दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता
भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने अमेरिकी डॉलर की जगह आपसी मुद्रा में द्विपक्षीय कारोबार शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने सोमवार को बताया है कि भारत की शीर्ष तेल कंपनी इंडियन ऑयल ने मध्य पूर्व के तेल उत्पादक देश यूएई की अबु धाबी नेशनल ऑयल कंपनी से दस लाख बैरल तेल भारतीय रुपयों में ख़रीदा है।
अब तक तेल का ये कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता रहा था। इससे पहले संयुक्त अरब अमीरात के एक सोना विक्रेता ने एक भारतीय कारोबारी को 12।8 करोड़ रुपये में 25 किलो सोना की बिक्री का लेनदेन भारतीय रुपयों में किया था।
जुलाई में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा की थी और दोनों देशों ने अपनी-अपनी मुद्रा में कारोबार करने का समझौता किया था।
यही नहीं भारत और यूएई ने अपने डिजिटल पेमेंट सिस्टम यूपीआई और इंस्टेट पेमेंट प्लेटफॉर्म की लिंकिंग को भी मंज़ूरी दी थी।
मज़बूत होते भारत-यूएई के संबंध
भारत और यूएई के बीच साल 2022 में सीआईपी यानी कांप्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप समझौता भी हुआ है जो दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहा है। ये पिछले एक दशक के दौरान भारत का किसी देश के साथ पहला मुक्त व्यापार समझौता भी है।
इससे पहले साल 2011 में भारत ने जापान के साथ ऐसा ही द्विपक्षीय समझौता किया था। अमेरिका और चीन के बाद भारत सर्वाधिक कारोबार यूएई के साथ ही करता है। भारत अमेरिका के बाद सर्वाधिक निर्यात भी यूएई को ही करता है।
इस समझौते के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत और यूएई के बीच सालाना कारोबार 85 अरब डॉलर से बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। भारत और यूएई के बीच हुए इस समझौते को दोनों देशों के आपसी रिश्तों में एक मील का पत्थर माना गया है।
यूएई अब भारत में चौथा सबसे बड़ा निवेशक है और इस समय यूएई का भारत में निवेश 3 अरब डॉलर से अधिक है।
ये निवेश किस रफ़्तार से बढ़ रहा है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2020-21 में यूएई का भारत में निवेश 1.03 अरब डॉलर ही था।
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते आठ सालों में पांच बार यूएई की यात्रा की है।
इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफ़ेयर के फ़ेलो और मध्यपूर्व मामलों के जानकार फज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद संयुक्त अरब अमीरात और खाड़ी क्षेत्र के देशों के साथ रिश्तों पर ख़ास ध्यान दिया है।”
सिद्दीक़ी कहते हैं, “पिछले आठ दस सालों में भारत और संयुक्त अरब अमीरात के द्विपक्षीय रिश्तों के केंद्र में कारोबार आ गया है। पहले राजनीतिक कूटनीति हो रही थी, लेकिन मोदी सरकार के आने के बाद से अब कारोबार कूटनीति के केंद्र में आ गया है।”
विश्लेषक मानते हैं कि भारत इस समय यूएई में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूएई के शासकों से भी रिश्ते मज़बूत किए हैं।
सिद्दीक़ी कहते हैं कि रुपये और दिरहम में कारोबार शुरू होना दोनों देशों के मज़बूत होते रिश्तों का प्रतीक है। वहीं यूएई भी भारत में निवेश बढ़ा है। भारत के स्टार्ट अप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे अभियानों में यूएई को निवेश की संभावनाएं दिख रही हैं।
सिद्दीक़ी कहते हैं, “भारत के कई सेक्टर भी खुल रहे हैं। खाड़ी के देशों के पास पैसा बहुत है। भारत इस पैसे को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकता है। भारत ने तो रक्षा क्षेत्र में भी साझा उत्पादन की पेशकश की है।”
रिपोर्टों के मुताबिक़ यूएई ने भारत की ब्रह्मोस मिसाइल ख़रीदने के प्रयास भी किए हैं। भारत और यूएई रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ा रहे हैं।
भारत के कारोबार का गेटवे है यूएई?
संयुक्त अरब अमीरात भारत का एक बड़ा कारोबारी सहयोगी है। भारत का बड़ा व्यापार आज यूएई के ज़रिये होता है, वो भारत के कारोबार के लिए एक गेटवे की तरह हैं। उदाहरण के तौर पर भारत पाकिस्तान के साथ क़रीब 5 अरब डॉलर का कारोबार दुबई के रास्ते करता है। अफ़्रीका और मध्य पूर्व के कई देशों के साथ भारत दुबई के ज़रिये ही कारोबार करता है।
वरिष्ठ पत्रकार और ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा कहते हैं, “भारत ने हाल ही में रूस से ख़रीदे तेल का भुगतान चीन की मुद्रा में किया। ये लेनदेन भी दुबई के रास्ते ही हुई। ये कारोबार करना अच्छी शुरुआत है और भारत को अन्य देशों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए।"
क्या डॉलर पर होगा इसका असर?
