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कोलकाता बलात्कार मामला: आरजी कर मेडिकल कॉलेज की महिला डॉक्टरों और नर्सों का क्या है कहना

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BBC Hindi

, मंगलवार, 13 अगस्त 2024 (08:05 IST)
सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता, कोलकाता से
श्रीतमा बनर्जी कोलकाता के सबसे प्रसिद्ध आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टरी की पढ़ाई यानी एमबीबीएस कर रही हैं। पहले जब वो कॉलेज के लिए निकला करती थीं तब उनके घर के लोग उन्हें फ़ोन पर पूछते रहा करते थे कि वो कॉलेज पहुँच गयीं हैं या नहीं?
 
उन्होंने बताया, "परिवार को लगता था कि अस्पताल पहुँच जाऊंगी तो सुरक्षित वातावरण में पहुँच जाऊँगी। और फिर वो निश्चिन्त हो जाया करते थे। अस्पताल के ज़्यादा सुरक्षित जगह और क्या हो सकती थी मेरे लिए? यहां सब लोग हैं। मेरे अध्यापक, सीनियर्स, मरीज़ और नर्सें। लेकिन अब अस्पताल के अंदर ही डर लगने लग गया है। मेरे घरवाले भी डरे हुए हैं।"
 
आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में नौ अगस्त को एक प्रशिक्षु डाक्टर की बलात्कार के बाद हुई ह्त्या ने, न सिर्फ़ श्रीतमा बनर्जी बल्कि उनकी तरह अस्पतालों और मेडिकल कालेजों में पढ़ने वाली या नौकरी करने वाली डॉक्टर और नर्सों सहित अन्य महिला स्वास्थ्यकर्मियों की चिंता बढ़ा दी है।
 
पश्चिम बंगाल में कितना है अपराध?
ये ऐसे समय में है जब राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ख़ुद एक महिला भी हैं और उनके पास ही स्वास्थ्य और गृह विभाग भी हैं।
 
आरजी कर मेडिकल कॉलेज की घटना ने न सिर्फ़ सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा को लेकर बहस छेड़ दी है बल्कि राज्य में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी सवाल किए जा रहे हैं।
 
इस साल अप्रैल माह में जारी की गयी 'नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो' की रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2022 में पश्चिम बंगाल में 1111 बलात्कार के मामले दर्ज किये गए हैं। उसी वर्ष प्रदेश में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के कुल 34738 मामले दर्ज किये गए थे।
 
ब्यूरो के आंकड़ों के हिसाब से पश्चिम बंगाल में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों का दर 71।8 प्रतिशत था जबकि ये राष्ट्रीय औसत 65।4 प्रतिशत से काफ़ी ज़्यादा है।
 
सड़कों पर उतरे डॉक्टर
आरजी कर मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली जिस छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी वो भी शहर से 20 किलोमीटर दूर पानीहाटी के इलाक़े से आया करती थीं। जिस दिन ये घटना घटी वो रात की ड्यूटी कर रही थीं और थक जाने के बाद अस्पताल के कांफ्रेंस रूम में आराम करने के लिए गई थीं।
 
घटना के सिलसिले में जिस अभियुक्त संजय राय को गिरफ़्तार किया गया है वो सिविल वॉलंटियर यानी सहायक सुरक्षाकर्मी के पद पर तैनात थे। ये वैसा ही है जैसे होम गार्ड होते हैं।
 
उसकी ड्यूटी अस्पताल के बहार पुलिस चौकी पर थी। घटना के बाद कोलकाता पुलिस के कमिश्नर विनीत गोयल ने उस क्षेत्र के सहायक पुलिस कमिश्नर को भी निलंबित कर दिया है।
 
घटना के बाद से पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से चरमरा गई हैं। डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मियों के आंदोलन की आंच ज़िला अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के अलावा अब प्रदेश के बाहर भी फैल चुकी हैं।
 
विभिन्न राज्यों में डॉक्टर और स्वस्थ्य कर्मी कोलकाता की घटना के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर रहे हैं। कई राज्यों सरकारी अस्पतालों का कामकाज ठप पड़ चुका है। दूसरी ओर सोमवार को प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी पीड़ित परिवार से मिलने उनके घर पहुंची हैं।
 
क्या हैं मांगें
मगर छात्रों का आक्रोश काम होने का नाम नहीं ले रहा है। आंदोलन कर रहे छात्र इस मामले में अब तक के पुलिस के रवैय्ये और जांच पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।
 
उनका कहना है की सब 'आनन-फ़ानन' में किया जा रहा है। आरजी कर अस्पताल के डॉक्टरों के संघ के प्रवक्ता डॉक्टर हसन मुश्ताक़ कहते हैं कि 'जो आंदोलन चल रहा है उसमें अस्पताल के सभी कर्मचारी मौजूद हैं। प्रशिक्षु डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ़ से लेकर वरिष्ठ डॉक्टर तक।'
 
