समीरात्मज मिश्र, बीबीसी हिंदी के लिए
कांवड़ यात्रा की अनुमति दिए जाने के मामले में यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करके ऐसा करने की वजह पूछी है तो दूसरी ओर कांवड़ लाने वाले श्रद्धालुओं में भी इस बात को लेकर बेचैनी है कि जब उत्तराखंड सरकार ने यात्रा की अनुमति नहीं दी है तो यूपी सरकार के अनुमति देने के बावजूद कांवड़ यात्रा कैसे संभव हो सकेगी?
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए यह जानना चाहा है कि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर की आशंका और उत्तराखंड सरकार की ओर से कांवड़ यात्रा की इजाज़त न दिए जाने के बावजूद यूपी सरकार यात्रा को अनुमति क्यों देना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 16 जुलाई को होगी।
मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज़िलों के अधिकारियों के साथ हुई वर्चुअल बैठक में कांवड़ यात्रा निकालने की अनुमति देते हुए अधिकारियों को निर्देश दिए कि इस दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का भी पालन किया जाए।
मुख्यमंत्री योगी ने अधिकारियों से यह भी कहा कि कोरोना संक्रमण को लेकर विशेषज्ञों के भविष्य के आकलनों को ध्यान में रखते ही कांवड़ यात्रा का आयोजन किया जाए।
यूपी सरकार ने यात्रा की अनुमति देने का फ़ैसला तब लिया जब एक दिन पहले ही उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संक्रमण की आशंका को देखते हुए यात्रा को अनुमति न देने का फ़ैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार के इस फ़ैसले का ख़ुद संज्ञान लिया और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।
कांवड़ यात्रा उत्तराखंड में गोमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश और हरिद्वार से शुरू होकर उत्तर प्रदेश के 11 शहरों में बड़े स्तर पर आयोजित होती है।
चुनौती : हालांकि कोई बड़ी संस्था इसके आयोजन में शामिल नहीं रहती लेकिन जगह-जगह से लोग बड़ी संख्या में जुटकर उत्तराखंड के इन शहरों से गंगाजल लाकर अपने आस-पास के बड़े शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं। कांवड़ यात्रा छिटपुट तरीक़े से राज्य के अन्य हिस्सों में भी होती है।
ऐसे में यह यात्रा क़ानून व्यवस्था के लिए भी एक बड़ी चुनौती होती है। इन शहरों में सैकड़ों की संख्या में विभिन्न संस्थाओं की ओर से कांवड़ शिविर भी लगाए जाते हैं जहां श्रद्धालुओं के विश्राम और उनके खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है।
मेरठ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी कहते हैं कि अभी सरकार की ओर से किसी तरह की गाइड लाइन जारी नहीं हुई है लेकिन पिछले अनुभवों के आधार पर तैयारियां शुरू कर दी गई हैं।
बीबीसी से बातचीत में प्रभाकर चौधरी कहते हैं, "हम बैठकें कर रहे हैं। इसमें सभी विभागों की भूमिका होती है मसलन, बिजली विभाग, सिंचाई विभाग इत्यादि। तमाम छोटे-छोटे मुद्दे आते हैं जिनके लिए को-ऑर्डिनेशन बहुत ज़रूरी है। कोशिश होगी कि श्रद्धालुओं को समझाया जाए कि बिजली के तारों पर कांवड़ न टांगें, दुर्घटनाएं न होने पाएं, गंग नहर की बैरिकेडिंग की जाएगी। अभी आधिकारिक रूप में यात्रा के बारे में कुछ आदेश आया नहीं है। लेकिन हम लोग अपनी तैयारी रखेंगे ताकि यात्रा की अनुमति मिलने पर कोई दिक़्क़त न हो।"
पिछले साल नहीं हुई थी कांवड़ यात्रा : कोरोना संक्रमण के चलते पिछले साल कांवड़ यात्रा नहीं हुई थी। इस बार 25 जुलाई से छह अगस्त के बीच यह यात्रा होनी है। हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं इसमें शामिल होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, साल 2019 में क़रीब चार करोड़ श्रद्धालुओं ने कांवड़ यात्रा में हिस्सा लिया था।
मेरठ में अभिषेक अग्रवाल क़रीब बीस साल से कांवड़ लेने अपने तमाम साथियों के साथ हरिद्वार जाते हैं। अभिषेक कहते हैं कि पिछली बार भी नहीं गए थे और इस बार भी नहीं जाएंगे।
बीबीसी से बातचीत में अभिषेक कहते हैं, "योगी जी ने अनुमति देने की बात कही है, उन्हें धन्यवाद। लेकिन कोई फ़ायदा नहीं। जब हरिद्वार जा ही नहीं पाएंगे तो जल कहां से भरेंगे। पिछले दो साल से नहीं हो रही है यात्रा जबकि चुनाव भी हो रहे हैं, कुंभ भी हो रहा है और आंदोलन भी हो रहे हैं। सारी पाबंदी कांवड़ यात्रा के लिए ही है।"