भारत और यूएई के बीच डॉलर के बजाये रुपये और दिरहम में कारोबार शुरू होने को वैश्विक अर्थव्यवस्था में डॉलर की बादशाहत पर चोट भी माना जा रहा है।
फज़्ज़ुर रहमान सिद्दीक़ी कहते हैं, “डी-डॉलेराइज़ैशन की एक लहर सी चल रही है, चीन भी ये कोशिश कर रहा है। इससे पहले लीबिया के शासक कर्नल गद्दाफ़ी ने अपने दौर में ग़ैर-डॉलर मुद्राओं में तेल बेचने की पेशकश की थी। अब भारत समेत कई अन्य देश ये प्रयास कर रहे हैं।”
सिद्दीक़ी कहते हैं, “एक पहलू ये भी है कि रूस, सीरिया और ईरान जैसे देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद बाक़ी देश डरे हुए हैं और वो अपने कारोबार के लिए पूरी तरह डॉलर पर निर्भर नहीं रहना चाहते और नए विकल्प तलाशना चाहते हैं।”
चीन भी यूएई के साथ अपनी मुद्रा में कारोबार कर रहा है, चीन ईरान के साथ भी ऐसा ही कर रहा है।
सिद्दीक़ी कहते हैं, “इस सबका असर वैश्विक बाज़ार में डॉलर के प्रभाव पर पड़ेगा ही।” हालांकि नरेंद्र तनेजा मानते हैं कि “ये एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन इसका ये अर्थ निकालना कि ये डॉलर का विकल्प बन जाएगा, जल्दबाज़ी होगा।”
तनेजा कहते हैं, “भारतीय रुपये को एक मज़बूत मुद्रा माना जा रहा है, भले ही वो अभी डॉलर जितनी मज़बूत ना हो। ऐसे में भारतीय रुपये का अंतरराष्ट्रीयकरण हो रहा है और यूएई के साथ हुए समझौते को भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए।
लेकिन इसे ये नहीं कहा जा सकता है कि दुनिया का तेल और गैस का कारोबार रुपये में या दिरहम में होने लगेगा। यूएई की मुद्रा दिरहम भी डॉलर से ही समर्थित है, ऐसे में ये कहना जल्दबाज़ी होगा कि रुपये में लेनदेन से डॉलर की स्थिति पर बहुत असर होगा।”
बढ़ेगी रुपये की स्वीकार्यता
भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच रुपये में कारोबार का एक असर ये हो सकता है कि अन्य देशों में भी रुपये की स्वीकार्यता बढ़े। लेकिन क्या इससे इससे भारत को आर्थिक फ़ायदा होगा।
तनेजा कहते हैं, “अगर भारत तेल ख़रीद का भुगतान रुपये में कर पायेगा तो ये भारत के लिए बहुत अच्छा होगा क्योंकि भारत को तेल ख़रीदने के लिए डॉलर ख़रीदने पर ही ख़रबों रुपये ख़र्च करने पड़ जाते हैं। भारत सभी तेल विक्रेता देशों से अपनी मुद्रा में तेल ख़रीद पाया तो ये उसके लिए बहुत फ़ायदेमंद होगा। भारत ऐसे प्रयास कर भी रहा है।”
तनेजा कहते हैं कि अगर भारत और दुबई के बीच रुपये में लेनदेन बढ़ा तो अन्य देशों को भी ये अधिक स्वीकार होगा और इससे वैश्विक स्तर पर रुपया मज़बूत होगा।
तनेजा कहते हैं, “भारत ये ज़रूर चाहेगा कि जिन देशों के साथ दुबई के ज़रिये कारोबार हो रहा है, उसका कुछ हिस्सा दिरहम या रुपये में हो। लेकिन अभी ऐसा नहीं होगा कि सौ फ़ीसदी लेनदेन रुपये में या दिरहम में होने लगे। ये ज़रूर है कि आने वाले समय में रुपये की स्वीकार्यता बढ़ेगी। हालांकि, दुबई और आबू धाबी के बाज़ारों में रुपये को पहले से ही स्वीकार किया जाता रहा था।”
खाड़ी के देशों में अस्सी लाख से अधिक भारतीय रहते हैं। इनमें बड़ी तादाद यूएई में है। संयुक्त अरब अमीरात की लगभग एक करोड़ आबादी में 35 फ़ीसदी भारतीय मूल के प्रवासी हैं। सिद्दीक़ी कहते हैं, “भारत के लोग यूएई की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।”
ये लोग सालाना अपनी कमाई से लगभग 55 अरब डॉलर भारत भेजते हैं। तनेजा मानते हैं कि सरकार ये चाहेगी कि ये पैसा डॉलर में ही आता रहे।
तनेजा कहते हैं, “सरकार ये चाहती है कि ये पैसा डॉलर में ही आये क्योंकि उससे भारत को हार्ड करेंसी मिलती है जिससे उसे फ़ायदा होता है। मध्य पूर्व से जो डॉलर या यूरो भारतीयों के ज़रिये आते हैं उससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है।
भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने इंस्टेंट पेमेंट लिंक करने का समझौता भी किया है। इससे दोनों देशों के बीच लेनदेन आसान होगा।