- भरत शर्मा
भारतीय प्रशंसक जितनी बेसब्री से चैम्पियंस ट्रॉफ़ी के फ़ाइनल का इंतज़ार कर रहे थे, उतनी ही शिद्दत से अब ये मुक़ाबला भुला देना चाहते हैं। विराट कोहली का बल्ला, कप्तानी और क़िस्मत, 18 जून से एक दिन पहले तक हर मामले में उनका साथ दे रही थी लेकिन एक ही दिन में सब कुछ बदल गया।
जो प्रशंसक उन्हें चेज़ (लक्ष्य का पीछा) मास्टर बताते नहीं थकते थे, वो अब टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी करने के उनके फ़ैसले पर सवाल उठा रहे हैं। 'कैप्टन कूल' के नाम से मशहूर हुए महेंद्र सिंह धोनी बतौर विकेटकीपर मैदान पर मौजूद थे लेकिन कप्तानी की बागडोर कोहली के हाथ में थी।
और फ़ाइनल मुक़ाबलों में पाकिस्तान की टीम बढ़िया खेली तो इसकी एक वजह भारतीय कप्तान के कुछ फ़ैसले भी थे। धोनी ऐसे ही मौक़ों पर अपने नए और दिलेर फ़ैसलों से मैच पलट दिया करते थे। शायद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भी ऐसा हो सकता था। कोहली कहां चूके और उनकी जगह धोनी अगर कप्तान होते तो शायद क्या करते, ये पता लगाना दिलचस्प रहेगा।
टॉस जीतकर बैटिंग ना करना
ये बात सही है कि चैम्पियंस ट्रॉफ़ी में लक्ष्य का पीछा करने वाली टीम जीत रही थी और टीम इंडिया वैसे भी चेज़ करने वाली टीम मानी जाती है, लेकिन फ़ाइनल जैसा मुक़ाबला सामान्य मैचों से बिलकुल अलग होता है।
अगर पिच गेंदबाज़ों की मदद करती तो फ़ैसला समझ आता लेकिन बल्लेबाज़ों की मददगार वाली पट्टी पर पहले बॉलिंग करना कुछ समझ नहीं आया। वरिष्ठ खेल पत्रकार विजय लोकपल्ली के मुताबिक टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी का फ़ैसला सही नहीं था।
उन्होंने कहा, ''ऐसा नहीं कि हम मैच के बाद ये बात बोल रहे हैं। फ़ाइनल जैसे मुकाबले में टीम इंडिया पहले बैटिंग करती और 280-300 रन बनाती तो पाकिस्तान को दबाव में लाया जा सकता था। क्योंकि फ़ाइनल में कोई भी स्कोर चेज़ करना आसान ना होता।''
शायद धोनी कप्तान होते तो टॉस जीतने के बाद भले पहले मैचों में बॉलिंग करते लेकिन खिताबी मुक़ाबले में अपनी टीम की ताक़त बल्लेबाज़ी पर दांव लगाते। कोहली यहीं चूक गए।
पिट रहे गेंदबाज़ों को जारी रखना
शुरुआती ओवरों में जसप्रीत बुमराह और बीच में रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा की गेंदबाज़ी ने काफ़ी निराश किया। बांग्लादेश के ख़िलाफ़ आक्रामक जोड़ी तोड़ने वाले केदार जाधव को देर से इस्तेमाल किया गया।
जब नियमित बॉलर पिटते थे तो धोनी युवराज सिंह को लाकर विकेट लेने की कोशिश करते थे और कामयाबी मिलती भी थी। उन्होंने तो रोहित शर्मा से तक बॉलिंग कराई है। लेकिन कोहली ने ऐसा कुछ नहीं किया। नियमित गेंदबाज़ पिटते रहे और ओवर डालते रहे।
