- फैक्ट चेक टीम
बीबीसी न्यूज
भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और देश की पहली महिला आईपीएस अफसर किरण बेदी की यह ब्लैक एंड व्हाइट फोटो सोशल मीडिया पर एक भ्रामक दावे के साथ शेयर की जा रही है।
खाने की टेबल पर बैठीं दोनों महिलाओं की इस तस्वीर के बारे में लिखा जा रहा है कि “इंदिरा गांधी जैसे लीडर रेअर ही मिलते हैं। जब किरण बेदी ने गलत पार्किंग में खड़ी प्रधानमंत्री की गाड़ी का चालान काट दिया था, तब इंदिरा गांधी ने उन्हें सम्मानित करने के लिए घर पर लंच के लिए आमंत्रित किया था।”
हमने पाया कि सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी के बीच तुलना करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
ट्विटर और फेसबुक पर सैकड़ों बार शेयर की जा चुकी इस फोटो के साथ लिखा गया है कि “संस्कारों का अंतर ऐतिहासिक है। इंदिरा गांधी ने कार का चालान करने वाली आईपीएस अफसर को घर बुलाकर ना सिर्फ़ उनके साथ में भोजन किया, बल्कि अवॉर्ड भी दिया। जबकि नरेंद्र मोदी के हेलीकॉप्टर की जाँच करने वाले आईएएस अधिकारी को निलंबित कर दिया गया।”
रिवर्स इमेज सर्च से पता चलता है कि ओडिशा के जनरल पर्यवेक्षक के सस्पेंड होने के बाद से ही इंदिरा गांधी और किरण बेदी का ये फोटो सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होना शुरू हुआ।
इंदिरा गांधी से नाश्ते पर मुलाकात
सोशल मीडिया पर वायरल हुई इंदिरा गांधी और किरण बेदी की इस तस्वीर की पड़ताल के दौरान हमें पता चला कि ये फोटो तो असली है, लेकिन इसके साथ जो दावा किया जा रहा है, उसमें बड़ी तथ्यात्मक गलती है।
वायरल तस्वीर की सच्चाई जानने के लिए हमने पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी से ही बात की।
उन्होंने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनकी ये तस्वीर साल 1975 की है। यानी प्रधानमंत्री कार्यालय की गाड़ी का चालान काटने की घटना से करीब सात साल पहले की।
1975 में ही किरण बेदी को दिल्ली पुलिस में पहली पोस्टिंग मिली थी और इसी साल 26 जनवरी की परेड में उन्होंने दिल्ली पुलिस के एक सैन्यदस्ते का नेतृत्व किया था।
किरण बेदी ने बीबीसी संवाददाता प्रशांत चाहल को बताया कि “पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस बात से खुश हुई थीं कि पुलिस के एक दस्ते का नेतृत्व एक लड़की कर रही है। एक ऐसा दस्ता जिसमें मेरे अलावा सभी पुरुष थे। ये मुकाम हासिल करने वाली मैं पहली भारतीय महिला थी।”
किरण बेदी ने बताया कि इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी की परेड के अगले दिन उन्हें नाश्ते पर आमंत्रित किया था।
उन्होंने बताया, “ऐसा नहीं है कि उन्होंने नाश्ते पर सिर्फ मुझे आमंत्रित किया था। मेरे अलावा 3-4 महिला एनसीसी कैडेट्स को भी पीएमओ से आमंत्रण मिला था। उसी दिन हमारी यह तस्वीर खींची गई थी। इस तस्वीर का जिक्र मैंने 1995 में छपी अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘आई डेयर’ में भी किया है।”
किरण बेदी ने बताया कि 31 अक्तूबर 2014 को उन्होंने यही तस्वीर अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट की थी।
प्रधानमंत्री की कार का चालान
वायरल तस्वीर के साथ जो दूसरा बड़ा दावा किया गया है वो ये है कि किरण बेदी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार का चालान काट दिया था। लेकिन यह दावा भी पूरी तरह सही नहीं है।
किरण बेदी ने हमें बताया कि “दिल्ली पुलिस ने क्रेन का इस्तेमाल कर गलत जगह में खड़ी प्रधानमंत्री हाउस की एक गाड़ी को उठा लिया था। ये 1982 का मामला है। उस गाड़ी को सब-इंस्पेक्टर निर्मल सिंह ने उठाया था जो बाद में दिल्ली पुलिस के एसीपी के तौर पर रिटायर हुए। मैं उस वक्त दिल्ली पुलिस में डीसीपी ट्रैफिक थी। मैंने कभी नहीं कहा कि वो गाड़ी मैंने उठाई थी।”
इंटरनेट पर किरण बेदी के
कुछ पुराने इंटरव्यू भी मौजूद हैं जिनमें उन्हें यही फैक्ट्स पेश करते सुना जा सकता है।
2015 के एक इंटरव्यू में किरण बेदी ने कहा था, “गाड़ी उठाना या उसका चालान करना किसी डीसीपी का काम नहीं होता। लेकिन ऐसे मामलों में अधिकारियों को प्रतिक्रिया जरूर देनी पड़ती है। मुझे जब पता लगा था कि निर्मल सिंह ने ऐसा किया है तो मैंने कहा था कि मैं इस पुलिस कर्मी को अवॉर्ड देना चाहूँगी जिसने अपनी ड्यूटी पर ऐसा साहस दिखाया।”
साल 2015 में ही दिल्ली पुलिस के
रिटायर्ड एसीपी निर्मल सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था कि “ये कहना ज्यादा सही होगा कि पीएम हाउस की गाड़ी दिल्ली पुलिस ने उठाई थी। रही बात क्रेडिट की, तो मैं नहीं मानता कि किरण बेदी ने कभी ये क्रेडिट खुद लेने की कोशिश की हो। इस मामले में जब मेरी फाइल किरण बेदी के पास गई थी तो उन्होंने मुझे सपोर्ट किया था।”
‘फर्जी खबरों से परेशान’
हमने किरण बेदी से पूछा कि क्या प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी या उनके कार्यालय ने कभी इस घटना के लिए दिल्ली पुलिस या उनकी तारीफ की या कोई अवॉर्ड दिया?
तो बेदी ने कहा, “कभी नहीं। बल्कि इंदिरा गांधी के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फोतेदार और कांग्रेस नेता आर के धवन दिल्ली पुलिस से नाराज हो गए थे कि हमें ऐसा करने की क्या जरूरत थी।”
किरण बेदी ने बताया, “कार उठाए जाने की घटना के सात महीने बाद मेरा ट्रांसफर दिल्ली से गोवा कर दिया गया था। यह ट्रांसफर किसी पोस्टिंग के एक निश्चित कार्यकाल से पहले ही कर दिया गया था। मैंने मेडिकल के आधार पर दिल्ली में बने रहने की गुजारिश भी की थी, लेकिन मेरी बात नहीं सुनी गई।”
इस समय पुद्दुचेरी के गवर्नर के पद पर कार्यरत किरण बेदी कहती हैं कि 1995 से वो इस घटना के बारे में लोगों को बता रही हैं, लेकिन इससे जुड़ा कोई न कोई पहलू फर्जी खबर के रूप में बाहर आ ही जाता है।