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शादी नहीं कर पाती हैं लावणी डांसर्स

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, गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017 (19:07 IST)
- रूना आशीष (मुंबई से)
 
"मुझे एक दिन मुझे अपनी 12 साल की बेटी को उसके पिता के बारे में बताना होगा। वो अभी सातवीं में पढ़ती है। ये भी बताना होगा कि उसका जन्म मेरे और उनके (पार्टनर) साथ में रहने की वजह से हुआ है लेकिन हमारी शादी नहीं हुई है।"
"हमारे समाज में जब एक बार घुंघरू पैरों में बांध ले तो आजीवन आप शादी नहीं कर सकते हैं। आप संबंध बना सकते हैं, साथ में रह भी सकते हैं लेकिन आप शादी नहीं सकते हैं। मुझे भी अच्छा लगता अगर मेरी शादी होती लेकिन अब मैं वो सपना ही नहीं देखना चाहती जो पूरा ना हो सके।"
 
32 साल की संगीता (बदला हुआ नाम) जो महाराष्ट्र के कई जगहों पर घूम घूम कर लावणी करती हैं। उनके दिल में छुपा ये डर है। दरअसल लावणी नर्तकियों में एक परंपरा ऐसी है जिसके तहत ये आजीवन अकेली रहती हैं। इनमें से कईयों के साथी भी होते हैं और संतानें भी होती हैं।
 
हालांकि अपने ऊपर बदनामी का कोई दाग़ ना लग जाए इसलिए ये अपनी परंपरा के बारे में किसी को नहीं बताती हैं। ये नर्तकियां या लावणी करने वाली औरतें लिव इन रह सकती हैं लेकिन शादी नहीं ऐसा इसलिए क्योंकि शादी करने से उनका ध्यान अपने लोकनृत्य से हट जाएगा और वो अपने संसार में रम जाएँगी तो परंपरा को कौन निभाएगा।
 
एक राष्ट्रीय स्तर की लावणी नर्तकी इस बारे कुछ भी बोलने से कतराती हैं और पूछने पर इस लिव-इन या शादी के बिना बने संबंधों, साथ में रहने और उनसे पैदा हुई संतानों के बारे में कुछ भी कहने से पीछे हट जाती हैं।
 
इन नर्तकियों पर डॉक्यूमेट्री बनाने और किताब 'संगीत बारी', लिखने वाले भूषण कोरगांवकर का कहना है कि, "लावणी डांसर्स में से अधिकतर भातु कोल्हाटी जाति की होती हैं। जो 100 साल पहले तक खानबदोश जाति थी। इनमें आज भी मातृसत्तात्मक पद्धति से जीवन यापन होता है।"
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वो बताते हैं, "अगर इनकी शादी के बिना कोई संतान होती है तो ये लोग अपनी मां के ही उपनाम को अपना लेते हैं और अगर बहुत ज़रूरी हुआ तो ये लोग किसी भी मर्दाना नाम को अपना मिडिलनेम बना लेते हैं।"
 
लावणी महाराष्ट्र का लोक नृत्य है जिसकी उत्पत्ति 17वीं शताब्दी मानी जाती है। देश में आज के समय में लगभग 5000 नर्तकियां है जो अलग अलग समूह बना कर अपना परफॉर्मेंस देती हैं।
 
मुबई विद्यापीठ में लोक कला अकादमी के प्रोफेसर प्रकाश खांडगे कहते हैं कि, "ऐसी लावणी नर्तकियों में से कई कोल्हाटी जाति की हैं। जिन्हें कभी मुग़ल अपने बैठक में मनोरंजन के लिए बुला लिया करते थे जैसे उस समय उत्तर भारत में मुजरा होता था वैसे ही देश के दक्षिण भारत में लावणी को भी बैठक में नाचे जाने वाले डांस का रूप दिया गया।"
 
अपनी ममेरी बहन सुमति (बदला हुआ नाम) के साथ संगीता इन दिनों बेलगांव परफॉर्म कर रही हैं। उनका कहना है कि "मैं जब 15 साल की थी तभी घरवालों ने मुझे लावणी के समूह में डाल दिया। मेरी मां के देहांत के बाद जब मैंने अपने पिता को ढूंढ़ना चाहा तो मालूम पड़ा कि उनका पहले ही देहांत हो गया।" 
 
वो बताती हैं, "मेरी नानी की देखरेख मेरी मां ने की फिर मैंने अपनी मां की देखरेख की। हमारे में ऐसे ही होता है। लेकिन मन में कहीं लगता है कि शादी होनी चाहिए। मेरी बेटी के पिता (पार्टनर) मेरे और मेरी बेटी के बारे में जानते हैं लेकिन कभी मिलने नहीं आते।"
 
"मुझे बहुत गुस्सा भी आता है, वो तो बेटी के लिए पैसे भी नहीं भेजते। जो कर रही हूं मैं ही कर रही हूं। हमारे जैसे लोगों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता।" लावणी देशों-विदेशों में भी मशहूर है। ये डांस फॉर्म नाचने कविता या कथा कहने और नज़ाकत दिखाने का मिला जुला रूप है। लेकिन आज भी इस लोकनृत्य को लोग खुले दिल से नहीं अपनाते हैं।
 
इन लावणी करने वालियों या नर्तकियों को लगता है कि इन्होंने सिर्फ़ परंपरा का पालन किया है। लेकिन इनमें से कई लड़कियों को ये भी पूछा जाता है कि उसके पिता कौन हैं। क्या बड़ी हो कर वो भी ऐसे ही नाचने काम करने और ज़िंदगी जीने वाली हैं?

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