सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
बीते चौबीस घंटों में देश में कोरोना संक्रमण के 96,982 नए मामले दर्ज किए गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ बीते 24 घंटों में देश में कोरोना के कारण 446 मौतें हुई हैं।
इन आँकड़ों के बीच ख़बर है कि भारत के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन 6 अप्रैल को 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करेंगे। रविवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थिति का जायज़ा लिया था और महाराष्ट्र समेत तीन राज्यों में स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम रवाना करने का फ़ैसला किया गया है।
लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है?
आख़िर सितंबर से लेकर अब तक ऐसा क्या बदला है कि अचानक कोरोना के मामले इतनी तेज़ी से बढ़ने लगे? अब तो कोरोना की वैक्सीन भी आ गई है, ऐसे में तो मामले घटने चाहिए, फिर ऐसा क्यों हो रहा है। इसके पीछे कारण क्या हैं?
पहली वजह: कोरोना से बचे लोगों की आबादी बहुत ज़्यादा है
डॉक्टर शाहिद जमील देश के जाने माने वायरोलॉजिस्ट हैं। उन्होंने बीबीसी को बताया, 'कोविड19 के मरीज़ों की संख्या में बढ़ोतरी तभी देखने को मिलेगी, जब एक बड़ी आबादी को कोविड19 नहीं हुआ हो। देश में अब तक हुए सीरो सर्वे में हमने देखा कि एक बड़ी आबादी अब भी कोविड19 महामारी से बची थी, जो इंफ़ेक्शन की चपेट में नहीं आए थे। मसलन मुंबई में प्राइवेट अपार्टमेंट में रहने वालों में अब ज़्यादा मामले देख जा रहे हैं। वहाँ प्राइवेट अस्पतालों में लोग अब ज़्यादा भर्ती हो रहे हैं, सरकारी अस्पतालों में बेड्स अब भी ख़ाली हैं। ये बताता है कि ऐसी आबादी भारत में अब भी काफ़ी हैं, जो ख़तरे की चपेट में आ सकते थे। कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में वही लोग ज़्यादा आ रहे हैं।'
सफ़दरजंग अस्पताल में कम्युनिटी मेडिसिन के हेड डॉक्टर जुगल किशोर सीरो सर्वे के ज़रिए इस बात को समझाते हैं। वो कहते हैं, 'जिन जगहों पर सीरो सर्वे हुए, हर इलाक़े में आँकड़े अलग आए थे। इसका मतलब साफ़ है कि कहीं 50 फ़ीसदी लोगों को कोविड हुआ था, तो कहीं 20 फ़ीसदी को, तो कहीं 30 फ़ीसदी को। गाँवों में ये थोड़ा और कम था। लोगों को बचाने के लिए सरकार ने उन्हें घर में रखा, बाहर निकलने पर पाबंदियाँ लगाई। लेकिन अब तक बचने का मतलब ये नहीं कि आगे कोविड19 नहीं होगा। इंफ़ेक्शन कंट्रोल तब होगा, जब सबके अंदर एंटीबॉडी बन जाएगी। हर्ड इम्यूनिटी तभी काम करती है, जब 60-70 फ़ीसदी के अंदर एंटीबॉडी विकसित हो जाए और बाक़ी के 40-30 फ़ीसदी लोग अपनी ही जगह पर रहें। लेकिन जब बाक़ी बचे 40-30 फ़ीसदी लोग सफ़र करने लगे, लोगों से मिलना-जुलना बढ़ाने लगे, तो हर्ड इम्यूनिटी का कुछ नहीं किया जा सकता। सीरो सर्वे सही था, लेकिन दिक़्क़त उन 40-30 फ़ीसदी लोगों की वजह से है, जो अभी तक बचे थे और अब मेलजोल बढ़ा रहे हैं।'
दूसरी वजह: लोगों का सावधानी न बरतना
कोविड19 एप्रोप्रियेट बिहेवियर का मतलब है बार-बार कुछ समय के अंतराल पर हाथ धोना, दो गज़ की दूरी बनाए रखना और मास्क पहनना। वैक्सीन आने के बाद लोगों ने वैक्सीन लगवाई हो या नहीं लगवाई हो, लेकिन ये सबने मान ज़रूर लिया है कि अब मास्क पहनने की, दो गज़ की दूरी की, बार-बार हाथ धोने की ज़रूरत नहीं हैं।
