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वो जगह जहां से धरती पर आई थी क़यामत

हमें फॉलो करें वो जगह जहां से धरती पर आई थी क़यामत
, गुरुवार, 22 नवंबर 2018 (11:17 IST)
- मैथ्यू पोंसफ़र्ड (बीबीसी ट्रैवल)
 
एक दौर था, जब धरती पर डायनासोर का राज था। मोटे-लंबे, हट्टे-कट्टे, उड़ने वाले, दौड़ने वाले, तमाम तरह के डायनासोर धरती पर आबाद थे। पर आज से क़रीब साढ़े छह करोड़ साल पहले ऐसी तबाही आई कि डायनासोर ही नहीं, धरती पर रह रहे 80 फ़ीसदी जीव तबाह हो गए।
 
 
क़रीब 12 किलोमीटर में फैला एक उल्कापिंड धरती से आ टकराया। इस ब्रह्मांडीय बदलाव ने धरती को झकझोर डाला था। बरसों से वैज्ञानिक उस ठिकाने की तलाश में थे, जहां पर ये उल्कापिंड टकराया था। उन्हें वो जगह मिल नहीं पा रही थी।
 
 
1980 के दशक में अमरीकी पुरातत्वविदों का एक समूह, अंतरिक्ष से ली गई कुछ तस्वीरों की बारीकी से पड़ताल कर रहा था। इनमें मेक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप की भी तस्वीरें थीं। युकाटन के क़रीब ही समुद्र के भीतर एक गोलाकार जगह थी।
 
 
यूं तो सेनोट्स, यानी गोलाकार सिंक होल जैसी चीज़ें युकाटन की पहचान हैं। यहां सैलानियों को लुभाने के लिए बनने वाले ब्रोशर्स में भी सेनोट्स का ज़िक्र ख़ूब किया जाता है। सेनोट्स, युकाटान के समतल मैदानी इलाक़ों में दूर-दूर तक फैले हुए हैं।
 
 
लेकिन, जब आप इन्हें अंतरिक्ष से देखें, तो ये गुच्छे आधे गोले के तौर पर नज़र आते हैं। ऐसा लगता है कि कोई गोला परकार से गोला बना रहा था, और ज़मीन पर आधी लक़ीर खींचने के बाद ज़मीन ही ख़त्म हो गई।
 
 
कभी था माया सभ्यता का केंद्र
अमरीकी पुरातत्वविदों ने अंतरिक्ष से ली गई इन तस्वीरों को जोड़कर देखा तो युकाटन सूबे की राजधानी मेरिडा, समुद्री बंदरगाह सिसाल और प्रोग्रेसो, एक गोलाकार दायरे में बंधे से मालूम हुए।
 
 
कभी ये इलाक़ा माया सभ्यता का केंद्र हुआ करता था। अमेरिकी मूल निवासी माया के लोग इन सेनोट्स पर पीने के पानी के लिए निर्भर थे। वैज्ञानिकों को ये बात बड़ी अजीब लगी कि ये सभी एक गोलाकार दायरे में फैले हैं। 1988 में जब वैज्ञानिकों की कांफ्रेंस सेल्पर का आयोजन मेक्सिको के अकापल्को में हुआ, तो वहां इन अमरीकी पुरातत्व वैज्ञानिकों ने इस बात को सबके सामने रखा।
 
 
इस कांफ्रेंस में एड्रियाना ओकैम्पो भी मौजूद थीं। एड्रियाना ने उस वक़्त नासा में नौकरी शुरू की थी। वो एक भूवैज्ञानिक हैं। अब 63 बरस की हो चुकीं एड्रियाना बताती हैं कि उन्हें वो अर्धगोलाकार दायरे में फैले सिंक होल देखकर लगा कि उन्हें अपनी मंज़िल मिल गई है।
 
 
अब एड्रियाना नासा के लूसी मिशन से जुड़ी हैं जिसके तहत बृहस्पति ग्रह पर 2021 तक यान भेजा जाना है। उन्हें तस्वीरें देखते ही लग गया था कि ये वो जगह हो सकती है जहां पर कभी उल्कापिंड टकराया था। मगर बिना सबूत ये बात वो पक्के तौर पर नहीं कह सकती थीं।
 
 
सो, उन्होंने बाक़ी वैज्ञानिकों से पूछा कि क्या उन्हें ये ख़याल आया है? एड्रियाना हैरानी से कहती है कि 'वैज्ञानिकों को ये समझ ही नहीं आया कि मैं उनसे क्या बात पूछ रही हूं।'
 
 
लेकिन उन तस्वीरों से एड्रियाना ओकैम्पो का सामना होना, एक विशाल मिशन की शुरुआत थी, जिसमें ये पता लगाया गया कि युकाटन प्रायद्वीप के किनारे-किनारे स्थित वो सिंक होल या सेन्टोस असल में वो ठिकाने हैं, जहां पर साढ़े छह करोड़ साल पहले धरती से उल्कापिंड टकराया था।
 
