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ये जानवर अपने बच्चों को भी मार डालते हैं

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, सोमवार, 3 जून 2019 (11:20 IST)
- क्रिस बरन्यूक (बीबीसी अर्थ)
 
मानव विज्ञानी और प्राइमेटोलॉजिस्ट सारा हर्डी अपनी बात शुरू करते हुए कहती हैं, "आम तौर पर आप किसी चुटकुले से व्याख्यान शुरू करते हैं, लेकिन शिशु-हत्या पर कोई चुटकुला नहीं।"
 
कई लोगों को यह बात चौंकाने वाली लग सकती है, लेकिन स्तनधारी जानवरों में शिशु-हत्या सामान्य बात है। 289 स्तनधारी प्रजातियों के नए सर्वे में क़रीब एक तिहाई प्रजातियों में शिशु-हत्या के सबूत मिले हैं। कई बार जानवर अपने सामाजिक समूहों के युवा सदस्यों को मार देते हैं। कभी-कभी समूह की मादाएं दूसरी मादा के छोटे बच्चों को मारने का फ़ैसला करती हैं।
 
सामान्य है शिशु-हत्या
अपने करियर की शुरुआत में हर्डी ने लंगूरों में शिशु-हत्या पर रिपोर्ट बनाई थी। लंगूर बंदरों की एक प्रजाति है जो पूरे एशिया में फैली हुई है। हर्डी की पहली रिपोर्ट के लगभग 40 साल बाद, अब भी जानवरों में शिशु-हत्या पर चर्चा नहीं होती।
 
हत्यारी मां के बारे में बात करने से या उस पर चुटकुले बनाने से इंसान असहज हो सकते हैं, भले ही बात दूसरी प्रजातियों की हो। शायद हम इस तथ्य को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि शिशु हत्याएं होती हैं। सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है?
 
1970 के दशक में हर्डी की रिसर्च सामने आई तो वह बहुत विवादित हुई थी। वह कहती हैं कि पशुओं में शिशु-हत्या के विषय पर लौटने में वह अब भी कई बार ख़ौफ़ से भर जाती हैं। वह दक्षिण अमेरिका में पेड़ों पर रहने वाले अफ्रीकी बंदरों (मर्मोसेट) का उदाहरण देती हैं।
 
गर्भावस्था में हत्या का विचार
गर्भावस्था के बारे में लोग यही सोचते हैं कि इस दौरान महिलाओं के हार्मोन्स उनको बच्चों के प्रति सकारात्मक सोचने के लिए प्रेरित करते हैं और इस बात की संभावना बढ़ाते हैं कि वह अपने साथ संबंध बनाएगी। लेकिन मर्मोसेट के मामले में हक़ीक़त बहुत अलग हो सकती है।
 
हर्डी कहती हैं, "जब मादा मर्मोसेट गर्भवती होती है और बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती है तभी वह शिशु हत्या के लिए सबसे ज़्यादा प्रेरित रहती है।" 2007 के एक अध्ययन में एक महीने के मर्मोसेट की हत्या का उल्लेख किया गया था। समूह की मादा प्रमुख के बच्चे को दूसरी मादा मर्मोसेट ने मार दिया था।
 
उस मादा ने बच्चे को तब मारा जब वह गर्भवती थी। बाद में उसने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया और समूह की नेता बन गई। यह सोच-समझकर की गई हत्या लग सकती है। हत्यारी मां का यह कदम उसके अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भी हो सकता है।
 
यह पशु साम्राज्य की पीढ़ीगत राजनीति है। ठीक उसी तरह जैसे 'गेम ऑफ़ थ्रोन्स' की रानी सर्सी अपने प्रतिद्वंद्वी नेड स्टार्क के बच्चों को मरवा देने के लिए बेचैन रहती है ताकि शासन पर उसके परिवार की पकड़ मज़बूत रहे।
 
भविष्य की योजना
जानवरों में कुछ "सहयोगी प्रजनक" भी होते हैं जो बच्चे के पालन-पोषण में बराबर की जिम्मेदारी उठाते हैं। हर्डी का कहना है कि हालात अनुकूल न होने पर वे कुछ अनर्थकारी विकल्प भी चुन लेते हैं।
 
अगर उनको लगता है कि अभी उनकी संतानों की सही से देखभाल नहीं हो पाएगी तो वे उनकी हत्या करने का भी फ़ैसला कर लेते हैं। वे इस उम्मीद में रहते हैं कि हालात अनुकूल होने पर वे फिर से बच्चे पैदा कर लेंगे।
 
