़रूरत के लिए इंडो-पैसिफ़िक की बड़ी भूमिका
-
चीन की इंडस्ट्री के लिए इंडो-पैसिफ़िक के समुद्री मार्ग बेहद ज़रूरी
कनाडा
-
कनाडा चीन के बाज़ार पर निर्भरता कम करना चाहता है
-
लिहाज़ा इंडो-पैसिफ़िक में निवेश उसकी ज़रूरत
-
उसकी नज़र भारत के बढ़ते मध्य वर्ग और बाज़ार पर
-
चीन के साथ ख़राब रिश्तों की वजह से कनाडा नए गठजोड़ की तलाश में
कनाडा की स्ट्रैटेजी में भारत और चीन कहाँ हैं?
चीन जिस वक्त अपनी इंडो-पैसिफ़िक ( हिंद प्रशांत क्षेत्र भी इंडो पैसिफ़िक का एक हिस्सा है) रणनीति को धार देने की कोशिश कर रहा है, ठीक उसी वक़्त कनाडा भी अपनी इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटजी के साथ मैदान में उतर आया है।
हाल के कुछ सालों के दौरान चीन और कनाडा के संबंधों में काफ़ी खटास आई है और इसकी बानगी इंडोनेशिया में जी-20 देशों के सम्मेलन में दिखी, जब चीनी राष्ट्रपति और कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बीच मीटिंग के एजेंडे को सार्वजनिक करने को लेकर नोंक-झोंक हो गई। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसा बहुत कम होता है।
कनाडा दुनिया के मंच पर चीन के बढ़ते असर को लेकर सतर्क है और भले ही वह इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र को अपने आर्थिक और कारोबारी हितों को बढ़ावा देने वाला मानता है, लेकिन उसका इरादा यहाँ चीन के प्रभाव को रोकने का है।
चूंकि अमेरिका के बाद इंडो-पैसिफ़िक कनाडा का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है, इसलिए वह इस इलाक़े में चीन के असर को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।
कनाडा की इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटजी की ख़ास बात ये है कि इसमें चीन को लेकर आशंकाएँ जताई गई और ये बताया गया है कि उसके बढ़ते असर का सामना करने के लिए वह क्या करेगा।
वहीं इस क्षेत्र में उसने भारत के बढ़ते रणनीतिक, आर्थिक और इसकी आबादी की अहमियत को देखते हुए इसे एक अहम पार्टनर माना है।
कनाडा ने इस स्ट्रैटेजी में कहा है,'' इस क्षेत्र में कई ऐसे देश हैं जिनसे कनाडा बुनियादी तौर पर असहमत है, लेकिन उसे ऐसे देशों से पैदा होने वाले ख़तरों और जोख़िमों को लेकर अपना रुख़ स्पष्ट रूप से रखना होगा।''
चीन और कनाडा के ख़राब रिश्ते
बीबीसी हिन्दी ने कनाडा की इस पहल के बारे में समझने के लिए थिंक टैंक तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के इंडो-पैसिफ़िक रिसर्च प्रोग्राम के चेयरपर्सन मनोज केवलरमानी से बात की।
केवलरमानी का कहना है, ''पिछले कुछ सालों में चीन और कनाडा के रिश्ते काफ़ी विवादों से गुज़रे हैं। दोनों देशों के बीच कारोबारी झगड़ों से लेकर जासूसी के आरोपों के मामलों के बारे में काफ़ी तनाव रहा है। इसकी झलक जी-20 देशों के सम्मेलन में हाल में ही दिखी। इसलिए कनाडा के लिए इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में चीन एक बड़ा ख़तरा बना रहेगा ''
जस्टिन ट्रूडो और उनके अधिकारी चीन पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह कनाडा के लोकतंत्र को कमज़ोर करने में लगा है।
ब्रिटेन के अखबार गार्डियन के मुताबिक़ कनाडा के ख़ुफ़िया अधिकारियों ने इस साल जनवरी महीने में वहाँ के सांसदों को बताया था कि चीन ने 2019 के संघीय चुनाव में हस्तक्षेप किया था।
कनाडा ने तीन चीनी कंपनियों को राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर देश के खनिज क्षेत्रों में से निवेश वापस लेने का निर्देश दिया था।
इसके अलावा कई कारोबारी प्रतिबंध भी लगाया था। चीन के साथ कनाडा का द्विपक्षीय कारोबार काफ़ी ज़्यादा रहा है। इसे वह धीरे-धीरे कम करना चाहता है। यानी दूसरे देशों से भी कारोबारी संबंध बढ़ाना चाहता है।
कनाडा और चीन के संबंध अब भी तनाव भरे हैं। 2018 में कनाडा ने चीन की ख़्वावे कंपनी की सीनियर एग्ज़ीक्यूटिव मेंग वांचोऊ को गिरफ़्तार कर लिया था।
इसके बाद चीन ने कनाडा के दो नागरिकों को गिरफ़्तार कर लिया था। ये तीनों पिछले साल रिहा किए गए थे।