 
उल्कापिंड टकराने से क्या-क्या हुआ था?
इस महाविस्फोट से ऐसी क़यामत आई थी कि पूछिए मत! चट्टानें पिघल गई थीं। 1990 के दशक से ही अमरीका, यूरोप और एशिया के वैज्ञानिक, इस पहेली की कड़ियां जोड़ रहे थे। अब वो इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि 6.5 करोड़ साल पहले जो 12 किलोमीटर चौड़ा उल्कापिंड धरती से टकराया था, उससे 30 किलोमीटर गहरा गड्ढा धरती पर बन गया था।
 
 
ठीक वैसे ही, जैसे किसी तालाब में पत्थर मारो तो पानी दब जाता है, फैल जाता है। इस टक्कर से पिघली चट्टानों से माउंट एवरेस्ट से भी ऊंचा पर्वत बन गया था, जो बाद में ढह गया। प्रलंयकारी इस घटना से दुनिया पूरी तरह से बदल गई थी।
 
 
क़रीब साल भर तक धुएं का ग़ुबार धरती पर मंडराता रहा था। सूरज की किरणें धरती पर आनी बंद हो गई थीं। पूरे साल भर तक धरती पर रात रही थी। इससे धरती का तापमान ज़ीरो से भी कई डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया था।
 
 
नतीजा ये हुआ था कि धरती के 75 फ़ीसद जीव-जंतु नष्ट हो गए। कमोबेश सारे डायनासोर उसी वजह से ख़त्म हो गए थे। उल्कापिंड जहां पर धरती से टकराया था, उसका केंद्र आज मेक्सिको के चिक्सुलब पुएर्तो नाम के क़स्बे के नीचे दबा हुआ है।
 
 
बहुत ही कम आबादी वाले चिक्सुलब क़स्बे में गिने-चुने कच्चे-पक्के मकान है। यहां की आबादी कुछ हज़ार होगी। इस क़स्बे की शोहरत दुनिया में ज़्यादा नहीं है। जिन लोगों को पता है, वो यहां आकर डायनासोर को श्रद्धांजलि देते हैं।
 
 
चिक्सुलब क़स्बे पहुंचने के लिए आप को टेढी-मेढ़ी सड़कों से गुज़रना होगा। लोगों को इस जगह की अहमियत नहीं पता। नतीजा ये होता है कि लोग पास ही इसी नाम के एक और क़स्बे चिक्सुलब पुएब्लो पहुंच जाते हैं।

 
डायनासोर्स को याद करता गांव
ये क़स्बा प्रोग्रेसो नाम के बंदरगाह से क़रीब 7 किलोमीटर पूरब में स्थित है। यहां आने पर आप को कतई एहसास नहीं होगा कि कभी यहां धरती को पूरी तरह बदल डालने वाली घटना हुई थी। क़स्बे के मुख्य चौराहे के पास आपको बच्चों की बनाई हुई डायनासोर्स की पेंटिंग मिलेगी। एक डायनासोर का बुत भी यहां पर दिखता है।
 
 
1991 में एड्रियाना ओकैम्पो ने अपनी तफ़्तीश को प्रकाशित कराया। उससे पहले तक युकाटन प्रायद्वीप के इस हिस्से में किसी की भी दिलचस्पी नहीं थी।
 
 
लेकिन, हाल ही में यानी सितंबर 2018 में यहां एक म्यूज़ियम खोला गया है। इसका नाम म्यूज़ियम ऑफ़ साइंस ऑफ़ द चिक्सुलब क्रेटर है। इस म्यूज़ियम का मक़सद लोगों को 6.6 करोड़ साल पहले आई क़यामत से रूबरू कराना है। इस म्यूज़ियम की मदद से यहां टूरिज़्म को बढ़ावा देने की तैयारी है।
 
 
इसके अलावा ये इलाक़ा माया सभ्यता का भी गढ़ रहा है। सो, यहां के मूल निवासियों की सभ्यता की पहचान को भी जुटाकर प्रदर्शनी लगाने का काम किया जा रहा है।
 
 
एड्रियाना ओकैम्पो मानती हैं कि चिक्सुलब पुएर्तो और आस-पास के इलाक़ों को दुनिया में और शोहरत मिलनी चाहिए। इस तबाही का नतीजा था कि आज इंसान का दुनिया पर राज है। वरना अगर डायनासोर ज़िंदा होते, तो हम नहीं होते। एड्रियाना कहती हैं कि उस प्रलय से ही इंसानी सभ्यता को पनपने का मौक़ा मिला।
 