अश्विन ने 10 ओवर में 70 रन दिए, जडेजा ने 8 ओवर में 67 रन लुटाए लेकिन इसके बावजूद कोहली ने युवराज सिंह को मौक़ा नहीं दिया। पूर्व क्रिकेटर मदनलाल के मुताबिक शायद इसलिए ऐसा हुआ क्योंकि भुवनेश्वर कुमार को छोड़कर टीम इंडिया के सभी गेंदबाज़ रंग में नहीं थे।
ऐसे में कोहली मुख्य गेंदबाज़ों पर ही टिके रहे। विजय लोकपल्ली ने कहा, ''भुवनेश्वर बढ़िया बॉल कर रहे थे लेकिन उन्हें बीच में लाया जाता और विकेट ना निकलती और आख़िर के ओवरों में पाकिस्तान और ज़्यादा आक्रामक खेलकर स्कोर 370-380 तक पहुंचा देता।''
मोहम्मद आमिर को हल्के में लेना
जिस दिन गेंदबाज़ कामयाब ना रहें, उस रोज़ बल्लेबाज़ टीम को जीत तक पहुंचाते हैं, एक चैम्पियन टीम की यही निशानी है। धोनी की कप्तानी में टीम जब बड़े लक्ष्य का पीछा करने उतरती तो शुरुआती ओवरों में कोई जोख़िम ना लेकर अच्छे गेंदबाज़ों को सम्मान दिया करती थी और बाद में आक्रामक होती थी।
लेकिन चैम्पियंस ट्रॉफ़ी के खिताबी मुकाबले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। लोकपल्ली ने कहा, ''रोहित शर्मा को देखकर लगा ही नहीं कि वो इतने बड़े मुकाबले में बैटिंग करने उतरे हैं।''
उन्होंने कहा, ''और दूसरी गलती कोहली ने की। उन्हें मोहम्मद आमिर का पहला स्पैल निकाल देना चाहिए था। वो ऑफ़ स्टाम्प के बाहर गेंद डाल रहे थे और कोहली ने वही छेड़छाड़ की। सभी जानते हैं कि आमिर का पहला स्पैल ज़ोरदार रहता है जबकि आगे वो फीके से दिखते हैं।''
टीम अगर शुरुआत में विकेट बचाकर खेलती तो बाद में आक्रामक बैटिंग कर मैच में लौटा जा सकता था। मदनलाल का भी कहना है कि शुरुआत में विकेट ना बचाने की वजह से भारत मुकाबले से बहुत जल्दी बाहर हो गया।
बल्लेबाज़ी क्रम में कोई बदलाव नहीं
साल 2011 विश्व कप के खिताबी मुक़ाबले में बड़ा लक्ष्य सामने था और सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग सस्ते में लौट चुके थे। पूरी सिरीज़ में फ़्लॉप रहे धोनी ने इस बार ख़ुद पर दांव खेला और ऊपर बैटिंग करने आए।
श्रीलंकाई गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ काउंटर अटैक शुरू किया और धीरे-धीरे टीम मैच में लौट आई, फिर जीत तक पहुंची। अब रविवार के मैच की बात। भारतीय टीम में सिर्फ़ एक बल्लेबाज़ रंग में दिखा। नाम हार्दिक पंड्या। फ़र्ज़ कीजिए अगर रोहित शर्मा के आउट होने के बाद कोहली ने ख़ुद ना उतरकर पंड्या को उतारा होता तो क्या होता?
इस फ़ैसले से दो फ़ायदे हो सकते थे। क़िस्मत साथ देती तो पंड्या पावरप्ले में तेज़ी से रन जुटाकर पाकिस्तान पर दबाव बना सकते थे। अपने अंदाज़ में वो 40-50 रन बनाकर भी कमाल कर सकते थे।
दूसरा फ़ायदा ये होता कि विराट कोहली की विकेट बची रहती। पंड्या के आउट होने के बाद वो मैदान में उतर सकते थे और तब तक बायें हाथ से गेंद डालने वाले आमिर और जुनैद अपना पहला स्पैल ख़त्म कर चुके होते। बड़े मुकाबलों में बड़े फ़ैसलों की ज़रूरत होती है जो कोहली ने नहीं लिए।