- समीरात्मज मिश्र
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने गुरुवार को शामली में एक रैली को संबोधित किया। तीन दिन के भीतर कैराना लोकसभा क्षेत्र में उनकी ये दूसरी सभा थी। योगी के अलावा उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय और राज्य के कई मंत्री, सांसद, विधायक और दूसरे बड़े नेता भी लगातार यहां चुनाव प्रचार में लगे हैं। कैराना में 28 मई को मतदान होना है।
दूसरी ओर राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार तबस्सुम हसन को यूं तो समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस का समर्थन मिल रहा है, लेकिन इन पार्टियों के बड़े नेताओं की अभी तक न तो यहां कोई सभा हुई और न ही किसी दल का कोई बड़ा नेता चुनाव प्रचार करने आया। ये ज़रूर है कि शामली ज़िले में राष्ट्रीय लोकदल के चुनाव कार्यालय में दोपहर के दो बजे भी गठबंधन की सभी पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता मौजूद रहते हैं।
समर्थन को लेकर आशंका
गठबंधन में शामिल पार्टियों के समर्थन को लेकर भी आशंकाएं जताई जा रही हैं, लेकिन कांग्रेस नेता इमरान मसूद इन आशंकाओं को ख़ारिज करते हैं। वो कहते हैं, "शुरुआत में उम्मीदवार चयन को लेकर कुछ मतभेद ज़रूर थे, लेकिन अब सब सुलझा लिया गया है और सपा, बसपा, आरएलडी और कांग्रेस के सभी कार्यकर्ता और नेता तन, मन, धन से तबस्सुम हसन के साथ हैं।"
रैली या जनसभा के सवाल पर इमरान मसूद कहते हैं, "वो लोग सिर्फ़ ज़मीन पर काम कर रहे हैं रैली हमें करनी भी नहीं है और न ही कोई बड़ा नेता आएगा। ये चुनाव सिर्फ़ कार्यकर्ताओं का है और कार्यकर्ता इसे लड़ रहे हैं। ये सब हमारी रणनीति का हिस्सा है जिसका परिणाम 31 मई को दिख जाएगा।"
इमरान मसूद कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और सहारनपुर से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। कैराना सीट पर उपचुनाव की घोषणा के साथ ही उन्होंने कांग्रस पार्टी को गठबंधन में शामिल न होने और चुनाव लड़ने की सलाह दी थी लेकिन बाद में पार्टी ने गठबंधन को समर्थन देने का फ़ैसला किया। जानकारों का कहना है कि इमरान मसूद और राष्ट्रीय लोकदल की उम्मीदवार के बीच सियासी रंज़िश भी थी लेकिन अब दोनों ने ही उसे भुला दिया है।
यहां तक कि आरएलडी उम्मीदवार तबस्सुम हसन के ख़िलाफ़ उनके ही परिवार के एक सदस्य कंवर हसन भी निर्दलीय चुनाव लड़ गए थे लेकिन गुरुवार को उन्होंने भी तबस्सुम हसन को समर्थन देने की घोषणा कर दी और ख़ुद मैदान से हट गए। यहां तक कि उन्होंने ख़ुद भी आरएलडी की सदस्यता ग्रहण कर ली।
जहां तक सपा, बसपा या फिर कांग्रेस के बड़े नेताओं के चुनाव प्रचार में न आने की बात है तो इन पार्टियों के नेता इसके पीछे कोई सियासी वजह नहीं देखते। सपा नेता अफ़ज़ल चौधरी कहते हैं, "पार्टी के सभी कार्यकर्ता आरएलडी उम्मीदवार के समर्थन में मतदाताओं को अपनी ओर कर रहे हैं। ये गठबंधन यहां भी सफल होगा और आगे भी चलेगा।"
आरएलडी अपने हाल पर
जानकारों का कहना है कि ये लड़ाई गठबंधन के नाम पर भले ही लड़ी जा रही हो लेकिन दरअसल, यहां राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी का अस्तित्व दांव पर लगा है। यही वजह है कि बड़े नेताओं के नाम पर गठबंधन की ओर से सिर्फ अजीत सिंह और जयंत चौधरी ही प्रचार करते नज़र आ रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार रियाज़ हाशमी कहते हैं, "मुज़फ़्फ़रनगर दंगों के बाद सबसे ज़्यादा राजनीतिक फ़ायदा बीजेपी को हुआ और सबसे ज़्यादा नुकसान आरएलडी। बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि जाट-मुस्लिम समीकरण दोबारा मज़बूत हो क्योंकि इसका नतीजा उसकी कमज़ोरी और आरएलडी की मज़बूती के रूप में होगा।"
"दूसरे, गठबंधन में शामिल दलों ने भी उसे अपने हाल पर छोड़ दिया है। अगर सीट आरएलडी जीत जाती है तो 2019 में वो कम से कम चार-पांच सीटों पर अपना दावा पेश करेगी और यदि हार जाती है तो एक-दो सीटों पर भी मोल-भाव करने की स्थिति में नहीं रहेगी।"
जाट-मुसलमान को साथ लाना बड़ी चुनौती
रियाज़ हाशमी कहते हैं कि मुज़फ़्फ़रगर दंगों से पहले किसान, जाट और गूजर हिन्दू और मुसलमान दोनों थे, लेकिन अब इनकी पहचान हिन्दू और मुसलमान की तरह हो गई है। वो कहते हैं, "गठबंधन के लिए इन दोनों यानी जाट और मुसलमान को साथ लाना बड़ी चुनौती है और यदि ये साथ वास्तव में आ गए तो निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए ख़तरा बन जाएंगे।"
कैराना लोकसभा क्षेत्र में सहारनपुर की दो विधान सभा सीटें और शामली ज़िले की तीन विधान सभा सीटें आती हैं। यहां कुल 17 लाख मतदाता हैं जिनमें सबसे ज़्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। इसके अलावा जाटों और गुर्जरों की संख्या भी काफी है। गठबंधन को लेकर शुरुआत में आशंकाएं भले ही जताई जा रही थीं लेकिन जैसे-जैसे मतदान की तारीख़ नज़दीक आती जा रही है, गठबंधन में शामिल दल भी नज़दीक आ रहे हैं।
आम आदमी पार्टी के अलावा सहारनपुर की भीम आर्मी ने भी गठबंधन के समर्थन में बयान जारी कर दिया है। अब देखना ये है कि गठबंधन में शामिल ये सभी दल बीजेपी पर भारी पड़ते हैं या फिर बीजेपी अकेले इन्हें मात देने में सफल होती है।