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किसकी अस्थियां चांद पर दफ़न हैं?
एड्रियाना को उस उल्कापिंड के टकराने की सही जगह का पता लगाने में मशहूर अंतरिक्ष वैज्ञानिक यूजीन शूमेकर से मदद मिली थी। शूमेकर इकलौते वैज्ञानिक हैं, जिनकी अस्थियों की राख चांद पर दफ़्न है।
 
 
शूमेकर ने एड्रियाना को कहा था कि उस घटना के सिवा किसी और खगोलीय घटना से बने बिल्कुल गोलाकार सबूत मिलने नामुमकिन हैं। इसलिए अगर एड्रियाना की तलाश पूरी हो गई, तो उससे धरती के भौगोलिक विकास की एक रेखा खींचने में मदद मिलेगी।
 
 
उल्कापिंड की टक्कर से डायनासोर के ख़ात्मे की थ्योरी सबसे पहले कैलिफ़ोर्निया के पिता-पुत्र लुई और वाल्टर अल्वारेज़ की जोड़ी ने 1980 के दशक में प्रस्तावित की थी। मगर तब उसका बहुत विरोध हुआ था। लेकिन, एड्रियाना की तलाश से अल्वारेज़ पिता-पुत्र की थ्योरी सही साबित होती है।
 
 
इस पहेली की कई कड़ियां बिखरी हुई थीं। जैसे कि 1978 में भूवैज्ञानिक ग्लेन पेनफील्ड ने मेक्सिको की सरकारी तेल कंपनी पेमेक्स के लिए कैरेबियाई समुद्र के ऊपर के चक्कर लगाकर इसका सर्वे किया था। तेल की तलाश करते-करते उन्हें समुद्र के भीतर विशाल गड्ढा दिखा था। लेकिन ये सबूत तेल कंपनी पेमेक्स की मिल्कियत थी। सो, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था।
 
 
युकाटन के इस गोले को अल्वारेज़ की थ्योरी से जोड़ने का काम टेक्सस के पत्रकार कार्लोस बायर्स ने किया था कार्लोस ने 1981 में ह्यूस्टन क्रॉनिकल में अपने लेख में सवाल उठाया था कि क्या दोनों में कोई रिश्ता है?
 
 
मंगल ग्रह का वायुमंडल धरती जैसा था
बायर्स ने अपनी ये थ्योरी एक छात्र एलन हिल्डेब्रैंड से भी साझा की। एलन ने फिर पेनफ़ील्ड से संपर्क साधा। फिर दोनों मिलकर इस नतीजे पर पहुंचे कि जो गड्ढा समुद्र के भीतर था, वो कोई ज्वालामुखी नहीं, बल्कि उल्कापिंड के टकराने से बना गड्ढा था।
 
 
एड्रियाना ओकैम्पो हैरानी जताती हैं, "एक पत्रकार ने इतनी बड़ी खोज की!"...पर ये कहानी इतिहास के बिखरे हुए पन्नों को जोड़ने भर की नहीं है। ये हमें धरती से परे की दुनिया के बारे में जानकारी बढ़ाने में भी मददगार हो सकती है। नासा ने इस जानकारी का उपयोग मंगल ग्रह पर भेजे अपने यान क्यूरियोसिटी से आंकड़े जुटाने में किया है।
 
 
मंगल की सतह और भूवैज्ञानिक गठन को जांच-परख कर ये पता लगाया जा रहा है कि उल्कापिंड टकराने का मंगल ग्रह पर क्या नतीजा हुआ होगा। संकेत ऐसे मिलते हैं कि मंगल ग्रह का वायुमंडल पहले धरती जैसा ही रहा होगा।
 
 
एड्रियाना कहती हैं कि, "अतीत की घटनाओं से हमें भविष्य के संकेत मिलते हैं। उनकी तैयारी आसान होती है। जो भी युकाटन प्रायद्वीप पर हुआ, उससे मंगल पर हुई भौगोलीय घटनाओं के संकेत मिलते हैं।"
 
 
लेकिन, चिक्सुलब क्रेटर से जुड़ी ज़्यादातर जानकारी चट्टानों की मोटी परतों के भीतर दबी हुई है। स्थानीय लोगों को अभी भी इसके बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है। मेक्सिको की सरकार ने इस क्रेटर को विश्व धरोहर घोषित करने के लिए यूनेस्को में अर्ज़ी दी है।
 
 
यहां स्थित मीठे पानी के गड्ढों में मछलियों के साथ तैरते हुए शायद ही लोगों को एहसास होता होगा कि ये वो जगह है, जो प्रलय का गवाह रहा है। ऐसी क़यामत जो धरती ने 10 करोड़ साल में सिर्फ़ एक बार देखी है।
 
 
एड्रियाना इस बात पर अफ़सोस जताती हैं। वो कहती हैं कि, "ये हमारे ग्रह की सबसे ख़ास जगह है। ये विश्व धरोहर है।"
 

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