अभिषेक अग्रवाल कहते हैं कि कोरोना प्रोटोकॉल का सख़्ती से पालन करते हुए कांवड़ यात्रा की अनुमति देने में कोई बुराई नहीं है लेकिन कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो इस पर प्रतिबंध लगाने को ही सही मानते हैं। मुज़फ़्फ़रनगर के रहने वाले शिवेश सिंह भी अपने साथियों के साथ कांवड़ लेने हरिद्वार जाते हैं लेकिन उनका कहना है कि दूसरी लहर की भयावहता और तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए यात्रा न कराना ही बुद्धिमानी है।
वो कहते हैं, "कांवड़ियों की भीड़ और कुछेक कांवड़िया समूहों के हुड़दंग को रोक पाना प्रशासन के लिए आसान नहीं है। आरटीपीसीआर जांच की बात सरकार कह रही है लेकिन यह सब कितना संभव है, इसे हरिद्वार कुंभ में देख लिया गया है। इसलिए लोगों को मौत के मुंह में डालने से अच्छा है कि यात्रा की अनुमति न दी जाए। जब माहौल ठीक हो जाएगा, तब दोबारा शुरू हो जाएगी।"
सवाल : दरअसल जो सवाल सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछे हैं, वही तमाम दूसरे लोग भी सरकार से पूछ रहे हैं।
ख़ुद प्रधानमंत्री कुछ दिन पहले भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने और भीड़ लगाने से बचने की सलाह दी थी। पिछले साल भी यात्रा नहीं हुई थी, ऐसे में इस बार सरकार यात्रा क्यों कराना चाहती है।
वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं, "यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंदीदा चीज़ है। इसमें धार्मिक आस्था से ज़्यादा एक संदेश भी है कि आस्था को लेकर वे कितने सजग हैं। ख़ुद भी महंत हैं। कांवड़ियों पर फूल बरसाए जाते हैं, डीएम-एसपी उनके पैर दबाते हैं तो उन्हें प्रसन्नता होती है। कांवड़िए ख़ुश होते हैं तो उन्हें शायद राजनीतिक फ़ायदा भी होता है। इसीलिए ऐसे आयोजनों पर यह सरकार कुछ करती है तो उसे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाती भी है। चाहे कांवड़ यात्रा हो, कुंभ हो या फिर अयोध्या में दीपोत्सव जैसे कार्यक्रम हों।"
शरद प्रधान कहते हैं कि योगी सरकार सुप्रीम कोर्ट में जवाब देगी और हो सकता है कि कोविड प्रोटोकॉल का ध्यान रखते हुए यात्रा आयोजित करने का हलफ़नामा भी दे।
उनके मुताबिक, "वो कह सकते हैं कि हम सावधानी बरतेंगे, प्रोटोकॉल का पालन करेंगे लेकिन कितना पालन होगा, यह देखने वाली बात होगी। हां, सरकार अपने लोगों को यह संदेश देने में ज़रूर क़ामयाब होगी कि योगी जी किसी भी क़ीमत पर कांवड़ यात्रा जैसे धार्मिक आयोजन कराना चाहती है। आने वाले महीनों में विधानसभा चुनाव हैं। ऐसे संदेश काफ़ी मायने रखते हैं। पिछले साल भी सरकार यात्रा के आयोजन की ज़िद कर सकती थी लेकिन तब ऐसा नहीं हुआ।"
हालांकि अभिषेक अग्रवाल कहते हैं कि सरकार कोई भी रही हो, उन लोगों को कांवड़ यात्रा में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई।
वे कहते हैं, "कांवड़ लेने लोग ख़ुद जाते हैं, कोई संस्था तो इसे आयोजित करती नहीं। रास्ते में तमाम लोग और संस्थाएं श्रद्धालुओं के सत्कार के लिए शिविर लगाती हैं। सरकार को बस क़ानून-व्यवस्था का इंतज़ाम देखना होता है जो उसकी ज़िम्मेदारी है। इसके अलावा कांवड़ियों को सरकार कोई मदद देती भी नहीं है और न ही कोई इसकी मांग करता है।"
इसी साल अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हरिद्वार में कुंभ का आयोजन हुआ था। हालांकि पहले कुंभ के आयोजन को लेकर असमंजस बना हुआ था लेकिन बाद में आयोजन हुआ और फिर संक्रमण बढ़ने के कारण उसे बीच में ही समाप्त भी करना पड़ा।
उत्तराखंड में कुंभ आयोजन से जुड़े एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बताते हैं कि आरटीपीसीआर जांच के बिना किसी को प्रवेश न करने देने और कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने का संकल्प लिया गया था लेकिन वास्तव में इसका पालन हो नहीं पाया।
उनके मुताबिक, यही वजह है कि यहां से जाने के बाद तमाम लोग संक्रमित हुए और कई लोगों की संक्रमण से मौत भी हुई।
सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद राज्य सरकार के आला अधिकारी इस मामले में कुछ भी बताने से परहेज़ कर रहे हैं लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार यात्रा को रद्द करने के मूड में नहीं है।
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, "कांवड़ संगठनों से बात करके यात्रा से जुड़ी तैयारियां की जा रही हैं। सरकार कोविड प्रोटोकॉल के तहत सीमित संख्या में लोगों को यात्रा के लिए अनुमति देने की तैयारी कर रही है। सरकार का मानना है कि कोविड नियमों का पालन भी हो और लोगों की आस्था का भी सम्मान हो।"