बाज़ार खुल गए हैं, पाँच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, कुंभ मेला चल रहा है, लोगों ने नौकरी पर जाना शुरू कर दिया है। चुनाव वाले प्रदेशों से जो तस्वीरें आ रही हैं, उनसे स्पष्ट है कि लोगों को अब कोविड19 के ख़िलाफ़ सावधानी बरतने की आदत ही नहीं रही है। नेता भी उसमें शामिल दिख रहे हैं। वायरस इस वजह से दोबारा आक्रामक दिख रहा है।
डॉक्टर जुगल किशोर इसी बात को दूसरे शब्दों में समझाते हैं। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "इस तरह की बीमारी में मरीज़ों की संख्या में बढ़ोतरी दो बातों पर निर्भर करती है -
1. आम इंसान इस बीमारी के बीच, बचाव के लिए कैसे अपने व्यवहार में तब्दीली लाता है और
2. वायरस के व्यवहार में कैसी तब्दीली आती है।
लोग अपने व्यवहार में तो तब्दीली ला सकते हैं। शुरुआत में लोगों ने कुछ बदलाव किया था, मास्क पहनना शुरू किया, घरों से निकलना कम किया, हाथ धोना शुरू किया। लेकिन अब वो सब छोड़ दिया है।
तीसरी वजह: तेज़ी से बढ़ते मामलों में म्यूटेंट का रोल
डॉक्टर जुगल के मुताबिक़ तेजी से वायरस के फैलने की एक और वजह है वायरस के बिहेवियर में बदलाव। वायरस में जो बदलाव हुए हैं, जिसे म्यूटेंट कहा जा रहा है, वो उसे सक्षम बना रहा है तेज़ी से फैलने के लिए।
भले ही बड़ी स्टडी इस बारे में ना हुई हो, लेकिन कुछ छोटी जीनोमिक स्टडी हुईं हैं, जो बताती हैं कि भारत में यूके स्ट्रेन औऱ दक्षिण अफ़्रीका का स्ट्रेन आ चुका है। महाराष्ट्र के सैंपल में इनके अलावा भी एक और म्यूटेशन पाया गया है, जिस पर स्टडी होनी है।
सरकार ने ख़ुद स्वीकार भी किया है कि पंजाब से जितने मामले सामने आ रहे हैं, उनमें म्यूटेंट वायरस भी हैं। यूके में देखा गया कि वहाँ का वेरिएंट ज़्यादा तेज़ी से संक्रमण फैलाता है।
चौथी वजह: R नंबर बढ़ रहा है
डॉक्टर टी जैकब जॉन क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर में वायरोलॉजी के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर हैं। वो कहते हैं कि कोरोना की पहली लहर और दूसरी लहर में बहुत अंतर है, जो साफ़ देखा जा सकता है। पहली लहर में कोरोना के मामले लॉकडाउन और लोगों के घर वापसी के बावजूद धीमी रफ़्तार से हफ़्ते दर हफ़्ते बढ़ते गए।
लेकिन इस बार का ग्राफ़ देंखें, तो मामले अचनाक बहुत तेज़ी से बढ़ हैं। इसका मतलब है कि संक्रमण की दर जिसे R नंबर भी कहते हैं, वो तेज़ी से बढ़ा है।
R नंबर वायरस के रिप्रोडक्टिव नंबर को बताता है। डॉक्टर जॉन के मुताबिक़, "पहली लहर के दौरान ये R नंबर 2 से 3 के बीच था। लेकिन दूसरी लहर में ये 3 से 4 के बीच हो गया है। ये इस बात का सूचक है कि दूसरी लहर का वायरस पिछले साल वाले वायरस के मुक़ाबले अलग है।"
वो आगे कहते हैं, "कोरोना की पहली लहर के आँकड़ों के आधार पर एक अनुमान लगाया जा रहा है कि उस लहर में 60 फ़ीसदी लोगों को ये बीमारी हुई थी और 40 फ़ीसदी बचे रह गए थे। चूंकि उसी 40 फ़ीसदी को अब दूसरी लहर में कोरोना हो रहा है, इसलिए मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं, पीक भी ज़ल्दी आएगा और ग्राफ़ जब नीचे होगा, तो इसी तेज़ी से होगा। फ़िलहाल ये अनुमान लगाया जा रहा है।"
लेकिन क्या इस आधार पर ये कहा जा सकता है कि नए मामलों में दोबारा इंफेक्शन के मामले नहीं है? और केवल बचे हुए लोगों को ही कोरोना हो रहा है? इस पर डॉक्टर जॉन कहते हैं कि इस बारे में विस्तृत स्टडी की ज़रूरत है। तभी पुख़्ता तौर पर कुछ कहा जा सकता है।
पाँचवी वजह:शहरों में वापस आ रहे हैं लोग?
