पल्लव बागला (पत्रकार, विज्ञान मामलों के जानकार)
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी 40 के साथ एक साथ 31 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे हैं। भारत के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि है क्योंकि पिछले साल अगस्त में पीएसएलवी-सी 39 का मिशन फेल हो गया था। इसके बाद प्रक्षेपण यान पीएसएलवी को फिर से तैयार किया गया।
कोई रॉकेट फेल हो जाए तो उसे मरम्मत करके दोबारा नया जैसा बनाकर लांचिंग पैड पर उतारना बहुत बड़ी बात है। ये भारत का 'वर्कहॉर्स रॉकेट' है जिसके फेल होने से भारत की दिक्कतें बहुत बढ़ जाती हैं।
इस लांच में क्या है ख़ास?
इस रॉकेट में खास बात ये है कि ये 30 मिनट के मिशन में उपग्रहों को छोड़ने के बाद दो घंटे और चलेगा। इन दो घंटों में रॉकेट की ऊंचाई कम की जाएगी और एक नई कक्षा में नया उपग्रह छोड़ा जाएगा। ये एक अलग किस्म का मिशन है।
इस बार पीएसएलवी के साथ भारत का एक माइक्रो और एक नैनो उपग्रह भी है जिसे इसरो ने तैयार किया है। इसमें सबसे बड़ा उपग्रह भारत का कार्टोसैट 2 सीरीज़ का उपग्रह है। 28 अन्य उपग्रह इसमें सहयात्री की तरह हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फिनलैंड, दक्षिण कोरिया के उपग्रह भी शामिल हैं। ऐसे उपग्रह छोड़ने से इसरो की थोड़ी कमाई भी हो जाती है।
'आई इन द स्काई'
शुक्रवार के लांच में भारत ने एक खास उपग्रह छोड़ा है जिसका नाम कार्टोसैट-2 है। इसे 'आई इन द स्काई' यानी आसमानी आंख भी कहा जा रहा है। ये एक अर्थ इमेजिंग उपग्रह है जो धरती की तस्वीरें लेता है। इसका भारत के पूर्वी और पश्चिमी सीमा के इलाकों में दुश्मनों पर नज़र रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इस तरह के भारत के पास कई उपग्रह हैं, कार्टोसैट-2 उसमें एक इज़ाफा है। ये 'आई इन द स्काई' वाला सैटलाइट है। इसी का एक भाई अंतरिक्ष में अभी भी काम कर रहा है। उसी के ज़रिए वो तस्वीरें मिली थीं जिनकी मदद से लाइन ऑफ़ कंट्रोल के पार सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था। कार्टोसैट-2 उपग्रह एक बड़े कैमरे की तरह है।
(पल्लव बागला से बीबीसी संवाददाता मानसी दाश से बातचीत पर आधारित।)