Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

टॉयलेट नहीं जा पाए, रेलवे देगा हर्जाना

हमें फॉलो करें टॉयलेट नहीं जा पाए, रेलवे देगा हर्जाना
- मानसी दाश
भारतीय रेल को एक प्रभावित व्यक्ति को हर्जाने के तौर पर 30 हजार रुपए देने का आदेश दिया गया है। दरअसल एक ट्रेन में बिना टिकट चढ़ी भीड़ को रोक पाने में नाकाम रहने की वजह से एक व्यक्ति को काफ़ी तकलीफ़ से गुज़रना पड़ा। एक उपभोक्ता अदालत ने भारतीय रेलवे से कहा है कि को देव कांत बग्गा को घंटों तक पेशाब नहीं जा सकने के कारण हुई परेशानी के लिए हर्ज़ाना दे। 
 
भारत सरकार के क़ानून मंत्रालय में डिप्टी क़ानूनी सलाहकार देव कांत साल 2009 में अपने परिवार के साथ अमृतसर से दिल्ली जा रहे थे. इसके लिए उन्होंने रिज़र्वेशन करवाया था। वो बताते हैं, लुधियाना के पास एक स्टेशन में बिना टिकट के बड़ी भीड़ डिब्बे में आ गई। मेरा सफ़र रात भर का था। इस दौरान बाथरूम जाना, हाथ धोने जाना होता है। भीड़ इतनी थी कि बाथरूम की तरफ जाना मुश्किल हो रहा था।
webdunia
देव कांत बग्गा 
वो कहते हैं, डिब्बे में नीचे, चलने के रास्ते पर सभी जगह पर लोग भरे हुए थे। उसमें कुछ औरतें थीं जो बच्चे के साथ फ़र्श पर लेटी हुई थीं। कई औरतें बाथरूम के सामने भी लेट गई थीं तो हम पेशाब तक नहीं जा सकते थे। मैं और मेरे परिवार के लोगों को कई घंटों तक पेशाब रोककर बैठे रहना पड़ा।
 
देव कांत बताते हैं कि उन्होंने टीटीई को इस बारे में बताया, लेकिन उन्होंने कहा कि वो इस मामले में कुछ नहीं कर सकते।
2010 में देव कांत ने रेल मंत्रालय में इसकी शिकायत की थी। बाद में उन्होंने उपभोक्ता अदालत का रुख़ किया। वो कहते हैं, भाग्य की बात है कि मेरे पास एक कैमरा था तो मैंने कुछ तस्वीरें लीं और वीडियो बनाया।
 
वो कहते हैं, मंत्रालय ने माना कि बिना उचित कागज़ के लोग डिब्बे में चढ़े थे, लेकिन उन्होंने कहा कि लोगों को अंबाला में उतार दिया गया था, लेकिन मैं जानता था कि वो लोग तो दिल्ली तक आए थे। इस सिलसिले में कोर्ट ने रेलवे को दो साल पहले ही 30 हज़ार रुपए का हर्जाना देने का आदेश दिया था, लेकिन रेलवे ने इसका विरोध करते हुए अपील की थी।
 
देव कांत कहते हैं, रेलवे से पैसा पाना मेरा उद्देश्य नहीं है, जिसकी ड्यूटी थी उसे कोई नोटिस नहीं भेजा गया, किसी को चेतावनी नहीं दी गई। हमारी व्यवस्था में किसी की ज़िम्मेदारी ही तय नहीं है। हमारे देश में विडंबना है कि, इस छोटे से अधिकार के लिए भी हमें दर-बदर ठोकरें खानी पड़ती हैं। 
 
वो कहते हैं, मैं तो क़ानूनी बैकग्राउंड से हूं तो मैंने सब्र रखा, लेकिन आम आदमी तो टूट जाता है। बीबीसी ने भारतीय रेल से भी इस बारे में बात करने की कोशिश की। रेलवे के प्रवक्ता का कहना है कि वो फ़िलहाल इस विषय पर टिप्पणी नहीं कर सकते।


हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

'लालबत्ती' के आतंक से मुक्ति की नई सुबह