अस्पताल के छात्र संगठन का कहना है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट देने में जिस तरह पुलिस ने काफ़ी आनाकानी की है उससे जांच पर शक खड़ा होने लगा है।
 
वो बीबीसी से बात करने के दौरान कहते हैं, "जिस तरह पीड़ित के शरीर पर हमले के निशान हैं और जिस तरह निर्ममता के साथ ह्त्या की गयी है वो किसी एक व्यक्ति का काम नहीं है। पुलिस ने सिर्फ़ एक व्यक्ति को पकड़ लिया है और दावा कर रहे हैं कि हमने अपना काम पूरा कर लिया है। इससे आक्रोश और बढ़ रहा है।"
 
पुलिस छावनी में तब्दील अस्पताल
यहाँ अस्पताल परिसर एक पुलिस छावनी में बदल गया है जहां भारी संख्या में तैनाती की गई। यहीं पर मौजूद कोलकाता (उत्तर) के डीसीपी अभिषेक गुप्ता कहते हैं कि पुलिस ने जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया है उससे पूछताछ की जा रही है। क्या अपराध में उसके साथ कोई अन्य भी शामिल था, इस सवाल पर वो कहते हैं कि इसका पता लगाने की कोशिश की जा रही है।
 
डॉक्टर अनुपम रॉय भी यहीं के मेडिकल छात्र हैं। वो माइक पर घटना के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे हैं। मंच के नीचे सभी छात्र, डॉक्टर और नर्स दरी पर बैठे हुए हैं। वो मंच से कह रहे हैं कि पुलिस के अधिकारी उनसे बात नहीं कर रहे हैं और ना ही मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल और मेडिकल कालेज के अधीक्षक।
 
वहीं दूसरी ओर प्रशासन के ख़िलाफ़ छात्रों में भड़के आक्रोश को देखते हुए कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर संदीप घोष ने इस्तीफ़ा सौंप दिया है।
 
साथ ही राज्य सरकार ने अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट संजय वशिष्ठ को भी पद से हटा दिया है। इन दोनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ छात्रों में सबसे ज़्यादा आक्रोश है। इन दोनों पर घटना को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे हैं।
 
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महिला डॉक्टरों और नर्सों का क्या है कहना
इस मेडिकल कॉलेज में कई नर्सिंग और एमबीबीएस की छात्राएं हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करती हैं जबकि कई ऐसी हैं जो हॉस्टल में नहीं रहतीं। बहुत सी महिलाएं नर्स का काम भी करती हैं।
 
घटना ने इन्हें और इनके घरवालों को परेशान कर दिया है क्योंकि इस घटना के ठीक बाद उत्तर बर्धमान में भी एक सिविल वॉलंटियर पर ज़िला अस्पताल की महिला डॉक्टर के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगा है।
 
सुष्मिता मजूमदार इसी अस्पताल की नर्सिंग ऑफ़िसर हैं। वो कहती हैं, "चाहे कोलकाता के अस्पताल हों, ज़िले और क़स्बों के सरकारी अस्पताल ही क्यों ना हों। इस तरह का हाल सभी जगह देखने को मिलेगा। सड़क पर तो पुलिस नज़र भी आती है मगर अस्पताल में काम करने वालों को नियति पर छोड़ दिया गया है।”
 
“हमारे साथ कुछ होगा तो वो हमें समझना होगा। खुद ही निपटना होगा। अब सिविल वॉलंटियर पुलिस का अंग है। अगर वो अस्पताल में घुसकर अपराध को अंजाम दे रहा है, वो भी डंके की चोट पर तो आप अंदाज़ा लगा लीजिये की यहां कौन कितना सुरक्षित हो सकता है।"
 
एक अन्य महिला स्वास्थ्यकर्मी कॉलेज के हॉस्टल में इसलिए रह रही हैं क्योंकि वो पश्चिम बंगाल के बाहर से यहां पढ़ने आई हैं।
 
वो कहती हैं, "कोलकाता आने से पहले सबने यही समझाया था कि वहां चले जाओ क्योंकि पश्चिम बंगाल महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह है। मगर यहां आने के बाद तो धारणा ही बदल गयी।"
 
डॉक्टर बिप्लव चंद्र ने इसी कॉलेज में साल 1998 में दाख़िला लिया था और लम्बे समय से वो पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य सेवाओं पर नज़र रखे हुए हैं।
 
बतौर एक वरिष्ठ चिकित्सक उनका कहना है कि पूरे प्रदेश में अस्पतालों की सुरक्षा बेहाल है क्योंकि कहीं भी अभी तक सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए हैं।
 
