Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

क्या नोटबंदी ने ख़त्म किया मराठा आंदोलन?

हमें फॉलो करें क्या नोटबंदी ने ख़त्म किया मराठा आंदोलन?
, गुरुवार, 15 दिसंबर 2016 (11:58 IST)
- ज़ुबैर अहमद (दिल्ली)
बुधवार को नागपुर में आयोजित मराठा आंदोलन मोर्चा नोटबंदी का शिकार हो गया है। आयोजकों को उम्मीद थी कि अगस्त से जारी उनके आंदोलन के इस आखरी मोर्चे में "50 लाख से एक करोड़" लोग शामिल होंगे लेकिन उनका खुद का अनुमान है कि इसमें केवल 10 लाख लोग शामिल हुए।
मराठा आंदोलन मोर्चा के कनवीनर और मीडिया सेल के अधिकारी संजय ताँबे पाटिल स्वीकार करते हैं कि नागपुर का शो फ्लॉप साबित हुआ। उन्होंने बीबीसी को बताया, "इसकी एक वजह थी नोटबंदी और पैसों की भारी कमी। औरंगाबाद में 16 लाख आबादी पर केवल 6 एटीएम हैं और हर एटीएम के बाहर 300 लोगों की क़तार लगी है।" पिछले महीने दिल्ली में होने वाली मराठा रैली नोटबंदी के कारण रद्द करनी पड़ी थी।
 
पाटिल का कहना है कि स्थानीय कॉर्पोरेशन चुनाव के कारण भी नागपुर मोर्चे में कम लोग आए। नागपुर में बुधवार के मोर्चे के लिए भारी इंतज़ाम किया गया था। राज्य सरकार ने नागपुर और महाराष्ट्र के अन्य शहरों के बीच विशेष ट्रेनों का इंतज़ाम किया था।
 
बुधवार का मोर्चा नागपुर में जारी विधानसभा के शीतकालीन सत्र को देखते हुए आयोजित किया गया था। आयोजकों को उम्मीद थी कि विरोध प्रदर्शन के आखिरी दौर में लाखों लोग शामिल होंगे जिससे सरकार पर "अपनी मांगों को मनवाने का दबाव डाला जा सकेगा।"
 
मराठा आंदोलन की शुरुआत 13 जुलाई को अहमदनगर के एक गाँव कोपरडी में हुई एक गंभीर घटना से हुई थी। पुणे शहर से 125 किलोमीटर दूर कोपरडी गाँव में एक मराठा लड़की के बलात्कार और ह्त्या के खिलाफ विरोध ने एक
webdunia
जन आंदोलन की शक्ल ले ली थी। अब तक 40 जगहों पर मोर्चे निकाले जा चुके हैं।
 
मराठा राज्य की कुल आबादी का लगभग 35 प्रतिशत हैं और हर बड़ी सियासी पार्टी में मराठों की संख्या काफी अच्छी है। लेकिन मराठों के अनुसार मराठा आबादी में ज़्यादा किसान हैं जो ग़रीब हैं। उनकी कई मांगों में सब से अहम मराठा समाज के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को अचानक 1000 और 500 रुपये के नोटों पर पाबंदी लगाने का एलान किया था। उसके बाद वाली मराठा आंदोलन की सभी रैलिया लोगों की परेशानी और उनका ध्यान नोटबंदी की ओर होने के कारण प्रभावित हुई हैं। दिल्ली के इलावा कुछ और जगहों पर भी रैली रद्द करनी पड़ी।
 
संजय ताँबे पाटिल कहते हैं कि मराठा समाज का जोश कम नहीं हुआ है। सोशल मीडिया पर गतिविधियां बढ़ी हैं। "सोशल मीडिया पर मोदी सरकार के खिलाफ हम अपना विरोध प्रकट करते जा रहे हैं।"
 
मराठा रैलयों की खासियत ये थी कि ये शांतिपूर्ण, मूक और अनुशासित थीं। लेकिन अब पाटिल कहते हैं कि कुछ लोग हिंसा पर भी उतारू हो सकते हैं।
 
वो कहते हैं, "औरंगाबाद की रैली के समय आयोजक समिति में 25 सदस्य थे अब उनकी संख्या 10 के क़रीब रह गयी है।" उनके विचार में समिति के कमज़ोर होने से मराठा आंदोलन का अनुशासित रहना मुश्किल नज़र आता है।


हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

'नोटंबदी में काम आए ये झोला वाले बैंकर'