- अनंत प्रकाश
गायक सोनू निगम ने धार्मिक स्थानों से लाउडस्पीकर के शोर पर आपत्ति दर्ज कराई है। उन्होंने ट्वीट कर सोशल मीडिया से वॉट्सऐप तक लोगों के बीच तीखी बहस छेड़ दी है। मंदिरों, मस्जिदों और गुरुद्वारों में लाउडस्पीकर के इस्तेमाल के औचित्य पर सवाल उठाया जा रहा है। बीबीसी ने इस मुद्दे पर हिंदू, मुस्लिम और सिख धर्म के जानकारों से बात करके जानने की कोशिश की है। तीनों धर्मों के जानकारों से पूछा गया कि उनके धर्म स्थल पर लाउडस्पीकर के प्रयोग का क्या औचित्य है?
मंदिर की आरती
क्नॉट प्लेस के हनुमान मंदिर के पुजारी सुरेश शर्मा कहते हैं, "हिंदू धर्म में शुरुआत से गाने-बजाने का चलन है। आरती लोगों के कानों में पड़ती है तो अंतरआत्मा जागती है, लाउडस्पीकर से ये आवाज ज्यादा लोगों तक पहुंचती है। ऐसे में लाउडस्पीकर बंद नहीं होने चाहिए।"
सुरेश शर्मा से जब ये पूछा गया कि क्या ये ठीक है कि मंदिर की वजह से आसपास के लोगों को दिक्कत हो? इस सवाल का जवाब मिला कि कुछ भी किया जाए तो कोई न कोई तो विरोध करेगा ही।
गुरुद्वारों में गुरुबानी
दिल्ली सिख गुरुद्वारा समिति में धर्म प्रचार विभाग के चेयरमैन कुलमोहर सिंह कहते हैं, "प्राचीन काल में गुरुद्वारों को इस ढंग से बनाया जाता था कि गुरुबानी की आवाज गुरुद्वारा परिसर में ही सीमित रहती थी। "
मकसद है कि ये आवाज़ हर शख्स के पास पहुंचे, लेकिन कालांतर में गुरुद्वारा संरचना में अंतर आने की वजह से ऐसा संभव नहीं होता है।"
वे आगे कहते हैं, "इसलिए लाउडस्पीकर की मदद से परिसर में मौजूद भक्तों तक गुरुबानी पहुंचाई जाती है। लाउडस्पीकर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है और इसका उपयोग किसी को परेशानी पहुंचाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। अगर किसी गुरुद्वारे में ऐसा हो रहा हो तो मैं अपील करूंगा कि ऐसा न किया जाए।"
मस्जिद से अज़ान
दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर जुनैद हैरिस अजान का सबब समझाते हैं, "अब सोने से बेहतर है कि आप उठ जाएं..." उनके मुताबिक, "लाउडस्पीकर की मदद से अज़ान कहे जाने का सिर्फ एक उद्देश्य है कि दूर दूर के लोगों तक ये आवाज़ पहुंच सके।
चूंकि इस्लाम समानता में विश्वास करता है इसलिए ये सभी के लिए है ताकि सभी को एक समान समय पर नमाज अता करने की सूचना मिले।" हालांकि वो ये भी कहते हैं कि हॉस्पिटल जैसी जगहों पर लाउडस्पीकर का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।