कनाडा की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के विदेश मामलों के विशेषज्ञ हैथर मैकफ़र्सन ने कहा कि ट्रूडो को डिप्लोमैटिक और कारोबारी संबंधों के लिए नए विकल्पों की तलाश करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ''चीन विश्वसनीय साझेदार नहीं है। इस इलाक़े में हमें अन्य देशों से संबंध विकसित करने चाहिए।''
कनाडा की नज़र में भारत की अहमियत
अपनी स्ट्रैटेजी में भारत को लेकर कनाडा के सकारात्मक रवैए में इसी सोच की झलक दिखती है। केवलरमानी कहते हैं, ''यूरोप और अमेरिका की तरह ही कनाडा भी भारत को इंडो-पैसिफ़िक में एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर देखता है। चूँकि ये लोकतांत्रिक देश हैं और इनके साझा मूल्य भी हैं, इसलिए कनाडा के लिए भारत की अहमियत बनी रहेगी। ''
कनाडा ने अपनी इंडो-पैसिफ़िक स्ट्रैटेजी में कहा है कि चीन एक अस्थिरता पैदा करने वाला ग्लोबल पावर है। इसलिए कनाडा की रणनीति होगी कि अपने सहयोगी देशों के साथ मिल कर काम करे ताकि चीन का सामना किया जा सके।
कनाडा ने अपनी इस स्ट्रैटेजी में कहा है- चीन का उदय जिन अंतरराष्ट्रीय नियम-क़ानूनों से हुआ है वो उन्हीं को ठुकराने में लगा है। चीन जिस तरह से उसका सैन्यीकरण कर रहा है और यहाँ समुद्री और वायु मार्गों को नियंत्रित करना चाहता है, उससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए एक बड़ा ख़तरा पैदा हो सकता है। चीन यहाँ अपने आर्थिक, राजनयिक और आक्रामक सैन्य और टेक्नोलॉजी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए बड़ा निवेश कर रहा है। ''
इसमें कहा गया है, ''दक्षिण चीन सागर में चीन जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र के फ़ैसलों की अनदेखी कर रहा है, उससे ये ख़तरा पैदा हो गया है कि इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में भी वह ऐसा कर सकता है।''
इस स्ट्रैटेजी में कहा गया है- इस क्षेत्र में कनाडा भारत को अपना स्वाभाविक सहयोगी मानता है। उसका मानना है कि इस क्षेत्र और दुनिया के दूसरे इलाकों में भी भारत की रणनीतिक अहमियत और नेतृत्व का दायरा बढ़ेगा।
इसकी आर्थिक ताक़त लगातार बढ़ेगी। इसलिए कनाडा समान हितों और मूल्यों की बुनियाद पर भारत से सहयोग बढ़ाने के नए मौक़े ढूँढेगा और उससे लगातार संवाद करता रहेगा। ''
बड़े दांव-पेचों का गवाह बनेगा हिंद प्रशांत क्षेत्र
केवलरमानी कहते हैं, ''जिस तरह कनाडा इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में अपनी रणनीति बना रहा है। ठीक उसी तरह से चीन भी चाहता है कि उसका असर यहाँ बढ़े और भारत का असर काबू में रहे। इसलिए अपने प्रतिस्पर्द्धी को वह अपने फ़ोरम में कैसे बुला सकता था।''
वो कहते हैं- चीन चाहता है कि इस क्षेत्र में भारत का असर ज़्यादा न बढ़े। दरअसल चीन हिंद महासागर में भी ख़ुद को एक बड़े खिलाड़ी के तौर पर देख रहा है। चीन एक बड़ी नौसेना तैयार कर रहा है। यह नौसेना, जब वहाँ से निकलेगी तो सबसे पहले हिंद महासागर की ओर ही आएगी। इसकी वजह है क्योंकि चीन की सबसे अहम सप्लाई इसी रास्ते से जाती है। इसलिए इस इलाक़े में उसकी सैन्य मौजूदगी ज़रूरी है।''
केवलरमानी का मानना है कि इस क्षेत्र में सिर्फ सैन्य मज़बूती से ही चीन का असर नहीं बढ़ेगा। उसे डेवलपमेंट डिप्लोमेसी को भी बढ़ावा देना होगा। यही वजह है कि चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र के देशों को अपने फ़ोरम पर बुला कर इस क्षेत्र में विकास की बात कही है।
लेकिन इस क्षेत्र में अपनी सैन्य क्षमता को मज़बूत करने की चीन की रणनीति को कनाडा हल्के में नहीं ले रहा है। यही वजह है कि उसने इंडो-पैसिफिक में शुरुआती पाँच साल में 2.3 अरब डॉलर के निवेश का इरादा जताया है।
इसका बड़ा हिस्सा 49.20 करोड़ डॉलर अपनी नौसेना की मौजूदगी बढ़ाने और इसे मज़बूत करने में ख़र्च करेगा। वह इस क्षेत्र में अपने चुनिंदा सहयोगी की साइबर सिक्योरिटी क्षमताओं को मज़बूत करने में भी बड़ी रकम ख़र्च करेगा।
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का समूह क्वाड भी इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ाने में लगा है।
अब कनाडा और कुछ दूसरे यूरोपीय देश की ओर से भी इंडो-पैसिफिक में अपनी उपस्थिति मज़बूत करने की कोशिश शुरू हो गई है। साफ है कि आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में बड़े रणनीतिक दांव-पेच देखने को मिलेंगे।