फ़ैसल मोहम्मद अली, दिल्ली
मंगलवार शाम को जब जयललिता के पार्थिव शरीर को क़ब्र में उतारा जा रहा था तो कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहे थे कि हिंदू रस्म और परंपरा के मुताबिक़ मौत के बाद शरीर का दाह संस्कार किया जाता है। जयललिता के मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
मद्रास विश्वविद्यालय में तमिल भाषा और साहित्य के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर डॉक्टर वी अरासू कहते हैं कि इसकी वजह है जयललिता का द्रविड़ मूवेमेंट से जुड़ा होना - द्रविड़ आंदोलन जो हिंदू धर्म के किसी ब्राह्मणवादी परंपरा और रस्म में यक़ीन नहीं रखता। वो एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। जिसके बाद वो एक द्रविड़ पार्टी की प्रमुख बनीं, जिसकी नींव ब्राह्मणवाद के विरोध के लिए पड़ी थी।
डॉक्टर वी अरासू कहते हैं कि सामान्य हिंदू परंपरा के ख़ि़लाफ़ द्रविड़ मूवमेंट से जुड़े नेता अपने नाम के साथ जातिसूचक टाइटिल का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। दक्षिण भारत से ताल्लुक़ रखने वाले ये भी बताते हैं कि अयंगार ब्राह्मणों में ऐसी परंपरा है कि अगर किसी महिला का शादी नहीं हुई हो तो उसे दफ़नाया जा सकता है।
वो अपने राजनीतिक गुरु एमजीआर की मौत के बाद पार्टी की कमान हाथ में लेने मे कामयाब रहीं। एमजीआर को भी उनकी मौत के बाद दफ़नाया गया था। उनकी क़ब्र के पास ही द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता और डीएमके के संस्थापक अन्नादुरै की भी क़ब्र है, अन्नादुरै तमिलनाडु के पहले द्रविड़ मुख्यमंत्री थे।
एमजीआर पहले डीएमके में ही थे लेकिन अन्नादुरै की मौत के बाद जब पार्टी की कमान करुणानिधि के हाथों चली गई तो कुछ सालों के बाद वो पुराने राजनीतिक दल से अलग हो गए और एआईएडीएमके की नींव रखी।
कुछ लोग उनको दफ़नाये जाने की वजह को राजनीतिक भी बता रहे हैं। उनका कहना है कि जयललिता की पार्टी एआईडीएमके उनकी राजनीतिक विरासत को सहेजना चाहती है, जिस तरह से एमजीआर की है। जयललिता के अंतिम संस्कार वे वक़्त पंडित जो थोड़े बहुत रस्म करते दिखे उसमें उनकी नज़दीकी साथी शशिकला शामिल नज़र आईं।
कुछ टीवी चैनल ये कह रहे हैं कि जयललिता के मामले में जो रस्म अपनाई गई है वो श्रीवैष्णव परंपरा से ताल्लुक़ रखती है। लेकिन, एकेडमी ऑफ़ संस्कृत रिसर्च के प्रोफ़ेसर एमए लक्ष्मीताताचर ने वरिष्ठ पत्रकार इमरान कुरैशी से कहा है कि इसे श्रीवैष्णव परंपरा से जुड़ा बताना ग़लत है।
प्रोफ़ेसर एमए लक्ष्मीताताचर के मुताबिक़, इस परंपरा में "शरीर पर पहले पानी का छिड़काव किया जाता है, साथ ही साथ मंत्रोच्चार होता रहता है ताकि आत्मा वैकुंठ जा पहुंचे।" उनके मुताबिक़, इसके साथ-साथ ही माथे पर तिलक लगाया जाता है और शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है।