मोंटेपेलियर यूनिवर्सिटी की एलिस हचर्ड कहती हैं, "मादाएं भी नर की तरह प्रतिस्पर्धी हो सकती हैं।" "वे उन संसाधनों के लिए होड़ करती हैं जिनकी उनके बच्चों के पालन-पोषण में ज़रूरत पड़ती है।"
 
संसाधनों पर कब्जे की लड़ाई
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के डायटर लुकास के साथ हचर्ड ने हाल ही में स्तनधारी जानवरों में मादा शिशु-हत्या पर एक रिपोर्ट तैयार की है। उनकी रिपोर्ट की समीक्षा अभी तक नहीं हुई है, लेकिन इससे स्तनधारी समुदायों में हत्यारी माताओं की व्यापकता को समझने में मदद मिलती है। 289 प्रजातियों में से 30 फीसदी प्रजातियों में शिशु-हत्या के मामले पाए गए।
 
हचर्ड का कहना है कि दूसरे के बच्चों को मारना जीवन की सच्चाई है। जब भी मादाओं को इसके फायदे दिख रहे हों, तब वे ऐसा कर देंगी। हचर्ड और लुकास को लेम्यूर (मैडागास्कर में मिलने वाले बंदरों की एक प्रजाति), सील, सी लायन, भालू, बिल्ली, चमगादड़, चूहे और गिलहरियों में शिशु हत्या के उदाहरण मिले। शिशु-हत्या स्पष्ट रूप से किसी एक समूह या निवास-स्थान तक सीमित नहीं थी, लेकिन कई मामलों में उनमें महत्वपूर्ण संबंध थे।
 
बच्चे की हत्या क्यों
कोई मादा जानवर किसी शिशु की हत्या कर दे, इसकी संभावना को तीन अहम कारक प्रभावित करते हैं- कठोर वातावरण में निवास, मातृत्व जिसमें मादा के लिए विशेष रूप से बहुत ज़्यादा ऊर्जा ख़र्च होती है और संसाधनों के लिए उच्च प्रतिस्पर्धा।
 
जब इस तरह के दबाव चरम पर पहुंच जाते हैं तो माताएं हत्या करने के लिए तैयार हो जाती हैं। हर्डी इस अध्ययन से प्रभावित हैं, हालांकि वह सवाल करती हैं कि इसमें इंसानों को क्यों शामिल नहीं किया गया।
 
उन्होंने मनुष्यों में भी शिशु-हत्या का अध्ययन किया है। वह बताती हैं कि हमारे समाज में बच्चे के शुरुआती दिनों में महिलाओं को सामाजिक स्तर पर बहुत सहयोग मिलता है। अगर यह सहयोग न हो तो मां के अपने बच्चों की उपेक्षा करने की संभावना बढ़ जाती है। यहां तक कि वह उनकी मौत को भी मंजूर कर लेती हैं।
 
सामाजिक समर्थन हो या कठोर वातावरण में पर्याप्त भोजन तक पहुंच, शिशु हत्या एक काला किंतु विकासवादी लक्षण लगता है। संतानों की उचित देखभाल और लालन-पालन के लिए माताएं कई बार अपने बच्चों पर या पड़ोस के बच्चों पर भी टूट पड़ती हैं।
 
जो सबसे योग्य होगा वह बचेगा
"सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट" यानी योग्यतम की उत्तरजीविता एक कठिन सिद्धांत है। मातृत्व के दिनों में भी यह सिद्धांत लागू रहता है, भले ही मातृत्व के बारे में हमारी सांस्कृतिक अवधारणाएं कुछ भी कहती हों।
 
कुदरत में हर जगह माताओं को पता होता है कि उन्हें कब क्या चुनना है। यदि पड़ोस के बच्चे के मरने से उनके अपने बच्चे का भविष्य बेहतर होता हो तो वे इसके लिए तैयार रहती हैं।
 
शुक्र है कि इंसानों में ज़्यादातर लोग अपनी प्रजाति में इस जानलेवा व्यवहार का समर्थन नहीं करते। लेकिन हमें यह निश्चित रूप से मानना चाहिए कि शिशु-हत्या कोई सनकी अवधारणा नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी चीज है जो कई पशु समाजों में विकसित हुई है या यह कुदरती भी है।

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