शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने वाली मलाला यूसुफ़ज़ई इन दिनों पाकिस्तान में हैं। वो करीब छह साल बाद अपने देश पाकिस्तान लौटी हैं। साल 2012 में मलाला तालिबानी चरमपंथियों के हमले में घायल हो गईं थीं और तब से देश से बाहर ही थीं।
दुनिया भर में मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर पहचान बना चुकीं मलाला ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में कहा कि वो चाहती हैं कि पाकिस्तान के "नेता और सियासी दल लोगों की सेहत और शिक्षा पर ध्यान दें"। उनके मुताबिक इन मुद्दों पर सबकी राय एक समान होनी चाहिए। मलाला का दावा है कि पाकिस्तान से बाहर रहते हुए वो मुल्क की तमाम चीजों की कमी महसूस करती थीं।
ख़ुद से नफ़रत करने वालों से मलाला को कोई शिकायत नहीं है, वो कहती हैं वो हर मुद्दे पर बातचीत करने को तैयार हैं। मलाला का कहना है कि लोगों को उनके संदेश को समझना चाहिए और अपने बच्चों को तालीम देनी चाहिए।
मलाला यूसुफ़ज़ई से बीबीसी की बातचीत के प्रमुख अंश
जितने अर्से आप बाहर रहीं, उस दौरान पाकिस्तान की कौन-सी चीज़ सबसे ज़्यादा मिस करती रहीं?
हर चीज़ मिस की। दोस्तों से लेकर अपने रिश्तेदारों तक। अपनी गलियों और स्कूल तक और यहां तक कि हमें तो स्वात के वो ख़ूबसूरत पहाड़ और नदियां वगैरह याद थीं लेकिन कभी कभार वो कचरा, वो गंध और वो गंदी नालियां भी बहुत याद आती थीं।
आपको किसी चीज की कद्र और कीमत तब तक नहीं पता होती जब तक आप उसको खो न दें और जब हमने स्वात को खोया तब हमें पता चला कि एक बहुत ही ख़ूबसूरत जगह थी और हमने तो फिर बाहर मुल्क भी देखे लेकिन स्वात जैसी खूबसूरत जगह नहीं मिली। तो हमने पाकिस्तान के हर एक हिस्से को, पाकिस्तान के हर एक चीज को हमने मिस किया है खाने से लेकर लोगों तक और खूबसूरत वादियों तक।
आपने बताया कि आप क्रिकेट फॉलो करती हैं लेकिन क्या आप सियासत को भी फॉलो करती हैं? आपने हाल में कहा कि तालीम और सेहत जैसे मुद्दे सियासी नहीं हैं।
मैं पाकिस्तान की पॉलिटिक्स को फॉलो करती हूं। हमारे मुल्क में इन जैसे मुद्दों पर फोकस बिल्कुल होता ही नहीं है। राजनीतिक दल दूसरी चीजों पर बहस करते हैं। एक-दूसरे पर इल्जाम लगाते हैं। एक दूसरे को करप्ट कहता है तो दूसरा तीसरे को करप्ट कहता है। और ऐसे किस्म की लड़ाई जारी है। ज़ुबानी लड़ाई।
मेरे ख्याल से उनको इन मुद्दों पर भी फोकस करना चाहिए। तालीम के बारे में बात करनी चाहिए। हेल्थ के बारे में बात करनी चाहिए। ये ऐसे मुद्दे हैं इन पर सबको एक होना चाहिए। हर बच्चे का हक़ है कि वो पूरी तालीम हासिल करे। ये सब जानते हैं कि इसका फायदा पूरे मुल्क को मिलेगा और पूरी इकॉनमी को मिलेगा। राजनेता जो वादे करते हैं वो अच्छी सेहत और अच्छी तालीम के बिना मुमकिन नहीं है।
पाकिस्तान में बहुत से लोग आप पर फख्र करते हैं तो नापसंद करने वाले भी हैं। थोड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो 'एंटी मलाला डे' भी मना रहे हैं। आप इन मलाला हेटर्स से क्या कहेंगी?
पहले तो कहूंगी कि आपकी अगर कोई शिकायत है जिसे आप सामने लाना चाहते हैं तो मैं बात करके खुश होऊंगी। लेकिन मेरे ख्याल में बहुत ही छोटी फीसद के लोग हैं और बाकी जो पाकिस्तान है वो बहुत मोहब्बत करता है। सपोर्ट करता है। वो मेरे संदेश को समझते हैं।
मैं लोगों से कहूंगी कि आप मेरे संदेश को समझें। मैंने कभी किसी से ये नहीं कहा कि आप मुझे एक सेलेब्रिटी मानें या मुझे इज्ज़त दें। मैं बस ये चाहती हूं कि लोग मेरे संदेश को समझें और अपने बच्चे और बच्चियों को तालीम दें। यही मेरा समर्थन है।
आपने कुछ वक्त पहले कहा था कि आप पीएम बनाना चाहती हैं। क्या सियासत में आने का इरादा है?
नहीं जी, प्रधानमंत्री नहीं बनना। राजनीति बहुत जटिल है। मैंने ये ख्वाब तब देखा था जब मैं 11 या 12 साल की थी। तब स्वात में अमन नहीं था। दहशतगर्द थे वहां तब मुझे लगा कि अगर मैं प्रधानमंत्री बन जाऊंगी तो मैं अपने मुल्क के सारे मसले हल कर दूंगी। लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं। लेकिन आप बदलाव किसी भी तरीके से ला सकते हैं। चाहे आप प्रधानमंत्री बनें, राष्ट्रपति बनें, शिक्षक बनें, डॉक्टर बनें। बदलाव संभव है।