कुछ जानकार इस तेज़ी के पीछे एक वजह शहर की तरफ़ लोगों के वापस लौटने को भी मान रहे हैं। डॉक्टर जुगल भी ऐसा सोचने वालों में शामिल हैं।
उनके मुताबिक़ दिल्ली, महाराष्ट्र और पंजाब वो राज्य हैं, जहाँ से बहुत बड़ी संख्या में लोग लॉकडाउन के दौरान अपने राज्य लौट गए थे। सब कुछ खुलने के बाद, वैक्सीन की वजह से लोग दोबारा से शहरों का रुख़ कर रहे हैं। शहरों में कोरोना बढ़ने का एक कारण ये भी हो सकता है।
तो क्या दूसरी लहर के सामने भारत सरकार पहले की ही तरह लाचार और बेबस है? आख़िर मामलों को रोकने के उपाए क्या हैं? क्या दोबारा लॉकडाउन इसका उपाय है? तीनों जानकार डॉक्टरों से हमने यही सवाल पूछा।
वैक्सीनेशन स्ट्रैटेजी में बदलाव
डॉक्टर जमील कहते हैं, इससे निपटने के लिए भारत सरकार को वैक्सीनेशन स्ट्रैटेजी में बदलाव लाना होगा। "भारत में केवल 4.8 फ़ीसदी आबादी को वैक्सीन का पहला डोज़ लगा है और 0.7 फ़ीसदी आबादी को दूसरा डोज़ लगा है। अभी भी भारत अपने टारगेट से काफ़ी पीछे हैं। यही वजह है कि भारत में वैक्सीन का असर आबादी पर नहीं दिख रहा है।"
वो इसके समर्थन में इसराइल का उदाहरण देते हैं। इसराइल में 65 से अधिक उम्र वालों में 75 से 80 फ़ीसदी लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है। इस वजह से उस उम्र के लोगों में अस्पताल में भर्ती होने की बात हो या फिर सीरियस इंफ़ेक्शन की बात हो, ऐसे मामले ना के बराबर देखने को मिल रहे हैं।
इसलिए उनका मानना है कि सरकार को वैक्सीनेशन की रणनीति में बदलाव लाना होगा। "जो महाराष्ट्र में हो रहा है, वो नगालैंड में नहीं हो रहा। महाराष्ट्र में केवल 45 साल के ऊपर वालों को ही वैक्सीन लगा कर कुछ भला नहीं होगा। महाराष्ट्र और पंजाब में जहाँ मामले ज़्यादा बढ़ रहे हैं, वहाँ सभी के लिए वैक्सीनेशन को खोल देना चाहिए।" हालांकि वो कहते हैं कि इसके लिए सप्लाई को भी देखना होगा और कैसे लगेगा, इसके लिए भी रणनीति बनानी होगी।
लेकिन क्या दूसरे देशों को वैक्सीन देना भारत को बंद कर देना चाहिए?
इस पर डॉक्टर जुगल कहते हैं, ये फ़ैसला केंद्र सरकार को करना है। लेकिन सभी लोगों के लिए इसे खोलने की बात पर वो कहते हैं कि 45 साल से अधिक उम्र वालों के लिए ही भारत सरकार अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाई है, तो सभी के लिए खोलने पर थोड़ी मुश्किलें बढ़ सकती है। सभी ताक़तवर लोग पहले लगवा सकते हैं और ज़रूरतमंद पीछे छूट सकते हैं। इसलिए उम्र के हिसाब से टारगेट करना ज़्यादा सही है।
तो आंशिक लॉकडाउन ही है उपाए?
24 मार्च 2020 को जब भारत में पूर्ण लॉकडाउन लगा था, उस वक़्त भारत में कोरोना के कुल 500 मरीज़ भी नहीं थे। इस रणनीति की कई तरह की आलोचना हुई थी। फिर लॉकडाउन लगाने की दलीलें दी गईं।
इसका मक़सद कोरोना वायरस के चेन ऑफ़ ट्रांसमिशन को तोड़ना है और हेल्थ सिस्टम को वायरस से निपटने के लिए तैयार करना है। अब भी भारत के कुछ राज्यों के कुछ शहरों में आंशिक लॉकडाउन कह कर कुछ पाबंदियाँ लगाई जा रही हैं। क्या ये सही रणनीति है?
इस सवाल पर डॉक्टर जमील कहते हैं कि महाराष्ट्र या देश के दूसरे राज्यों के अलग-अलग शहरों में जो लॉकडाउन या नाइट कर्फ़्यू और दूसरी तरह की पाबंदियाँ देखने को मिल रही हैं, फ़िलहाल उसका मक़सद है लोगों को जो नियम क़ायदे अपनाने चाहिए, वो अपनाने लगें। ज़रूरत के समय ही बाहर निकलें, बिना काम के मौज मस्ती के लिए नहीं निकलें। मास्क पहनें, दो गज़ की दूरी का पालन करें।
इस वजह से आंशिक तौर पर जहाँ मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं, वहाँ पाबंदियाँ लगाई जानी चाहिए। लेकिन पिछले साल पूर्ण लॉकडॉउन जो भारतवासियों ने देखा, वैसा लॉकडाउन अब लगा कर कुछ हासिल नहीं होगा। सरकार को फ़ोकस तरीक़े से पाबंदियाँ लगा कर मामलों को एक जगह सीमित करने का प्रयास करना चाहिए। जैसे पहले कंटेनमेंट ज़ोन बनाने की रणनीति बनाई थी।
आंशिक पाबंदियों की बात पर डॉक्टर जमील की बात से डॉक्टर जुगल भी सहमत हैं। वो भी माइक्रो लेवल यानी छोटे स्तर पर पाबंदियों की बात करते हैं। डॉक्टर जॉन भी कहते हैं कि जंगल में आग लगने पर पूरे जंगल में पानी नहीं फेंकना चाहिए, जहाँ आग ज़्यादा फैली हो, पहले वहाँ कंट्रोल करना चाहिए।