उनका कहना था, "इस अस्पताल में इतनी बड़ी घटना घटी है। कहाँ है सीसीटीवी? कहाँ है उसका फुटेज़? इतने महत्वपूर्ण अस्पताल का ये हाल है तो जो छोटे सरकारी अस्पताल हैं उनका तो कहना ही क्या। अस्पताल का प्रबंधन अपनी भूमिका से पल्ला झाड़ नहीं सकता है। ये उनकी आपराधिक विफलता है।"
 
घटना पर राजनीति भी तेज़
आरजी कर अस्पताल की घटना से जहां देशभर के मेडिकल छात्र और डॉक्टर आक्रोश में हैं, वहीं इस पर सियासत भी गरमा गई है। घटना की न्यायिक जांच के लिए कांग्रेस ने कोलकाता हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है जबकि राज्य के प्रमुख विपक्षी दल यानी भारतीय जनता पार्टी के विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है।
 
राज्यसभा के सांसद और प्रदेश बीजेपी के प्रवक्ता शमीक भट्टाचार्य ने आरोप लगाया है कि सरकारी अस्पतालों का नियंत्रण सरकार के हाथों से निकल चुका है और अब इन्हें समितियां चला रही हैं जिनमें सत्तारूढ़ दल के लोगों का ही दबदबा है।
 
बीबीसी से बात करते हुए भट्टाचार्य कहते हैं, "सारे सरकारी अस्पताल बाहर से कंट्रोल किए जाते हैं। इन पर अस्पताल सुपरिटेंडेंट का कोई अधिकार नहीं चलता है। राज्य सरकार ने जन कल्याण समिति बनायी है जो इन अस्पतालों का संचालन करती है।”
 
“इस समिति में ज़्यादातर तृणमूल कांग्रेस के लोग ही हैं जो जैसे चाहते हैं वैसे सरकारी अस्पतालों को चलाते हैं। इसलिए अस्पतालों का बुरा हाल हो गया है और यहां पर काम करने वाले डॉक्टर और कर्मचारी भी बेहद असुरक्षित हो गए हैं।"
 
टीएमसी घटना पर क्या कह रही है?
कोलकता के अस्पताल की घटना को लेकर देशभर में फैल रहे आक्रोश को देखते हुए अब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने भी छात्रों की मांगों का समर्थन किया है।
 
पार्टी के प्रवक्ता तौसीफ़ अहमद ख़ान कहते हैं कि घटना की ख़बर मिलते ही सरकारी महकमा हरकत में आ गया और 24 घंटों के अंदर ही अभियुक्त को गिरफ्तार कर लिया गया।
 
उन्होंने बताया, "ममता बनर्जी यूं तो फांसी की सज़ा दिए जाने की पक्षधर नहीं हैं। लेकिन इस मामले में उन्होंने जांच कर रहे विशेष दल के अधिकारियों को सात दिनों का समय दिया है। वो इस मामले में चाहती हैं कि दोषियों को फांसी की सज़ा दी जानी चाहिए।”
 
“इसके अलावा भी कोलकाता पुलिस के कमिश्नर और शहर के सभी आला अधिकारियों को घटना की जांच के लिए लगा दिया गया है। कोलकाता के पुलिस कमिश्नर अस्पताल में ही कैंप कर रहे हैं और जांच अपनी निगरानी में करवा रहे हैं।"
 
रविवार की देर रात और सोमवार की सुबह तक पुलिस के आला अधिकारी प्रदर्शन कर रहे छात्रों को आश्वासन दे रहे हैं कि जांच में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी। कोलकाता पुलिस पर छात्र आरोप लगा रहे थे कि वो पीड़ित छात्रा की पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट देने में आनाकानी कर रही है।
 
हालांकि पुलिस कमिश्नर विनीत कुमार गोयल ने अस्पताल में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है।
 
उन्होंने कहा, "पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट को पीड़ित परिवार को सौंप दी गयी है। पीड़ित और आरोपी के बदन पर पाए गए ज़ख्मों के निशान के बारे में हम फॉरेंसिक साइंस विशेषज्ञों की राय भी ले रहे हैं। एक आदमी था घटना में या और भी लोग थे... हम हर चीज़ की जांच करेंगे।"
 
पीड़ित के परिवार के लोग बेहद सदमे में हैं। वो कोलकाता से कुछ दूर पानीहाटी में रहते हैं। इलाक़े में मातम पसरा हुआ है। परिवार के लोग सदमे से उबर नहीं पा रहे हैं और बात करने की स्थिति में नहीं हैं। इलाक़े में शोक इसलिए भी ज़्यादा है क्योंकि इसी साल पीड़ित की शादी होने वाली थी।
 
देर रात कोलकाता पुलिस के जॉइंट कमिश्नर ने परिवार से मिलकर उन्हें पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सौंपी है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने भी परिवार के लोगों से फोन पर संपर्क किया है। लेकिन आंदोलन जल्द ख़त्म होगा, इसके आसार फ़िलहाल तो कम ही नज़र आ रहे हैं।
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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