Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

नज़रिया: तीन महीने में भारत के लिए होगी तेल की क़िल्लत?

हमें फॉलो करें नज़रिया: तीन महीने में भारत के लिए होगी तेल की क़िल्लत?
, सोमवार, 6 अगस्त 2018 (16:38 IST)
शिशिर सिन्हा (वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार)
 
ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंध का पहला चरण आज से शुरू हो रहा है, लेकिन इसका असर भारत पर भी पड़ेगा। इराक और सऊदी अरब के बाद ईरान भारत को तेल बेचने वाला तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
 
 
पिछले हफ़्ते ऐसी ख़बरें आई थीं कि सरकारी तेल कंपनियों ने जुलाई में ईरान से तेल की ज़बरदस्त ख़रीदारी की। प्रतिबंधों का दूसरा चरण जब चार नवंबर से शुरू होगा तो ये सिलसिला रुक जाएगा। बीबीसी संवाददाता विभुराज ने इस मुद्दे पर बिज़नेस जर्नलिस्ट शिशिर सिन्हा से बात की और पूछा कि भारत पर इसका कितना पड़ेगा असर।
 
 
आगे पढ़िए शिशिर सिन्हा का नज़रिया
भारत के लिए कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाले चार प्रमुख देश हैं- ईरान, इराक़, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला। अब तक हमने ईरान पर अमेरिका की पाबंदियों का ख़ुद पर असर रोकने के लिए कुछ इंतज़ाम कर रखे थे। मसलन, हमने रुपया-रियाल समझौता कर रखा था, जिसके तहत हम अपना भुगतान रुपयों में कर सकते थे।
 
 
दूसरा हमारा बार्टर सिस्टम भी लागू था कि हमें कुछ खाद्यान्न देना है तो उसके बदले हम कच्चा तेल ले लेते थे। ये इंतज़ाम अब भी लागू हैं, लेकिन अमेरिकी पाबंदियां पूरी तरह लागू होने के बाद वे निष्प्रभावी हो जाएंगे। असली परेशानी नवंबर से शुरू होने वाली है।
 
 
अमेरिका प्रतिबंध दो चरणों में है। पहला चरण 6 अगस्त से शुरू हो रहा है जब न तो डॉलर से रियाल ख़रीदा जा सकेगा और न ही रियाल से डॉलर। दूसरे चरण में नवंबर से कच्चे तेल को लाने-ले जाने वाले अमेरिकी टैंकरों का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद हो जाएगा।
 
 
तेल का एक स्रोत बंद?
ज़्यादातर निजी कंपनियों ने ईरान से तेल मंगाना कम कर दिया है और जो सरकारी कंपनियां हैं, जिनके पुराने समझौते थे वो जल्दी-जल्दी उसे पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसीलिए आपने देखा होगा कि जून-जुलाई में ईरान से काफी मात्रा में हमारे यहां कच्चा तेल आया।
 
 
यहां तक तो स्थिति ठीक है, लेकिन नवंबर से हम ईरान से तेल नहीं ले सकेंगे क्योंकि अमेरिकी टैंकरों का इस्तेमाल नहीं हो पाएगा। दूसरा, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अहम समझी जाने वाली रिएश्योरैंस की पॉलिसी प्रभाव में नहीं रहेगी क्योंकि उसे भी अमेरिकी कंपनियां मुहैया कराती हैं। तो हमारी समस्या ये हो जाएगी कि हमारा तेल का एक स्रोत बंद हो जाएगा।
 
 
ऐसे में दूसरा विकल्प हमारे लिए वेनेज़ुएला हो सकता है लेकिन ख़बर है कि उसके ख़िलाफ़ भी पाबंदी लगाई जा सकती है। अगर ऐसा हुआ तो हमारे लिए कच्चे तेल की आपूर्ति पर असर पड़ सकता है और हमें नए विकल्प तलाशने होंगे। फिलहाल हमारे लिए कोई बड़ी परेशानी नहीं होगी, लेकिन अगर यह स्थिति बनी रही तो नवंबर के बाद ज़रूर हमारी चिंता बढ़ेगी।
 
 
क्या कोई रास्ता निकल सकता है?
इससे बचने का एक रास्ता है। अगर अमेरिकी हमें रियायत दे दे कि हम ईरान से कच्चा तेल ले सकते हैं और उसका भुगतान यूरो या दूसरी मुद्राओं में कर सकते हैं तो इससे हमारी राह आसान हो जाएगी। लेकिन अभी तक अमेरिका का रुख़ नरम पड़ता नहीं दिख रहा है। ऐसे में हम ये उम्मीद करें कि तमाम पाबंदियों के बाद वो नवंबर से हमें ईरान से तेल लाने की इजाज़त देगा, वो भी अपने टैंकरों के ज़रिये, इसकी संभावना कम है।
 
 
ईरान-भारत संबंधों पर असर
हमारे और ईरान के बीच द्विपक्षीय संबंध एक अलग मसला है। लेकिन दिक़्क़त ये है कि ईरान से कोई माल चले और भारत ही न पहुंचे यानी बीच का माध्यम ही जब टूट जाए तो देशों के संबंध इसमें कुछ ख़ास नहीं कर सकते हैं।
 
द्विपक्षीय संबंध अपनी जगह हैं, लेकिन माध्यम टूट जाएगा तो व्यापार कैसे करेंगे।
 
अब सवाल है कि अगर डॉलर में व्यापार होता तो भारत को क्या सहूलियत थी?
 
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ज़्यादातर भुगतान डॉलर में होता है। डॉलर में उसकी स्वीकृति ज़्यादा है। डॉलर में अगर व्यापार जारी रहता तो यह हमारे लिए सहूलियत की बात थी। लेकिन हमने ईरान से रियाल-रुपया व्यापार समझौता किया है, बार्टर सिस्टम को मंज़ूरी दी हुई है, लेकिन बार-बार वही मुद्दा आएगा कि जब बीच का माध्यम ही ख़त्म हो जाएगा तो व्यापार कैसे होगा।
 

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

फ़ारूक़ अब्दुल्ला के घर मारा गया यह युवक कौन था?